वृद्धाश्रम.. – विनोद सिन्हा “सुदामा’

माँ जल्दी करो बस छूट जायेगी…. रमेश ऑफिस से आते ही अपनी माँ बिमला देवी को पुकारने लगा.. माँ भी अचंभित कमरे से बाहर आकर कौतूहल भरी नज़रें लिए रमेश से पूछने लगी… अरे कहाँ जाना है जो इतना हो हल्ला कर रहा और क्यूँ व्यग्रता दिखा रहा है.? पहले तुम चलो तो रास्ते में … Read more

बड़ा भाई भी पिता समान: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

उस मनहूस घड़ी को गुजरे तक़रीबन पन्द्रह वर्ष बीत गए लेकिन उसकी तपिश आज भी रमाकान्त को व्याकुल कर देती है। बारहवीं पास करने के बाद दो चीज़ हुई, पहली रमाकान्त पास हो गया और दूसरी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान में अचानक से बहुत बड़ी वृद्धि कर दी। रमाकान्त के लिए सबसे बड़ी … Read more

धोखा – मिठू डे

ये रात को हेड्क की दवाई खाने के बाद नींद बड़ी अच्छी आती हैं इतनी की काम पर जाने के लिए सुबह नींद से जागना बड़ा दुशवार सा लगता है ।पिछले एक महीने कि तरह आज लड़का फिर देरी से आफिस पहुंचा।     आफिस पहुचते ही रोज की तरह किच-किच शुरू हो गई । किसी तरह … Read more

बेसहारा – रश्मि स्थापक

“अरे! भानू… यह वही हाथ-गाड़ी है न जिसमें जगन को ले जाते थे तुम …।” मोहल्ले की सोसाइटी के अध्यक्ष नरेश ने पूछा। “हाँ साब…अस्सी से ऊपर के हो गए थे चाचा… दिखता बिल्कुल नहीं था उन्हें इसीलिए मैंने खुद ये गाड़ी उनके लिए बनाई थी…  उन्होंनें काम करना कभी नही छोड़ा … मैं उन्हें … Read more

अर्पण – रश्मि स्थापक

“दीदी देख…ये देख झुमकी…जरा देख …अच्छी है न?” सबसे छोटी बहन ने बड़े उत्साह से अपनी तीनों बहनों के बीच सुंदर डिबिया में से सुनहरी चमचमाती झुमकियाँ निकालकर बताते हुए कहा। अपने छोटे और इकलौते भाई के विवाह में चारों बहनें मायके में इकट्ठी हुई हैं। सब होने वाली भाभी के लिए क्या गिफ्ट लाई … Read more

त्याग – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

माँ! पिताजी हरदम एक ही राग क्या अलापते रहते हैं?? काम के ना काज के दुश्मन अनाज के! मुझे उनके मुहावरे बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं कह देना उनसे! जब से रिटायर क्या हुए हैं जीना हराम कर दिया है उन्होंने। जब देखो नसीहतों का पिटारा लेकर बैठ जाते हैं। खाली दिमाग….!” माँ ने जोर … Read more

लाडली – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मोबाइल लिये लगभग वह भागती हुई बैठक में आईं। “अरे सुनो! बिट्टू के ससुराल से फोन है।लो बात कर लो, पता नहीं अचानक क्या बात है?”            “तुम ही कर लो ना! माँ हो बिट्टू की।” “नहीं-नहीं मुझे ठीक से बात करने नहीं आती। पढ़े लिखे बड़े लोग हैं उनसे तुम्हीं बात करो।” “ठीक है लाओ … Read more

मेरे भाई पिता से बढ़कर – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

अरे भई!  कोई नहीं आने वाला है तुम्हें देखने क्या झूठ- मूठ का आशा लेकर बैठ गई हो। अब वो दिन गया जब एक छींक पर तुम्हारे पापा तुम्हें देखने के लिए मैके से किसी न किसी को दौड़ा दिया करते थे समझी। कई बार फोन कर चुका हूँ, कोई खास ग़म नहीं है तुम्हारे … Read more

 बड़ा भाई पिता के समान होता है – अरुण कुमार अविनाश

” मैडम, छः माह की फीस बाकी है – बच्चों के हाथ कई बार नोटिस भेजा पर –।” नलिनी हताश-सी फीस क्लर्क की ओर उम्मीद से देखी। ” मेरे बस में कुछ नहीं मैडम – आप प्रिंसिपल मेम के पास जाइये।”– नलिनी के चेहरें पर वेदना के भाव देख कर फीस क्लर्क पिघला। आखिरी कोशिश … Read more

बेसहारा –  मुकुन्द लाल

सुदेश के पिताजी की मृत्यु दो दसक पहले गंभीर बीमारी की चपेट में पड़ने के बाद उचित इलाज नहीं होने के कारण हो गई थी।  अक्सर गरीब के घर में गंभीर बीमारी के आगमन का अर्थ साक्षात वहांँ यमदूत का पदार्पण ही होता है। कुछ इसी तरह की बातें प्राइवेट फर्म में काम करने वाले … Read more

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