वृद्धाश्रम.. – विनोद सिन्हा “सुदामा’

माँ जल्दी करो बस छूट जायेगी….

रमेश ऑफिस से आते ही अपनी माँ बिमला देवी को पुकारने लगा..

माँ भी अचंभित कमरे से बाहर आकर कौतूहल भरी नज़रें लिए रमेश से पूछने लगी…

अरे कहाँ जाना है जो इतना हो हल्ला कर रहा और क्यूँ व्यग्रता दिखा रहा है.?

पहले तुम चलो तो रास्ते में बताता हूँ,अपना सामान समेटो और चलो जल्दी अभी ज्यादा वक़्त नहीं तुम्हें सबकुछ बताने या सुनाने की….

रमेश की पत्नी रीमा वहीं खड़ी सब कुछ देख और सुन रही थी पर मुह से कुछ नहीं कह रही थी,माँ भी अब थोड़ा दुखी और परेशान हो चली थी यह सोचकर कि जाने क्या हुआ जो रमेश इसतरह से बर्ताव कर रहा है..आज़तक तो इसतरह से पेस नहीं आया कभी किसी के साथ,…

उन्होंने बहू से पूछा…

बहू शांत खड़ी थी – 

वो कुछ नही कहेगी….तुम चलो जल्दी..

बिमला देवी…बहू को प्रश्नभरी नज़रो से देखती कमरे मे गयी..


उन्होंने जल्दी जल्दी अपना सामान एक बक्से में डाला और कमरे से बाहर आ गयी..

इतने पर भी उसकी बहू के मुख से एक शब्द नहीं निकले थे,ना ही रमेश ने अपनी पत्नी से न कुछ कहा और पूछा था यहाँ तक उसकी ओर देख भी नहीं रहा था हाँ गुस्से की आग जरूर नज़र आ रही थी रमेश की नज़रो में..

माँ ने फिर पूछा..बेटा बता तो सही कहाँ जाना है और बहू क्यूँ नहीं जा रही हमारे साथ…

वो तुम्हारे साथ नहीं जा सकती वहाँ सिर्फ हम और तुम रहेंगें…

रहेंगें..? मतलब,कहाँ जाना है और कहाँ रहना है और बच्चें कहाँ जाऐंगे.?

रमेश बोला..इस घर को छोड़कर दूसरे घर रहना हैं तुम्हें,इस घर में अब तुम्हारा गुज़ारा नहीं हो सकता..रमेश की आवाज़ अब लड़खड़ाने लगी थी मानों अगले ही पल रो देगा,आज उसकी पत्नी ने जो फोन पर कहा था उससे वह काफ़ी आहत हुआ था,जिस माँ ने उसे जन्म दिया पाला पोषा,और स्वयं उसके लिए रीमा को उसकी पत्नी के रूप में पसंद किया आज वो बहू अपनी सास को अपने साथ नहीं रखना चाहती है,आज उसे दो कमरें का घर उसकी माँ की वज़ह से छोटा दिख रहा था…कहती है बंटी बब्ली और माँ एक ही कमरे में रहते हैं,थोड़ी परेशानी होती है अगर माँ को बृद्धा आश्रम में पहुँचा दें तो दोनों बच्चें आराम से रह सकेंगे..और फिर हम उनसे हफ्ते महीने वहां जाकर मिलते रहेंगे..

रमेश ने रीमा को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन रीमा मानने के लिए तैयार नहीं थी..

वो कह रही थी..उसके घर में वो और बच्चें क्यूँ तकलीफ में रहे..क्या इस तकलीफ के ले ही उसने ऑफिस से लोन लेकर यह घर खरीदा है

रमेश चाहता तो पत्नी को इस बात के लिए भला बुरा कह सकता था लेकिन कहा नहीं और मन ही मन  कुछ सोच..उसने किसी से फ़ोन पर बात की और साम का वक़्त मुकर्रर कर घर को चल दिया और माँ को घर छोड़ दूसरे घर चलने के लिए कहने लगा…उसे उम्मीद नहीं थी कि उसकी पत्नी जिसे माँ ने बहु कम बेटी ज्यादा माना ऐसा कह और कर सकती है.


चलो माँ जल्दी करो…उसने फिर कहा

बच्चों को भी लेते जाओ उन्हें क्यूँ छोड़े जा रहे और फिर जाओगे कहाँ….?

दूसरा घर तो है नही…?

अब पत्नी रीमा ने मुह खोला..

कहीं जाए…तुम्हें क्या? तुम्हें तो सिर्फ तुम्हारे खुद से और तुम्हारे घर से मतलब है रहो अकेली..मैंने माँ के लिए दूसरा घर ठीक कर लिया है

अरे आखिर बात क्या है..बहू अकेली..हम दूसरे घर..बताओ तो सही..बहू तुम ही कुछ कहो..

कुछ नहीं माँ जी,रीमा अपने शांत चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए बोली..

देखना चाहती थी कि आपका सुपुत्र मेरा पति है या आज भी आपका बेटा ही है..पर अफ़सोस न मैं जीती न मैं हारी..बस हल्का मजाक किया था…आज 1 अप्रैल है..न #मुर्ख दिवस….बेचारे…तुरंत आपको घर से बाहर ले जाने को तैयार हो गए..ये भी न पूछा हुआ क्या और ऐसा क्यूँ करना.? माँ जी अब आप ही बताओ न मैं आप से लड़ती हूँ न आप मुझसे झगड़ती हैं न मुझे कुछ भला बुरा कहतीं, सदा बेटी की तरह वर्ताव करती हैं और बेटी की तरह ही रखती हैं..आप जैसी सास तो  किसी खुशकिस्मत को ही मिलती है..मैं तो आपको ईश्वर का आशीर्वाद समझती हूँ… अगर कभी कुछ कहा भी तो तकलीफ़ कैसी माँ ही तो है आप लेकिन अफसोस आपके बेटे ने मुझे आपकी बहू ही समझा बेटी नहीं..

बस तैयार हो गये हमें बिना सोचे समझे हमें अलग करने के लिए..आखिर आज के बेटे जो ठहरे.

रमेश शर्म बस सर झुकाए खड़ा था..

रमेश की माँ सारा माज़रा समझ चुकी थी ,हँसते हुए…बहू-बेटे दोनों को गले लगाकर कहा ख़ुश रहो मेरे बच्चे,तुम दोनों के जैसी अगर हर बेटे बेटी की सोच हो जाए तो कोई भी माँ बाप वृद्धावस्था में लाचार परेशान न हों और ना ही उन्हें कभी वृद्धाआश्रम का मुह देखना पड़े.।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!