मेरे भाई पिता से बढ़कर – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

अरे भई!  कोई नहीं आने वाला है तुम्हें देखने क्या झूठ- मूठ का आशा लेकर बैठ गई हो। अब वो दिन गया जब एक छींक पर तुम्हारे पापा तुम्हें देखने के लिए मैके से किसी न किसी को दौड़ा दिया करते थे समझी। कई बार फोन कर चुका हूँ, कोई खास ग़म नहीं है तुम्हारे लिये। सिर्फ फॉर्मलीटी दिखाते हैं सब और कुछ नहीं।

पति की बातें सलोनी को चुभ सी गई।

“आप ऐसा क्यों सोचते हैं पापा नहीं हैं तो क्या हुआ अभी भी सब मुझे बहुत प्यार करते हैं। हां यह बात अलग है कि अब सब अपनी -अपनी जिम्मेदारियों में लगे हैं ।”

“बस तरफदारी करना बंद करो।”

सिर्फ दिखावा रह गया है वह भी फोन पर।

सलोनी पति की बातों को अनसुना कर करवट बदल कर दर्द को छुपाने का प्रयास करने लगी। एकाएक उसके आँखों से टप -टप आंसू गिरने लगे। वह सोचने लगी क्या सचमुच ही उसे कोई याद नहीं करता?माँ पापा के  दुनियां से जाने के साथ ही सारा प्यार खत्म हो गया? नहीं -नहीं ऐसा नहीं हो सकता।

बड़े भैया तो जान से भी ज्यादा प्यार करते थे। छोटा भाई भी तो मेरे बिना एक पल नहीं रह पाता था। कई बार माँ उसे झिड़की देतीं थीं कि बहन के साथ ससुराल जाएगा क्या !

बीच में भैया बोल पड़ते कहीं नहीं जा रही है मेरी सलोनी परी। “


जब शादी की बात आई थी तो पापा को भैया ने साफ कह दिया मेरी बहन की शादी वहीं होगी जहां के लिए वह हां करेगी आप उस पर दबाव नहीं डालेंगे। एक कमी नहीं होने दी थी भैया ने शादी में। विदाई के समय दोनों भाई गले लगकर फुट- फुट कर रो रहे थे। उसके बाद भी हर साल राखी और भाई दूज में उनका आना तय था।

शादी के बाद आना जाना कुछ कम हो गया था लेकिन

उनकी भी अपनी गृहस्थी है,जिम्मेदारी है बच्चे हैं सब छोड़ छाड़ कर मुझ में ही तो नहीं लगे रहेंगे। सोचते -सोचते  सलोनी की जाने कब आँख लग गई थी ।

“देखिये इनका किडनी धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहा है जितनी जल्दी हो सके कोई इंतजाम कर लीजिए वर्ना मुश्किल हो सकता है।” डॉक्टर की आवाज सलोनी की कानों ने सुन लिया था फिर भी वह अपने आपको रोक कर बिना कोई हरकत किये लेटी रही।

डॉक्टर के जाने के बाद पति ने अपने सिर पर हाथ रख कर कहा -“पता नहीं भगवान ने कौन सा दिन दिखाया है एक -एक कर सभी रिश्तेदारों को देख लिया कोई भी इस आफत में साथ नहीं है ।”

“मैं अब नहीं रुक सकता,सलोनी को अपना एक किडनी दे ही दूँगा “।

“पागल हो गया है क्या या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। सारी उम्र अभी पड़ी है पहाड़ की तरह छोटे छोटे बच्चे हैं उनको कौन देखेगा। मैं तुम्हें यह नहीं करने दूंगी।बगल में बैठी सास बोल पड़ी “।

फोन कर बहु के परिवार वालों को आकर कोई इंतजाम करें । किस दिन काम आयेंगे रिस्तेदार। सिर्फ दुलार दिखाने से थोड़े ही हो जाता है।

सलोनी अपनी सास की बातों को सुन कर स्तब्ध सी रह गई। दस साल शादी को होने वाले हैं उसने अपना तन -मन -धन सबकुछ ससुरालवालों पर न्यौछावर कर दिया ।  इनके लिये वह अपने मायके को भी भूल गई और आज जब वह बीमार है तो उस के लिए उनके दिल में कोई जगह नहीं है। ये लोग सहारा क्या देंगे सहानुभूति भी नहीं है मेरे लिए। इन्हें अभी भी मैके वाले ही दिखाई दे रहे हैं । उसने अपने  बेतहाशा बहते आंसूओं को रोकने की  बहुत कोशिश की, हाथ से अपने मुँह को ढक लिया ताकि वे लोग उसकी सिसकी ना सुन लें।

हॉस्पिटल में सात दिन बीत गये पर कोई इंतजाम नहीं हो पाया। वह समझ चुकी थी कि जिंदगी का साथ कुछ दिनों का ही है। एक -एक कर सभी रिस्तेदार आते गये और झूठी सांत्वना देकर अपना फर्ज निभाते गए।


उस दिन सुबह से ही सलोनी को चक्कर जैसा आ रहा था। उसके बाद उसे कुछ भी याद नहीं था।

धीरे-धीरे उसके कानों में  हल्की सी आवाज आई… देखो दीदी के शरीर में हरकत हो रहा है। प्लीज डॉक्टर को बुलाएंगे आपलोग….।

मेरा भाई…

सलोनी को अब साफ सुनाई दे रहा था यह आवाज छोटे भाई की थी। हालांकि वह आँख खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी । इतने में डॉक्टर आ पहुंचे उसके हाथ का नर्व देखते ही बोल पड़े भगवान का लाख -लाख शुक्र है किडनी ने काम करना शुरू कर दिया है। आप लोगों की दुआ उपर वाले ने सुन ली है। बस थोड़ा केयर कीजिये जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगी। अभी कुछ दिन तक बहुत केयर की आवश्यकता है।

पर कैसे?

कैसे हुआ यह सब….? मेरी किडनी तो ….

सलोनी के दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि किसी की आवाज सुनाई दे गई ।शायद नर्स थी  -“

बहुत भाग्यशाली बहन हैं जो ऐसा बड़ा भाई मिला है पिता से भी बढ़कर…. अपना किडनी देकर जिंदगी बचा ली बहन की..भगवान ऐसा भाई सबको दे।”

स्वरचित एवं मौलिक

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!