लाडली – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मोबाइल लिये लगभग वह भागती हुई बैठक में आईं।

“अरे सुनो! बिट्टू के ससुराल से फोन है।लो बात कर लो, पता नहीं अचानक क्या बात है?”

           “तुम ही कर लो ना! माँ हो बिट्टू की।”

“नहीं-नहीं मुझे ठीक से बात करने नहीं आती। पढ़े लिखे बड़े लोग हैं उनसे तुम्हीं बात करो।”

“ठीक है लाओ फोन दो।

“हलो!

‘अच्छा,अच्छा समधी जी,कैसे हैं आप सभी?”

“हाँ जी, हम सब ठीक हैं। आपको एक सूचना देनी थी इसीलिए फोन किया।”

“अच्छा,जी बताईये।”

“कल आपकी नातिन की छठ्ठी है।आप आना चाहते हैं तो”.. अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि पिताजी बीच में बोल पड़े- “हमलोग कैसे नहीं आयेंगे,जरूर आयेंगे। इससे बड़ी खुशी और क्या होगी हमारे लिए। आपने हमें बुलाया इसके लिये धन्यवाद जी।”


वे फोन रख कुर्सी पर बैठ गये।

“क्या हुआ?”

“होगा क्या ! ऑपरेशन में नहीं बुलाया हमें। अब बुला रहें हैं।अच्छा अब कोई मलाल नहीं। नातिन की छठ्ठी है कल।”

 “यह तो खुशी की बात है! चलिये मैं भी चलती हूँ, बेटी को देखे कितने दिन हो गये। शादी के बाद से बस एक ही बार तो आई थी यहां वो भी दो दिन के लिये…पग फेरे के समय।”

“ठीक है-ठीक है , इतने बड़े और संपन्न घर में गई है हमारी दूलारी बेटी। देखा नहीं दामाद जी कितना असहज महसूस कर रहे थे। दो दिन इस गरीब खाने में रुक गये वही बहुत है।”

“हाँ ,ये बात तो आप ठीक ही कह रहें हैं- कहाँ राजा भोज और कहां ….।”

“अच्छा, चलो हम जो भी हैं कम से कम हमारी बेटी तो नसीबों वाली है न।”

“अरे!कैसी बात कर रहे हैं,  बेटी का नसीब बनाने में आपका ही तो हाथ है। भगवान सब बेटियों को आपके जैसे पिता दे। जी जान लगा दिया उसका भाग्य बनाने में। पढ़ाया-लिखाया अपने हैसियत से बढ़कर उसके लिये ससुराल ढूँढ़ा। ले दे कर एक घर था उसे भी गिरवी रख दिया उसकी शादी में।”

“तो क्या हुआ, अपनी औलाद के लिये तो सब करते हैं।अब तुम मेरा गुणगान छोड़ कर तैयारी करो। कल सुबह ही निकल चलेंगे। तब तक अपनी लाडली की खास पसंद वाली मिठाईयाँ लेकर आता हूँ।”

झोला उठाकर जाने को हुये तभी फोन की घंटी बजी।

“अरे! देखिये तो किसका है।”

“बिट्टू का है, लो लगता है कुछ दिल की बात करेगी।”

“पूछो पूछो क्या बात है?”

“तुम्हीं बात कर लो न तुम्हारी दूलारी है।”

“अच्छा ठीक है।”

उन्होंने फोन को कान में लगाया…बिट्टू की ही आवाज थी।

“माँ …!”

“उन्होने मुस्कुराते हुए सोचा पहले सुनता हूँ माँ से क्या कहना चाह रही है मेरी राजदुलारी!”

“माँ! सुनों ‘ससुर जी ने तो बुलाने के लिए कह दिया।लेकिन तुम पापा को मत भेजना। उनका ओढ़ने -पहनने का सलिका बिल्कुल गंवारो जैसा रहता है। पता है तुम्हें, पिछ्ली बार वाचमैन उन्हें घुसने नहीं दे रहा था। “मेरे भी तो स्टेटस का ख्याल रखो ….l”

दूर बैठी माँ निहाल हो रही थी बाप बेटी को बात करते देख कर ।उन्हें क्या पता कि माँ समझ बेटी ने पिता से क्या कहा था।


अपनी बात खत्म कर बिट्टू ने जल्दी से फोन काट दिया

वापस मुड़ी तो सामने उसका पति खड़ा था। उसने आश्चर्य से बिट्टू को देखा।

“तुम! यह क्या बोल रही थी माँ से।”

“कुछ तो नहीं!”

“छुपाओ मत मैनें सब सुन लिया है।

तुमने ऐसा क्यों कहा?

क्या बीत रही होगी उनके दिल पर। तुम नसीब वाली हो जो उनके जैसे माँ -बाप मिले हैं और एक तुम हो मना कर दिया उन्हें।

अपना सबकुछ दाव पर लगा कर तुम्हें खुशहाल जीवन दिया है उन्होनें और तुमने उन्हें उनका औकात बताने का बीड़ा उठाया है। छी: छी: मुझे शर्म आ रही है कैसी बेटी हो। हद कर दिया तुमने।अपने साथ साथ मुझे भी गिरा दिया उनकी नजरों में।”

बिट्टू भागकर अपने कमरे में गई और तकिये में मुहँ छूपा कर रोने लगी। वह कैसे बताती कि उसने क्यूँ माँ को मना किया था कि पापा को मत भेजना। वह अपने पापा से कितना प्यार करती है इसका प्रमाण वह कैसे दे। वह ,चाहती भी कहां थी कि पापा को कोई परेशानी हो उसके शादी में ।उसे, तो तब पता चला कि पापा ने उसके लिए घर गिरवी रख दिया है जब वह पग-फेरे में माँ के घर गई। वह भी उसकी सहेलियों ने बताया था। जानने के बाद वह तो पापा से नजर भी नहीं मिला पा रही थी।

 वह क्या बताये अपने पति को जो दो दिन के लिए छुट्टी लेकर देश की सीमा पर से आया था बेटी को देखने। उसे हरदम नसीहत दी जाती है की वह घर की कोई बात पति को नहीं बताये।

वह, कैसे बताये कि घर वाले उससे बात की शुरुआत ही तानों से करते हैं।उसके पिता -तुल्य ससुर जी के निशाने पर हमेशा पापा ही रहते हैं। लोअर -ग्रेड के सम्बोधन से उन्हें सम्बोधित किया जाता है। जब भी किसी को पापा के विषय में बताना होता है तो उनका स्टेटस डाऊन होने लगता है।

वह क्या बताये अपने पति से कि ऑपरेशन के समय सिर्फ इसलिये उसके पापा को नहीं बुलाया गया क्युकि वे खाली हाथ चले आते जिससे ससुर जी का स्टेटस कम हो जाता। इसने खुद अपनी कानो से उन लोगों को कहते सूना था हॉस्पीटल में।

बिट्टू जानती थी कि किसी की बातों का परवाह किये बिना उसके पापा कहीं भी उसके लिये जा सकते है । लेकिन उसे कतई मंजूर नहींथा कि कोई पापा को नीची नजर से देखे। इसिलिए उसने ऐसी बात माँ को बोला था ।

                         बिट्टू रोते-रोते कब सो गई पता ही नहीं चला।उसकी आँख तब खुली जब बच्ची की जोड़ से रोने की आवाज आई। उसके पति उसे गोद में लिये चुप कराने की कोशिश में लगे थे। बिट्टू की आँखे सूजी हुई थी। वह अपने पति से नजर चुराने की कोशिश कर रही थी ।

सुबह से ही पूरे घर में चहल- पहल शुरु हो गया था ।

आगे लॉन में वॉटर-प्रूफ टेंट लग गया था। वी-आई-पी अतिथियों के लिए खास व्यवस्था की गई थी। जैसे छठ्ठी न हो शादी हो घर में। पूरा घर दुल्हन की तरह सजा था।पर घर की दुल्हन की चिंता किसी को नहीं थी। बिट्टू का दिल अंदर ही अंदर रो रहा था। उसे तो पता था कि अब उसके मायेके से कोई नहीं आएगा। उसकी सास ने बातों ही बातों में हिदायत दे दी थी कि कोई आये तो बंगले के पिछे वाले रास्ते से अंदर आये और कुछ “लो-ग्रेड”गिफ्ट साथ लाये तो उसे अपने कमरे में ही रखवा देना। ससुराल के स्टेटस का ख्याल रखना तो तुम्हारा फर्ज होना चाहिए। बिट्टू हाँ में सिर हिला कर अपने कमरे में चली गई।

शाम होते ही पार्टी शुरु हो गई। पूरा घर मेहमानों से भरा हुआ था।लेकिन बिट्टू का दिल बिल्कुल बेजार था। उसे बच्ची को लेकर बुलाया गया जहाँ सभी चीफ गेस्ट बैठे हुए थे।भारी मन से वह धीरे-धीरे बाहर आई। सब बच्ची को देखने के लिए टूट पड़े। वह बिल्कुल अकेली रह गई।उसके आस पास कोई नहीं था। बस उसकी सूनी निगाहें  दरवाजे की ओर देखे जा रही थी। तभी पति के हाथ में पापा की अटैची देखकर वह चौक गई….उसके मुहँ से अनायास निकला “पापा…”

 “हाँ बेटा ,दामाद जी सुबह से ही जिद पकड़ कर बैठ गये थे कि साथ लेकर ही जायेगें। आना ही पड़ा।”

बिट्टू यही सम्मान तो दिलाना चाहती थी अपने पापा को। उसकी आखों में रुका हुआ आँसूओ का सैलाब उमड़ पड़ा। पापा के गले लगकर खूब रोई। उसकी आँखें ग्लानि से और गीली हो गई जब पापा ने बताया कि फोन माँ ने नहीं उन्होनें ही उठाया था।

पापा ने कहा- “बेटा माँ बाप अपनी औलाद को अच्छी तरह से जानते हैं। मैं सब समझ गया था।”

उसके आँसू थे की रूकने का नाम नहीं ले रहे थे।उसने अपने पति की ओर कृतज्ञता से देखा। उसके पति ने कहा -“बिट्टू मुझे भी भगवान ने आज एक बेटी दी है और बेटी से दूरी का दर्द का अहसास मुझे भी है।

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