बड़ा भाई भी पिता समान: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

उस मनहूस घड़ी को गुजरे तक़रीबन पन्द्रह वर्ष बीत गए लेकिन उसकी तपिश आज भी रमाकान्त को व्याकुल कर देती है।

बारहवीं पास करने के बाद दो चीज़ हुई, पहली रमाकान्त पास हो गया और दूसरी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान में अचानक से बहुत बड़ी वृद्धि कर दी। रमाकान्त के लिए सबसे बड़ी ख़ुशी उसका पास होना था, जबकि बड़े भैया समाचारपत्र पढ़ कर खुश हो रहे थे।

पिताजी शाम को कार्यालय से वापस आए तो साथ गर्मागर्म कचौड़ी और समोसे लेते आए, उनको पता था की मुझे कचौड़ी से ज़्यादा समोसे पसंद हैं।

बड़े भैया ख़ुशी में झुमते हुए पिताजी की जेब से पैसे निकाल कर चिकेन लाने निकल पड़े, हाँ पिताजी की जेब से पैसे या तो माँ निकाल सकती थी या बड़े भैया, एक बार रमाकान्त को ज़रूरत थी तो निकाल लिया था, जाते जाते माँ को भी बोल गया फिर भी पिताजी ने चप्पल फेंक कर मारा था।

रात को जब सबलोग खाना खा रहे तो रमाकान्त ने सुना भैया और माँ की बात:

माँ, पिताजी को अब ज़्यादा पैसे मिलेंगे।

हाँ, बताया तुम्हारे पिताजी ने।

तो फिर क्या सोचा है?

पहले तो गले का हार और झुमके लूँगी।

उसके बाद मैं म्यूज़िक सिस्टम लूँगा।

एक बार रमाकान्त को पुछ लेना।

वो क्या करेगा? उसको पढ़ने दो।

रमाकान्त चिकेन नहीं खाता इसलिए दूसरे कमरे में खा रहा था, अपने आप को इस तरह नज़रअंदाज़ करते देख उसे बहुत ग़ुस्सा आया, अपने से दोनों छोटे भाइयों की तरफ़ देखते हुए बोला:


घबराओ नहीं रे तुमलोग, हम कमाएँगे तो तुम लोग को जो चाहिए ख़रीद देंगे।

वैसे भी पिताजी का वेतन बढ़ कर भी हमारे लिए कुछ नहीं होगा, उसके बाद भी मैं दस किलोमीटर साईकिल चला कर कॉलेज जाऊँगा, तुमलोग टेंपू से स्कूल जाएगा, जैसे बड़े भैया अभी मोटरसाइकिल से दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घुमते हैं वैसे ही घुमते रहेंगे, और हाँ उस अब तो म्यूज़िक सिस्टम भी आएगा तो तैयार रहो परेशान रहने के लिए, रेडियो से कम परेशान थे सो उसका जुगाड़ भी हो रहा है।

दोनों छोटे भाई रमाकान्त को व्याकुल हो कर बोलते देख चुपचाप मुंडी हिला रहे थे, उन्हें भी पता है जब बड़े भैया कपड़े जूते लेने जाते हैं तो उन्हें माँ-पिताजी तीन से चार हज़ार देते हैं और रमाकान्त भैया को आठ सौ.

खैर, पिताजी के पे स्केल बढ़ने से भी परिवार में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा, फ़र्क़ पड़ा तो सिर्फ़ बड़े भैया के जीवन पर, मोटरसाइकिल बदल गई और बदल गई पिछे बैठने वाली, अब तो घर में रोज़ कोहराम मचता, भैया ने तो पत्थर की लकीर खींच दी की शादी उसी से करूँगा, एक तो खुद कुछ कमाते नहीं उपर से दुसरे खर्च का जुगाड़ कर आए।

एक दो बार माँ ने मना किया बाद में वो भी मान गई, पिताजी तो बड़े बेटे को शान समझते थे सो वो जो भी करें सब ठिक है।

एक तो प्रेम विवाह और दुसरा लड़की वालों ने साफ़ बोल दिया इस शादी में हम एक धेला भी खर्च नहीं करेंगे।


शादी के सारे ख़र्चे, रिश्तेदारों को मनाने के लिए अच्छे कपड़े-गिफ़्ट और मोहल्ले वालों को खिलाने में पिताजी की सारी जमा पूँजी खर्च हो गई।

शादी के बमुश्किल छ: महीने हुए होंगे की भाभी ने भैया को परिवार से पुरी तरह अलग कर दिया, वैसे भी भैया को परिवार से कोई ख़ास मतलब था नहीं, मतलब था तो पिताजी के पैसों से।

उस शाम पिताजी बहुत मायूस हो कर घर आए थे, बोल रहे थे उनके बड़े साहब ने बहुत बड़ा ग़बन किया है, पुरे डिपार्टमेंट पर इन्क्वायरी होगी तब तक किसी को न ही तनख़्वाह मिलेगी और न ही कोई और सहायता।

अब तो पिताजी घर पर ही रहते साल भर से उपर हो गए कुछ नतीजा नहीं निकला, रमाकान्त कॉलेज की पढ़ाई पुरी करने ही वाला था की घर की स्थिति चरमरा गई, हालत ए हो गए की दोनों छोटे भाइयों की पढ़ाई की फ़ीस भी पुरी नहीं हो पाती, पिताजी रोज़ ऑफिस वालों को गाली देने से दिन शुरू करते और गाली देकर ख़त्म करते, रमाकान्त से यह सब देखा नहीं गया, उसने क़ाबिलियत के अनुसार नौकरी कर ली, जो पैसे मिलते उसका सत्तर फ़ीसदी माँ के हाथ में पकड़ा देता और बाक़ी अपने खर्च के लिए रख लेता, ऑफिस आने-जाने का किराया भी तो लगता था।

भाभी शुरू से एक ऑफिस में काम करती थी, घर के हालात देख कर उसने सबसे पहला काम किया किराए का मकान ले लिया उसके बाद भैया को ले कर नाज़ुक स्थिति में परिवार से दुर भाग ली।

पिताजी की नौकरी तीन साल तक उसी हालत में रही, रमाकान्त जब माँ को पैसे देता तो पिताजी एक बार ताना जरुर देते – बड़का बेटा साथ होता तो इससे दो गुना कमा कर लाता।

यह सब सुन कर रमाकान्त का मन छलनी हो जाता, मन शाँत करने बग़ल वाले अंकल के घर चला जाता।

अंकल हमेशा समझाते – बेटा हर काली रात की सुबह होती है, क़ायदे से तुम बड़े बेटे नहीं हो, लेकिन दो छोटे भाइयों के बड़े भैया तो हो कम से कम, याद रखना बड़ा भाई पिता समान ही होता है, मैं खुश हूँ तुमने ऐसे नाज़ुक स्थिति में छोटे भाइयों की पढ़ाई को जारी रखने में पिता समान योगदान दिया है।

मेरी नज़र में तुम ही बड़े बेटे तथा बड़े भाई हो उस घर के और “बड़ा भाई पिता समान ही होता है”

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