“रक्षक या भक्षक” – ॠतु अग्रवाल
आज मन बहुत उदास था रम्या का। पता नहीं, कभी-कभी मन क्यों उन गलियारों में खो जाता है, जहाँ बचपन की एक कच्ची,कड़वी सी याद उसके अंतस के घाव को कुरेद देती है। कितना ही उस नासूर को भरने की कोशिश की, उसने,उसके पापा मम्मी ने। पर जब तब उससे रिसता मवाद अपनी सड़ांध से … Read more