दर्द – प्रमोद रंजन

घर से बाहर निकला ही था कि सामने से रमन जी आते दिखे शायद प्रातः भ्रमण कर लौट रहे हों, मैंने सुप्रभात कहा तो उन्होंने अनमने ढंग से सर हिला दिया। मैं समझ गया कि जरूर कोई बात है। मैंने पूछा क्या बात है क्यूं उदास हैं क्या हुआ ।उन्होंने हलके से हंस कर कहा सब ठीक है लेकिन उनकी भरी हुई आंखें कुछ और ही कह रही थी जैसे कोई बड़ा दर्द छुपा रही हो। मेरे बहुत जोर देने पर उन्होंने बताया कि आज वॉक से लौटते समय एक पुराने मित्र से बेकार सी राजनीतिक बहस हो गई और मेरा मित्र बेवजह मुझसे नाराज़ हो चला गया। मैंने कहा मन छोटा न करें सब ठीक हो जाएगा । मन साफ रहने से अच्छा ही होता है इतने में हम दोनों ने एक गुड  मॉर्निंग  सुनी देखा तो बगल के वकील साहब थे आते ही पूछा क्या हुआ कि आप लोग चुप से खड़े हैं  बात सुनते ही कहा इतनी सी बात कल ही उसे दो चार केस बना के उलझाता हूं ऐसी ऐसी धाराएं लगाऊंगा कि नानी याद आ जाएगी जिसने हमारे इतने अच्छे मित्र का दिल दुखाया जब तक अपनी गलती के लिए माफी नहीं मांगेगा तब तक कचहरी के चक्कर लगाने होंगे ।

किसे ठीक कर रहे है भाई देखा दरोगा जी सामने खड़े हैं बात सुनते ही दरोगा जी को तुरत ताव आ गया उसकी ये मजाल मेरे रहते उसने रमन जी को उदास किया आज ही उसे किसी बात में उलझा कर थाने लाता हूं दो चार पिछवाड़े पर पड़ेंगे  तो होश ठिकाने आ जाएंगे जब तक माफी नहीं मांग लेगा पुलिसिया डंडे पड़ते रहेंगे। अभी दरोगा जी की बात पूरी भी नहीं हुई की मोहल्ले का मंगु दादा तम्बाकू ठोकते आ खड़ा हुआ बोला मैंने सारी बातें सुन ली है मुझे कुछ घुमा फिरा कर नहीं कहना कल ही उसे घर से उठा लेता हूं  उसके परिवार वालों से  दो चार लाख  रुपए वसूलेंगे भी और बोनस में माफी भी मांगनी होगी । साले की पूरी अकड़ निकालेंगे उसे भी पता चले मेरे इलाके के शरीफ आदमी को छेड़ने का क्या अंजाम होता है। । तभी लोकल अखबार के पत्रकार रिक्शे से उतरे शायद शहर से बाहर गए हुए थे। इतने लोगों को एक साथ खड़ा देख घर जाने के बजाए यहीं आ गए स्थिति का जायजा लिया और कहा ये बात है कलही पूरा अखबार उसकी आलोचनाओं से भरा होगा  ये भी छाप दूंगा कि मोहल्ले की औरतों पर भी बुरी नजर रखता है ।

रमन जी ने कहा लेकिन वो तो ऐसा नहीं पत्रकार महोदय ने कहा ठीक है जैसे ही वो आपसे माफ़ी मांग लेगा अखबार में एक भुल सुधार छाप कर मामला रफा दफा कर देंगे पहले वो माफी तो मांगे जैसा आप चाहें बताएंगे मैं आज घर पर ही हूं । इन्हीं सब बातों में घंटा भर बित गया । मोहल्ले के बच्चे क्रिकेट की प्रैक्टिस कर लौट रहे भीड़ देख बच्चे अपने पास ही आ गए जैसे ही बच्चों ने अपने प्रिय अंकल के दुखी होने की बात सुनी सभी बच्चों ने कहा चलो उसे सबक सिखाए जिसने हमारे रमन अंकल को उदास किया है क्रिकेट के बैट से ही धो डालेंगे । दो चार खिड़की के सिशे भी टूटेंगे  तब ही उसे समझ आएगा बड़ी मुश्किल से बच्चों को घर भेजा


मैंने देखा रमन जी पहले से ज्यादा दुखी लग रहे हैं  मैंने कहा चलिए पहले मेरे घर चलिए एक एक कप चाय पीते हैं फिर सोचा जाएगा हम दोनों घर आ गए पत्नी को चाय बनाने के लिए कहा फिर ड्राइंग रूम में आ गए रमन जी ने कहा सब फालतू बातें करते हैं ऐसा कहीं होता है जरा सी बात के लिए किसी को इतना परेशान किया जाए । मैंने हंसते हुए कहा लेकिन एक बात तो तय है कि सभी आपसे बहुत प्यार करते हैं और सभी अपनी पुरी ईमानदारी से आपकी मदद करना चाहते हैं  बड़े ही लोकप्रिय है आप । इतने में चाय आ गई। रमन जी ने कहा ठीक है जितनी भी रिश्ते में प्यार हो ईमानदारी हो लेकिन किसी को दुःख दे के किसी समस्या का समाधान हो सकता है क्या? अंकल मैं कुछ बोलूं  देखा मेरा बेटा खड़ा मुस्करा रहा था  दोनों की नजरें बेटे की तरफ उठी बोल बेटे कहने पर उसने कहा आपके समस्या का समाधान भी वही है जो  अपने ही मुझे बताया है याद कीजिए जब मेरे दोस्त से मेरा झगड़ा हुआ था और आपने हम दोनों को एक दूसरे के सामने खड़ा कर कहा था चलो सॉरी बोलो और सॉरी बोलते ही हम फिर दोस्त हो गए और आज भी है लेकिन बेटा तुम लोग बच्चे हो हमलोग इस उम्र में रमन जी को कुछ कहते नहीं बन रहा था बेटे ने कहा चलिए सभी  साथ चलते हैं हम तीनों रमन जी के मित्र के यहां पहुंचे वो भी बरामदे पर उदास बैठे थे  हम सबों को देख  आश्चर्य चकित हो गए उनकी भी आंखें भरी थी अगले ही पल दोनों गले मिल गए सारे शिकवे गिले आसुंवों में धुल गए  

मैं बेटे के साथ लौट रहा था कि बेटे ने पूछा पापा रमन अंकल ने तो सॉरी कहा ही नहीं फिर भी दोस्ती हो गईं मैंने बेटे से कहा हां बेटा दोस्ती में मन की बात कहनी नहीं पड़ती दोस्त चेहरे से ही समझ जाते हैं

मौलिक  स्वरचित एवम् अप्रकाशित

प्रमोद रंजन

हज़ारीबाग़

झारखण्ड

15/06/2022

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