तमन्ना – रणजीत सिंह भाटिया

#चित्रकथा

 

 धनीराम जो शहर के बहुत बड़े व्यापारी थे अपने कुछ साथियों के साथ वापस अपने घर लौट रहे थे, रात बहुत अंधेरी थी, करीबन आधी रात होगी, एक घने जंगल से गुजरते हुए अचानक उनकी कार खराब हो गई ड्राइवर कोशिश कर रहा था पर उसे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था l अचानक उन्हें किसी स्त्री का ह्रदय विदारक क्रंदन  सुनाई दिया और वह सब उस ओर,गए पास जाकर देखा एक सुंदर सी युवती जोर जोर से रो रही थी l धनीराम ने उससे पूछा ” तुम कौन हो और इस जंगल में अकेली यहां क्या कर रही हो और क्यों रो रही हो ” तब उस युवती ने बताया  ” मेरा नाम भानुमति है में एक अनाथ लड़की हूं मेरा इस दुनिया में कोई सहारा नहीं है इस जंगल में भटक गई हूं ” “धनीराम ने पूछा घर का कुछ काम का जानती हो ” अब भानुमति ने सिसकते हुए कहा ” हां मैं घर का सब काम काज कर लेती हूं” तब धनीराम ने कहा ” हमारे साथ चलना चाहोगी ” तो उसने हाँ में सिर हिला दिया ड्राइवर ने आवाज लगाई ” कार ठीक हो गई है ” धनीराम बहुत समय बाद घर लौटा था तो पत्नी राजरानी और दोनों बच्चे दौड़ कर आए और उसका स्वागत किया फिर राजरानी ने बहुत गौर से भानुमति को सिर से पांव तक  देखा और पूछा.. ” यह कौन है..? तब धनीराम में सारी बात बताई राजरानी ने भानुमति को बैठने के लिए कहा, जो बहुत ही घबराई हुई सी लग रही थी फिर दोनों पति-पत्नी अंदर चले गए तब राजरानी ने धनीराम से कहा ” ऐसे किसी भी ऐरे गैरे को घर उठाकर ले आते हो ” तब धनीराम बोला ” बेचारी अनाथ है यही पड़ी रहेगी घर का सब काम काज कर लेगी और देखो बच्चों को उसके पास बैठकर कितने खुश हैं ” तब राजरानी ने मुंह बनाते हुए हाँ कह दी l

           खाना खाकर सब सोने लगे तो बच्चे भानुमति के साथ ही सोने की जिद करने लगे तब राजनानी ने भानुमति का सोने का प्रबंध बच्चों के कमरे में ही कर दिया सुबह जब राजरानी उठी तो देखा भानु आंगन में झाड़ू लगा रही थी तब राजरानी ने उसे बुलाकर घर का सारा काम समझा दिया कि, क्या क्या करना है कुछ ही दिनों में घर का सारा काम भानु के जिम्मे हो गया और वह बड़े प्रेम से सारा काम करती स्वादिष्ट खाना बनाती, बच्चों की तो परम मित्र बन गई थी, वह वहां बहुत ही ज्यादा खुश थी,और घर वाले भी उससे बहुत खुश थे कितना भी ज्यादा काम हो, कोई दावत हो,  वह पलों में सब निपटा लेती थी इसी तरह कई साल गुजर गए l एक दिन घर पर भानु और दोनों बच्चे थे बहुत ज्यादा ठंड थी और वह बच्चों के साथ रजाई में लेट कर उन्हें कहानी सुना रही थी कि अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज आई दरवाजा दूर था तो ठंड में कौन उठे रजाई छोड़कर यह सोचकर…ना जाने कैसे भानू ने अपने हाथ को लंबा करके दरवाजे की सांकल को खोल दिया धनीराम और राजरानी आए थे l भानु का इस तरहा हाथ लम्बा करते देख बच्चे हैरान रह गए l सुबह यह बात बच्चों ने मां बाप को बता दी तब वह भी घबरा गए,…तब राजरानी बोली ” देखा मैंने पहले ही कहा था कि कुछ गड़बड़ है पर तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगी “अब राजरानी ने भानुमति की हर गतिविधि पर नजर रखना शुरू कर दिया तब उसने देखा कि भानु जादू की तरह खाना बनाती है और बर्तनों को सिर्फ हाथ फेर कर चमका देती है l राजरानी  उसे छुप-छुप कर देखती रहती l


               एक दिन आंगन में पेड़ से आम तोड़ना था तब राजरानी ने भानु से कहा कि ” आम तोड़ लाओ “उसने छुप कर देखा कि भानु ने अपने शरीर को बहुत ऊंचा करके आम तोड़ लिए तब राजरानी अचानक उसके सामने आ गई और पूछा ” सच सच बताओ तुम कौन हो और यहां क्या करने आई हो ” “तब भानु ने कहा ” कि अब जब आप सच जान ही चुकी है तो मैं सब बताती हूं… मैं एक प्रेतात्मा हूँ ..”!! यह सुनते ही राजरानी थर थर कांपने लगी तब भानु ने कहा ” डरिए मत में किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती मैं सिर्फ एक परिवार में इंसानों की तरह रहना चाहती हूं यही मेरी तमन्ना है बरसों पहले  कुछ वहसी दरिंदों   ने मेरे साथ दुष्कर्म करके मुझे उस जंगल में गाड़ दिया था, तब से मेरी आत्मा वहीं भटक रही थी फिर आप के परिवार ने मुझे आसरा दिया कृपया करके मुझे यहीं रहने दीजिए “..! वह गिड़गिड़ा रही थी l

        राजरानी के मन में डर तो बैठ  ही गया था पर उसे छुपाते हुए उसने कहा ” ठीक है ”  फिर उसने यह बात पति और बच्चों को भी बताई सब सेहमे सेहमे से रहने लगे और और भानू से पीछा छुड़ाने की तरकिबें सोचने लगे l डर के मारे उसे जाने को भी नहीं कह सकते थे, फिर एक दिन राजरानी को एक तरकीब सूझी वह आंगन में धूप सेक रही थी भानु भी वही थी राजरानी ने अपनी अंगूठी उतार कर पास बने एक बिल में फेंक दी और भानू से कहा “..अरे.. मेरी अंगूठी उस बिल में गिर गई है क्या करूं ” तब भानु बोली “आप घबराइए मत मैं अभी निकाल लाती हूँ..यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है..!और यह कहते हुए वह चूहा बन कर उस बिल में घुस गई और अंगूठी निकाल कर ले आई l राजरानी हैरान रह गई उसने भानु से कहा ” क्या तुम इतनी छोटी बन सकती हो कि इस खाट के पाए पर खड़ी हो सको “तो भानु ने कहा ”  “हाँ हाँ क्यों नहीं “..! और जैसे ही उसने आकार छोटा किया और पाए पर खड़ी हो..गई उसी क्षण  राजरानी ने उसे पकड़कर एक बोतल में बंद कर लिया और उसेके बाद उसे समुंदर में फेंका दिया l उस दिन के बाद भानुमती को किसी ने कभी भी नहीं देखा और धनीराम  ने  वो घर और शहर भी छोड़ दिया l 

मौलिक एवंम स्वरचित

लेखक.. रणजीत सिंह भाटिया 

 

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