स्त्री धर्म – पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

आज न्यायालय में एक तलाक के कैस की सुनवाई थी। विरेंद्र और ज्योति का विवाह हुए ,अभी तीन ही वर्ष हुए थे। मगर तीन वर्षों में दोनों के रिश्तों में ऐसा क्या हुआ की तलाक की नौबत आ गई।  अब यह जानने के लिए विरेंद्र के परिवार और ज्योति के परिवार के बारे में कुछ देखते हैं। विरेंद्र के पिता रामेश्वर जी के पास बेशुमार दौलत थी।बाप दादा की जमीन जायदाद के इकलौते वारिस थे, गाँव मे पुश्तैनी हवेली थी।

खेती के लिए बहुत सारी जमीन थी जो बटाई पर दे रखी थी, चार कुंए और बावड़ी के मालिक थे। गाँव में उनके पिता जगन्नाथ जी ने अच्छी इज्जत कमाई थी, व्यवहारिक थे और दयालु प्रकृति के थे। उनके व्यवहार को देखते हुए ही मोहन लालजी, जो पास के गाँव में खेती किसानी करते थे, और जिनकी गिनती भी सम्पन्न लोगों में होती थी, ने अपनी सर्वगुण सम्पन्न ,संस्कारी बेटी कमला का रिश्ता उनके बेटे रामेश्वर के लिए भेजा।

कमला की सुन्दरता को देखकर रामेश्वर ने भी सहमति दे दी, और विवाह सम्पन्न हो गया।  दोनों परिवार खुश थे। कमला बहुत गुणवान थी, और उसके सास ससुर उसे बहुत प्रेम से रखते थे। रामेश्वर जी भी इतनी सुन्दर पत्नी को पाकर फूले नहीं समाते थे। इनकी दो बेटियां और बहुत मान मंगत के बाद एक बेटा हुआ उसका नाम रखा विरेन्द्र। मगर समय एक जैसा नहीं चलता, परिवर्तन का चक्र चलता है।

जगन्नाथ जी और उनकी पत्नी का निधन हो गया। रामेश्वर जी सारी दौलत के मालिक बन गए। उन पर दौलत का नशा चढ़ गया, वे अपने पुश्तैनी धन्दे पर ध्यान देने के बजाय नेतागिरी के चक्कर में फंस गए।इस सिलसिले में शहर जाने का काम पढ़ता और शहर का रंग उन पर चढ़ने लगा। अब उनका मन गाँव में नहीं लगता, फिर संगत  भी कुछ गलत मित्रों की हो गई। उन्होंने शहर  में बसने का विचार किया।

गॉंव की कुछ जमीन बेचकर शहर में आलीशान बंगला बनवाया और शहर में बस गए। अब घर पर उनके पैर नहीं टिकते,नशे की लत लग गई थी। रात- रात भर घर के बाहर क्लब और पार्टियों में रंगरेलिया मनाते। कमला जी को घुटन होती, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाती थी। उन्होंने अपना जीवन बच्चों का भविष्य बनाने में लगा दिया। कमला जी  ने अपने बच्चों को अच्छे  संस्कार दिए।

दोनों बेटियों ममता और सुनिता ने माँ के दिये संस्कारों को आत्मसात किया। दोनों लड़कियों की स्नातक की डिग्री  प्राप्त करने के बाद शादी हो गई। विरेंद्र पर मॉं की शिक्षा के साथ पिता का प्रभाव भी था।  एम. काम. करने के बाद उसकी एक कंपनी में एकाउंटेंट की नौकरी लग गई। अच्छी तनख्वाह मिलती थी। पैसो की कोई कमी नहीं थी। कमला जी को अपने  एक रिश्तेदार की लड़की ज्योति बहुत पसंद थी। उन्होंने विरेंद्र और रामेश्वर जी को अपनी मंशा बताई, और सबकी सहमति से विरेंद्र और ज्योति का विवाह हो गया।

अब ज्योति के परिवार के बारे में कुछ जान ले। ज्योति अपने मातापिता की इकलौती संतान थी। पिताजी माध्यमिक विद्यालय में प्रधान अध्यापक थे। भरपूर लाड़ प्यार के साथ माता-पिता ने उसे उच्च शिक्षा दिलवाई और अच्छे संस्कार दिए। ज्योति सर्वगुण सम्पन्न लड़की थी और बैंक में उसकी नौकरी लग गई थी। शादी के बाद विरेंद्र को उसकी नौकरी से तकलीफ होने लगी।

हरपल उससे यही कहता -‘क्या जरूरत है तुम्हें नौकरी करने की हमारे घर में क्या कमी है, फिर मैं भी अच्छा कमा रहा हूँ। आराम से घर पर रहो।’ ज्योति को लगता कि विरेंद्र उसकी चिंता करता है इसलिए कहता है वह खुश थी। मगर उसने नौकरी नहीं छोड़ी, वह कहती -‘मुझे नौकरी में कोई परेशानी नहीं होती है, अच्छा लगता है, समय पास हो जाता है।

घर पर सारा काम नौकर -चाकर करते हैं। सिर्फ रसोई‌ के काम में कितनी देर लगती है।’ वह निरूत्तर हो जाता। वह अपने मन की बात कह भी तो नहीं सकता था, कि उसे उसकी नौकरी से क्या परेशानी है। दरअसल उसे डर था, कि अगर ज्योति घर के बाहर रहेगी तो, उसका दौहरा चेहरा उसे नजर आ जाएगा। नकाब हट जाएगा। वह अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहा था। वह माँ और पत्नी के सामने जो संस्कारी होने का नाटक करता था,कहीं उसका पर्दाफाश न हो जाए। उसकी पीने की लत थी, और अपनी सहकर्मी रीना के साथ वह रंगरेलियां मनाता और पैसा खर्च करता था। 

उसके लाख समझाने पर भी जब ज्योति ने नौकरी नहीं छोड़ी तो उसने नये हथकंडे अपनाने शुरू किए। ज्योति के चरित्र पर लांछन लगाना शुरू किया और बात -बात पर उससे झगड़ा करने लगा। माँ से कहता -‘माँ! इसका समय पास नहीं होता है,तो तू नौकरों को काम से हटा दे, यह घर का काम किया करेगी।’ कमला जी को अपनी बहू के चरित्र पर विश्वास था। रोज -रोज की बक-बक से परेशान होकर ज्योति ने भारी मन से नौकरी छोड़ दी।

कमला जी ने  नौकर -चाकर को  घर से नहीं निकाला। ज्योति अपने समय  को व्यतीत करने के लिए  किताबे पढ़ती थी, और कमला जी के साथ बातें करती। समय चल रहा था, ज्योति ने घर के माहौल में सामंजस्य स्थापित कर लिया था और वह खुश रहती थी। विरेंद्र उसकी नौकरी छोड़ने से बहुत खुश था,अब उसे किसी का डर नहीं था। उसकी अय्याशी बढ़ती जा रही थी, रामेश्वर जी को सब पता था, मगर वे भी तो उसी रंग में रंगे थे।

जब किसी गलत चीज की लत लग जाती है, तो बुद्धि का नाश होने लगता है उसे समय का भान नहीं रहता है। अब तो विरेंद्र घर पर भी पीकर आने लगा था। घर पर ज्योति को अभद्र गालियाँ देता। कमला जी मना करती तो,उन्हें भी उल्टा सीधा बोलता। वह कमला जी के नियंत्रण से बाहर जाने लगा था। उसे ज्योति की कही हर बात गलत लगती, उस पर हाथ भी उठाने लगा था।

अच्छाई और बुराई छुपाए नहीं छिपती। ज्योति को भी किसी सूत्र से पता चला कि विरेंद्र का अफेयर चल रहा है, यह दु:ख उसके लिए असहनीय था, उसने विरेंद्र से पूछा तो उसने ज्योति की पिटाई कर दी, नशे में उसे कुछ भी होश नहीं था। कमला जी को जब सुबह पता चला तो उन्हें बहुत दु:ख हुआ। उन्होंने ज्योति को अपने दिल से लगाकर सांत्वना दी, और कहा-‘ बेटा तू क्या चाहती है, मैं हर फैसले में तेरे साथ हूँ।

‘ उसने रोते हुए कहा -‘माँ मैं अब और सहन नही कर सकती, मुझे इनसे तलाक चाहिए।’ सुनकर कमला जी को तकलीफ तो हुई, वे ज्योति को बहुत चाहती थी। मगर उन्होंने कहा -‘बेटा ! तू मायके चली जा और वहीं से तलाक की कार्यवाही करना मुझे तो लिखा पढ़ी समझ में नही आती है। कोर्ट में जो भी खर्चा होगा उसे मैं उठाऊँगी, तुझे मेरी यह बात माननी पढ़ेगी। और यह बात हम दोनों के मध्य रहै, मैं हमेशा तेरे साथ हूँ।’ दूसरे दिन ज्योति मायके चली गई। वहाँ जाकर उसने एक वकील के माध्यम से तलाक का नोटिस भेजा।

विरेंद्र को यह अपनी हार लग रही थी। कमला जी ने यही व्यक्त किया जैसे वे भी अन्जान है। विरेंद्र ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया। नियत अवधी में ज्योति ने तलाक की पिटीशन दायर की। ज्योति के पास अपनी बात को साबित करने के लिए साक्ष्य नहीं थे। आस पड़ोसी जो गवाह दे सकते थे, उन्हें विरेंद्र ने पैसो के बल पर खरीद लिया था। आज जज के सम्मुख फैसला होना था।

विरेंद्र निश्चिन्त था, कि फैसला उसके हक मे होगा और वह अपनी सारी भड़ास ज्योति पर निकालेगा। न्यायालय में रामेश्वर ने बेटे के पक्ष में गवाही दी। कमला जी की बारी आई तो उन्होंने बेटे का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया।यह भी कहा कि ‘उसके बेटे ने गवाह को भी पैसे देकर खरीदा है। मेरी सुसंस्कृत बहू मेरे जंगली बेटे के साथ नहीं रह सकती है।

कृपया आप उसकी तलाक की पीटीशन को मंजूर कर, इससे मुक्ति दिलाए और उसके भरण पोषण का भार मेरे बेटे पर हो ऐसा आदेश दे। मेरी बहू के साथ न्याय करे।’ कमला जी ने अपने बेटे के खिलाफ बयान देकर बहू के लिए न्याय की मांग की। सब आश्चर्य चकित थे। रामेश्वर जी और विरेंद्र को सपने में भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। जज ने  उनके तलाक को मंजूरी दी।

भरण पोषण लेने के लिए ज्योति ने मना कर दिया। वह स्वयं सक्षम थी, उसे विश्वास था कि उसे नौकरी मिल जाएगी। ज्योति कमला जी के चरणों  में झुकी तो उन्होंने उसे सीने से लगा लिया। दोनों की ऑंखों से अश्रु की बरसात हो रही थी। कमला जी ने ज्योति के दर्द को समझा औरअपने स्त्री धर्म को निभाया। वे अपने निर्णय पर खुश थी। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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