मकड़जाल – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“कब तक ऐसे दरवाजे पर ताकती रहेंगी मालकिन?खाना खाकर सो जाइए,आपकी तबियत खराब हो

जायेगी,सुमित बाबा आ जायेंगे, रूमा भाभी जाग रही हैं ,वो देख लेंगी।”

राधा ने कहा तो मालती चौंकी।

“नहीं…आजतक मैंने उससे पहले खाया है जो आज खाऊंगी? तू खा ले और सो जा, रूमा खाना लगा लेगी

उसके आने पर।”

तभी टेलीफोन की घंटी बजी और मालती बढ़ी फोन उठाने,उनके घुटने का दर्द एकदम से बढ़ गया था झटके

से उठने से और उनके मुंह से कराह निकल गई तब तक रूमा ने आकर फोन उठा लिया था।

“क्या सुमी डार्लिंग!कितनी देर में आओगे, सुबह हमें निकलना भी था”,वो शिकायती स्वर में बोली।

उधर से सुमित ने शायद सॉरी बोला था उसे और वो असहज हो रही थी मालती की उपस्तिथि से,पति पत्नी की

तकरार,मनुहार खुला वातावरण चाह रही थी जो नहीं हो पा रही थी,मालती बड़बड़ाती हुई हट गई वहां से,वो भी

समझ गई थीं शायद ये बात।

रूमा ने फोन रखते हुए कहा,”खाना लगा लीजिए राधा मौसी।”

“आ रहा है सुमित?* खुश होते मालती बोली।

“नहीं उन्होंने खा लिया है,देर से आयेंगे”,रूमा ने संक्षिप्त जबाव दिया।

“ये बात मुझे फोन करके क्यों नहीं बताई उसने पहले,आज तक ऐसा नहीं किया उसने,हमेशा खाने से पहले

मुझे कहता था कि खाना खा लो,जब से शादी हुई है,बहुत बदल गया है।” मालती बोली।

“मम्मी जी!आप मुझ पर आरोप लगा रही हैं?”रूमा ने चिढ़ते हुए कहा।

“झूठ क्या है उसमें?तुम दोनो कहीं भी जाने का प्रोग्राम बना लेते हो,मुझे पता भी नहीं रहता जैसे कल सुबह

जाओगे और मुझे कोई जानकारी नहीं।” बुरा सा मुंह बनाया उन्होंने।

“क्या हो गया है मम्मी जी आपको,मेरी शादी जब सुमित से नहीं हुई थी ,आप मुझे बहू बनाने को बेचैन

थी,कहती थीं मुझे बेटी बना कर रखेंगी और अब आप मुझे एक बहू का हक भी नहीं देना चाहती।”

“ऐसा क्या कर दिया मैंने तुम्हारे साथ?”मालती तमक कर बोली,”मेरी उपस्तिथि में तुम माशूका बन मेरे बेटे से

बात कर लेती हो और कितनी आजादी चाहिए?”

“मम्मी जी….”,रूमा की आवाज तेज हो गई थी,नौकरों के सामने मेरी इतनी इंसल्ट!!राधा खाना लगा रही थी

वहीं पर।

“राधा नौकर नहीं है,जुबान संभाल कर बोलो!” मालती चीखी,”वो तब से मेरे साथ ही जब सुमित पैदा भी नहीं

हुआ था।”

“मम्मी जी!आपको पता है आपकी समस्या क्या है?” रूमा बोली,”सुमित बड़ा हो गया है,अफसर बन गया

है,उसकी शादी हो गई है,आप ये सब स्वीकार ही नहीं करना चाहती,आप आज भी उसे नन्हें बच्चे की तरह ट्रीट

करना चाहती हैं।”

“अच्छा!और कुछ जहर उगलना शेष हो तो वो भी बोल दो”,मालती बौखलाती हुई बोली।

“बुरा मत मानिए आप,मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए,आप मेरे को भी बहुत प्यार करती थी पहले पर

ये अपने बेटे बहू को अपनी संपत्ति समझने का दंभ आपको कहीं का में छोड़ेगा।”

“तुम बहुत वाचाल हो रूमा”,मालती का चेहरा लाल पड़ने लगा था,”मेरा सुमित यहां होता तो तुम्हारा मुंह न चल

पाता ऐसे,अपनी मां के खिलाफ एक शब्द नहीं सुनता वो।”गर्व से बोली थी मालती।

तभी सुमित वहां आ गया था,”क्या महाभारत चल रही है सास बहू में?” वो हंसते हुए बोला।

मालती एकदम रुआंसी होकर बोलीं,”तेरे पीछे ये मुझे हजार बातें सुनाती है बेटा!ऐसे मैं न रह पाऊंगी तुम

लोगों के साथ।”

“अरे!ऐसे कैसे?रूमा!ये क्या चल रहा है?माफी मांगो मां से…चलो!” सुमित ने बात खत्म करने के इरादे से कहा।

“लेकिन किस बात की?” माथे पर बल डालते रूमा बोली,”मेरा अपराध क्या है?”

“उससे क्या फर्क पड़ता है रूमा,वो बड़ी हैं,माफी मांग लो और बात खत्म करो!” सुमित ने लापरवाही से कहा।

“मुझे फर्क पड़ता है सुमी!” ,रूमा का चेहरा कठोर हो गया,”कल हमारा भी परिवार बढ़ेगा,हमारे बच्चे देखेंगे कि

उनकी मां की इस घर में की इज्जत नहीं है,जब चाहे वो सबसे माफी मांगती रहती हैं तो वो क्या खाक इज्जत

करेंगे मेरी?”

“मतलब क्या है तुम्हारा?”सुमित गर्म पड़ने लगा,”इतनी देर थका मांदा घर आकर मै तुम दोनो को लड़ता देखूं?”

“ये बात अपनी मां को समझाएं,वो आज भी आपको नन्हे बच्चे की तरह डांट डपट कर रखना चाहती हैं और

आप उन्हें हवा ही देते रहे तो मै चली अपने मायके,आप रहिए अपनी डॉमिनेटिंग मां के साथ।”

गुस्से मे पैर पटकती रूमा वहां से जाने को हुई।

मालती घबरा रही थीं कि हमेशा चुप रहने वाली रूमा को आज क्या हो गया था,ये दोनो तो आपस में ही भिड़

गए,अगर ये घर चली गई अपने घर,तो क्या होगा?पड़ोस वाले जैन साहब की बहू छह महीने से रूठी हुई

मायके बैठी है,सुनने में आ रहा है शायद उनका तलाक हो जायेगा अब।

वो बीच में आते हुए बोली,”

गुस्सा न कर रूमा बेटा!तूने आज मुझे सही रास्ता दिखाया है,मेरी ही गलती है, मै सुमित को बांध कर रखना

चाहती थी,भूल गई थी कि अब वो बच्चा नहीं है, तू कहीं मत जा बेटा! मै आगे से ध्यान रखूंगी।”

रूमा इस अप्रत्याशित बात से चौंक गई,सच कह रही हैं ये या कोई नया नाटक है?उसने गौर से देखा उन्हें,उनके

चेहरे पर पश्चाताप था।

“कोई बात नहीं मम्मी जी!घर में चार बर्तन हों तो खड़कते ही हैं,गलती मेरी भी थी शायद, मैं ज्यादा रिएक्ट कर

गई”रूमा बोली।

मालती ने बढ़कर रूमा को गले से लगा लिया,इसे कहते हैं बड़प्पन! तू मेरी समझदार बेटी है।

सुमित दूर खड़ा मुस्करा रहा था।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

#आपने कहा था तुम्हें बेटी की तरह रखूंगी,आपने तो मुझे बहू का हक भी न दिया।

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