” बस करो ज्योति…पापा के बारे में कुछ भी बोलने से पहले अपने लाडले भाई की करतूत तो देख लो कि वो क्या गुल खिला रहा है।” कहते हुए प्रकाश ज्योति को मोबाइल पर उसके भाई अंकित की तस्वीरें दिखाने लगा।
प्रकाश के पिता कस्बे के एक स्कूल में अध्यापक थें।सेवानिवृत्त होने के बाद पत्नी संग आराम की ज़िंदगी बसर कर रहें थें।कभी-कभी अपने बच्चों के यहाँ भी चले जाते थें।फिर पत्नी के देहांत के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गये…तब प्रकाश उन्हें अपने पास ले आया।ज्योति भी खुश थी क्योंकि सैर से वापस आते हुए उसके ससुर सब्ज़ी-फल लेते आते थें।कभी-कभी उसके बेटे मनु को भी स्कूल छोड़ आते थें।
फिर एक दिन अंकित काॅलेज़ की पढ़ाई के लिये उसके पास आ गया।भाई को देखकर तो वो खुश…।अब उसे ससुर का रहना अखरने लगा।उन्हें परेशान करने के लिये वह कभी उन्हें ठंडी रोटी परोस देती तो कभी कहती कि सब्ज़ी खत्म हो गई है।घर में रहते तो निठल्ले होने का ताना भी देती।प्रकाश जब सुनता तो उसे डाँटता..तब उसके पिता ही आकर कहते,” बेटा…तू बहू के साथ कलह मत कर…मुझे कोई परेशानी नहीं है..।”
कुछ दिनों से ज्योति ने नोटिस किया कि उसके ससुर सैर के लिये ज़ल्दी चले जाते और देर से लौटते हैं।उसने सीरियल और अखबारों में देखा-पढ़ा था कि आजकल बूढ़े लोग भी पार्क में इश्क फ़रमाने लगे हैं।फिर तो उसका माथा भी ठनका कि कहीं ससुर जी भी…।इसीलिए जब प्रकाश ऑफ़िस से आया तो उससे कहने लगी कि पापाजी आजकल देर से घर लौट रहें हैं…ज़रूर वे बाहर कोई गुल खिला रहें होंगे और तब प्रकाश ने उसे डपट दिया।
मोबाइल में अंकित को शराब पीते और सिगरेट का कश लगाते हुए की तस्वीरें देखकर तो ज्योति के तन-बदन में आग लग गई।तब प्रकाश ने उसे बताया कि काॅलेज़ जाते समय तुम जो रुपये उसे देती थी..उसका जनाब यही करते थे।फल-सब्ज़ी के लिये दिये पैसे का तो तुम हिसाब लेती ही नहीं थी।काॅलेज़ से कंप्लेन आने पर मैंने अंकित को समझाया तो दो-तीन उसका व्यवहार ठीक रहा लेकिन फिर…।और आज तो वह काॅलेज़ के वाॅशरूम में सिगरेट पीते पकड़ा गया है।यही नहीं…साहबज़ादे पर लड़कियों को परेशान करने का भी आरोप लगाया गया था।अब मैं उसे लेने जा रहा हूँ।
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” मैं..भी.. चलती…।” ज्योति धीरे-से बोली।
” हर्गिज़ नहीं!….मैं उसे वहीं से तुम्हारे मायके रवाना कर दूँगा।अब तुम भी अपनी किटी-विटी छोड़कर मनु पर ध्यान दो..वरना बड़ा होकर वो भी कोई…।”
” नहीं-नहीं…मैं अब उसका पूरा ध्यान रखूँगी…।” ज्योति हकलाते हुए बोली।
” और हाँ…अपने दिमाग का कचरा ज़रा साफ़ कर लो..पापा शाम को मजदूर-आवास जाते हैं और उनके बच्चों को पढ़ाते हैं।घर में बड़े-बुजुर्ग रहते हैं ना श्रीमती… तो बच्चों में भी अच्छे संस्कार आते हैं…।”कहकर प्रकाश बाहर निकल गया।
ज्योति को अंकित पर जितना गुस्सा आ रहा था..अपनी सोच पर वह उतनी ही शर्मिंदा थी।थोड़ी देर बाद जब उसके ससुर वापस आये तब उसने उन्हें चाय दी और उनके चरण-स्पर्श करके बोली,” पापाजी…मुझे माफ़ कर दीजिये।” तभी मनु आया और दादाजी’ कहकर उनकी पीठ पर चढ़ गया।
विभा गुप्ता
स्वरचित
# गुल खिलाना