रिश्ते को भी रिचार्ज करना पड़ता है (भाग 3) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“दिल्ली प्रोद्योगिकी संस्थान… मेरे ख्वाबों की ताबीर, जिसके लिए मैंने दिन-रात एक करके मेहनत की थी और जहाॅं मुझे पहुँचाने आप सब चले थे। तब मैंने सोचा नहीं था कि वहाँ कोई ऐसी मिल जाएगी जो मेरे दिल दिमाग, मेरी जिन्दगी के दरवाजे पर बिन दस्तक दिए दाखिल हो जाएगी। आप तो जानती ही हैं, मुझे नाटकों का कितना शौक रहा है, तो मैं पढ़ाई के साथ मंडी हाउस नाटक देखने भी जाता था। फिर धीरे-धीरे नाटक में अभिनय भी करने लगा।

एक दिन जाने कैसे या यूं कहिए किस्मत उससे मिलवाना चाहती थी कि मुझे एक नाटक करने मिला, जिसमें सिर्फ और सिर्फ मुझे अभिनय करना था मतलब की उस नाटक में मेरे अलावा कोई पात्र नहीं था, उस नाटक का उस समय मैं इकलौता वारिस था। वो भी पूरे एक घंटे तक चलने वाला नाटक, मुझे सोच कर ही पसीना आने लगा,

लेकिन मैं पीछे हटने वालों में से तो हूँ नहीं। मैंने सोचा अधिक से अधिक क्या होगा जूते चप्पलों की बरसात होगी, ये सोच मैंने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। तब मुझे बताया गया कि इस नाटक का मंचन एक लड़की करने वाली है और वो भी दिल्ली प्रोद्योगिकी संस्थान की ही छात्रा है और वो कौन थी जानती हैं दादी.. वो थी हमारी सुपर्णा।” 

मैं रिहर्सल रूम में बैठा हुआ स्क्रिप्ट और निर्देशिका दोनों का इंतजार कर रहा था, तभी गुलाबी टॉप, ब्लू जींस, गुलाबी लिप ग्लॉस और आँखों में काजल की हल्की रेखा और कपड़ों से आती भीनी भीनी खुशबू लिए हमारी निर्देशिका साहिबा रिहर्सल रूम में दाखिल हुई। सुपर्णा का गोरा चेहरा धूप से तम्बई रंग का हो कर और भी निखर गया था। 

“हाई.. मैं सुपर्णा”.. उसने बोलते हुए हाथ बढ़ाया। 

“ओह हो दादी! इतनी मीठी आवाज मानो कोयल ने कूक सुनाई हो। मैं कुछ बोल ही नहीं सका, कैसे बोलता बताओ अपनी गधे सी आवाज में। बस सारी शराफत ताक पर रख कर उसे देखे जा रहा था

“मैं सुपर्णा.. आप नवीन हैं ना? एकल अभिनय के लिए जिनका चयन किया गया है।” मेरे द्वारा इस तरह घूरते रहने पर सुपर्णा के चेहरे पर उलझन और झुंझलाहट दोनों दिख रही थी। 

“जी.. जी.. वो मैं ही हूँ.. नवीन नाम है मेरा”.. इसके अलावा समझ नहीं आया कि मैं क्या बोलूँ।

“पहले तो ये बताइए, आप अभिनय का अ भी कर सकते हैं या नहीं या सब कुछ मुझे ही सिखाना होगा। बहुत मुश्किल से नाटक मंचन में मेरे नाम पर मुहर लगी है। इस अवसर को मैं जाया नहीं कर सकती। ये लोग कहाॅं से ऐसे टपोरी पकड़ लाते हैं।”सुपर्णा बोल रही थी। 

मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आपका ये अवसर व्यर्थ ना जाए। जैसा जैसा आप कहेंगी, निर्देशित करेंगी, मैं पूर्णतः वही करूँगा। मन तो हो रहा था दादी कि कहूँ कि पूरी जिन्दगी वही करूँगा। लेकिन मैंने ये कहसे से खुद को रोका, वैसे भी अपने लिए टपोरी शब्द सुनकर इस दिल को धक्का पहुंचा था।” नवीन दादी को बताने के दरमियान दिल पर हाथ रखता हुआ नाटकीय अंदाज में कहता है। 

फिर शुरू हुई हमारा रिहर्सल, रिहर्सल के लिए हमारे पास पंद्रह दिन थे, उसमें मुझे इंसान के स्वभाव का श्वेत और श्याम दोनों पहलुओं को दिखाना था और कहानी भी सुपर्णा की लिखी हुई थी। मेरे अभिनय से तो वो दो दिन में ही प्रभावित हो गई और मैं तो दादी उसके हर व्यवहार का कायल हो गया था।

इन पंद्रह दिनों में इतना पता चल गया कि अगर मैं किसी के साथ अपनी जिंदगी बाँटना चाहूँगा तो वो सिर्फ सुपर्णा होगी, उसके अलावा कोई नहीं। लेकिन दिक्कत तो ये थी दादी कि सुपर्णा के दिल में क्या था.. ये पता नहीं था मुझे या उसकी जिन्दगी में कोई है या नहीं, ये भी एक दुविधा थी मेरे लिए। पंद्रह दिन के बाद उसके निर्देशन में मंच तोड़ अभिनय किया मैंने। जितनी मेरी क्षमता थी, उससे कहीं अधिक उसने करवा लिया। निर्देशन तो बस उसका जुनून है दादी।

फिर तो हमने कई नाटक साथ किए। इसी तरह दो साल गुजर गए थे। हमारी जान पहचान दोस्ती के राह पर चल पड़ी थी। दोस्ती नहीं बहुत अच्छी दोस्ती हो गई दादी, एक एक विचार मिलते हैं हमारे। और फिर आया मेरा जन्मदिन। मैंने सोच रखा था कि उस दिन सुपर्णा से अपने दिल का हाल कह दूँगा। लेकिन उस दिन तो मैं ही आश्चर्यचकित रह गया। उसने अपने फ्लैट पर मेरे लिए पार्टी रखी थी, जहाँ वो अपनी दो दोस्तों के साथ रहती थी।

मेरे साथ साथ उसने मेरे दोस्तों को भी बुलाया था। उस दिन उसने पीली कुर्ती डाली थी, जिस पर लाल दुपट्टा खिल रहा था। हाँ उस दिन उसने लिप ग्लॉस नहीं, लाल लिपस्टिक लगाया हुआ था, एकदम परी लग रही थी। बहुत सारी तैयारी कर रखी थी उसने उस दिन। मेरी कल्पना से तो बाहर की बात थी वो सब।

मेरे दोस्त और उसके दोस्त सभी आ चुके थे। उसने कमरे की एक दीवार चादर से ढ़क रखा था। मेरी जिज्ञासा पर उसने बताया कि खास उपहार है। सब-कुछ मेरी पसंद का था, गाने भी मेरी पसंद के बजाय जा रहे थे। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब वह मेरी सारी पसंद जान गई थी। केक काटने के बाद खाना हुआ। हम ने खूब मस्ती की, जब सब थक गए तो सबने चलने की बात की। लेकिन मेरा जी तो उस दीवार पर लगा हुआ था। 

“यार वो सरप्राइज किया है.. दिखा तो दो”.. मैं ने सुपर्णा से कहा। 

 

“ये सुनते ही सब मंद मंद मुस्कुराहट एक दूसरे को देने लगे। ये देख कर मैं चिढ़ा जा रहा था, तभी सुपर्णा ने दीवार पर डाले गए चादर को खिंचा और जुगनुओं की भाँति कई लाइट्स जगमगा उठे और जो मैंने देखा वो देख मेरी आँखें खुली रह गईं। जानती हैं दादी उस दीवार पर क्या था.. लिखा था आई लव यू नवीन।” नवीन तकिया रख दादी की गोद में लेटता हुआ बोलता है। 

मेरा खुला मुँह ना बंद हो रहा था.. ना ही मेरी फैली आँखें झपक रही थी। ये तो मैं करना चाहता था, वो भी आज ही। इसने कैसे जान लिया, मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। सभी मेरी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे थे। 

“यार कुछ तो बोल.. इतनी तैयारी सिर्फ तेरे लिए की है इसने।” विनय पास आकर कान में फुसफुसाता हुआ बोला। 

“तुम कोई जादूगरनी हो क्या!” जाने कैसे मेरे मुँह से सिर्फ यही से निकला दादी। मैं खुश था, पर शायद कुछ सदमे में भी था। इतने दिनों में कई बार मैंने उसके नए रूप देखे थे। एक तरह से उसके नए नए रूपों को लेकर अभ्यस्त भी हो गया था। पर आज अभी जो हुआ, बिल्कुल यही तो सोच रखा था मैंने, ये तो मैं और मेरा ही जानते थे।

“जन्मदिन की पार्टी क्या कोई जादूगरनी ही देती है।” उसने आँखें नचाते हुए पूछा। 

“पार्टी नहीं लड़की.. ये दीवार पर जो लिखा है वो”.. मैंने कहा 

“क्या लिखा है नवीन बाबू”.. उसने बड़ी अदा से पूछा। 

मेरे अलावा सबकी हँसने लगे थे।

“देखो आज के लिए मैंने भी यही सोचा था कि दीवार पर आई लव यू सुपर्णा लिख कर जगमगाते रौशनी के बीच इजहार करूँगा। ये तो मैंने किसी को बताया भी नहीं था.. फिर तुम ये कैसे”.. मैं बोलते बोलते रूंआसा हो गया। 

“इजहार भी किया तो रोते रोते”.. सुपर्णा अब हँस रही थी और मैं दीदे फाड़े उसकी हँसी में खो रहा था और ऐसे शुरुआत हुई थी हमारी प्रेम कहानी की दादी। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें वो मुझसे अव्वल ना रही हो। बस दादी हम दोनों को अब आपका ही सहारा है।” हाथ जोड़ने का अभिनय करता हुआ नवीन बोलता है। 

“बहुत रात हो गई, चल सो जा। ओह हो रात कहाँ अब तो सवेरा होने वाला है। देख तेरे चक्कर में तीन बज गए।” बोलती हुई दादी की नजर पर पड़ती है। दादी.. “कुछ तो बोलिए.. ऐसे ना हमें तड़पाइए”.. नवीन आशा भरी नजरों से दादी को देखता हुआ उठ कर बैठता हुआ बोलता है। 

“इतना आसान तो ये काम है नहीं, फिर भी कोशिश करेंगे।” दादी आश्वासन देती हुई कहती हैं। 

“आप कहें और पापा की क्या मजाल कि ना कर दें।” नवीन दादी से कहता है। 

“बातें मत बना, ये बता इसके घर वाले तैयार हैं क्या और घर में कितने लोग हैं। कौन क्या करता है, अब ये भी बता दे।” दादी नवीन से ब्यौरा लेती हुई कहती हैं। 

हाँ दादी, उनलोगों को कोई दिक्कत नहीं है। सुपर्णा के पापा भी इंजीनियर हैं दादी। एक छोटा भाई है, वो भी हमारे कॉलेज से ही इंजीनियरिंग कर रहा है।” नवीन कहता है। 

“हूँ, और उसकी माँ।” दादी पूछती हैं। 

“वो गृहिणी हैं दादी।” नवीन बताता है। 

“एक बात बता, जब कॉलेज भी दिल्ली में है। घर भी दिल्ली में ही है, फिर सुपर्णा अलग क्यूँ रह रही थी।” दादी जानना चाहती थी। 

“क्यूँकि दादी उसका घर और कॉलेज दिल्ली के अलग अलग छोर पर हैं, आने जाने में ही बहुत समय निकल जाता था। इसीलिए उसने अपनी दोस्तों के साथ मिलकर कॉलेज के पास ही कमरा ले लिया था।” नवीन बताता है। 

“चल अब सो.. नहीं तो सुबह लाल लाल आँखें लेकर घूमता रहेगा।” दादी कहती हुई आँख बंद कर लेती हैं। 

दादी को आँख बंद करता देख नवीन भी सोने की कोशिश करने लगता है। 

***

“सब सामान सहेज लिया।” दादी चाय पीती हुई अपनी पोती नीतू से पूछती हैं। 

“हाँ दादी.. सब रख लिया।”

“अच्छा सुन बहू, भंडार में भी जाकर देख ले। कुछ ले जाना हो तो रामलाल से कहकर बँधवा ले।” सुचित्रा अपनी बहू आशा से कहती है। 

“नहीं अम्मा, अभी तो आपने रामलाल के हाथों इतना कुछ भिजवाया था। अभी कुछ भी नहीं चाहिए होगा।” आशा कहती हैं। 

“ठीक है.. कब तक निकलना है।” सुचित्रा पूछती है। 

“दोपहर में ही निकलेंगे, शाम तक पहुंच जाएंगे।” आशा बताती है। 

“ठीक है, तो शीला ऐसा कर वहाँ के लिए खाना बनाकर बाँध दे। रोटी मैं बना दूँगी, तू बस बाकी चीज़ बनाकर बता दे। पहुॅंचते ही काम करने का मन नहीं होता है।” सुचित्रा शीला से कहती है। 

“और सुन सुरेंद्र, अब किस दिन आएगा। कुछ बात करनी थी तुझसे।” सुचित्रा अब अपने बेटे सुरेंद्र से कहती हैं। 

“जब कहो अम्मा.. आ जाऊँगा।” माँ के पैरों के पास बैठता हुआ सुरेंद्र कहता है। 

“आने वाले सप्ताह तक तो एक चक्कर लगाएगा ही ना।” सुचित्रा बेटे के सिर को प्यार से सहलाती हुई पूछती है। 

“हाँ अम्मा”… सुरेंद्र कहता है। 

“बस तब ठीक है”.. सुचित्रा इत्मीनान से कहती हैं। 

सब अपने अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं.. 

सुन सुपर्णा का नंबर हमारे फोन में तो डाल दे। तुम लोगों के साथ साथ उससे भी बातें करेंगे हम। पोते की पत्नी की पसंद नापसंद जाननी है ना हमें।” दादी नवीन से चुपके से मुस्कुराते हुए बोलती हैं। 

ये सुनते ही यू आर बेस्ट दादी बोल कर नवीन दादी के गले लग जाता है। 

“हैं.. ऐसा क्या हो गया, मुझे भी बताओ।” नीतू दोनों के खुशी से दमकते चेहरे को देख करीब आती हुई बोलती है। 

“ये हमारा राज है, तुम्हें क्यूँ बताए बंदरिया। जाकर सुप्रीम कोर्ट को बता आएगी।” नवीन बहन को छेड़ता हुआ कहता है। 

“क्यूँ तुम दादी को सब कुछ नहीं बताते क्या!” नीतू चिढ़ कर पूछती है। 

“अरे दोनों ही मेरे आँखों के तारे हो। क्यूँ झगड़ा कर रहे हो, आओ इधर दोनों।” कहकर दादी दोनों को गले से लगा लेती है। 

“पहुँचते ही याद से बता देना”… सुचित्रा सबको रुखसत करती हुई बोलती हैं। 

“बच्चों से हवेली भरा भरा लगता है। उनके जाते ही खाली हो जाता है।” शीला सुचित्रा के साथ हवेली के अंदर आती हुई बोलती है।

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