पता नहीं किस जमाने में जी रहीं हैं आप ! – सुषमा यादव: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मधु ने अपनी मां को फोन किया। मां, गांव के बगल वाले भैया का फोन आया था कि दीपू की आंख में मोतियाबिंद हो गया है।आप सब परेशान हैं कि यहां छोटे से गांव में कैसे करायें। अम्मा जी,आप और बाबू जी भाई को लेकर हमारे पास आईए, मैं उसका आपरेशन यहां करवा दूंगी। अभी यहां पर आपके समधी और समधन भी आये हैं उनको भी आप लोगों का साथ मिल जाएगा।आप जल्दी से तैयारी कर लो, हम कल गाड़ी भेज रहें हैं। आप परसों शाम तक आ जाएंगे।

मधु का फोन सुनकर मां बोली, अरे बेटा, कैसी बातें करती हो। हम बेटी के घर आकर रहें, वहां का तो पानी पीना भी हमारे लिए पाप है।याद है,जब यहां तुम्हारे बाबूजी तुम्हारा ससुराल में जाते थे।भरी गर्मी में भी तुम्हारे घर का पानी नहीं पीते थे। बाहर किसी हैंडपंप से पानी पी लेते थे।

ऊपर से तुम्हारे सास और ससुर भी हैं।हम लोग किसी हालत नहीं आ सकते हैं। 

मधु ने गुस्सा होकर कहा। अम्मा जी,अब जमाना कितना बदल गया है । “पता नही किस जमाने में जी रहीं हैं आप”।मेरी सहेलियों के माता-पिता अपनी बेटी के यहां आते हैं। कितने दिन रहते हैं,पूरा परिवार मिलकर बाहर घूमने जाते हैं। 

मेरे भाई की आंख का सवाल है।वह तो शारीरिक रूप से वैसे भी कमजोर है अब क्या चाहती हो कि आंखें भी चली जाए।

पर बेटी, गांव वाले और तुम्हारे यहां के लोग तथा तुम्हारे सास श्वसुर क्या कहेंगें। दामाद जी से पूछा है। मधु बोल पड़ी, अम्मा, लोग क्या उसकी आंखें बनवा देंगे। लोग तो कल को यह भी कहेंगें कि बेटी दामाद इतने अच्छे पद पर हैं फिर भी भाई का आपरेशन नहीं करवा सकते।

आप लोगों ने मुझे इतना पढ़ाया लिखाया, मेरी इच्छानुसार मेरी नौकरी करने के बाद मेरी शादी की। तो मेरा भी फर्ज बनता है ना। आप लोग बेटा-बेटी में भेद-भाव क्यों करते हैं ? फिर यहां सब राजी हैं।आपके दामाद भी कह रहे हैं उनको जल्दी आने को कहो। हम सब आपका रास्ता देख रहें हैं। बस आप सब आ जाईए।

मधु के तर्क के आगे मां की नहीं चली और तीसरे दिन सकुचाते, झिझकते हुए सब आ गए।

मधु के घर पहुंचते ही सबने दिल खोलकर उनका स्वागत किया। 

मधु की मां को लगा ही नहीं कि वह बेटी के ससुराल वालों के साथ है। बहुत अपनापन महसूस हो रहा था। 

दूसरे दिन सुबह चाय पीते हुए मधु की मां ने सफाई देते हुए कहा। समधन जी, बेटी ने बहुत जिद की तो मुझे आना ही पड़ा।पर आप ही बताइए कि क्या बेटी के घर आना सही है।हमारी बहुत मजबूरी है इसलिए हमें आना ही पड़ा। समधन जी ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा। बहिन जी,आप कौने जमाने की बात कै रहिन हैं। अब तो गांवन मां सब एक दूसरे के घरे आवत जात हैं। खात पियत हैं। तुम्हरे आवै सै हमका बहुत खुशी है,काहे कि सारा दिन हम अकेलै घर मा रहित हैं। वा देखा, दोनों समधी कितने मगन हो कर बतियात हैं,जैसन दूनौ बचपन कै दोस्त हैं।

मधु की मां की सारी झिझक खतम हो गई। दीपू के आपरेशन के बाद सब कोई मिल कर गांव गए। क्यों कि मधु का मायका और ससुराल पास पास थे।

विदा होते समय जबरदस्ती मधु के माता-पिता ने अपने समधी समधन के पैर छूते हुए उनके हाथ में रिवाज के अनुसार पैसे पकड़ाए ।

मधु की सास ने कहा।बहिनी,अब इहौं आवा करा।हर तीज त्यौहार  हम एक साथ मनाऊब। मधु की मां ने खुश होकर कहा, हां हां बिल्कुल दीदी, कभी आप सब हमारे यहां और कभी हम सब आपके यहां जरूर आयेंगें। ये वादा रहा।

मधु की मां ने हंसते हुए बेटी से कहा,,अब तो नहीं कहोगी, कि “पता नहीं किस जमाने में जी रहीं हैं आप “

मधु भी हंसते हुए मां के गले लग गई, हां मां,अब नहीं कहूंगी,पर अब आप भी आते जाते रहना।

सुषमा यादव पेरिस से

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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