प्यार के दो बोल… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “समझ नहीं आता किसी किसी की ज़िन्दगी ऐसी क्यों हो जाती है ….जो सबके लिए सोचता हो ….करता रहता हो ….वही हमेशा प्यार के दो शब्दों के लिए तरस जाता है…..उस बेचारी का बचपन यूँ ही तानों में गुजर गया और अब जाकर शायद उसकी ज़िन्दगी में प्यार के रस घोलने वाला मिला है तो वो लोग ना जाने क्या फ़ैसला करें…..आपको क्या लगता है अनुराग…..चारू की क़िस्मत में भगवान ने कुछ तो अच्छा लिखा ही होगा… कोई तो होगा उसका …..भाग्यविधाता जो उसकी ज़िन्दगी संवार देगा ?”गुंजन पति अनुराग से बोल रही थी और कुछ देर पहले की घटना से आहत नज़र आ रही थी 

” पता नहीं गुंजन हम बचपन से चारू को देख रहे हैं …. हम तो चाहते रहे हैं कि भैया भाभी उसे प्यार दे पर पता नहीं ऐसा रूखा व्यवहार वो किसी इंसान के साथ कैसे कर लेते हैं जो चौबीस घंटे उनकी ख़िदमत में खड़ी रहती है ।” अनुराग बस एक आह भर कर रह गए 

दूर से चारू दोनों को देख कर अपने लिए एक उम्मीद जगा रही थी कि शायद उसका भाग्य बदल जाए।

चारू एक अनाथ लड़की जो गुंजन की जेठानी अचला  के रिश्ते में चचेरी बहन लगती थी…. एक कार दुर्घटना में माता-पिता का देहांत हो जाने से उसकी परवरिश का सोच सबने हाथ खींच लिए थे ऐसे में अचला के माता-पिता ने चारु को अपने पास रख लिया….. बेचारी पाँच साल की बच्ची माता-पिता के रूप में अचला के पैरेंट्स को ही अपना मान रही थी …. अचला के अपने चार भाई थे उपर से चारू को ले कर आ जाने से सब चारू को दुत्कारते रहते थे…. सबने चारू को एक काम करने वाली से ज़्यादा ना समझा…..ये ला दे ..वो ला दे…. ये कर दे… वो कर दे… बस उसे इस काम के लिए ही रखा हुआ था ।

अचला की शादी के बाद चारू उसके साथ इधर आ गई थी घर के काम करने के लिए…. फिर जब दो साल बाद गुंजन इस घर  की बहू बन कर आई तो चारू के साथ होते इस व्यवहार से वो बहुत आहत होती …पति अनुराग से जब भी चारू के बारे में पूछती तो कहते,“ ये भाभी की मदद करने वाली मुफ़्त की सहायिका है…. तुम उससे ज़्यादा बात मत करना… भाभी को बिलकुल पसंद नहीं कोई चारू से बात करें…।”

गुंजन जब भी चारू को देखती उससे प्यार से बात करती …. पर गुंजन चाहकर भी कुछ कर नहीं सकती थी एक ही छत के नीचे रहते तो है पर घर तो अलग-अलग हो गए थे ऐसे में चारू के प्रति अपनी हमदर्दी वो बस अंदर ही जज़्ब कर लेती थी।

एक दिन अचला के घर से जोर ज़ोर से ग़ुस्से की आवाज़ आ रही थी…. अचला की आवाज़ जितनी तेज होती चारू के रूदन का स्वर भी तेज हो जाता….साथ में एक मर्दाना स्वर भी सुनाई दे रहा था…. गुंजन से रहा नहीं गया वो चल दी अचला के घर की ओर।

“ क्या हो रहा है भाभी क्यों इतना ग़ुस्सा कर रही है…. बाहर सड़क तक आपकी आवाज़ आ रही है…. आख़िर इस बच्ची ने ऐसा क्या कर दिया जो आप इस पर चिल्ला रही है?”घर में घुसते ही गुंजन ने पूछा 

चारू उसे देखते दौड़ कर जा लिपटी….. जब कोई आपके दर्द को मौन रह कर भी समझ जाए तो वो अक्सर आपको अपना करीबी समझ लेता है।

“ तू हमारे बीच में ना आ गुंजन…. माँ पापा ने इसे मेरे पास भेजा कि ये घर के काम काज कर सके पर ये तो गुलछर्रे उड़ा रही है वो भी देख तो सही ये राशन दुकान वाले के साथ…. बनी बनाई इज़्ज़त मिट्टी में मिला दिया इसने…. शरम तक नहीं आई इसे…।” ग़ुस्से में लगा अचला चारू पर हाथ ही ना उठा दे

“ भाभी पहले पता तो कर लो क्या बात है?” गुंजन ने चारू की ओर सवालिया नज़र से पूछना चाहा

“ गुंजन दीदी हम दोनों शादी करना चाहते हैं पर अचला दीदी इसके लिए राजी नही हो रही….।” पहली बार चारू के मुँह से इस तरह की बात सुन गुंजन दंग रह गई 

पास खड़े राशन दुकान वाला सोहन भी कहने लगा,“ आपको हमारी शादी से आपत्ति क्यों है ये तो बता दीजिए…. मैं वादा करता हूँ चारू को बहुत प्यार दूँगा और खुश रखूँगा, बस आप अपनी रज़ामंदी दे दीजिए ।”

“ सोहन तुम तो चुप करो… मेरी बहन को बहला फुसलाकर शादी करने की कोशिश कर रहे हो ये कभी नहीं होगा … चलो जाओ तुम यहाँ से।” दरवाज़े की ओर इशारा कर अचला ने सोहन से कहा

चारू ने इशारे से सोहन को जाने कहा… उसके जाने  के बाद गुंजन ने चारू से पूछा,“ ये सब कब से चल रहा?”

“ गुंजन दीदी मैं अक्सर सामान लाने उसकी दुकान पर जाती रहती थी…. किसी से कभी कोई बात नहीं करती थी बस सामान लिया और आ गई … एक दिन मुझे बुखार हो रहा था फिर भी मुझे दीदी ने सामान लाने भेज दिया… मुझसे चला भी नहीं जा रहा था ऐसे में  सोहन ने सहारा दे कर घर तक पहुँचाया…. फिर कभी-कभी बातें होने लगी…. वो मुझसे प्यार से बात करता जो मुझे अच्छा लगता था…. गुंजन दीदी मेरी ज़िन्दगी में किसी ने कभी भी मुझसे प्यार से बात नहीं किया…. जिस तरह से सोहन ने किया…. मैं जानती हूँ अनाथ हूँ….. पर क्या मेरी कोई सोच नहीं…. क्या मेरी ज़िन्दगी पर मेरा कोई अधिकार नहीं….. ऐसा ही है तो भगवान मुझे भी मेरे मम्मी पापा के साथ अपने पास बुला लेते।” कहकर चारू फफक पड़ी 

चारू को चुप कराते हुए गुंजन ने अचला से कहा,“ भाभी हो सके तो एक बार आप ठंडे दिमाग़ से सोचो…. भैया से भी बात करो और हो सके तो चारू के फ़ैसले पर एक बार गौर करो और सोहन के बारे में पता करवा लो…. वो काम करता है… पैसा कमाता है…. हो सकता है चारू को खुश रखे।” 

“ पर गुंजन वो….. ।” अचला आगे कुछ कह पाती उससे पहले चारू ने कहा,“ दीदी आप बस हाँ कर दो…. अपने माता-पिता को बचपन में खो चुकी हूँ…. इतने सालों से आप लोगों के साथ बिना किसी माँग के रह रही हूँ…. आप जो भी देते बिना कुछ कहे खाती पहनती रही हूँ पर सोहन को नहीं खोना चाहती हूँ….. हम दोनों आप लोगों के आशीर्वाद के बाद ही शादी करेंगे बस आप हाँ कर दो।”

“ भाभी मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आ रही फिर भी आप तसल्ली कर लो…. आख़िर कभी ना कभी तो चारू की शादी करते ही ना… हमेशा यहाँ बैठा कर तो नहीं रख सकते थे …. एक बार आप भैया और अपने घर पर बात करके देख लीजिए ।” गुंजन ने कहा 

इसके बाद गुंजन घर आ गई थी और अपने पति अनुराग से इसी बात पर चर्चा कर रही थी…. उसे लग रहा था भाभी अपनी मुफ़्त की सहायिका को इतनी आसानी से जाने नहीं देना चाहती इसलिए वो मना ही करेंगी ।

पर इसके विपरीत दूसरे दिन शाम को गुंजन और अनुराग को अचला ने घर बुलाया और कहा,”मैं चारू की बहन हो कर भी कभी उसके अच्छे के लिए नहीं सोच पाई पर तुने गुंजन इसके लिए हमेशा ही अच्छा सोच कर मुझे समझाने की कोशिश करती रही पर मैं कभी समझ ही ना पाई…..अब मैं खुद चारू का कन्यादान करूँगी गुंजन…. बहुत दुत्कार लिया उसे अब वक़्त आया है उससे जी भर लाड़ लडा़ लूँ पता नहीं फिर ये कब मेरे घर आ पाएगी ।” अचला ने कहा

चारू को शायद अब सही मायने में प्यार करने वाले लोग मिलने वाले थे उसकी क़िस्मत अब बदलने वाली थी और सोहन के प्यार और साथ को पाकर उसका भाग्य बदलने वाला था ।

चारू जैसे हालात में बहुत सी लड़कियाँ अपनों के बीच काम करने वाली बन कर रह जाती है….कभी कभी तो ज़िन्दगी बदतर हो जाती है… वो इसे ही अपना भाग्य समझ ज़िन्दगी काटने को मजबूर हो जाती है पर कभी-कभी कोई होता है जो किसी रूप में उनका भागयविधाता बनकर उनकर ज़िन्दगी सँवारने चला आता है ……वो भी क्यों प्यार दुलार से मरहूम रहे ऐसे में ज़रूरत है उन्हें समझने की ….प्यार देने की ….जिन्हें ईश्वर ने दुख दिए उनके लिए हम भी दुःख क्यों ले कर आए…. प्यार के दो बोल से क्यों ना उनकी ज़िन्दगी भी महकाएँ ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# भाग्यविधाता 

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