पहला उपहार – ऋतु गुप्ता  : Moral stories in hindi

कहां तक बखान करूं ए जिंदगी,

तूने सौगात है बहुत सी दीं हैं।

दिए हैं उतार-चढ़ाव बहुत से जिंदगी में तूने,

पर क्यूं मैं याद करूं उन सभी को,

जब तूने यादें मीठी भी बहुत दी हैं।

बस एक ऐसा उपहार में नहीं भूलना चाहती जिंदगी भर

जब ईश्वर  ने पहली बार गोद भरी थी,

देखकर मां की ममता को अनमोल उपहार

झोली मेरी खुशियों से भरी थी।

मुझे आज भी याद है जब मैं नई-नई दुल्हन बनकर ससुराल आई थी, ज्यादा उम्र नहीं होती थी उसे वक्त शादियों की बस जरा सा बेटी बड़ी हुई नहीं कि उसके हाथ पीले कर दिए जाते थे। रस्मों रिवाजों के बीच  छोटी सी उम्र में ही बांध दिया जाता था। शायद बेटियां भी कोई खास सपने नहीं देखा करती थी, यदि कोई देखता भी तो उससे पूछा नहीं जाता था आज की तरह कि बेटी को कुछ करना भी या नहीं।

बस सभी फैसले बड़ों की रजामंदी से लिए जाते थे , काफी हद तक ठीक भी था।मैं भी बड़ों के लिए फैसले से खुश थी पर फिर भी एक अनजाना सा डर था मन में।

मैं भी संकोच भरी सिमटी सी ससुराल की दहलीज पर आ गई। अंजाना घर, अंजाने लोग न जाने कैसे सब संभाल पाऊंगी, कैसे अपने आप को एडजस्ट कर पाऊंगी, इस बात को लेकर हर वक्त चिंता में रहती थी। सबसे अधिक तो इस बात को लेकर चिंता थी कि न कोई ससुराल में ननद है, न कोई हमउम्र देवरानी जेठानी जिससे मैं मन तन की बात कर सकूं क्योंकि उस वक्त फ़ोन की भी कोई खास सुविधा नहीं थी, मैं तो भरे पूरे परिवार में भाई बहनों से घिरे रिश्तो में रहकर पली बड़ी थी, इसलिए ये डर काफी हद तक जायज भी था।

पर समय है ना सब कुछ सिखा देता है मैं भी नये परिवार में अभ्यस्त होने लगी, सभी कुछ नए सिरे से करने और सोचने लगी। तभी एक दिन सुबह उठते ही मुझे चक्कर जैसा महसूस हुआ खाली पेट थोड़ी उल्टियां लग गई ,जी धक सा रह गया, सोचने लगी है राम अभी तो मैं भी बच्ची हूं कैसे सब संभाल पाऊंगी।

उधर मायके में सभी लोग वैष्णो देवी जाने का प्रोग्राम बना रहे थे ,मैंने जानबूझकर अपनी नासमझी, नादानी और अपने बालपन में ससुराल वालों से यह बात छिपानी  चाही,मुझे डर था कि कहीं मेरा संदेह सच न हो ,नहीं तो फिर  मुझे मेरे ससुराल वाले वैष्णो देवी की यात्रा पर कत‌ई भी नहीं जाने देंगे। जबकि मेरा मन तो बार-बार मायके को याद करता था, वहीं  की गलियों में अटका था।

फिर एक दिन मेरी दादी सास मेरे पास बैठी थी मुझे लाड़ जता रही थीं, क्योंकि मैं उनकी सबसे पहले बड़ी पोतबहू जो थी। उन्होंने मेरा मुरझाया चेहरा देखकर जान लिया कि शायद मुझे दिन चढ़े हैं। अपनी बातों ही बातों में उन्होंने मुझसे उल्टी वाला सच जान लिया।

वह थोड़ा खुश नजर आई और उन्होंने मेरे ससुर जी से कहा कि शायद वो परदादी बनने वाली हैं।

फिर क्या था, वही हुआ जो मैं नहीं चाहती थी सारे घर में खबर फैल गई ,सभी बहुत खुश थे आने वाले नए मेहमान को लेकर। मेरा वैष्णो देवी जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया गया। तब मेरी दादी सास और  सासु जी ने मुझे समझाया यह तो माता रानी का दिया अनमोल उपहार है जो तुम मां बनने वाली हो तुम्हारी गोद भरने वाली है।

मैं जब भी परेशान होती डॉक्टरी चेकअप से डरती तो  मेरी सासू मां मुझे कहती कि जब ओखली में सर दिया तो डरना क्या, मैं उनका मतलब उसे समय तो अच्छी तरह नहीं समझ पाती पर हां ये जरूर लगता कि कहीं ना कहीं कुछ बड़ा  मिलने वाला है।समय अपनी गति से चलता रहा।

अब धीरे-धीरे मैं भी अपने अंदर नन्ही नन्ही सांसों का अनुभव करने लगी, नन्हे नन्हे हाथ पैरों  का चलना अपने  भीतर महसूस करने लगी,अब मैं हर समय आने  वाले बच्चे की सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती,नौ महीने का पूरा समय दुख्खम सुख्खम गुजर गया।

डिलीवरी से दो दिन पहले  के वो दर्द आज भी याद करके हर न‌ई मां की तरह मुझे भी लगता है जैसे वो एक नया जन्म ही हुआ था।

होश में आने पर जब मैंने नन्हे-नन्हे हाथों को महसूस किया, बच्चे को गोद में लिया, सीने से लगाया, तो लगा हां शायद यही अनमोल उपहार है हर स्त्री के लिए जो कुदरत ने उसे नवाजा है ।आज भी जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो सब कुछ नगण्य सा लगता है इस उपहार के आगे।

ससुर जी ने आगे बढ़कर रुपयों से मेरी और बच्चे की नजर उतारी, सारे अस्पताल में जी भरकर मिठाई बांटी गई। सच में मैं बता नहीं सकती कैसा महसूस किया या क्या ही मिला….

पहली बार मां बनने का सुख क्या होता है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है, एक मां शब्द ही अपने आप में सृष्टि का दिया अनमोल उपहार है हर उस स्त्री के लिए जो मां बनना चाहती है।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

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