पहले आप नहीं पहले मैं – रश्मि प्रकाश   : Moral stories in hindi

आज अपने दादा जी की पुण्यतिथि पर मैं फिर से पुरानी बातों के घेरे में खुद को जकड़ने से रोक नहीं पाई साल दर साल यूँ ही गुजरते चले जा रहे हैं पर नहीं भूले जाते तो वो सारे पल जिसने पल भर में अपनों की असली पहचान करवा दी।

कितना वक्त गुजर गया है पर आज भी वो दिन याद आता है तो छोटे दादा जी के कहे गए वो ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल उठता है।

कोई इंसान इतना कैसे गिर सकता है जो बोलने से पहले ये भी ना देख सके कि आस पास कितने लोग है …. कैसे और क्या बात करनी चाहिए और वो भी उसके लिए जिसने आपके लिए बहुत कुछ किया हो।

जब ये सब हो रहा था मैं उधर ही दूर बैठ कर कही ख़्यालों में खोई हुई थी… बड़ों की बातों में बच्चों का क्या काम… ना चाहते हुए भी ध्यान उधर चला ही जा रहा था 

तभी दादा जी की आवाज़ कानों में पड़ी,”देखो जयंत जो कमरा अभी तुम्हारे पास ख़ाली पड़ा है उसको खोल दो और मेरे बड़े बेटे वनराज के परिवार को वहाँ रहने दो…मैं बेटा खो चुका हूँ कम से कम उनके परिवार को तो अपनी निगरानी में रख सकूँ… जानते तो हो वनराज ने भी इस घर के लिए कितना कुछ किया था पर वो कभी यहाँ रहना नहीं चाहता था पर पर आज जब वो नहीं रहा तो मैं उसके परिवार को अकेले दूसरे शहर में रहने नहीं दे सकता जब सब यहीं रहते हैं तो उन्हें भी एक कमरा दे दिया जाए ताकि वो लोग भी यही सबके साथ रहे …तुम बस चाभी दे दो।”

“ भैया जब पहले ही मैं कह चुका हूँ वो कमरा मैं नहीं देने वाला तो क्यों आप बार बार बोल रहे हैं…वैसे भी इस घर पर आपका अधिकार ही क्या है … जमीन मेरे नाम है तो इस पूरे घर पर क़ब्ज़ा भी मेरा ही है..आपको यहाँ रहने दे रहा हूँ इसका मतलब ये तो नहीं कि आपका पूरा ख़ानदान ही यहाँ बस जाए…वनराज चला गया तो इसमें मेरी क्या गलती और जब पहले से उसका परिवार जहाँ रह रहा है वही रहने दीजिए….और आप भी चुपचाप रहिए…कौन सा आप भी ज़्यादा दिन ज़िंदा रहने वाले हैं… कुछ दिन में बेटे के पास ही चले जाएँगे ।”

“ जयंत ज़बान सँभाल कर बात करो… तुम बड़ों से बात करने की तमीज़ भूल गए हो…मेरा बेटा चला गया और तुम ऐसे बोल रहे हो…अरे बोलने से पहले कुछ तो शर्म करो …ये घर मैंने अपने खून पसीने की कमाई से बनाया ….गलती हो गई मुझसे जो भाई के प्रेम में ज़मीन उसके नाम ले दिया..और आज तुम मुझे ही अकड़ दिखा रहे हो … कह रहा हूँ उस कमरे की चाभी मुझे दे दो नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।”दादा जी बोले

“ अरे भैया जाइए .. क्यों बेकार में समय बर्बाद कर रहे हैं नहीं दूँगा मतलब नहीं दूँगा… रहे उसके बच्चे सड़क पर मुझे उससे क्या?” जयंत ने कहा 

“ जयंत मेरा हाथ उठ जाएगा अगर मेरे बेटे के परिवार के लिए जो ऐसे अपशब्द बोले।” दादा जी का हाथ उठता 

उसके पहले ही जयंत की आवाज़ सुनाई दी ,” हाथ उठाकर तो देखिए मैं कमज़ोर नहीं हूँ मेरा भी हाथ उठ जाएगा ।”

छोटे दादा जी के तेज आवाज़ में कहे गए ये शब्द सुनते ही मेरा खून खौल गया और मैं दौड़कर दादा जी के सामने जा कर खड़ी हो गई ,” छोटे दादा जी ये आप क्या कर रहे हैं..दाद जी आपसे बड़े है ..आप उनसे इस तरह बात कैसे कर सकते हैं और तो और आप उनपर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे कर गए… मेरे पापा ने एक बात हमेशा सिखाया है बड़ों की इज़्ज़त करना ,उनका सम्मान करना पर जब वो कोई गलत काम करे तो चाहे सामने कोई भी हो उनको जवाब देने से हिचकिचाना मत और आज अगर आप हाथ उठा देते तो शायद मैं..।” कहते हुए मैं दादा जो को लेकर उनके कमरे में चली गई वो अभी भी ग़ुस्से से काँप रहे थे 

“ दादा जी जब आपको पता है आपकी तबियत ठीक नहीं रहती तो क्या ज़रूरत थी आपको उनसे बात करने की ..वैसे मुझे पूरी बात तो नहीं पता पर  उनका उठा हाथ देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा ।”मैं सिर झुकाए बोली

“ बेटा तुम बिलकुल अपने पापा पर गई हो..,आज वनराज जहाँ भी होगा अपनी बेटी पर गर्व कर रहा होगा…आज तो मेरी झांसी की रानी ने कमाल कर दिया…मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया मेरी पोती ने!” कहते हुए दादा जी ने मुझे गले से लगा लिया और हर बार की तरह इनाम के रूप में.. हाथ  में दस रूपए का नया कड़क नोट रख दिया।( वो अकसर खुश होकर इनाम दिया करते थे)

मैं दौड़ कर अपनी माँ के पास गई और उनके हाथ में रूपए रख दिए। 

माँ ने सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया पर आँखो से बहते आँसुओ को वो भी नहीं रोक सकी …एक बूँद आँसू मेरे हाथों पर भी जा गिरा। 

‘‘ माँ तुम रो रही हो, क्या आज मैंने कुछ ग़लत किया ,मुझे ऐसे नही बोलना चाहिए था… ।”माँ को रोते देख कर मैंने एक साथ कई सवाल कर दिए

“वोऽऽवोऽऽ छोटे दादा जी ….दादा जी से कैसे बात कर रहे थे तुमने नहीं देखा….ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल गया उपर से वो तो दादा जी पर हाथ भी उठाने वाले थे…माँ तब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ ….फिर मैं छोटे दादा जी और दादा जी के बीच जा खड़ी हुई।”

राशि जो खुद अभी पन्द्रह साल की होगी उसकी बातों से लग रहा था वो अभी भी छोटे दादा जी की बातों और हरकतों से गुस्से में भरी हुई है।

‘‘नहीं मेरी बच्ची तुने कुछ भी ग़लत नहीं किया….आज तेरे पापा होते ना तो वो भी तुम पर गर्व करते…बड़ों को हमेशा इज़्ज़त देनी चाहिए पर जब वो बेइज्जती करने पर उतर आए तो उन्हें रोकना बहुत जरूरी है।”राशि की माँ ने उसे समझाते हुए कहा

राशि माँ के पास बैठ कर पूछने लगी,”माँ ये तो बताओ ये हल्ला हंगामा क्यों हो रहा था जिसपर छोटे दादा जी ने दादा जी से इतने बुरे तरीके से बात किया ?”

‘‘ बेटा जब से तुम्हारे पापा हमें छोड़ कर चले गए हैं तब से दादा जी यही चाहते हैं कि मैं तुम सब बच्चों को लेकर उस शहर और उस किराये के घर को छोड़ कर यहाँ सब परिवार वालों के साथ रहूँ….यहाँ हमारा पूरा संयुक्त परिवार एक साथ ही रहता है ….यहाँ पर सबने अपने-अपने हिसाब से एक -एक कमरा ले रखा है…देख तो रही हो …इतना बड़ा परिवार है हमलोगो का….छोटे दादा जी के पास एक कमरा एक्सट्रा है तो दादा जी ने कहा कि वो रूम हमें दें दे ताकि हम भी सब के साथ यहाँ पर रह सके पर छोटे दादा जी इसके लिए तैयार नहीं हो रहे। दादा जी बड़े नरम स्वभाव के हैं और तो और ये घर भी उनका ही बनवाया हुआ है पर दादा जी से एक गलती हो गई…पिता के नहीं रहने पर अपने छोटे भाई को बेटा समझ कर अपना पैसा लगा कर ये जमीन अपने भाई के नाम से ले लिए उपर से उस पर घर भी बना लिए इस घर में बहुत कुछ सामान और पैसा तुम्हारे पापा ने भी लगा दिया…पर कहते हैं ना किसी को जितना करो उसकी चाह  उतनी ही बढ़ती जाती …बस वही छोटे दादा जी ने किया…जब दादा जी उनसे प्यार से बोले तो वो सुन नहीं रहे थे और जब थोड़ा सख्त हुए तो वो अपनी अकड़ दिखाने लगे ….अब तक लोक लाज का थोड़ा लिहाज कर रहे थे इसलिए घर में सब साथ में रह पा रहे हैं नहीं तो वो कब का सबको निकाल दिए होते ….आज दादा जी ने जोर देकर कहा कि कमरे की चाभी मुझे दे दो तो छोटे दादा जी ने साफ इंकार कर दिया और बोले मैं नहीं दूँगा….क्या कर लेंगे आप ? जब दादा जी डांटने लगे तो छोटे दादा जी भी तैश में आकर बहुत कुछ बोलने लगे जब वो हाथ उठाने वाले थे तभी तुम आ गई।”माँ कह कर चुप हो गई

माँ  सोचते हुए कहने लगी ,”हम अपने क़स्बे में तुम्हारे पापा , भाई और तुम कितने सुकून से रह रहे थे पता नहीं कौन से मनहूस दिन उस ट्रक वाले ने तेरे पापा को ज़ोरदार टक्कर मारी की वही घटनास्थल पर वो चल बसे…यहाँ दादा जी के साथ साथ छोटे दादा जी का भी पूरा परिवार रहता है….लगभग बीस लोगों का भरा पूरा परिवार। उसमें हम तीन और आ गए…पता नहीं अब कैसे रहेंगे क्या करेंगे.. तुम दोनों भी अभी छोटे हो ।” कहते कहते माँ रोने लगी 

‘‘ ओह तो यह बात है, मुझे तो बस उनका उठा हाथ देखकर ही गुस्सा आ गया। 

तभी तो मैं बोल गई,” छोटे दादा जी आपकी हिम्मत कैसे हुई दादा जी पर हाथ उठाने की?”

माँ उधर और लोग भी थे पर सब चुपचाप खड़े होकर  देख रहे थे….पता नहीं मुझे ये सब देख कर अच्छा नहीं लगा बस ये लगा कि दादा जी बड़े है और वो छोटे ,हाथ उठाकर कैसे खड़े हो गए?

“माँ मैं नहीं जानती कि मैंने सही किया या गलत पर बात मेरे दादा जी की थी तो मैं चुप कैसे रहती? माना वो हमारे ही छोटे दादा जी है पर उनसे पहले मेरे दादा जी की इज्ज़त है ना?”कहकर राशि कान पकड़ कर खड़ी हो गई, 

उसने दादा जी के लिए आवाज तो उठाई पर छोटे दादा जी भी तो उससे बड़े थे उनसे वैसे झांसी की रानी बन कर बात करने की हिमाकत करना उसे कचोट भी रहा था।

तभी दादा जी की आवाज़ सुनाई दी,”कहाँ है मेरी झांसी की रानी.. ये लो बहू कमरे की चाभी मिल गई अब आराम से रहो उसमें।”माँ को चाभी देते हुए दादा जी के चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर रही थी 

दादा जी मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले ,”मेरा बेटा चला गया पर तेरे जैसी बहादुर बच्ची मेरे लिए छोड़ गया…मैं बस अपने परिवार को एकजुट रखने में लगा रहा…ये समझ ही नहीं पाया की कुछ लोग अपनों से ही अपना सब कुछ छिनने में लगे रहते हैं ।”

ना चाहते हुए भी दादा जी को इस घटना के बाद बँटवारा करवाना पड़ा। ताकि आगे से फिर कोई ऐसी घटना न घटे.. दादा जी की तबियत ठीक नहीं रहती थी इसलिए वो भी ज़्यादा वक्त तक साथ नहीं दे पाए पर एक सबक़ ज़रूर सीखा गए…अपने हिस्से की चीजों पर अपना हक़ बनाएँ रखना उसे किसी भी अपने के लिए त्याग करना आज के समय में समझदारी नहीं है… पहले के समय में लोग अपने से छोटे भाई पर सब क़ुर्बान कर देते थे पर अब वो समय नहीं रहा ….पहले आप नहीं पहले मैं की विचारधारा का जन्म हो चुका है ।

दोस्तों मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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