मेरी बेटियों तनाव का नहीं खुशी का कारण है – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

‘अरे! क्या हुआ? घर में इतना तनाव क्यों है? मुकेश को आश्चर्य हो रहा था, सभी लोगों के सिर पर तनाव की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी।

“तुझे कबसे फोन लगा रही हूं, तेरा फोन बंद आ रहा है, ऊषा जी ने अपने बेटे से कहा तो मुकेश ने अपना फोन चेक किया, हां, मोबाइल चार्ज नहीं है, मै अभी चार्ज पर लगा देता हूं।

फोन चार्ज पर लगाकर उसे फिर से ध्यान आया, ‘मम्मी-पापा, नमिता तुम सब इतने तनाव में क्यों हो?’

‘तेरे पास तेरे ससुराल से फोन नहीं आया क्या? जो हमसे पूछ रहा है, तुझे इस बार भी बेटी हुई है, मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा है, जब से सुना है सिर भारी हो रहा है, पहले जुड़वां पोतियां क्या कम थी जो एक और आ गई, एक ही बेटा है मेरा, और वो भी वंश को आगे नहीं बढ़ा पाया, ऊषा जी ने रूंआसे होते हुए कहा।

ये सुनकर मुकेश खुश हो गया, ‘इतनी बड़ी खबर है, और आप लोग मुझे इतनी मायूसी से बता रहे हैं, इसमें तनाव की क्या बात है? तन्वी और अन्वी को अपनी छोटी बहन मिल गई है, मेरी बेटियां तनाव का नहीं खुशी का कारण है, मै अभी साक्षी से बात करता हूं, उसके यहां से फोन आया होगा, पर मेरा फोन ही चार्ज नहीं था, मुकेश ने अपने पापा का फोन लिया और अपनी पत्नी से बात की, ‘बहुत बधाई हो, मै कल सुबह तक तुम तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा,तुम अपना और नन्ही सी परी का ध्यान रखना।”

ऊषा जी ने हाथ से मोबाइल ले लिया, ‘पागल हो गया है क्या? बेटी हुई है, बेटा नहीं हुआ है, जो इतना खुश हो रहा है, बहू को वापस लाने की जरूरत नहीं है, जो

बहू सिर्फ बेटियां पैदा करना जानती है, उसे मै अपने घर तो वापस नहीं लाऊंगी।’

‘मम्मी, आप कैसी बातें कर रही है? साक्षी इस घर के कण-कण में बसी हुई है, बेटी हम दोनों को हुई है, वो मां बनी है तो मै भी फिर से पिता बना हूं, और ये सब साक्षी के हाथ में नहीं है, बेटा होगा या बेटी इसके लिए पिता ही जिम्मेदार होता है, इसमें साक्षी का कोई कसुर नहीं है, और आप भी किस जमाने की बात कर रही है, आजकल ऐसा कौन सोचता है?”

‘बेटा, अपने विज्ञान और ज्ञान की बातें तो तू रहने ही दें, समाज आज भी लड़कों के दम से ही चल रहा है, लड़के ही तो अपना वंश आगे लेकर जाते हैं, लडके होते है तो घर चलता है, मुझे तो पोता ही चाहिए, जब तन्वी और अन्वी जुड़वां हुई तो मै चुप रही थी, इस बार ना सही अगली बार तो पोता जरुर हो जायेगा।’

‘मम्मी, आप भी बिना बात का तनाव ले रही है, इतनी बड़ी खुशखबरी है, घर में एक स्वस्थ बच्चा हुआ है, साक्षी और बच्चे दोनों स्वस्थ है, हमें और क्या चाहिए?

फिर आजकल बेटियां किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं है, मै कल सुबह साक्षी और अपनी बेटी से मिलने जा रहा हूं, और उन्हें अपने घर ले आऊंगा, ये तो आपकी जिद की वजह से साक्षी को डिलेवरी के लिए उसके मायके भेजा था, वरना मेरा तो जरा भी मन नहीं था।’

‘मुकेश, मुझे मेरी बहू से एक पोता तक नहीं मिला है, मेरी बहू ने मुझे दिया ही क्या है? मेरी सब सहेलियों और रिश्तेदारों के पोते है, सब कितने गर्व से रहती है और एक मै हूं जो तीन पोतियों की दादी बन गई हूं, एक पोते की उम्मीद रखना क्या गलत है?’

मुकेश चुपचाप अपने कमरे में चला गया, साक्षी से उसकी शादी को आठ साल होने को आये है, साक्षी पढ़ी-लिखी समझदार लडकी थी, उसने पूरे घर को संभाल लिया और ससुराल के रंग में रच-बस गई थी, ऊषा जी का वो बड़ा आदर सम्मान करती थी और  ननद नमिता को अपनी बहन ही समझती थी, शुरू में सब अच्छा ही चल रहा था, जैसे ही साक्षी के गर्भवती होने की जानकारी मिली, ऊषा जी पोते आने के सपने देखने लगी, साक्षी की पहली डिलेवरी भी मायके में हुई थी, इसलिए जब जुड़वां लड़कियां होने की खबर आई  तो ऊषा जी का चेहरा उदासी से लटक गया था।

उन्होंने जैसे-तैसे मन को समझा लिया था, पर उन्होंने दो बच्चे होने के बावजूद भी साक्षी पर लड़के के लिए दबाव डाला, दूसरी बार वो  गर्भवती हुई तो 

वो तनाव में रहने लगी थी, उन्होंने पोते होने के लिए साक्षी पर सारे टोटके आजमा लिये, और उन्हें पक्का भरोसा हो गया था कि इस बार तो पोता ही होगा, पर इस बार भी पोती हुई,  उन्हें पक्का यकीन था कि इस बार तो पोता ही होगा, अपने सपनों को टूटता देखकर ऊषा जी बहुत दुखी थी और तनाव में आ गई थी।

रात भर मुकेश सोचता रहा, सुबह उसने अपना सामान पैक किया और जाने लगा तो ऊषा जी ने टोका, ‘बहू से मिलने या उसे लेने जा रहा है तो कान खोलकर सुन लें, उसके लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है।’

‘ठीक है, मम्मी, साक्षी के लिए आपके मन में कोई जगह नहीं है, पर वो मेरी पत्नी है, मेरे मन में उसके लिए वो ही प्यार, वो ही इज्जत और सम्मान है, मै साक्षी के अधिकारों की रक्षा करूंगा, मै उसके लिए नया घर किराये पर ले लूंगा, और अगर आप बेटियों को तनाव का कारण मानती है तो आपके भी तो दो बेटियां हैं, एक की शादी आप कर चुकी है और दूसरी की अभी बाकी है, जब आप अपनी पोतियों से प्यार नहीं करती तो बेटियों से भी नहीं करती होगी, फिर तो आप अपने आप से आपकी बहनों से भी प्यार नहीं करती होगी, क्योंकि आप सब भी किसी की बेटियां हैं, क्या बेटियां होना इतना बुरा है?

‘फिर साक्षी ही अकेले घर क्यों छोड़े? मुझे भी उसके साथ घर से निकल जाना चाहिए, उसके लिए मै भी तो जिम्मेदार हूं, साक्षी ने अकेले बेटियां पैदा नहीं की है।

अपने बेटे मुकेश की बात सुनकर ऊषा जी के पैरो से जमीन सरक गई, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका बेटा उन्हें ही घर छोड़ने की धमकी देगा।

तभी उनकी बेटी नमिता बोलती है, ‘मम्मी फिर तो आपने मेरे और दीदी के जन्म पर भी ऐसे ही हमें कोसा होगा, आप तो हमें बिल्कुल प्यार नहीं करती,

दीदी के भी तो दो बेटियां हैं पर उन पर तो आप जान छिड़कती हैं तो क्या वो सब दिखावा है?”

बेटी की बेटियां प्यारी होती है पर बहू बेटियां पैदा कर दे तो उसके साथ दुर्व्यवहार क्यों किया जाता है?

ये सब सुनकर ऊषा जी शर्म से जमीन में गड़ गई, उनके आंसू बहने लगे, उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।

मुकेश, नमिता तुम दोनों मुझे माफ कर दो, तुम दोनों ने मेरी आंखें खोल दी, हम सब अपनी बहू और पोती से मिलने चलेंगे, और हम सब यही इसी घर में एक साथ रहेंगे। ये सुनकर सबके चेहरे से तनाव गायब हो गया और होंठों पर मुस्कान छा गई।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

#तनाव

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