मैं अब नहीं ज़ियूँगी !! – मीनाक्षी सिंह

सरला के पति का देहांत हो गया था !! घर वालों में जिस जिस को पता चल रहा वो अंतिम संस्कार से पहले आने की कोशिश कर रहा था !! सरला के पति प्रशांत जी अभी पिछले  साल ही तो प्रधानाध्यापक पद से सेवा निवृत्त हुए थे !! बड़े ही धूम धाम से बड़ा सा समारोह आयोजित किया था !! सरला और प्रशांत जी ने !! सभी को बुलाया था !! ऐसा क्या हुआ जो एक साल में ही भगवान को प्यारे हो गए  !! सबकी जुबां पर यहीं सवाल था !! बस बैठे बैठे ही दिल का दौरा  आया ,,और अखबार हाथ से गिर गया !! डॉक्टर को बुलाने का भी समय कहाँ दिया प्रशांत जी ने !!

सरला जी चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी – मुझे क्यूँ नहीं ले गए अपने साथ ,,अब मैं अकेली क्या करूंगी !! तुम्हारे साथ चाय पीती थी ,,सैर पर जाती थी ,,तुम्हारे बिना जीना अब नामुमकिन हैं !! य़ा तो लौट आओ य़ा मुझे ले जाओ !! मैं अब नहीं ज़ियूँगी! इसी दहलीज  पर अपना माथा पटक पटक कर जान दे दूँगी !! सुन रहे हो ना ,,अब किसके लिए खाना बनाऊंगी !! किस से पुछूँगी कैसी लग रही हूँ !! और जोर जोर से प्रशांत जी के मृत शरीर को हिला रही थी !! और उनके सीने से चिपक जा रही थी !! और,तुम्हारा बेटा जय आ गया हैं ,,तुमसे मिलने ,,बच्चों को भी संग लेकर आया हैं !! कहते थे ना रूही और सोनू के साथ खेलने का बहुत मन होता हैं !! उस कमीने जय को तो छुट्टी मिलती ही नहीं !! जब मर जाऊँगा तब भी कहेगा छुट्टी नहीं मिली पापा ! देखो आज जय को भी छुट्टी मिल गयी हैं !! खेल क्यूँ नहीं रहे बच्चों के साथ !! तुम्हारी बेटी पिंकी भी आ गयी हैं ,,कह रहे थे ना अबकी बार गर्मियों में मैं लेने जाऊँगा उसे !! खूब दिन रहेगी अपने पापा के पास !! और उसे दर्शन कराने हरिद्वार भी ले जाऊँगा !! देखो वो खुद आ गयी हैं ,,तुम तो समय से पहले ही हरिद्वार चले गए !! अब मैं क्या करूँ ,,ले जाओ ना मुझे !!



सब लोग समझाते ,,नियति को कोई नहीं टाल सकता सरला बहन जी !! जाने वाले के साथ जाना इतना आसान होता तो दुनिया ही खत्म हो जाती !! ईश्वर का नाम लिजिये,,बच्चों की तरफ देखिये ,,आपको देखकर कैसे रो रहे हैं !! कुछ खा लिजिये ,,दो दिन से आपने  कुछ नहीं खाया !! जीना तो पड़ेगा और बिना  खाये पिये जीवन नहीं चलता !! मुझे कुछ नही खाना ,,मुझे छोड़ दो अपने हाल पर !! तीसरे दिन से लोगों ने खाने की पूछना ही बंद कर दिया कि वही जवाब देंगी कि मुझे नहीं जीना !! तीसरे दिन सरला जी के पेट की आग ने उन्हे झकझोरा !! पर अब कोई पूछने भी नहीं आ रहा था खाने की !! करे तो क्या करें !! सामने अलमारी में बिस्कुट का पैकेट रखा था !! सरला जी ने  इधर उधर देखकर जल्दी से उसे अपनी साड़ी में छुपा लिया !! निवृत्त होने के लिए गयी ,,वही जल्दी जल्दी खाकर आ गयी !! ये तो गुजरा एक दिन धीरे धीरे करके चोरी से खाने की ये आदत उनकी रोज की दिनचर्या में शामिल हो गयी पर फिर भी मन भर के नहीं खा पाती !! बस जीने भर का खा पा रही थी !! प्रशांत जी की तेहरवीं के दिन जब तरह तरह के पकवान बने !! तो  उनकी जेठानी ने   कहा आज तो खा ले सरला ,,नहीं तो प्रशांत की आत्मा भटकती रहेगी !! प्रसाद हैं ये ,,इसे मना नहीं करते !! आप कहती हैं तो थोड़ा सा ले लेती हूँ,,नहीं तो मेरे प्रशांत को मुक्ति नहीं मिलेगी !! थोड़ा सा निकालकर हाथ जोड़कर सरला जी ने जिस गति से आज खाना खाया ऐसा शायद कभी जीवन में नहीं खाया होगा !! और अंदर ही अंदर अपने आपको ऊर्जावान महसूस कर रही थी !! ऊपर से प्रशांत जी भी ये सब देखकर स्वर्ग लोक को चले गए कि संसार के सब रिश्ते स्वार्थ के हैं !! जीवन ऐसे ही चलता रहता हैं !! थोड़े दिन इंसान शोक मनाता हैं फिर अपने जीवन में आगे बढ़ जाता हैं !!  सरला  जी अगले दिन से ही अपनी पेंशन की कार्यवाही को आगे बढ़ाने लगी !! और अगर अब थोड़ी सी भी चोट लगती हैं तो मरहमपट्टी करवाती हैं !! थोड़ा सा भी बिमार होने पर सोचती हैं कहीं मैं मर ना जाऊँ ,,तुरंत चेक अप कराती हैं !! वो कहते हैं ना –

ज़िन्दगी कैसी है पहेली, हाय

कभी तो हँसाए, कभी ये रुलाये

ज़िन्दगी कैसी है पहेली, हाय

कभी तो हँसाए, कभी ये रुलाये

स्वरचित

मौलिक

मीनाक्षी सिंह

 

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