कामवाली बाई – गोविंद गुप्ता

राजेश और करुणा एक ही शहर में एक ही कम्पनी में जॉब करते थे,

मजे से रहते थे कोई बच्चा नही था तो छुट्टी के समय घूमने निकल जाते थे,

लाकडाउन हुआ तो ऑनलाइन कार्य करने लगे पर यहां काम का कोई समय नही था टारगेट होता था जिसे पूरा करते करते रात भी हो जाती थी,

सुवह देर से उठना या जल्दी उठना सब कार्य के आधार पर होता था ,

कभी कभी रविवार को भी कार्य करना पड़ता था,

तो सोंचा कोई काम बाली बाई की तलाश तलाश की जाये जिससे समय से खाना मिल सके और झाड़ू पोंछा भी हो जाये,

तो एक दिन उन्हें रमा नाम की एक महिला मिली जो बहुत गरीब थी पति भी नही था न बच्चे थे,लाकडाउन में वह फंस गई घर नही जा पाई अकेले के कारण,जो हजार किमी दूर था,

उसे काम पर रख लिया ,

बहुत अच्छा खाना बनाती थी और सारा कार्य समय पर होता था,

दोनो निश्चिंत होकर कार्य करते थे,


एक दिन करुणा को उल्टी होने लगी तो उसे लगा तबियत खराब है कुछ बासी खा लिया होगा तो रमा को डांटने लगी पर रमा मुस्करा रही थी,

जी मैडम हो सकता है गलती से कोई सब्जी पहुंच गई हो बैसे बासी सब्जी मैं ही खा लेती हूं,

कहकर किचेन में जाकर हंसने लगी कि लगता है मेम माँ बनने बाली है,

उधर डॉक्टर के यहाँ जाकर करुणा को खुशखबरी मिली कि वह तो माँ बनने बाली है,

खुशी खुशी दोनो घर आये तो रमा पूजा की थाली सजाये खड़ी थी ,

तिलक कर दोनो को अंदर लाई कहने लगी आपकी सासू माँ नही है यहां तो हंमे यह फर्ज निभाना पड़ा,

आखिर हम पर पूरे घर की जिम्मेवारी छोड़ जो रख्खी है आपने,

अपने डाँटा हंमे बुरा नही लगा क्योकि हंमे पता था कि शायद आप खुशख़बरी देने बाली है,

कोई न हंमे माफ करना करुणा बोली,

धीरे धीरे समय नजदीक आता गया रमा पूरे मन से सेवा करती करुणा की और घर का कार्य भी,

रमा को कभी भी यह अहसास नही हुआ कि वह काम बाली बाई है,

डिलीवरी के समय करुणा की सास आ गई तो सब कुछ उन्ही की मर्जी से चलने लगा,

रमा को इतने अधिकार उन्हें परेशान करते थे,

बार बार वह उसे डांटती रहती थी,

रमा बहुत परेशान थी कि यदि काम छोड़ देगी तो कही न कही तो मिल ही जायेगा पर मालिक जैसे लोग नही मिलेंगे,

सास का क्या दो महीने बाद चली जायेगी ,


यह सोचकर वह रुक गई निर्णय लेने से,

आखिर करुणा को बेटा हुआ तो सभी की खुशी का ठिकाना न रहा,

रमा भी बहुत खुश थी,

पर उसे बच्चा खिलाने नही दिया जाता था,

तभी लाकडाउन खुलने की घोषणा कर दी गई,

आवागमन शुरू हो गया ,

करुणा की सास का व्यवहार दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा था,

एक दिन तो उन्होंने अपने लड़के को लेकर ही आरोप लगा दिया कि वह एक दिन उसके लड़के को ही न संभालने लगे,

करुणा चुप थी क्योकि वह सास से कुछ नही कह सकती थी,

और रमा पर अटूट विश्वास था,

फिर एक दिन करुणा ने कहा माँ रमा एक नेक महिला है एक वर्ष से हमारे पास है विल्कुल घर के सदस्य की तरह रहती है,

हंमे कभी शिकायत नही हुई उससे,

तो सास बोली इसी तरह तो फंसाया जाता है मालिक को,

रमा को बहुत खराब लगा और उसने अपना बैग तैयार किया ,

और चुपचाप चली गई ,

इधर करुणा की सास भी एक माह बाद चली गई तो दोनो को बहुत समस्या आने लगी,

न खाना मिलता सही समय से  न बच्चे पर ध्यान दे पाती ,

दोनो बहुत परेशान थे,।तब तक कम्पनी ने भी ऑफिस खोल दिये और दोनो को बुलावा आ गया ,

अब बच्चे को कौन संभाले,

करुणा रमा को बहुत याद करती थी पर कोई सम्पर्क न होने के कारण मजबूर थी,

बच्चे को ऑफिस लेकर जाना और आना काम मे डिस्टर्ब होता था,

एक दिन करुणा घर आई तो उसके हाँथ से बच्चा छूट गया जमीन पर गिरा तो तेज तेज रोने लगा इतने में देखा रमा दौड़ी चली आ रही है और बच्चे को गोद में उठाकर चुप कराने लगी,

करुणा आश्चर्य से पूंछने लगी रमा तुम यही हो तो बोली कि बापस जाने का मन नही था गेट पर साहेब मिल गये कहने लगे जब तक माँ है तब तक तुम मेरे दोस्त के यहां काम कर लो फिर जाते ही आ जाना ,


ओह यह भी न मुझे बताया भी नही लगता है काम बाई से प्रेम हो गया है,,

दोनो ठहाके लगाकर हंस पड़ी,

फिर से जिंदगी में खुशियां लौट आई,,

30 वर्ष बाद,,

रमा बूढ़ी हो गई थी साठ वर्ष की उम्र हो गई थी,

और करुणा भी अधिकारी बन गई थी,

पर दोनो में वही प्रेम था दोनो एक दिन पास पास बैठी बात कर रही थी,

रमा तुमने तो वास्तव में साहेव के साथ जिंदगी काट दी,,

इतने में करुणा का बेटा जो बड़ा हो गया था आया और बोला दादी जी ,

आपके लिये यह रही साड़ी आज मेरा जन्मदिन है,

इस तरह एक नेक सम्बन्धो को दर्शाती इस कहानी का अंत होता है,

अर्थ,हमे कुछ लोग ऐसे मिल जाते है जो परिवार बन जाते है,

पर सब पर विश्वास न करना सब काम बाली बाई ऐसी नही होती,,पति पर विशेष नजर रख्खे

 

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