सिंहनी – सारिका चौरसिया

फुर्ती से सारी जिम्मेदारियां निभाती मन ही मन जानती भी थी कि रिश्ते सिर्फ़ वक्ती हैं,, चाह कर भी ना नहीं कर पाती।

हँसती खिलखिलाती वह सदैव हर एक कि मदद को तैयार रहती।

उम्र बीतती गयी,, बालों में सफ़ेदी झांकती गयी, गहरी लाल बिंदी और गहरी तथा चेहरे पर मुस्कान की रेखा छोटी! और छोटी!! होती गयी,

नहीं कम हुए तो हौसलों और हिम्मत के जज़्बात।

एक तरफ़ तो कभी किसी के आगे न झुकने की आदत! और किसी भी गलत बात पर उसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया!उसे हमेशा क्रोधी और अहंकारी दर्शाते रहे। दूसरी तरफ ससुराल-मायके, आसपड़ोस-रिश्तेदार किसी को भी कभी जरूरत पड़े !उसकी पुकार मच जाती और वह एक आवाज़ पर खड़ी मिलती।

कई बार देखा मैंने और सोचा भी की ये क्या व्यक्तित्व है इनका,, वैसे तो किसी की जरा सी भी गलत बात बर्दास्त नही करती, और वहीं दूसरी ओर जरा सी जरूरत पड़ने पर दौड़ पड़ती हैं।

मैंने एक दिन पूछ ही लिया,, आपको सभी पीठ पीछे अहंकारी और अक्खड़ कहते हैं फिर भी आप सब की मदद को हमेशा तैयार रहती हैं। ऐसा क्यों?आपका ये दोहरा व्यक्तित्व क्यों??


वो मुस्कुरायी! किसी की मदद करने वाले हम कौन?

उस ऊपर वाले ने चुना होता है, और हम माध्यम बनते हैं।

रही बात अहंकारी या अक्खड़ स्वभाव की!

कछुए के ऊपर का आवरण सख़्त होता है किंतु उसका शरीर कोमल!, यदि वह स्वयं को सख़्त आवरण से ना ढ़के तो मांसभक्षी उसके मांस को नोच डाले।

इसी तरह शेर जाति के नरों में पौरुष का अहं होता है और वह अपने सामने किसी भी दुसरे शेर को बर्दास्त नहीं करता। नए शावक भी उसके लिये नए प्रतिद्वंदी समान होते हैं जिन्हें शेरनी बहुत प्यार करती है और अपना सारा ध्यान उन पर केंद्रित रखती है जो सिंह के लिये प्रतिस्पर्धा का कारण बन जाता है और वह अपने ही शावकों को मारना चाहता है……

किन्तु शेरनी! अपने बच्चों की रक्षा करने के लिये सिंह तक से भीड़ जाने का माद्दा रखती है!

मुस्कुराहट की स्मिथ रेखा खिंचती वह अपनी लाडलियों की पुकार सुन चली गयी।

और मैं इस सिंहनी को !नन्ही शेरनियों को प्रतिद्वंद्विता से बचने के गूढ़ सिखाते देखती रह गयी ।।

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तरप्रदेश।

 

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