पूनम का चांद -सारिका चौरसिया

आज मन सुबह से ही कुछ उदास था,पिछली ढेरों बातें दिमाग में घूम रही थी, अपमान और पीड़ा का धुँआ आंखों में सुलग रहा था,, एक बार फिर उसी दर्द से आज दिल उबल रहा था।

सब आ रहे हैं! बुआ,फूफा जी बच्चे…..उत्साहित सी माता जी! बच्चों को सूचना दे रही थी।

समझ रही थी वो.…. बच्चों की आड़ में सूचना उसे दी जा रही।

ऐसी सूचनाएं उस तक हमेशा दूसरे-तीसरे माध्यमों से ही पहुंचाई जाती थी,,

सूचना दाता अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेता।और वो हमेशा की तरह तैयारियों में लग जाती।

एक अदृश्य निगरानी का दौर! तलवार लिये उसके सिर पर सदा तना रहता।और निर्देशों की लंबी फ़ेहरिस्त उसके चारो तरफ घूमती रहती!!

जिम्मेदारियों की डोर पकड़े वो अपने बालों में चांदी बढ़ाती रही और उम्र बीतती रही,अपनी आकांक्षाओं की दहलीज़ पर बैठी उसने अपने सारे सपने! अपने बच्चों की आंखों में भर दिए।

हर बार सब इक्कठे होते,अपने वैभव और सामर्थ्य के अतिरेक में प्रत्येक बार कुछ ऐसा बोल जाते जो उसके दिल को चीर जाता। धुरी पर घूमती जिम्मेदारियों की चकरी अवहेलना के बोझ से तड़ताडती हुई चिटक जाती। अपने पति की ढाल बनी उसने पूरा जीवन सुहाग को समर्पित किया किन्तु समर्पण का भाव ना पा सकी।


आज ऐसी ही सूचना ने पुनः नयन मेघ घनघना दिए थे!

पिछली कसैली यादें घुटन पैदा कर रही थी,,वो शॉल लपेट छत पर आ गयी। दिसम्बर की सर्द शाम रात में तब्दील होने को आतुर थी। आसमान में पूर्णिमा का चाँद मुस्कुरा रहा था, यूँ तो वह हमेशा मुस्कुराती खिलखिलाती दिखती। बड़े से बड़े ज़ख्म की कराह भी उसने अपनी मुस्कुराहट तले छिपाई थी।

और ये चाँद!!…. पूर्णिमा का चाँद तो उसका पसंदीदा हुआ करता….

पूनम की रात! और उसका चाँद !दोनों उसके अंतर्मन में गहरे समाते थे,वो अकेली घण्टों इस चाँद से बाते कर सकती थी,,,करती थी,, साथ मुस्कुराती थी।इसी चाँद के साथ कितनी मुलाकातों को उसने पिछले कुछ वर्षों से कलमबद्ध करना शुरू किया था।

पर आज आसमान तकते मेघ उमड़ आये जैसे…

मनस्तिथि उलझन में थी! एक बार अपने साहित्यिक निमंत्रण पत्र के बारे में सोचती एक बार इस अप्रत्याशित आगमन की सूचना को!!!

उसके वर्षों की आस छिपी थी इस निमंत्रण पत्र में,,

ध्यान हटाने को वह नीचे सड़क पर झांकने लगी!

एक अधेड़ औरत एक ट्रायसायकिल खिसका -खिसका कर सड़क के किनारे दुकान के सामने लगा रही थी। उम्र होगी यही कोई साठ-पैंसठ के लगभग!

आते-जाते लोग उसे देखते हुए आगे बढ़ते गए, किसी ने ना मदद की पेशकश की! ना ही उसने किसी से मदद ही मांगी। तरीके से वह अभ्यस्त लग रही थी। उसकी उत्सुकता बढ़ी!


उसे याद आया कि ये दुकान तो किसी जड़िया जी की है,, वे जन्मजात विकलांग हैं और इसी ट्रायसाइकिल से चलते हैं!! मैंने देखा है कई बार उन्हें, कभी अकेले, कभी वृद्ध होते पिता के साथ!

ओह्ह! याद आया! सुना था…..कोरोना से उनके पिताजी जी…..तब से  लगभग सात-आठ महीने से शायद दुकान बंद ही चल रही थी इनकी!!

पता नहीं उसने ही कहाँ कभी किधर भी ध्यान ही दिया!

ये सोच ही रही थी… कि उस अधेड़ स्त्री ने जड़िया जी को कंधे से सम्भाल कर सायकिल तक पहुंचाया और धीरे से सहायता दे बिठा कर एक झोला जिसमे टिफिन, थर्मस और पानी की बोतल ऊपर छत से दिख रही थी पीछे लटकाया और जड़िया जी धीरे-धीरे सायकिल हाथ से चलाते निकल गए,, कितना कमज़ोर और अचानक से बूढ़ा लगने लगा यह इंसान!…..औरत ने दुकान में ताला लगाया बगल के दुकानदार को मुस्कुराती हुई शुभरात्रि कहती हुई शॉल ओढ़ती तेजी से कदम बढ़ाती सायकिल के पीछे लगभग साथ हो ली। चेहरे पर कोई शिकन नहीं! सिर्फ मुस्कुराहट।

वो इस औरत की फुर्ती और समयबद्धता पर हैरत करने लगी। इस उम्र में भी बेटे को सम्भालने का माँ का ये जज़्बा!और आर्थिक व्यवस्था ढोने के प्रयास की ! उस असहाय बेटे की दृढ़ता!!

उसकी बगल में बिटिया जाने कब आकर खड़ी थी।बोली, मम्मा ये जड़िया अंकल की माँ हैं,,जड़िया अंकल भी अब बीमार ही रहते हैं उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया। अब बस माँ हैं जो साथ ले कर आती जाती है। कब तक दुकान बंद रखते!


मम्मा जब ये आंटी इस उम्र में इतनी हिम्मत कर सकती हैं! तो आप तो इतनी पढ़ी लिखी…. मम्मा आज हम जो भी हैं सब आपकी बदौलत! आपने अपनी हर खुशी सिर्फ और सिर्फ हमारे नाम की!

मम्मा…. आप कितनी अच्छी कहानियां लिखती हैं,कविताएँ लिखती हैं ! मम्मा आप लिखिये…. अपनी खुशी के लिये ही लिखिये! आप हर वो काम कीजिये जो अब सिर्फ और सिर्फ आपको खुशी दे, आपके चेहरे की ये स्माइल ही आपकी असली पहचान है मॉम!

मेरी प्यारी माता श्री…. इसके बिना आप बिल्कुल अच्छी नहीं लगती।

उसके अंदर की तमाम हीनभावना जाती रही।

उसने चाँद की तरफ़ देखा!

चाँद भी मुस्कुरा दिया!

बड़े तेज हो रहे हो?? जानते हो! कब मुझमें जीवन के प्रति उत्साह बढ़ाना है। कब मुझे क्या शिक्षा देनी है!!

बेटी के गाल हौले से खींचते हुए वह मुस्कुरा रही थी।

बेटी ने भी गले में बाहें डालते हुए कहा ….

मम्मा मुस्कुराइए! ये जिंदगी आपकी अपनी है!!

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश।।

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