बुढ़ापा -उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

आज उषा जी को पनीर खाने का मन हो आया था ।कमबख़्त बुढ़ापा भी न अजीब सी चीज होती है ।पैर कब्र में लटका हो तो जीभ और भी चटोरी हो जाती है ।लेकिन सब दिन ऐसी नहीं थी उषा जी ।शुरू से ही बहुत संतोषी थी वह।अच्छा खाना किसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन पहले भी जो मिल जाता, सब प्रसन्नता पूर्वक खा लेती थी।माँ के राज में भी नहीं, और ससुराल और बेटे बहू के राज में भी, कभी खाने को लेकर नखरा  नहीं किया ।फिर आज—ऐसा मन क्यों हो गया?बेटे बहू दिल्ली में है अपनी नौकरी पर, अपने बच्चों के साथ ।श्रीकांत जी भी पहले नौकरी पर थे।

अब रिटायर कर गये हैं ।बेटे बहू ने बहुत कहा “आप लोग भी वहां चलिए,सब लोग साथ रहेंगे “पर उषा जी तैयार नहीं हुई।श्रीकांत जी को पेंशन नहीं मिलता है ।हर महीने बच्चे एक निश्चित रकम भेज देते हैं ।उसी में दोनों पति पत्नी का गुजर हो जाता है, और रहने को अपना घर है ही ।हाँ तो बात पनीर की हो रही थी ।पहले तो श्रीकांत जी ने कहा “उषा, आज पनीर लेकर आता हूँ, बड़ा खाने का मन हो आया है “तब उषा जी बोलीं “–हाफ प्लेट बना बनाया कितने में आ जायेगा?हम दोनों का हाफ प्लेट काफी है “आज उनका मन नहीं था खुद बनाने का।बुढ़ापा कभी-कभी आराम भी तो खोजता है ।

आखरी महीना था ।पैसे आने में एक सप्ताह देरी है ,तब? पैसे का जोड़ तोड़ होने लगा ।सौ रूपये श्रीकांत जी के थे ,उषा जी ने भी अपना बटुआ उलट दिया ।चालीस रूपये निकल ही गये।हाँ, इतने में तो आ जाना चाहिए ।श्रीकांत जी निकल गये बाजार।उषा जी की पुरानी यादें ताजा हो गई ।कुल सोलह बरस की थी वह जब ब्याह कर ससुराल आई तो चकित हो गई ।मायके से ससुराल का रहन सहन बीस ही था।परिवार भी अच्छा और नेक मिला था ।बहुत खुश हो गई थी वह।घर में नौकर थे ,और दिन भर के लिए काम वाली बाई थी,जो सारा काम कर देती ।बहुत आराम था।दो साल परिवार के साथ रहने के बाद वे भी अपने पति के साथ नौकरी पर आ गई ।

अच्छी नौकरी थी अच्छा क्वाटर मिला हुआ था ।पानी, बिजली, स्कूल, अस्पताल की फ्री सुविधा थी।लेकिन नहीं जानती थी वह की बाद में यह सुविधा बेकार लगेगी ।असल में पति की नौकरी बिहार गवर्नमेंट में लगी हुई थी, शादी के पहले ।लेकिन तब एच,ई,सी,का नया नया कारखाना बना था।जहां भारी भारी मशीनें बनती थी ।श्रीकांत जी ने शादी के तुरंत बाद ही एच ई सी ज्वाइन कर लिया ।उनको लगा था कि आगे बच्चे होंगे, हर तीन साल पर बदली होती रहेगी, फिर नया रहने का ठिकाना खोजो, सामान इधर-उधर होगा, सो अलग ।परेशानी बढ़ती जायेगी ।बस उनहोंने बिना सोचे समझे रिजाइन मार दिया ।और यहाँ आ गए ।

उनको संतोष था कि बदली की परेशानी नहीं होगी, बच्चे ठीक ढंग से एक जगह रहकर पढ़ाई करेंगे, सारी सुख सुविधा तो है ही ।पतरातू थर्मल पावर प्लांट की पहली नौकरी छोड़ दिया तो वहां का चेयरमैन बड़े भैया का दोस्त था,वह भैया के पास आया “तुम्हारा छोटा भाई पागल है क्या, जो इतनी अच्छी नौकरी छोड़ कर चला आया?”भैया क्या कहते “उसकी अपनी मर्जी की बात है “बात आई गई हो गई ।जीवन ठीक से गुजरते रहा ।सब सुविधा के बीच बच्चे बड़े हो रहे थे ।उषा जी दो बच्चों की माँ भी बन गई थी ।बहुत पैसे नहीं थे उनके पास ।लेकिन खाने पहनने की दिक्कत भी नहीं थी।जीवन सुचारू रूप से चल रहा था ।

उषा जी रोज ईश्वर से प्रार्थना करती, बस मेरा परिवार सुखी रहें ।क्या हुआ बैंक बेलेंस नहीं है तो?,कौन देखने आता है?जीवन चल रहा है, अच्छे पति हैं, आज्ञाकारी बच्चे हैं, सुखी जीवन है ।कुछ फालतू जरूरत के लिए बोनस,ओवरटाइम का सहारा भी है, जीवन में और क्या मांगती ईश्वर से ।दोनों बेटे पढ़लिख कर सर्विस में लग गये ।समय पर उनकी शादी भी  हो गई ।दोनों बहुएं जान पहचान के परिवार से आई थीं ।वे दोनों बहुत नेक थी।दोनों बेटे दिल्ली चले गए ।बहुत कहा माता पिता से “आप दोनों भी साथ चलिए”–“पर बेटा, मै अभी कैसे जा सकती हूँ, पापा का रिटायरमेनट का समय हो रहा है “बेटा अपनी अपनी पत्नी को लेकर चला गया ।

मन तो नहीं लगता था दोनों का।अपने बच्चों के बिना ।पर कोई चारा भी नहीं था ।कम्पनी से रिटायर हो गये श्रीकांत जी ।सारा हिसाब किताब हो गया ।क्वाटर खाली करना पड़ा उनकों ।सवाल था अब ?कहाँ जाएँ? आखिर बहुत खोज कर किराए का मकान मिला ।सस्ता भी तो देखना था।नहीं तो ऐसे तो सारे पैसे खत्म हो जायेंगे ।किराए के मकान में शिफ्ट हो गए दोनों ।अब कुछ असुविधा का सामना भी करना पड़ा ।क्योंकि कम्पनी मे सारी सुविधा तो थी ,लेकिन पेंशन नहीं थी।अब बार बार उन्हे  लगता कि पहले वाली नौकरी ही ठीक थी ।कम-से-कम पेंशन तो मिलता ।बुढ़ापा का बहुत बड़ा सहारा होता ।लेकिन अब अफसोस करने से कोई फायदा नहीं था।

बेटे दिलासा देते “पापा, आप चिंता मत करिए, हम लोग हैं न  ?आपको नियमित पैसे भेजते रहेंगे “जिन्दगी चलती रही ।थोड़ा दिन बीत गया ।बेटे फोन करते “पापा, न हो तो एक जमीन का टुकड़ा खरीद लीजिए, छोटा ही सही एक घर हो जाएगा, ऐसे किराए के घर में तो सारे पैसे खत्म हो जायेंगे ।पापा को भी बात जंच गई ।जमीन खरीदा गया ।छोटा सा घर भी बन गया ।उषा जी को लगता, अपना घर तो अपना ही होता है ।बहुत शान्ति मिलती है ।अपना मर्जी का जीना, बहुत सुखद होता है ।हालांकि बच्चे बहुत अच्छे थे।लेकिन अब श्रीकांत जी का हाथ खाली हो गया था घर बनवाने में ।

खींच तान कर जीवन चलने लगा ।पैसे तो बेटे भेज देते ।लेकिन कभी देर भी  हो जाती ।उनके भी बच्चे हो गये थे तो उनका खर्चा भी बढ़ता गया ।सभी एक दूसरे को करना तो चाहते थे लेकिन कभी  लाचारी भी हो जाती ।अब इधर दोनों पति पत्नी का बुढ़ापा भी तंग करने लगा था।अक्सर कभी उषा जी, कभी श्रीकांत जी बीमार पड़ जाते।पैसे जोड़ तोड़ कर महीना भर चलाना पड़ता ।सब दिन परिवार से घिरे रहे।बच्चों की परवरिश, पढ़ाई लिखाई,शादी ब्याह, छठी मुंडन, सबकुछ तो निबटाया ।अब उतने कम पैसे में बचत कहाँ से होता ।हमेशा वह सोचती रहती, बुढ़ापा के लिए अपना पैसा, चाहे थोड़ा सा हो, बहुत जरूरी होता है ।कभी हाथ खाली हो जाए तो बच्चों के आगे हाथ पसारना अच्छा लगेगा क्या? माना कि बच्चे अपने हैं, अच्छे भी हैं, लेकिन उनकी भी तो अपनी गृहस्थी है ।कभी कभी श्रीकांत जी खीज उठते “अरे,—आजकल बच्चे माँ बाप को करना ही नहीं चाहते?”

नहीं जी, ऐसी बात नहीं है, उनके भी तो अपनी गृहस्थी है, खर्च है, बच्चे की पढ़ाई है “शुक्रिया कीजिये ईश्वर का ऐसा नेक बच्चा है आपका।गलत बात मत सोचिए “फिर पति शान्त हो जाते।”लेकिन उषा, मै सोचता हूँ कि कोई नौकरी कर लूँ, बच्चों पर बोझ भी कम हो जाएगा “पत्नि ने सहमति जताई, ठीक है जैसा आप को लगे”?फिर बहुत दौड़ते रहे श्रीकान्त जी ।नहीं लगीं नौकरी ।बुढ़ापा  को कौन  रखना चाहता है ।जबकि नये नये लड़के कम पैसे में करने के लिए तैयार रहते हैं तो कोई कयों  बुजुर्ग को रखेगा ।मन मसोसकर रह गये वे।अब बच्चों के भेजे पैसे का इन्तजार रहता ।इस बार अभी तक नहीं आया पैसा ।

और भला आज पनीर खाने का मन हो आया उनका ।इतनी खींच तान कर पैसा जुटाया दोनों पति पत्नी ने ।आखों में आंसू आ गए ।ऐसी हालत? कम पैसे में भी तो जिंदगी अच्छी तरह चल रही थी।सच कहा है  किसी ने बुढ़ापा के लिए  कुछ बचत जरूर करना चाहिए ।पहले कभी ध्यान भी नहीं दिया ।सोचा ही नहीं कभी ।पनीर ले आये श्रीकांत जी ।चटपट रोटी बना डाली उषा जी ने ।एक ही साथ खाने बैठ गए हैं दोनों ।बहुत मन  तृप्त हो गया ।बहुत दिन से कुछ अच्छा बनाती भी कैसे?पैसे की समस्या बहुत बड़ी थी।खाकर हाथ धोने गये, तभी फोन आ गया ।”पापा, पैसा भेज दिया है “मै सोचता हूँ कि अब वहां तो कोई रहने जायेगा नहीं,

क्यों न घर  बेच दिया जाय, और फिर यहाँ ही एक घर खरीद लेते और हम सब साथ रहते ” हमे भी आप का साथ मिल जायेगा  और आपका देखभाल भी हम लोग अच्छे से कर सकते हैं “”बेटा  तो ठीक ही कह रहा है उषा “क्या कहती हो”?जैसी आपकी मर्जी ।उषा जी हर बात में तैयार हो जाती ।लेकिन उनको लगता अपना घर में जो सुख है वह अन्यत्र कहाँ?जब शरीर नहीं चलेगा तब तो अंत में बच्चों का सहारा है ही ।अभी से क्यों? उनहोंने फोन पर कह दिया “बेटा, तुम ठीक  कह रहे हो, लेकिन अभी  समय नहीं आया है “तुम्हारी माँ भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है  इस घर से ।थोड़ा समय दो।मै कोशिश कर रहा हूँ उन्हे  मनाने का “।

उषा जी को संतोष हो गया ।पति रोज एक बार  चर्चा करते “क्या उषा, जिद पर अड़ी हो”अरे भाई, बच्चे ही तो बुढ़ापा का सहारा है ।अब मै भी थक गया हूँ ।शरीर साथ नहीं देता, चलो वहीं चलते हैं “अंत में मान गई पत्नि भी ।टिकट बुक हो गया है ।परसों निकलना है ।सामान कुछ बेच देना है ।कुछ ले जाना है ।दूर कहीँ  कोई गा रहा है “चल उड़ जा रे पंछी, कि अब ये देश हुआ बेगाना—उषा सोच रही है  क्या यह फैसला सही है?अब मोहमाया क्या करना?सबकुछ बदलना प्रकृति का नियम है ।हम भी तो अपवाद नहीं है? मै भी थक गई हूँ चलते चलते ।सामान की पैकेजिंग हो रही है ।जाने की तैयारी में ।

उमा वर्मा, राँची, झारखंड ।स्वरचित ।मौलिक ।

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