जीवन के अनोखे रंग – गीता वाधवानी

आज होली है। शिल्पा रसोई में प्याज और पनीर के पकोड़े तल रही है। उसके एक हाथ में बेसन लगा है और एक हाथ में कड़छी, तभी पीछे से उसके पति संजीव ने दबे पांव आप पर उसके दोनों गालों पर गुलाल लगा दिया। 

    शिल्पा में झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे प्यार से डांट दिया और संजीव हंसता हुआ बाहर चला गया। मां-बाबूजी, संजीव और मेघना के साथ आज का प्यारा सा होली का दिन बहुत ही खूबसूरत बीता। 

थक हारकर रात में जब जब सो गए, तब शिल्पा की आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह अतीत के भवर में गोते लगा रही थी और सोच रही थी कि पिछले तीन-चार वर्षो में जिंदगी ने उसे होली के रंगों की तरह कितने रंग दिखाए हैं। 

      पढ़ाई पूरी करने के बाद शिल्पा शिक्षिका बन गई थी। शिल्पा का एक बड़ा भाई है शिशिर। वह बैंक कर्मचारी है और शिल्पा के पिता जी भी शिक्षक है, और माताजी कुशल गृहिणी। 

      शिल्पा के शिक्षिका बनने के बाद उसके माता-पिता ने रोहित, जो कि एक सरकारी क्लर्क के पद पर कार्य करता था, उससे शिल्पा का विवाह करवा दिया था। रोहित अपने मां-बाप की इकलौती संतान था। रोहित और उसके माता-पिता बहुत ही अच्छे संस्कारी लोग थे। उन्होंने शिल्पा को भरपूर प्यार और सम्मान दिया। शिल्पा विवाह के बाद बहुत प्रसन्न थी। 

     विवाह के बाद 1 वर्ष कैसे बीत गया, पता भी ना चला और फिर होली वाले दिन, रोहित अपने दोस्तों के साथ थोड़ी देर के लिए बाहर गया और फिर कभी अपने कदमों से चलकर भीतर ना आया। 

उस दिन कुछ लफंगे लड़के शराब पीकर होली खेलते हुए आपस में उलझ गए थे। उन्हीं का बीच-बचाव करने रोहित चला गया और उनमें से किसी ने रोहित पर चाकू से तीन चार जोरदार वार किए, चेहरे पर रंग पुता होने का फायदा उठाकर हमला करने वाला लड़का भाग गया। रोहित के दोस्तों ने उसे उनके बीच में जाने से रोका भी था, परंतु होनी तो होकर ही रहती है। उसके दोस्त उसे तुरंत अस्पताल भी ले गए किंतु रोहित को बचाया न जा सका। 



   होली के रंगों ने शिल्पा की जिंदगी को बेरंग कर दिया था। थोड़े दिनों बाद शिल्पा के माता पिता और भाई भाभी उसे मायके ले जाने के लिए आए। उन्होंने शिल्पा के सास ससुर से कहा-“समधी जी, हम शिल्पा को लेने आए हैं, अगर आपकी आज्ञा हो तो हम इसे ले जाएं। अभी इसकी उम्र ही क्या है, इसके सामने पूरी जिंदगी पड़ी है इसीलिए हम इसका पुनर्विवाह करना चाहते हैं।” 

शिल्पा के ससुर जी बोले-“समधी जी, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, अभी तो पूरा जीवन है इसके सामने, अकेले कैसे बिताएगी।?” 

शिल्पा के पिता जी-“आप ही समझाइए शिल्पा को, वह आप लोगों को छोड़कर नहीं जाना चाहती।” 

तभी शिल्पा आ गई और बोली-“पापा, आपके साथ तो भैया भाभी है। मां बाबूजी तो अकेले हैं मैं इन्हें ऐसे कैसे छोड़कर आपके साथ जा सकती हूं? ये लोग किसके सहारे जिएंगे, मैं कैसे इतनी स्वार्थी बन जाऊं?” 

शिल्पा के ससुर जी और सासू मां की आंखों में से आंसू बह निकले और वे बोले-“बेटी, तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं तुम उनके साथ चली जाओ, हमारी चिंता मत करो।” 

लेकिन शिल्पा नहीं मानी। 

तब शिल्पा के ससुर ने शिल्पा के पापा से कहा-“आप बिल्कुल चिंता ना करें, आप अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुके हैं। अब मैं शिल्पा का पिता बन कर उसे बेटी की तरह विदा करूंगा। हमारा खून के रिश्ते से भी बढ़कर”दिल का रिश्ता” है। 

     वे सब लौट गए। शिल्पा मां बाबूजी का हर तरह से ध्यान रखती थी और विद्यालय में पढ़ाने भी जाती थी। 

     हाल ही में, उसके विद्यालय में एक नया शिक्षक भी आया था, उसका नाम संजीव था और वह बहुत ही सज्जन व्यक्ति था। महिलाओं का बहुत सम्मान करता था। उसके सारे विद्यार्थी, साथी और प्रधानाचार्य सभी उससे खुश रहते थे। शिल्पा भी उससे सहकर्मी होने के नाते बात कर लेती थी। उसे नौकरी पर आए सात आठ महीने हो चुके थे। 



      एक दिन वह शिल्पा से उसके पति के बारे में अफसोस जताने लगा और पूछने लगा क्या आप अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती हैं?” 

   शिल्पा को उसका एकदम से ऐसे बात करना बहुत अजीब लगा और वह उसे कोई उत्तर ना दे सकी। थोड़ा समय और बीत गया। अब धीरे-धीरे बात करते-करते शिल्पा की संजीव से अच्छी खासी मित्रता हो चुकी थी। 

अब फिर से होली आने वाली थी किंतु शिल्पा के लिए तो हर होली सूनी ही थी। 

होली आई और दर्द याद दिला कर चली भी गई। 

एक दिन अचानक संजीव ने शिल्पा से कहा-“क्या आज आप थोड़ी देर मेरे घर चलेंगी?” 

शिल्पा सोच में पड़ गई और फिर उसके साथ उसके घर चली गई और वहां संजीव की छोटी बहन मेघना, जो की दसवीं में पढ़ती थी ,उससे मिली। मेघना बहुत ही प्यारी लड़की थी। दोनों को एक दूसरे से मिलकर बहुत अच्छा लगा। संजीव ने मेघना शरबत बनाने के लिए कहा और स्वयं शिल्पा के सामने आकर बैठ गया और बोला-“शिल्पा, क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?”सुनो, मैं अपने बारे में तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं। मेरे माता-पिता देहरादून में समाज सेवा करते थे। 1 दिन सड़क दुर्घटना में वे चल बसे। तब मेघना सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। मैंने बहुत मुश्किल से इसे संभाला, फिर मैं अपना वह घर बंद करके, उस शहर को छोड़कर यहां दिल्ली आ गया। अब हम दोनों भाई बहन यहां किराए के घर में रहते हैं। अगर तुम विवाह के लिए हां करती हो, तो हम तीनों यही रहेंगे।”इतना कहकर संजीव चुप हो गया। 

    शिल्पा ने कहा-“अब मैं चलती हूं।”संजीव को पता था कि शिल्पा अपने सास-ससुर से इस बारे में कुछ नहीं कहेगी इसीलिए वह अगले दिन उसके घर पहुंच गया और यही सारी बातें शिल्पा के साथ ससुर को बताई। 

     शिल्पा के साथ ससुर संजीव से मिलकर बहुत खुश थे पर फिर भी प्रकट में उन्होंने कहा-“बेटा, हम तुम्हें इस बारे में सोच कर जवाब देंगे और शिल्पा की राय भी पूछेंगे।” 

बाबूज ने शिल्पा से पूछा, तो शिल्पा ने जवाब दिया-“मैं आप लोगों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी और मैं इस बारे में खुद संजीव से बात करूंगी।” 

    बाबू जी ने शिल्पा के पापा को फोन पर पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा-“हमारी बहू का मायका देहरादून में है, हम लड़के के बारे में पता लगवाते हैं।” 



     अगले दिन शिल्पा ने संजीव से कहा-“संजीव, सच बात तो यह है कि मैं तुम से विवाह करना चाहती हूं पर मैं मां बाबूजी को छोड़ नहीं सकती।” 

    संजीव-“तो वे लोग भी हमारे साथ रहने आ जाएंगे।” 

शिल्पा-“नहीं, वे अपने बेटे की यादों के साथ उसी घर में रहना चाहते हैं, वे तुम्हारे घर नहीं आएंगे।” 

   संजीव-“ठीक है, मैं कल आकर मिलता हूं।” 

उधर देहरादून में ये पता चला कि सचमुच संजीव के माता-पिता बहुत नेक दिल थे। निस्वार्थ सब की सेवा करते थे और उनका बेटा भी बहुत संस्कारी और विनम्र है। 

सब की तरफ से हां हो चुकी थी। अब संजीव मां बाबू जी से मिलकर उन्हें अपने साथ अपने किराए वाले घर में रहने के लिए मना रहा था । 

तब बाबू जी ने कहा-“हां बेटा संजीव, ये बात तो सच है कि रोहित की यादें इस घर में बसी हुई है और यह भी सच है कि हम शिल्पा को बेटी बनाकर विदा कर देंगे तो हम उसके साथ उसके घर आते कैसे अच्छे लगेंगे?” 

संजीव-“तो फिर ऐसा करते हैं कि मैं, अपनी बहन मेघना के साथ यहां आ जाता हूं, लेकिन बाबू जी मैं घर जमाई बनकर नहीं आपका बेटा बनकर रहना चाहता हूं, बोलो मंजूर है।” 

बाबूजी सोच में पड़ गए और अपनी पत्नी से सलाह मशवरा करके हां कर दी। 

    बहुत ही साधारण ढंग से मंदिर में शिल्पा और संजीव का विवाह संपन्न हुआ। अब पूरे 2 वर्ष होने वाले हैं विवाह को। मां बाबूजी, मेघना, शिल्पा संजीव सभी बहुत खुश हैं। मेघना को मम्मी पापा मिल गए और मां बाबूजी को दामाद के रूप में एक बेटा। 

   और सुबह ही ये होली जाते-जाते शिल्पा के जीवन में मातृत्व का खुशनुमा रंग भर गई थी। सुबह होते ही यह खुशखबरी मैं मां बाबूजी को सुनाऊंगी, 

यह सब सोचते सोचते शिल्पा मीठी मीठी नींद में खो गई। 

#दिल_का_रिश्ता

स्वरचित 

गीता वाधवानी दिल्ली

 

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