*अनमोल तोहफ़ा* – नम्रता सरन “सोना

“अनु बेटा, ये तेरे लिए , मेरा प्यार” कहकर चाची ने तमाम ज़ेवरों से लदी अनूराधा के गले में जड़ाऊ हार पहनाते हुए कहा।

“चाची, ये क्यों? आपने मम्मी के सारे ज़ेवर मुझे दे तो दिए हैं और चाचा ने तो और भी कई सारे गहने दिए हैं, चाची, राजे का विवाह भी अभी होना है ,  आप सब कुछ मुझे ही दिए देंगी क्या, राजे की दुल्हनिया के लिए भी कुछ बचा कर रखिए, नहीं यह हार आप राजे की दुल्हन को देना, मुझे तो आपने अपने प्यार और ममता के गहनों से वैसे ही भरपूर कर रखा है” अनु ने हार उतारने के लिए हाथ पीछे किया।

“न बेटा, इस पर तेरा ही हक़ है, मेरी बड़ी बेटी तो तू ही है न, बेटा मुझसे अगर चाची से मॉं बनने में कहीं कोई कमी रह गई हो तो मुझे माफ़ कर देना बिटिया” चाची अनु के गले लगकर रो पड़ी।

“चाची, कैसी बात कह दी आपने, आपने तो मुझे इतना प्यार और सुंदर परवरिश दी है कि शायद एक मॉं भी नहीं दे पाती, मुझे तो कभी लगा ही नहीं कि मेरे मम्मी पापा नहीं है, आपने और चाचा ने तो अपने प्यार की सारी दौलत मुझ पर लुटा दी, चाची मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझे आप और चाचा जैसे माता पिता मिले” अनु चाची के सीने से लिपट कर सिसक उठी।

“अनु, मेरी बिटिया सदा सुखी रहो”चाची ने सिसकते हुए सीने से चिपकी अनु की पीठ सहलाते हुए कहा।

“चाची , आपने तो मुझे सबकुछ दे दिया, अब मैं भी आपको कुछ देना चाहती हूं” अनु ने चाची से कहा।

“क्या देना चाहती है बेटा?” चाची ने हैरत से पूछा।

“मॉंssss” कहकर अनु चाची के गले से लिपट गई।

“अनु .. बेटा.. तूने तो मुझे निहाल कर दिया, मुझे संपूर्ण कर दिया” चाची ,अनु के चेहरे को बेतहाशा चूमते हुए बोली।

कमरे में जैसे करोड़ों सूर्य का प्रकाश फैल गया , मॉं बेटी एक दूसरे से लिपटे थे, और वातावरण में एक ही शब्द गूंज रहा था-“मॉंssss”

 

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश 

 

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