घर रूपी पेड़ – डॉ संगीता गाँधी

जिस पेड़ पर बैठे हों, उस पेड़ को काटा नहीं करते।वही पेड़ आपकी जीवन दायनी शक्ति होता है।” सासु माँ के समझाये ये शब्द आज छोटी बहू को याद आ रहे थे।

आज उसकी जिठानी यानी बड़ी बहू के मायके वाले आए थे।उन्होंने कहा:”हमारी बेटी सबसे ज्यादा तारीफ अपनी देवरानी की करती है. हमेशा कहती हैं:मेरी देवरानी तो मेरी बहन से बढ़ कर है. मुझे इतना मान देती है की उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते।”

 जब वे छोटी बहू की तारीफ कर रहे थे तब सासु माँ छोटी बहू को देख रही थी। उस समय छोटी बहू को वो दिन याद आ गया, जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ था और उसने घर रूपी वृक्ष को सदा सींचने का प्रण लिया था। उस दिन की स्मृति छोटी के समक्ष साकार हो उठी…

” माँ,अपना  जड़ाउ हार दीजिएगा, शादी में वही पहन कर जाउंगी।” बड़ी बहू ने  सासू  माँ से फरमाइश की थी।



” बहु,मैं अभी निकालती हूँ।”

” ओह,बहु देखो इसका तो धागा टूटा हुआ है।”

“हाँ, माँ,कोई बात नहीं मैं कोई और पहन लूंगी।”

“छोटी बहू के पास भी तो ऐसा ही जड़ाऊ हार है। जाओ उससे ले लो।”

” जी,माँ।”

” अरे,तुम पुराना हार पहन कर जा रही हो? छोटी से हार न लिया क्या?”

बहु का गला जड़ाऊ हार से वंचित देख सास की त्यौरी  चढ़ गयी।

” माँ, छोटी ने कहा: हार तो लॉकर में है।”

” चलो होगा,मेरे ही दिमाग से उतर गया होगा। अच्छा तुम निकलो देर हो रही है।”

मन में उठी उथल-पुथल को संभालते हुए सास ने पर्दा डाल दिया।

” माँ,ये देखो,शांति कितने गन्दे बर्तन धोती है! सारा गिलास बाहर से चमका दिया पर अंदर से कितना गन्दा है।”



छोटी बहू की शिकायत पर सास ने गिलास देखा था।

” बहु,कल उसे समझाऊंगी। हाँ,एक ओर बात-जैसे बर्तन की उपयोगिता तभी है,जब वो अंदर से बिल्कुल साफ हो! वैसे ही इंसान की कद्र भी तभी होती है,जब वो अंदर से साफ दिल हो! उसके मन में कोई मैल न हो। घर रूपी पेड़ हम सभी की शक्ति है, उसे मत काटो।”

सास का इशारा जान छोटी  बहु की नजरें झुक गयीं थीं। उसे अपनी संकीर्ण सोच पर शर्म आयी। स्वयं को बदलने का निर्णय कर उसने निश्चय किया की उसे घर जोड़ना है तोडना नहीं। छोटी बहू स्मृति से बाहर आयी। सासु माँ उसे आशीर्वाद दे रही थी। उसने पेड़ को कटने से बचा लिया था।

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