विवाह के बाद नम्रता पहली बार मायके रहने आई तो माँ की पारखी दृष्टि ने पहचान लिया कि वह कुछ परेशान -सी है। उसके दिमाग में ऊहापोह-सी चल रही है। नम्रता की हँसी में वह बात न थी जो विवाह से पहले थी। वह चुलबुलापन लुप्त था, जिससे यह घर रोशन रहता था।
यह देखकर माँ चिंतित हो उठी। पूछने पर पहले तो नम्रता ने नानुकुर की, फिर रुआंसी होकर कहा – “मैंने तो सुना था कि जीवनसाथी पत्नी के लिए सब कुछ करते हैं। पापा भी तो आपकी कितनी परवाह करते हैं। फिल्मों में भी देखा है। वहाँ तो उलटा ही है। रोनित तो सारा दिन अपने मम्मी -पापा के साथ ही बिताना चाहते हैं”।
ऑफिस से आते ही रोनित सीधे मम्मी-पापा के कमरे में घुस जाते हैं। चाय भी वहीं मंगवा लेते हैं। मेरी तो कोई कद्र ही नहीं।
“तो इसमें गलत ही क्या है? आखिर रोनित उनका इकलौता बेटा है। तुझसे शादी हो गई तो क्या अपने माँ -पिताजी को भूल जाए। उनके प्यार को, त्याग को भुला दें, माँ ने कहा।
“मैंने ऐसा तो नहीं कहा”।
“अच्छा एक बात तो बता, अगर कल को रोनित तुझे मायके आने से मना कर दे। हमारा साथ छोड़ने को कहे तो तू क्या करेगी”!
“ऐसा कैसे हो सकता है? इतने सालों का प्यार मैं कैसे भूल सकती हूं। आपसे न मिलने पर मैं कैसे जी पाऊंगी”!
“तो रोनित भी अपने परिवार को कैसे भूल सकता है! शादी करने का मतलब यह तो नहीं, सारे कर्तव्य भूल जाए”।
“पर मेरे प्रति भी तो उनका फर्ज है”, नम्रता ने रुआंसी होकर कहा।
“ज़रूर है। इससे मैं इनकार नहीं करती, पर माता-पिता का स्थान तुझसे बहुत अधिक है। कोई भी उस स्थान को नहीं ले सकता। फिर अभी तुझे वहाँ गए समय ही कितना हुआ है”!
नम्रता चुप रही।
क्या रोनित तुझे बिलकुल ही समय नहीं देता। माँ ने पूछा?
“जी देते हैं। मुझे सप्ताह में एक बार बाहर घुमाने भी ले जाते हैं। नम्रता ने कहा।
“तो समस्या क्या है? अब तेरी रोनित से शादी हो गई तो क्या वह अपने परिवार को भूल जाए। कल को तेरे भाई की भी शादी होगी, उसकी पत्नी भी ऐसा सोचे तो”!
“माँ। आप बिलकुल सही कह रही हैं। इस तरह से तो मैंने सोचा ही नहीं। आपने तो मेरी उलझन चुटकियों में सुलझा दी”।
नम्रता जिस परिवार में हम जिंदगी के पच्चीस-तीस साल बिता देते हैं। उन्हें हम कैसे भुला सकते हैं! रोनित को कुछ समय दो। उनके परिवार को अपना समझो। नई पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी के साथ सामंजस्य बनाकर चलना होगा तभी तो गृहस्थी की पटरी सुचारू रूप से चलेगी। जिंदगी में मिठास लाने के लिए तुम्हें ही त्याग करना होगा। यह स्थिति हर नई शादीशुदा लड़की के साथ आती है। मेरे साथ भी आई थी”।
“बेटी से तुम ही बातें करती रहोगी या इसके लिए हमें घर की गृहलक्ष्मी से इजाज़त लेनी होगी”। पीछे से पिताजी की आवाज आई।
“आप और विनीत बैठकर नम्रता से बातें कीजिए, तब तक मैं इसकी मनपसंद आलू टिकिया बनाकर लाती हूँ। माँ ने हँसते हुए कहा।
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)