गाँव से अमेरिका तक का सफर – के कामेश्वरी  : Moral stories in hindi

सुरभि के माता-पिता गाँव में रहते हैं।  वहीं के सरकारी स्कूल में सुरभि के पिता रोहन जी शिक्षक थे । एक शिक्षक के लिए तीन लड़कियों को पढ़ाना लिखाना और शादी कराना आसान नहीं था । बड़ी बेटी सुरभि एम एसी करके शहर के एक बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी करती थी ।

रमा और लेखा अभी पढ़ ही रही थी । उनकी पढ़ाई ख़त्म होने के पहले वे सुरभि का ब्याह कर देना चाहते थे । उससे नौकरी इसलिए करा रहे थे कि आज के ज़माने की नौकरी करती हुई लड़की जल्दी निपट जाती है । 

उस दिन सुरभि की छुट्टी थी तो वह घर में ही थी । रोहन जी को अपने मामाजी के बेटे के घर फ़ंक्शन में जाना था तो वे अपने परिवार सहित उनके पहुँच गए थे । जब फ़ंक्शन ख़त्म होने के बाद  घर जाने की बात हुई तो मामा जी ने रोहन जी से कहा कि रोहन मेरे एक घनिष्ठ मित्र यहीं पास में रहते हैं चल एक बार उनसे भी मिल लेते हैं । उन्होंने कई बार मुझसे तुमसे मिलने की इच्छा जताई है । 

अपने परिवार को लेकर रोहन जी मामा के साथ उनके मित्र जनार्दन जी के घर पहुँच गए । सब मिलकर बातचीत करने लगे और जब बच्चों की बात आई तो जनार्दन जी ने अपने बेटे विवेक को भी वहीं बुला लिया जो कुछ दिनों के लिए अमेरिका से इंडिया आया हुआ था । 

सुरभि से भी विवेक का परिचय कराया और उन्हें आपस में बातचीत करने के लिए भेज दिया तब रोहन समझ गए थे कि मामा जी लड़के और लड़की को दिखाने के लिए लाए हैं । वे खुश हो गए थे कि अमेरिका का रिश्ता है हो गया तो अच्छा है । सुरभि और विवेक इन के इरादों से अनजान अच्छे से एक दूसरे से बातचीत करने लगे । मामा जी अचानक उनके पास पहुँच कर जब रिश्ते के बारे में जानकारी दी तो विवेक के मुँह से निकल गया कि मुझे सुरभि पसंद है । सुरभि को कुछ भी कहने का मौक़ा न देते हुए मामा जी ने सबके सामने आकर कह दिया कि रोहन इन्हें तुम्हारी सुरभि भा गई है । तुम्हें कोईएतराज़ ना हो तो इनकी शादी करा देते हैं । कहते हैं ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है । 

विवेक जिसे एक भी लड़की पसंद नहीं आ रही थी उसे सुरभि पसंद आ गई थी । सुरभि ने भी माता-पिता की ख़ुशी के लिए शादी के लिए हाँ कह दिया था । उन्हें किसी के लिए इंतज़ार की ज़रूरत नहीं थी तो चट मँगनी पट ब्याह जैसे दोनों का विवाह हो गया था । एक हफ़्ते तक दोनों सबके सब रिश्तेदारों से मिलना जुलना करते रहे । इन दिनों विवेक ने अब्जर्व किया था कि सुरभि ने विवेक से बहुत कम बातें कीं थीं । 

विवेक सोच रहा था कि शादी के पहले तो इसने मुझसे बहुत बातें की थीं । शादी के बाद तो जैसे चुप्पी साध रखी थी । उसे लगा कि अचानक शादी और परिवार से बहुत दूर जाने के गम में शायद बात नहीं कर रही होगी । जब जाने का दिन आया तो सुरभि माता-पिता के गले लगकर खूब रो रही थी । 

उसे रोते देख विवेक को भी बुरा लग रहा था । दोनों फ़्लाइट में बैठ गए थे और विवेक बार बार उससे कह रहा था बस सुरभि कुछ घंटों में हम अपने घर में रहेंगे । उस समय भी सुरभि के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे ।

विवेक ने उसका मूड नहीं है देख बिना उससे कुछ कहे अपनी आँखें मूँदकर बैठा रहा । 

फ़्लाइट में एनांउसमेंट हो गया था कि न्यूयार्क एयरपोर्ट पर उतरने वाले हैं सभी यात्रियों से निवेदन है कि अपनी सीट बेल्ट बाँध लें । विवेक बहुत ही खुश था । अपनी केबिन लगेज लेकर फ़्लाइट से नीचे आए और अब चेक इन लगेज लेने जाना था । उसने सुरभि से कहा तुम यहीं रहो मैं जाकर लगेज लेकर आ जाता हूँ । 

सुरभि ने सर हिलाया परंतु उसकी आँखें पूरे एयरपोर्ट में घूम रही थी । उसकी इस हरकत को देख विवेक ने कुछ और ही समझा कि सुरभि गाँव की छोरी है । उसके लिए यहाँ सब कुछ नया ही लगेगा ना इसलिए आश्चर्य चकित होकर सब देख रही है । उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई थी । 

 विवेक जब अपना सामान लेकर वहाँ पहुँचा तो देखा कि सुरभि किसी लड़के का हाथ पकड़कर चहकते हुए उससे बातें कर रही थी । उसकी आँखों में चमक थी । 

वह जैसे ही उनके पास पहुँचा तो सुरभि ने उसकी तरफ़ मुड़कर कहा विवेक यह मेरा दोस्त अमन है यहीं रहता है । 

विवेक ने उससे हाथ मिलाया और कहा कि कभी घर पर भी आ जाना ।

उसी समय सुरभि ने कहा विवेक मैं अमन के साथ जा रही हूँ हम दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं । 

विवेक किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उन दोनों को देखने लगा । उसे सुरभि की कोई भी बात सुनाई नहीं दे रही थी । उसने कहा क्या कहा फिर से कहो? उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । 

सुरभि ने फिर से कहा हाँ विवेक तुमने सही सुना है । मैं और अमन एक दूसरे को दो साल से प्यार करते हैं । अमन बंगाल प्रांत से है । मेरे माता-पिता जाति पाँति पर विश्वास करते हैं तो वे इस रिश्ते को कभी मंजूरी नहीं दे सकते हैं । अमन अपना एम एस करके नौकरी पाने के बाद मुझसे शादी करना चाहता था इसलिए अपने विवाह क टालने के लिए मैंने नौकरी करना शुरू कर दिया था ।

अमन का एम एस पूरा हो गया है और यहीं उसकी अच्छी नौकरी लग गई है । हम घरवालों से बात करते इसके पहले हमारी शादी कर दी गई थी ।

मुझे माफ कर दीजिए विवेक मैंने आपके साथ धोखा किया है या समझ लीजिए अपनी मंजिल पाने के लिए अमर को पाने के लिए आपको ज़रिया बनाया है । सॉरी आयम वेरी सॉरी!! 

विवेक के हाथ में एक कवर पकड़ाया और अमन का हाथ पकड़कर इतराते हुए चली गई।

विवेक सामान लेकर वहीं खड़ा रह गया । कुछ देर पश्चात वह अपने सामान सहित घर पहुँचा तो मीना ने दरवाज़ा खोला ।

पाठकों आपको लग रहा होगा ना कि यह मीना कौन है । चलिए बताती हूँ कहानी में एक छोटा सा मोड़!!

विवेक अपने ही ऑफिस में काम करने वाली मीना से प्यार करता था । मीना के माता-पिता यहीं रहते थे । मीना अमेरिका की सिटिज़न थी ।

 विवेक भी इंजीनियरिंग पूरी करके यहाँ एम एस करने के लिए आया था । उन दिनों रिसेशन चल रहा था और लोगों को नौकरियों से निकाल दिया जा रहा था ।  कब किसकी नौकरी चली जाएगी पिंक स्लिप किसे पकड़ा दिया जाएगा यह डर रहे थे ऐसे में एम एस ख़त्म करके नौकरी चाहने वालों को नौकरियाँ कहाँ से मिलती । 

मीना विवेक को जानती थी । उनके ही घर के पास अपार्टमेंट में विवेक दोस्तों के साथ मिलकर रहता था । उनकी हाय हेलो वाली दोस्ती थी । एक दिन उदास बैठे हुए विवेक से उसने पूछा क्यों उदास बैठे हो तो उसने अपनी समस्या उसके सामने रख दी थी कि उसका एम एस ख़त्म हो रहा है नौकरी नहीं मिली तो उसे यहाँ से जाना पड़ेगा । विवेक को मीना काफ़ी दिनों से देख रही थी । यह दूसरे लड़कों से अलग था । उसने विवेक को अपने ही ऑफिस में नौकरी दिलवा दी । इस तरह विवेक यहाँ रह गया था । मीना के माता-पिता भी उसे पसंद करते थे । मीना और विवेक भी एक दूसरे को पसंद करने लगे थे उन्होंने शादी करने का फ़ैसला भी कर लिया । जब माता-पिता को बताने की बात आई तो विवेक ने कहा कि हम अभी शादी कर लेते हैं मैं अपने माता-पिता को वहाँ जाकर बताऊँगा । मीना तैयार हो गई और उनके माता-पिता के सहयोग से उनकी शादी हो गई थी ।

अब यहाँ विवेक के माता-पिता उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहे थे तो उसे इंडिया आना पड़ा था । कई लड़कियों को उसने ना पसंद का बहाना बनाकर रिजक्ट कर दिया था लेकिन सुरभि के साथ बिना कुछ कहे ही शादी हो गई थी । 

विवेक सोच रहा था कि सुरभि को मीना के बारे में कैसे बताऊँ पर देखो इस बीच यह हादसा हो गया था कि सुरभि खुद मुझसे छुटकारा पाना चाहती थी । 

उसने सोचा चलो जान बची लाखों पाए अभी तो मैं तो बच गया हूँ । अब की बार मीना को साथ ले जाकर माता-पिता से बात करूँगा । 

सुरभि अपना खुद देख लेगी मुझे उससे कोई लेना देना नहीं है । 

के कामेश्वरी 

 बेटियाँ जन्म दिवस प्रतियोगिता कहानी नंबर -2

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!