“सब दिन रहत ना एक समाना” – सुषमा यादव : Moral stories in hindi

समय का पहिया घूमता रहता है।समय चक्र सबको अपने लपेटे में ले लेता है। बुजुर्गों ने सही कहा है।

शिवानी आज़ बहुत दिनों बाद अपने ससुराल आई,, वो खामोश बैठी घर को देख रही थी,,

इतने में लेखपाल आये, और बोले, बहुत बहुत बधाई हो आप को,,आप के नाम ये पूरी प्रापर्टी हो गई है,अब आप ही पूरी जायदाद की अकेली ही मालकिन हैं,, और पेपर उसके हाथ में थमा दिया,

लेखपाल तो चले गए,पर शिवानी वक्त के इस करिश्में पर हतप्रभ रह गई,, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, वो रोते रोते बोली,

प्रभु, मैंने तो कभी ऐसा नहीं चाहा था,बस जरा सी सासूमां को सद्बुद्धि दे देते तो मेरा भी जीवन सुखमय हो जाता। मैं भी सुकून से जी लेती।

शिवानी के सामने विगत वर्षों की एक एक यादें फिल्म की रील की तरह उभर कर आने लगी।।

एक दिन ससुराल में फुर्सत होकर अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर बैठी ही थी कि सासु मां जिनको वो अम्मा जी कहती थी, आकर बोली,,दुलहिन, तुमको कितना तनख़ा मिलता है।

शिवानी ने कहा,, अम्मा जी, ज्यादा नहीं,बस दो हजार रुपए। कहते हुए उसने बिटिया को सुला दिया, और अपने कमरे में जाने लगी।

इतने में ना जाने उन्हें क्या हुआ, एकदम से शिवानी का हाथ खींचते हुए बाहर की तरफ ढकेलने लगी,अरे,तू हमें अपने पैसे का घमंड दिखाती है,दो दो बेटियां पैदा कर दी, एक बेटा तो पैदा कर नहीं सकी , हमें वारिस तो दे ना सकी और हमें पैसों का रूतबा दिखाती है। शिवानी ने घबराकर दरवाजे की चौखट कस कर पकड़ ली, रोते हुए बोली,, अम्मा, मैं कहां जाऊंगी,सब लोग देख रहे हैं,, मुझे अंदर आने दीजिए,,हम नहीं जानते, कहीं भी जा, जाकर कुएं में कूद जा, और धक्का मार कर ढकेल दिया, 

शिवानी जमीन पर गिरती, इससे पहले उसके पति राज ने उसे थाम लिया, वो पंतनगर, नैनीताल के कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ते थे,उस समय फोन वगैरह तो थे नहीं, अचानक ही उनका आना हुआ था,

सूटकेस रखते हुए राज ने कहा,चलो अंदर, शिवानी अभी भी डर के मारे कांप रही थी,

राज ने अपनी मां से कहा, ये सब क्या है, अम्मा,,?

पहले तो अचानक बेटे को देख कर अम्मा जी हक्की बक्की रह गईं फिर सभंल कर बोली, ये हमसे कह रही थी कि हम इतना पैसा पाते हैं,,हम भी किसी से कम नहीं हैं, राज़ ने बड़ी ही शांति से कहा, अम्मा मैं उसे सालों से जानता हूं, वो कभी किसी को ज़बाब नहीं देती है, तो पैसों के बारे में वह आपसे क्यों ऐसा कहेगी, फिर उसका तो सारा पैसा मैं ले लेता हूं, अपनी वेतन मिलते ही वो सब मेरे हाथ में रख देती है, मुझे बेटियों को फीस देनी पड़ती है, कभी भी किसी चीज की मांग नहीं करती।

अपनी बात गिरती देखकर अम्मा जी ने गुस्से में कहा ,,बस बहुत हो गया,इस घर में या तो ये रहेगी या मैं रहूंगी, वरना मैं अभी कुएं में गिर कर जान दे दूंगी,, पीछे से ससुर ने कहा,,जा अभी कूद जा,सीधी सादी बहू मिली है,इसका खूब फायदा उठा रही हो,

अम्मा जी की हिम्मत तो नहीं पड़ी, पर उन्होंने बगल के पुराने घर में अपना चौका चूल्हा कर लिया और अकेले ही खातीं बनाती,,बहू बहुत दुःखी हो गई,,आप सब अम्मा जी को मना कर ले आइए,, मेरे कारण ये सब हो रहा है, मैं ही चली जाती हूं, ससुर जी ने कहा , नहीं,बहू, तुम कहीं नहीं जाओगी, वो कुछ दिन में पारा उतरने पर वापस आ जायेगी,

तीन दिनों के बाद बेटा,बहू जाकर बोले, ठीक है अम्मा जी, आपका घर है,आप रहिए आराम से,हम लोग जा रहे हैं,अब कभी नहीं आयेंगे,कह कर दोनों वापस लौट आए, पीछे पीछे अम्मा भी आईं, और चुपचाप बैठ गईं,सब पहले जैसा चलने लगा, पर बहू से बात नहीं करतीं,

शिवानी और राज वापस अपने अपने शहर चले गए,

उसके एक साल बाद ही अम्मा जी बीमार हुई दोनों ने जाकर उन्हें अपने साथ रखा,उनका इलाज इलाहाबाद में चला,पर उन्हें बचाया ना जा सका,अंत समय में बहू शिवानी का हाथ पकड़ कर अश्रुपूरित नेत्रों से देखती रहीं,सिर पर हाथ फेरा और बोली, दुलहिन, खूब ठंडा पानी पिला दो, शिवानी ने पानी पिलाया, जल्दी से गंगा जल और तुलसी मुंह में डाला,बहू की गोद में ही उन्होंने अंतिम सांस ली,,।।

उस के बाद शिवानी ने अपने ससुर को भी अपने ही पास रखा,

कालांतर में पति और ससुर ने भी अलविदा कह दिया,

आज शिवानी अकेली अपने गांव में आई है, बहुत बड़ा मकान और बहुत सारी जमीन,खेत थे, उसके ससुराल में,पति अकेले ही थे, इसलिए आज सारी प्रापर्टी की हकदार केवल शिवानी ही थी।

समय  सबको सबक सिखाता है, सबने अम्मा जी को माफ कर दिया था, पर समय नहीं कर पाया, वो तो सबका हिसाब किताब रखता है,

जिस घर से शिवानी बेरहमी से निकाली जा रही थी,आज उसी घर जमीन, जायदाद की वो अकेली ही वारिस थी।

,,समय चक्र घूम चुका था।”,

 

सुषमा यादव पेरिस से।

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