” एक परिवार ऐसा भी ” – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे वैसे वैसे सलोनी का मन घबरा रहा था। कारण था ससुराल का संयुक्त परिवार जबकि मायके में सलोनी के पापा की ट्रांसफर वाली जॉब होने के कारण सलोनी एकल परिवार में ही पली बढ़ी थी।

” सलोनी क्या सोच रही है यूं अकेले बैठे ?” एक दिन सलोनी की सहेली मीता उससे मिलने आई और पूछा।

” बस यार ऐसे ही …अच्छा मीता ये बता तेरी शादी संयुक्त परिवार में हुई है तेरा अनुभव कैसा है संयुक्त परिवार को लेकर ?” मीता के सवाल का जवाब देने की जगह सलोनी खुद सवाल पूछ बैठी उससे।

” मत पूछ यार ये ससुराल ही अपने आप में बवाल होते उसपर संयुक्त ससुराल तो बवाल -ए -जान होते हैं। सारा काम घर की बहू के हिस्से और फरमाइशें बाकी परिवार की आदत !” मीता मुंह बिचका कर बोली।

मीता से बात कर सलोनी और ज्यादा घबरा गई। ” क्या जरूरत थी पापा को मेरे लिए संयुक्त परिवार ढूंढने की …पर हां तो मैने ही बोली थी … उफ्फ भगवान तुम ही बचाना अब मुझे !” सलोनी खुद से ही अक्सर बातें करती।

उसकी जितनी भी सहेलियों की शादी हो चुकी थी सभी ससुराल की बुराई ही करती जिससे सलोनी मन ही मन घबराने लगी थी। खैर शादी का दिन आया और घबराई और शरमाई हुई सलोनी अपने पिया जी के घर पहुंच गई। उसका स्वागत बहुत जोर शोर से हुआ। संयुक्त परिवार होने के कारण हर वक्त कोई ना कोई उसके साथ होता और उसे सहज करने की कोशिश करता पर सलोनी को तो लगता ये चार दिन की चांदनी है। सलोनी के ससुराल में ताई, चाची , दादी , जेठानी सभी थे और थे ढेर सारे ननद देवर जो हर वक्त नई भाभी के इर्द गिर्द मंडराते रहते।

सलोनी की शादी को पन्द्रह दिन हो गए थे वो हनीमून मना कर भी लौट आई थी। आज उसकी पहली रसोई की रस्म थी तो सलोनी के हाथ पैर फूले हुए थे ऐसा नहीं की सलोनी को खाना बनाना नही आता था पर चार लोग का बनाने और चालीस लोग का बनाने में अंतर होता है उसपर नई रसोई , नए लोग और नई पसंद। सुबह से ही सलोनी के पति सिद्धांत की बुआ का परिवार उसकी ताई,चाची की बेटियों का परिवार भी आ गया था सलोनी के हाथ की रसोई खाने।

” बेटा छोले -चावल बनाने है इससे रोटी कम बनानी पड़ेगी साथ में खीर तो बनेगी ही और मटर पनीर की सब्जी रोटी।” सास ने रसोई में आ सलोनी को खाने का मेन्यू बताया।

बड़े बड़े पतीले देख सलोनी का सिर चकराने लगा सास ने सलोनी की तरफ देखा और सर्दी में उसके माथे पर आए पसीने को देख समझ गई बहू खाना बनाने को लेकर चिंतित है।

” देखो छोले , खीर और सब्जी बन गई है चावल तुम्हारी जेठानी रितु छोंक देगी !” सलोनी की सास ने पतीले उघाड़ते हुए कहा।

” मम्मी जी ये सब किसने , कब और क्यों बनाए रसोई तो मुझे बनानी थी ना !” सलोनी वो सब देख चौंकते हुए बोली।

” आहिस्ता बेटा बाहर मेहमान भी हैं उन्हें नही पता लगना चाहिए कि ये तुमने नही बनाया …ये सब हम लोगों ने चार बजे उठकर ही बना दिया था !” तभी रसोई में ताई जी चाची जी के साथ आते हुए बोली।

” चलो तुम फटाफट साड़ी का पल्ला दबाओ और लग जाओ काम पर !” तभी सलोनी की जेठानी आई और मुस्कुराते हुए बोली।

” काम …सब काम तो आप सबने कर दिए भाभी !” सलोनी नम आंखों से बोली ससुराल ऐसा होता है ये तो उसे अंदाजा भी नहीं था।

” हां तो बनाया हमने है पर लोगों को तो ये लगना चाहिए तुमने बनाया है तो थोड़ी थकी हुई अस्त व्यस्त सी तो लगनी चाहिए ना हमारी देवरानी !” सलोनी की जेठानी मुस्कुराते हुए उसका पल्लू साइड में ठूंसती और उसके बाल थोड़े बिखराती हुई बोली।

” सलोनी बहू खाने में क्या क्या बना रही हो ?” तभी बुआ सास रसोई में आते हुए बोली।

” जीजी बहु ने तो सुबह जल्दी उठकर ही तैयारी कर दी सारी अब तो बस रोटियां बनानी बाकी हैं उसमे हम थोड़ी मदद कर देंगे बेचारी थक गई होगी लगे लगे भी !” ताई जी बुआ से बोली।

” हां ये तो है पर लगता है तुम्हे स्वर्गुण संपन्न बहु मिल गई जो इतनी सुबह उठकर रसोई में लग गई खैर सलोनी रोटियां करारी करारी बनाना जरा !” बुआ जी बोली और सलोनी और उसकी जेठानी को छोड़ बाकी सब बाहर आ गए। सलोनी की जेठानी चावल भी छोंक चुकी थी तो वो बनते ही खाना लगा दिया गया।

” सलोनी तुम रोटी सेक दो बेल मैं देती हूं !” जल्दबाजी में सलोनी के हाथों टेडी मेडी रोटी बिलते देख उसकी जेठानी बोली।

तभी परिवार की लड़कियां भी रसोई में आ गई और खाना परोसने लगी। थोड़ी देर में सारे काम निमट गए और सबने खाने की तारीफ करते हुए सलोनी को उपहार भी दिए।

” लो सलोनी बेटा तुम्हारा रोटी बनाने का नेग!” मेहमानों के जाने के बाद दादी सास ने कहा और सब उसे नेग देने लगे।

” पर दादीजी खाना तो मैने नही बनाया वो तो मम्मी जी , चाचीजी , ताइजी और भाभी ने बनाया फिर इस नेग पर मेरा क्या हक।” सलोनी ने कहा।

” बेटा खाना हमने सबने बनाया क्योंकि ये हम सबका परिवार है और तुम इस परिवार की नई सदस्य हमे पता है तुम एकल परिवार की हो और हमारा ये परिवार इतना विशाल …तुम पर आते ही बोझ डाल देते तो ये परिवार तुम्हारे लिए बोझ ना बन जाता क्या …रही नेगकी बात ये तुम्हारा हक है !” ताई जी मुस्कुराते हुए सलोनी के सिर पर हाथ फेरते बोली।

” सच ताईजी परिवार ऐसा होता है मुझे तो पता भी नही था मैं तो डरती थी ससुराल के संयुक्त परिवार में कैसे एडजस्ट करूंगी सहेलियों से ससुराल के बारे में वैसे ही इतनी नकरात्मक बातें सुनी थी। पर आप सबने तो अपने प्यार से एडजस्ट शब्द ही निकाल दिया और मुझे ऐसे अपना लिया जैसे मैं यही की हूं !” सलोनी आंख में आंसू भरते हुए बोली।

” यहां की थी नही पर अब यहीं की हो तुम बेटा और परिवार का सही मतलब यही होता है एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाना तभी तो वो जुड़ा रहता है एक एक फूल जब प्यार के धागे में पिरता है तभी माला बनती है धागा टूटते ही माला बिखर जाती है बस तुम भी इस माला को कभी टूटने मत देना बेटा सबको प्यार से अपनाना और सबका प्यार पाना !” दादी सास सलोनी के आंसू पोंछती हुई बोली।

” जी दादी जिस माला का एक एक फूल इतना प्यारा हो उसे कौन तोड़ना चाहेगा !” सलोनी दादी के गले लगती हुई बोली।

” चलो चलो अब सब रेडी हो जाओ ताऊजी हमे आइसक्रीम खिलाने ले जा रहे है !” तभी सलोनी की ननद वहां आकर बोली।

” अरे तेरे ताऊजी को सर्दी में आइसक्रीम की क्या सूझी !” दादी बोली।

” दादी नई भाभी को आइसक्रीम बहुत पसंद है तो ये उनके लिए ट्रीट है तो हम सब बच्चे तो जायेंगे रही आपकी बात आपका बुढ़ापा है तो आप सोच लीजिए कभी ….!” सलोनी की ननद दादी को छेड़ते हुए बोली और जानबूझ कर आखिरी वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

” बूढ़ी होगी तू मैं क्यों होती मैं तो आइसक्रीम खाऊंगी और आज तो सलोनी की पसंद की खाऊंगी !” दादी के इतना बोलते ही सब खिलखिला दिए और आइसक्रीम खाने चल दिए।

दोस्तों परिवार का असली मतलब ही एक दूसरे का साथ देना , बड़ों को सम्मान देना छोटों को प्यार देना होता है अगर परिवार ऐसा हो तो ना कोई बहू दुखी हो ना कोई सास जालिम कहलाए । सब एक माला में पिरे रहे और माला हमेशा महकती रहे।

क्यों दोस्तों आप भी ऐसे परिवार की कल्पना कर रहे हैं या आपको लग रहा ये सब कहानियों में ही होता है बस । चलो मैं मानती मेरी कहानी में कुछ कुछ काल्पनिकता है पर आप दिल पर हाथ रखकर बताइए क्या ये संभव नहीं हो सकता क्या हम ऐसे परिवार का सपना साकार करने की कोशिश नही कर सकते ? यकीनन आप भी ऐसा परिवार चाहते होंगे ।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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