दिल का रिश्ता –  उमा वर्मा

रिश्ते तो कयी से जुड़े पर ” दिल का रिश्ता ” किसी खास से ही ।यहाँ मैं दो अपने की बात करना चाहती हूं जिससे मेरे दिल के रिश्ते जुड़े हैं ।आशा है मेरी दोनों कहानी को आदरणीय मुकेश जी एवं गोविंदगुपता जी स्वीकार करेंगे    पहली— मेरी वीणा दीदी, ____ मै अपनी भाभी के पेट के आपरेशन के सिलसिले में माँ के यहाँ गई थी, भाभी के देखभाल के लिए ।कयोंकि मेरी माँ  नौकरी करती थी ।पंद्रह दिन ठीक से बीत गए ।सब कुछ ठीक चलने लगा था की एक दिन बेटे ने सुबह सुबह फोन किया “” माँ, मौसी नहीं रही””  

  मै रोने लगी ।”” कौन मौसी? “” मुझे लगा, मेरी छोटी बहन को तो कुछ नहीं हुआ ।””” वह वीणा मौसी “”” ।मेरे रोने का कोई ठिकाना नहीं था ।वह मेरी माँ, बहन,दोस्त  सब कुछ थी।कयी साल पीछे की बात याद आने लगी ।मेरी बेटी का जन्म हुआ था ।छठी मनायी जा रही थी ।मेरे माँ, पिताजी  भी आए हुए थे उस अवसर पर ।माँ को जैसे ही मालूम हुआ कि उपर तल्ले पर एक पटना के ही लोग रहते हैं ।

माँ  तुरंत रिश्ते निकालने पहुंच गयी ।वैसे भी पुराने लोग अधिकतर रिश्ते निकालने में माहिर होते थे।मालूम पड़ा वे मेरी बहन ही लगती है ।फिर माँ ने जो मेल मिलाप करवाया तो हमारा एक साथ खाना, घूमना, सिनेमा जाना, पर्व त्योहार  सब कुछ साथ होने लगा था ।वे बहुत पढी लिखी  ,उदार और सहृदय महिला थी।सादगी से भरपूर ।जाने उनकी बातों और विचार से मुझ पर क्या असर हुआ कि मैं और वह दो शरीर और एक प्राण हो गये ।तब टीवी का जमाना नहीं था ।कम्पनी के तरफ से अक्सर किसी मैदान या क्लब में सिनेमा दिखाया जाता था ।मै और वीणा दीदी दौड़ पड़ते थे ।हम दोनों के विचार बहुत मेल खाते।

मै धर्मयुग,साप्ताहिक हिन्दुस्तान, मनोरमा लेती वे नयी कहानियाँ, सारिका,कादम्बिनी लेती थी ।हम दोनों को पढने की बहुत चाह थी तो मिल बाँट कर पढ़ लेते ।हमेशा ज्ञान की बात करने वाली वीणा दीदी कैसे, कब मेरे दिल में जगह बना गई इसका मुझे पता ही नहीं चला ।हम आपस में सारी बातें शेयर करते ।उन्हे मेरी बात गलत लगती तो मुझे हक से डांट भी देती ।अपनी छोटी बहन ही मानती थी वह ।उनके और हमारे सारे परिवार से अपनापन का रिश्ता जुड़ गया था ।तीज में मेरे यहाँ उनका खाना बनता ।


दशहरा में उनके यहाँ एक थाली में हमारा भोजन होता ।रांची के एच ई सी  का रहन सहन ही कुछ ऐसा था कि एक ब्लाक में रहने वाले अठारह लोगों से  परिवार जैसा अपनापन था ।हमारे पति और बच्चों की भी बहुत दोसती थी।एक साथ हाल में हम सिनेमा देखने जाते ।दशहरा में एक समान हमारे बच्चों की खरीदारी होती ।मेरे पति को वे वर्मा जी कहती थी ।कितने याद जुड़े हुए हैं वीणा दीदी से ।बरसात का मौसम था ।हम अपने घर में बैठे हुए थे तभी उनकी भतीजी  दौड़ कर आई ।

कहा– “”मौसी, चलिए, आप को मेरी मौसी छत पर बुला रही है “” ।”” छत पर, क्यो?””।” पता नहीं ” फिर जैसे ही मै छत पर गयी वीणा दीदी ने हाथ पकड़ कर खींच लिया जोरो की बारिश में ।पानी में हम सरोबार थे फिर भीग भीग कर हमारा उछलकूद मचाने का शुरू हो गया ।खूब भीगने  में बहुत मजा आया ।इतनी गम्भीर वीणा दी चुहुल भी कर सकती है यह तो सोचा ही नहीं था ।अपने बच्चों की छठी, मुंडन, पढ़ाई, शादी सब में हम लोग भागीदारी निभाते रहे ।फिर रिटायर होने के बाद वे लोग पटना चले गए ।

लेकिन हमारा संबंध बना रहा।रांची पटना हम करते ही रहे ।पटना जाने पर मेरी और मेरे पति की पसंद का बना बना कर खिलाती ।लौटने की तैयारी हम करते तो मेरा बैग छीन लेती “” अभी इतनी जल्दी क्या जाना “? और मै उनकी बात टाल ही नहीं पाती ।बहुत जादू सा था उनकी बात में ।मै सम्मोहित हो जाती ।मेरी बेटी की शादी में देर होने लगी थी ।मै रोने लगती थी ।तब वे मुझे समझाती दिलासा देती।और उनके ही अथक प्रयास से उनके ही रिश्ते में बेटी की शादी हो गई ।फिर फोन का जमाना आ गया ।अपने सुख दुःख अच्छी बुरी  सारी बातें हम करते ।बहुत स्नेह मयी और प्यार करने वाली थी वह ।

फिर अचानक चौबीस जुलाई  को उनके देहावसान होने की खबर मिली ।मेरे आँसू थमते ही न थे।बेटे ने तुरंत पटना का टिकट करा दिया ।बहुत सी अनकही बातें  दिल में ही रह गई ।अब किससे शेयर करूँ? पटना पहुंची तो बेटी  गले लग गई ।एक मौन छा गया ।लेकिन दिल का दर्द बंट गया हमारा ।आँसुओ ने  सब कुछ बाँट लिया ।यह दिल दुखाने वाला हमारा दिल का रिश्ता था ।कुछ समय बाद उनके पति भी नहीं रहे ।और दो साल पहले उनकी बेटी भी चली गयी ।जिस घर आँगन में हम खुशियाँ मनाते थे वह आँगन ही छूट गया ।कैसा था यह दिल का रिश्ता ।जिस की कसक आज भी है ।कहाँ चली गयी आप वीणा दीदी? ? ____ “” दूसरी कहानी—- “” एक अनाम रिश्ता “” इस रिश्ते का कोई नाम नहीं था ।दुनिया की लाखों की भीड़ में जब पहली बार तुम्हे देखा तो लगा “”यह तो वही है, जिसे मैंने चाहा था “” कैसे मिल गये तुम? एक अलग व्यक्तितव, खूब सूरत, प्यारी सी मुस्कान लिए  तुम ही तो थे।एक शादी में तुम से मुलाकात हुई ।तुम मुझे बहुत अच्छे  लगे ।और फिर हमारी दोस्ती हो गई ।धीरे-धीरे दोस्ती से अधिक दिल का रिश्ता ।किसी मौके पर तुम्हारे यहाँ मेरा जाना हुआ था ।घर में सिर्फ तुम ही थे।कोई नहीं था उस समय ।सभी लोग मंदिर गये हुए थे ।फिर मैंने खुद से नाशता बनाया ।तुम ने कहा “” हम नहीं खायेंगे क्या “” ? सिर्फ अपने लिए बना रही हो ।


तुम्हारी बातों में जाने क्या जादू था ।फिर खाने के बीच बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो खत्म ही न होता था ।तुम अपनी पढाई पूरी करने कहीँ  दूर चले गए ।और मेरे लिए एक सूनापन छोड़ दिया ।कुछ दिनों बाद मेरी शादी हो गई ।शादी में अचानक तुम आ गए ।आश्चर्य? मेरी शादी में तुम ने बढचढ कर हिस्सा लिया ।खूब नाचे गाये ।मुझे अच्छा लगा ।तुमने पहले ही समझा दिया था कि माता पिता का मान रखना है ।हमारी शादी नहीं हो सकती ।हमारी जाती  अलग थी ।मेरे पति बहुत अच्छे थे ।

उन्हे हमारी दोस्ती का पता था ।क्योकि हमारे बीच वैसा कुछ नहीं था ।सिर्फ दोस्ती थी ।निस्वार्थ ।एक दूसरे से बिना कुछ पाने की इच्छा लिए ।एक दूसरे के सुख दुःख की भागीदारी ।बस अच्छा लगना ।अच्छा तो कोई भी लग सकता है ।तुम्हारे खत आते मै तुरंत जवाब देती।उन खतो में दुनिया जहान की बात होती ।लेकिन एक बात खास होती ।तुम हमेशा समझाते कि हम एक अच्छे दोस्त बनकर हमेशा रहेंगे ।तुम मुझे अपने पति और बच्चों पर ध्यान देने को कहते ।

हमेशा अच्छी सीख देते।मेरे मन मे तुम्हारे लिए बहुत खास लगाव था ।तुम्हारी सीख मुझे अच्छी  नहीं लगती ।मै तुम्हे बहुत याद करती ।लेकिन तुम तो अलग दुनिया के थे।हमेशा मुझे अपने घर संसार को संवारने के लिए कहते ।तुम से मेरे पति भी बहुत खुश रहते थे तुम अक्सर छुट्टी में आ जाते फिर हम खूब घूमने जाते, सिनेमा जाते, हंसी मजाक होता ।लेकिन हरबार पति की भी साझेदारी होती ।मुझे लगता तुम से अकेले में बात करें ।लेकिन तुम टाल जाते ।

एक बार मैंने पूछा भी था ।क्या तुम्हारे दिल में कोई फीलिंग नहीं है मेरे लिए ।तुम ने कहा “” है,इसलिए तो तुम्हारी खुशी देखना चाहता हूँ “” प्रेम तो एक शाश्वत धर्म है ।देने में ही सुख होना चाहिये ।फिर तुम्हारी भी शादी हो गई ।लेकिन हमारा रिश्ता, दोस्ती  वैसे ही बना रहा।हम हर खुशी अपने पति और तुम्हारी  पत्नी के साथ मनाते ।वह भी बहुत अच्छी  थी ।

एक बार मेरी तबियत बहुत खराब हो गई ।खून बनता ही नहीं था ।बहुत इलाज हुआ ।बचने की उम्मीद कम हो गई ।खबर मिलते ही तो तुम आये थे ।फिर अस्पताल से लेकर दवा और खून का सारा इन्तजाम संभाल लिया था ।अनगिनत यादें ही तो है तुम्हारी अच्छाई  के।अपने अपने घर संसार में हम सुखी थे कि अचानक तुम्हारे चले जाने की खबर मिली ।इतनी कम उम्र, ईश्वर ने बहुत अन्याय किया ।अपनी एक किडनी  देकर मेरी जिंदगी बचा दी और खुद चले गए ।आज भी दिल के एक कोने में तुम विराजमान हो तुम्हारा शाश्वत  और बिना कुछ चाहने वाला प्रेम भुलाया नहीं जा सकता है ।

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