रिश्ता प्यार का – कमलेश राणा

गोमती जी हमारी पड़ोसन भी हैं और मम्मी की प्रिय सखी भी हैं,,दोनों एक ही गाँव की हैं,,तो बहनों जैसा प्यार है उनमें,,

 

कुछ दिन पहले मायके गई तो उनसे मुलाकात हुई,,

 

आंटी कैसी हैं आप,,बहुत कमजोर दिख रहीं हैं,,

 

बेटा,,अब 90 साल की उमर में और कैसे होंगे,,भगवान भूल ही गया है,,रोज विनती करते हैं,,प्रभु ,,उठा लो,,जिनकी यहां जरूरत है,,उनकी भगवान के यहाँ भी जरूरत है,,

 

बूढ़े -टेढ़े लोगों की वह भी नहीं सुनता,,जब से विशाल इस दुनियां से गया है,,एक-एक दिन एक-एक साल के बराबर कट रहा है,,अरे,, हमें ही उठा लेता भगवान,,

 

विशाल आंटी का एकमात्र पुत्र था,,बड़ी मन्न्तों के बाद चार बेटियों बाद हुआ था,,लाड़ प्यार में ऐसा बिगड़ा,,न तो पढ़ ही पाया,,न किसी लायक बन पाया,,

 

बाहर रह कर शराब का आदी हो गया,,डॉक्टरों ने कह दिया कि शराब की एक बूंद भी इसके लिए जहर है,,लिवर पूरी तरह से खराब हो चुका था,,

 

पर तलब ऐसी कि मानता ही नहीं और एक दिन 42 साल की उमर में ही,,बूढ़े माँ-बाप को बेसहारा  कर गया,,

 

घर में वही थोड़ा बहुत कमाता था,,जमीन पहले ही बिक गई थी,,अब दो जून की रोटी के भी लाले पड़ रहे थे,,

 

हालांकि बेटियां थोड़ी बहुत मदद कर देतीं थीं,,परंतु वह पर्याप्त नहीं थी,,

 

उनके यहाँ एक गाय भी थी,,जिसका दूध बेचकर कुछ आमदनी हो जाती थी,,

 

एक दिन वो मम्मी से बोलीं,,सोच रहे हैं,,गाय को बेच दें,,

 

क्यों इससे आपका दूध घी का काम चल जाता है,,

 


पैसे नहीं हैं,,भूसा लेने के लिए,,पहले तो विशाल दे जाता था,,

 

मम्मी घर आईं तो विचारमग्न थीं,,मुझसे बोलीं,,एक बात बतायेगी सच-सच,,

 

मैने कहा,,ऐसी क्या बात है,,जो आपको इतना सोचना पड़ रहा है,,

 

मैं गायत्री जी की गुल्ल्क में हर महीने जो पैसे डालती हूँ,,क्या वो मैं गोमती को गाय के भूसे के लिए दे दूँ,,या मंदिर में ही दान करुँ,,

 

मम्मी इससे ज्यादा पुण्य तो आप को किसी तीर्थ के करने से या दान करने से नहीं मिलेगा,,बहुत ही सार्थक विचार आया है आपके मन  में,,

 

कुछ दिनों बाद मम्मी ने उनके पति का इलाज़ भी करवाया,,मम्मी की नई सोच और उच्च विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया,,

 

मेरे विचार धर्म विरोधी या नास्तिक बिल्कुल भी नहीं हैं,,लेकिन यह सोचने पर मजबूर हूँ कि सड़क पर भीख मांगने वालों से भी बुरी स्थिति ऐसे बहुत से लोगों की है,,

 

जो एक समय संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखते थे,,पर आज दाने-दाने को मोहताज हैं,,शर्मवश किसी से मांग भी नहीं सकते,,

 

 उनकी हरसंभव मदद करें,,क्योंकि हर आत्मा में परमात्मा का वास होता है,,

 

बड़े-बड़े मंदिरों के पास तो अकूत दौलत है,,उसका रखरखाव कैसे करें,,यह एक बड़ा प्रश्न है,,

 

इसलिए जो भी जरूरतमंद दिखाई दे,,जो भी कर सकते हैं,,अवश्य करें,,ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं,,अगर किसी के दिल को ठेस पहुंची हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ

 

#रिश्ता प्यार का 

 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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