भतेरी…. – मंजू तिवारी : Moral stories in hindi

हां राम भतेरी यही नाम है। मेरा… बड़ा अटपटा सा… कोई मुझे भतेरी कहकर बुलाता तो कहीं मेरे सम्मान में राम आगे लगाकर राम भतेरी कहकर बुलाता….

मेरे इस नाम की कहानी बहुत पुरानी है। ज़्यादातर हरियाणा के कई गांव में आपको मेरे नाम की कई स्त्रियां मिल जाएगी कई स्त्रियां तो इसी नाम के साथ दुनिया को अलविदा कह गई पहले तो मैं ज्यादातर घरों में मिल जाती थी राम भतेरी या कह दिया जाता था ना आना इस देश मेरी लाडो और मुझे दुनिया से अलविदा कर दिया जाता तो चलो मैं आपको अपने नाम की विडंबना बताती हूं। कि राम भतेरी नाम मेरा क्यों रखा गया

मेरा बहुत बड़ा संयुक्त परिवार था उसमें दादा दादी मम्मी पापा चाचा चाची सभी रहते थे मेरी बड़ी बहन हुई तो सभी ना खुश थे ना दुखी थे क्योंकि मेरी बहन घर की पहली संतान थी इसलिए उन्हें सभी ने स्वीकार कर लिया उसके बाद मेरी दूसरी भी बहन हुई तो मेरे घर में दुख का माहौल था क्योंकि दूसरी संतान थी तो उसको भी एक ठीक नाम दे दिया गया दो संताने  बेटियां हो चुकी थी अब मेरे दादा-दादी मम्मी पापा को बेटे की चाहत थी लेकिन भगवान को जो मंजूर होता है ।वही होता है ।

भाई की चाहत में मेरी तीसरी भी बहन आ गई लेकिन  भाई ना आया मेरी एक बहन मर गई उसके लिए कहा तू जा भाई ने पहुंचाइये मेरा चौथा नंबर था जब मैं दुनिया में आई तीन बहने पहले से ही थी चौथी मैं ..घर में मातम फैला रहा था

 मेरी दादी जो भी बात करता राम भतेरी छोरी देदी अब बस कर यानि राम  बहुत  बेटियां घर में दे दी अब मत दे… यानी हरियाणवी भाषा में बहुत  भतेरी बोलते हैं।

जो भी आता यही कहता राम भतेरी छोरिया दे दी है। अब इन छोरियों को एक भाई दे दे…. जब सब लोग यही कहते राम भतेरी दे दी छोरिया तो धीरे-धीरे मेरा नाम राम भतेरी पड़ गया….

 छोटी थी तो मैं नाम का मतलब नहीं जानती थी नाम ही तो है। सब मुझे सहेलियां परिवार वाले भतेरी कहकर बुलाते मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मेरे नाम से ही सब जान जाते कि मुझसे बड़ी और बहाने होगी या घनी बहाने होगी मैं आखिरी हूं। या यूं कहिए मैं अपने परिवार की unwanted child थी

 पहले के दौर में स्त्रियों की शिक्षा नहीं होती थी तो कई राम भतेरिया स्कूल गई ही नहीं और राम भतेरी नाम की से मर गई पता तो उन्हें भी अपने नाम का था कि उनका नाम भतेरी क्यों पड़ा …

लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं थोड़े से नए दौर की हूं ।तो मैं स्कूल भी गई मैं अच्छी शिक्षा भी ली 

 मैं अपने स्कूल की कहानी बताती हूं ।जब मेरे पिता मुझे लेकर स्कूल में दाखिला कराने गए…. मैं बड़े अच्छे से तैयार होकर अपने पापा के साथ स्कूल गई स्कूल फॉर्म भर गया पापा सीधे-साधे थे तो मेरा नाम पूछा गया की बेटी का नाम बताओ तो मेरे पापा ने प्रिंसिपल से कहा इस छोरी का नाम राम भतेरी…. अच्छा स्कूल था

 प्रिंसिपल भी कहीं बाहर की थी वह मेरा मुंह देख रही थी और बड़े आश्चर्य से पापा की तरफ देखा और बोली सर यह आप क्या कह रहे हो राम भतेरी कोई नाम होता है।

 कोई और नाम बताओ… तब पापा ने कहा हम तो इसे यो ही कहे हैं।… पापा को कोई नाम नहीं समझ में नही आ रहा था इसलिए प्रिंसिपल मैम से पापा ने कहा इस छोरी का नाम आप ही रख दीजिए… तब प्रिंसिपल मैम ने मेरे एडमिशन फॉर्म में राम भतेरी नाम को बदलकर मेरा नाम मीना रख दिया… और मैं मीना बन गई… स्कूल में तो प्रिंसिपल मैम ने मुझे हंसी का पत्र बनने से बचा लिया

 लेकिन  फिर भी इतना अटपटा सा नाम और मुझे जो एहसास दिलाता कि मैं अपने परिवार की अवांछित संतान हूं। मुझे कोई चाहने वाला नहीं है या मैं उपेक्षित हूं। मुझे बहुत ब़ुरा महसूस होता…. धीरे-धीरे में बड़ी हो रही थी मेरी सारी बहनों की शादी हो गई मेरा भी नंबर आया मेरा रिश्ता जिस घर में गया वह सहज ही मेरे नाम से जान गये कि मुझे पहले कई बेटियां हैं। तभी मेरा नाम राम भतेरी है। यानी मेरी ससुराल वालों को भी पता चल गया कि मैं अपेक्षित हूं

या मेरी घर में कदर नहीं है। इसी नाम के साथ में ससुराल में आ गई क्योंकि यही नाम मेरा प्रचलन में है। तो कुछ लोग जिन्हें अच्छा नहीं लगता बुलाने में भतेरी कहकर वह मुझे मीना कहकर बुलाते हैं। जो सहज हैं।भतेरी बुलाने में वह मुझे भतेरी ही कहते हैं। जो मुझे पल पल एहसास कराता है। अंदर तक तोड़ता है।

कि मेरी किसी को जरूरत नहीं थी मैं जबर्दस्ती दुनिया में आई मेरी कोई कदर नहीं है मैं अपने नाम के ही साथ अपनी वेदना लेकर जीती हूं। बिना मुंह खोल ही मेरे नाम से लोग जान जाते हैं मैं उपेक्षित हूं राम भतेरी… मुझे कौन इज्जत प्यार सम्मान देगा जब मेरे परिवार ने ही मुझे इज्जत सम्मान प्यार नहीं दिया बल्कि अपेक्षित समझा तो ससुराल में मुझे इस नाम के साथ कोई क्यों इज्जत सम्मान देगा अभी मेरी उम्र बहुत ज्यादा नहीं है। 

45 साल की ही होगी वैसे तो मैं किसी प्रकार से दुखी नहीं हूं संपन्न हूं ।खुशहाल हूं लेकिन मेरे नाम ने मुझे सदैव पीड़ा पहुंचाई मैं हरियाणा की वह राम भतेरी हूं ।जो कई गांव में रहती हैं ।यही राम भतेरिया अवांछित संतान होते हुए भी देश के लिए प्रदेश के लिए गोल्ड मेडल लाती हैं। हम कुश्ती लड़ते हैं हम दौड़ लगाते हैं। हम मजबूत हैं ‌। हम राम भतेरी देश के लिए गौरव बने हुए हैं। अभी भी बदलते दौर में  राम भतेरी  पैदा हो जाती है। जहां छोरे की चाहत है। वहां एक छोरी भतेरी जरूर होती है।

उनमे से मैं हरियाणा की एक राम भतेरी हूं। जो सदा से ही संदेश देती रही है। छोरियां के छोरे से कम है।

 और मैं नहीं चाहती की कोई मेरी ही तरह और भतेरी नाम रखे जाएं क्योंकि यह नाम मुझे पल-पल तोड़ता है। क्योंकि नाम व्यक्तित्व का एकहिस्सा होता है।

 नाम ऐसा रखना चाहिए जो सुखद अहसास कराए एक अच्छा संदेश दे। मजाक में भी कभी इस तरह का नाम ना रखें जो कष्टदाई हो

इस व्यथा को अगर अच्छे से समझना है तो कुछ पलके लिए इस नाम को अपना कर देखना किस तरह का एहसास होता है। भगवान से कामना करती हूं बदलते दौर में अब किसी घर  में भतेरी नाम की संतान न हो सभी अच्छे-अच्छे नाम की संताने हूं। जो अच्छा महसूस करें

आर्टिकल बातचीत के आधार पर

मंजू तिवारी गुड़गांव

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रतियोगिता हेतु

मेरी प्रथम रचना 

बेटियां छटवां जन्मोत्सव

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