#ऐसे शब्द सुनकर गुस्से से मेरा खून खौल उठा – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

झाड़ू पोंछा करने के लिए दस दिन से लगभग साठ की रधिया काकी को पुरानी काम वाली रखकर अपने गांव गई है गेहूं की फसल कटने के बाद आएगी.. साठ साल की बुजुर्ग काकी से काम करवाने में अपराध बोध और ग्लानि महसूस हो रही थी.. पर पुरानी काम वाली ने बताया एक घर  कर रही है एक घर और काम पकड़ेगी आप नही रखोगे तो कहीं और करेगी..

                      रधिया काकी खूब बातूनी थी हंसमुख स्वभाव की.. जितनी देर रहती कुछ न कुछ बोलते रहती. धीरे धीरे उन्हें हमारे घर से लगाव होने लगा और हमे भी उनसे.. बड़े प्यार से बेटी कह कर बुलाती.. ना दीदी ना हीं बाकियों की तरह भाभीजी..

                                 आज काम करते हुए चुपचाप और उदास सी थी.. हां ना में जवाब दे रही थी..

                        मेरे कमरे में आई तो अन्नृद्धानंद जी का प्रोग्राम चल रहा था जिसमें दूर दूर से आई बेबस माताओं को अपने आश्रम में कैसे रखते हैं, ऐसा हीं कुछ बता रहे थे..रधिया काकी फर्श पर बैठ गई और ध्यान से देखने लगी.. बाबा हमको भी बुला लो अपने पास.. अस्पष्ट शब्दों में बोल रही थी..

                 उनकी आंखों से अनवरत आंसुओं की बरसात हो रही थी.. मैं अवाक उन्हें देख रही थी.. एक ग्लास पानी दिया.. थोड़ी देर बाद जब शांत हुई तो मैंने डरते डरते पूछा.. थोड़ी देर चुप रहने के बाद रधिया काकी ने कहना शुरू किया.. तीन बेटे और एक बेटी की मां हूं.. आधा कट्ठा जमीन में तीन कमरे का मकान मेरे मालिक ने बनवाया था.. और बेटों से कहा था  हमारे बाद एक एक कमरे तीनों के हिस्से में आयेंगे.. और बेटी तो मेहमान होती है..

             उनके दुनिया से जाते हीं तीनों ने कमरे का बटवारा कर लिया.. और मेरा चौकी ओसारे में लगा दिया.. सारा सामान भी वही रख दिया..

बरसात की झटास जाड़े की हाड़ कंपाती हवा ओह..

     मालिक कहते थे तीन बेटों की मां हो हथेली पर रखेंगे तुझे..

                   दोनो बेटे पंजाब चले गए बीबी बच्चों के साथ कमाने.. ठीक से रहियो अम्मा… अपने अपने कमरे में ताला लगा दिया..

                      दाने दाने को मोहताज हो गई तो एक भले आदमी ने विधवा पेंशन के लिए नाम लिखवा दिया.. एक हजार रुपया हर महीना.. दो बार पैसे बहु ने चुरा लिया.. तीसरी बार जहां काम करती थी मालकिन को दिया रखने के लिए.. बहु को जब पैसे नही मिले तो मुझे बहुत मारा.. हाथ की दो उंगली टूट गई.. कमर पैर हाथ सब में चोट थी.. बेटी तीन घंटे की दूरी पर ब्याही थी सुनते हीं दौड़ कर दामाद के साथ आई.. लिपट के रोने लगी.. बहु ने कहा दुबारा यहां कदम मत रखना.. शर्म नहीं आती चाटने के लिए दूल्हा के साथ पहुंच जाती है… अपना पेट भरना मुश्किल है.. खैरात नही बंट रही है यहां.. दामाद के सामने ये सब सुनकर बेटी शर्म से गड़ गई और यहां कभी नही आने की कसम खा ली..

                 बेटी ने पड़ोस के एक लड़के के साथ  मुझे पंजाब भेज दिया.

       मेरी अम्मा कहावत कहती थी         ज ईह  नेपाल साथहे जैहें कपाल.. किस्मत यहां भी साथ साथ चल रही थी.. दो दिन बाद चार घरों में झाड़ू पोंछा बर्तन साफ करने का काम बहु ने लगा दिया.. यहां भी मेरे रहने के लिए  पड़ोस के ओसारे में व्यवस्था करवा दिया बहु ने..महीने के पैसे मालकिन से लेकर दोनो बहू आधा आधा बांट लेती.. जो काम पर खाना चाय मिल गया उसी पर दिन रात कटता.. जिस दिन बीमार पड़ जाती बहु चाय भी नही देती.. तबियत बिगड़ने पर भी धीरे धीरे काम पर जाती पेट के लिए.. बेटे से कहने पर कहते दिक्कत है तो वापस चली जा हमारा सिर मत खाओ..

                        दो साल किसी तरह नरक में रही.. फिर तबियत ज्यादा बिगड़ने पर बेटा छोड़ कर अगली ट्रेन से चला गया…लावारिस की तरह बुखार में पड़ी थी बेटी किसी को भेजकर अपने पास बुलवा ली.. बीस दिन में तबियत थोड़ी ठीक हुई.. बेटी का ससुराल संयुक्त परिवार में था.. उसके घर में मुझे लेकर कानाफूसी होने लगी.. तीन तीन बेटे हैं.. सास देवरानी जेठानी सब के सब कुछ न कुछ ताने देती.. बेटी भी मजबूर थी.. रोज कमाने खाने वाले लोग थे..

                      और मै वापस बेटी के मना करने के बाद भी आ गई.. काम करती हूं जहां जहां वहीं खाना नाश्ता कर लेती हूं.. चना का सत्तू रखती हूं कभी रात में भूख लगने पर..

                          अगले महीने नतिनी की शादी है बेटी फोन कर के बोली भईया घीढारी लेकर आएंगे तो तुम चली आना साथ में.. पहलौठ नतिनी की शादी है..

          बेटे से कहा तो उसने साफ मना कर दिया कहा मीना (उसकी पत्नी) के भतीजा की शादी उसी दिन है हमलोग वहीं जा रहे हैं.. और रोने लगी रधिया काकी.. तीन भाइयों की इकलौती बहन और नहिरा से कोई नही जायेगा… रधिया काकी की कहानी सुन बहुत आहत हुई मैं और उनके बेटे बहु के बोले हुए #ऐसे शब्द सुनकर गुस्से से मेरा खून खौल उठा #

                 फिर काकी को चुप करा कर मैने समझाया आप एडवांस पैसे लेकर कपड़े उपहार जो देना है खरीद लो और बेटी के यहां खुशी खुशी जाओ.. आप उसकी मां हो.. जनम दिया..

राधिया काकी ने कहा जनम तो तीन बेटों को भी दिया है पर मैं  सच पूछो तो आज निपुतर हूं.. ओह..

        ये कैसी हवा बह रही है.. कहां उड़ा के ले जाएगी समाज को परिवार को.. हमे रोकना होगा मिलकर इसे.. हवा का रुख मोड़ना होगा वरना कब ये हवा किसे उड़ा ले जाए.. आज हमारी कल तुम्हारी…

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

Veena singh.

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!