बेमेल (भाग 28) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

मुखिया की बातों पर वहां खड़े हवेलीवाले असहज होते दिखे। जबकि हवेली के बाहर मौजुद गांववाले आज दूध का दूध, पानी का पानी करने को उतारू थे।

“सच-सच बताओ, नहीं तो आज तुमदोनों यहाँ से जिंदा नहीं बचने वाले! बोलो, जो तुमने हम सबके सामने कहा था!!”- भीड़ से किसी ने मुस्टंडों से कहा।

पहले तो उन मुस्टंडों ने क़ातर भाव से अपने मालिकों की तरफ देखा फिर नज़रें नीची कर हामी में सिर हिला दिया।

“अरे सिर क्या हिलाता है!! बोलता क्यूं नहीं! ज़ुबान हलक में अटकी है क्या!!! सच-सच बताना वर्ना आज मेरे बंदूक की सारी गोलियां तुमदोनों के भेजे में उतार दुंगा! नंदा, भीतर से जाकर मेरी बंदूक ले आओ!!!”- नंदा के पति ने दांत पीसते हुए कहा।

“जो सच है वो बताओ! तुम्हे इनलोगों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं! याद रखना कि तुम इसी गांव के वासी हो और यहाँ के लोग सच की खातिर अपनी जान गंवाने से भी नहीं डरते!”- मुखिया ने कहा। 

“हाँ हाँ, जो सच है वो बताओ! हम सब हैं तुम्हारे साथ! इन हवेलीवालों से डरने की कोई जरुरत नहीं!!”- वहां खड़े गांववालों ने एकसूर में कहा तो उन मुस्टंडों की हिम्मत जगी और उन्होने अपना मुंह खोला।

“बड़े जमाईबाबू ने मुझसे कहा था श्यामा को अकेला पाकर इन कुत्तों को उसके पीछे छोड़ देना! साथ ही इस बात की तस्सली करने को भी कहा था कि श्यामा दीदी की जान चली जाए।”- हाथ जोड़कर उन मुस्टंडों ने कहा फिर भीड़ के समक्ष हाथ जोड़ते हुए अपनी मजबूरी बतायी – “मैं इनका मुलाज़िम हूँ! अगर इनकी बात नहीं मानता तो पता नहीं ये मेरे साथ क्या करते! अब आप ही बताएं?? मैं करता भी क्या! मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं! मेरे पीछे उनका देखभाल कौन करता? अभी पिछले दिनों मेरी बड़ी बेटी हैजे की बलि चढ़ गई। इनलोगों से मदद की गुहार लगाई तो इन्होने दूत्कार कर भगा दिया। बेटी की अंतिम क्रियाक्रम तक के लिए मुझे छूट्टी नहीं दी। दो दिन तक उसकी लाश घर में यूं ही पड़ी रही। ये सब इंसान नहीं जल्लाद हैं! इन्हे माफ नहीं करना! इन्हे इनके किए की सजा मिलनी ही चाहिए!!” कहते-कहते दोनों मुस्टंडे बिलख पड़े और घुटनों के बल आकर वहां खड़ी श्यामा के पैर पर गिर उससे माफी की गुहार लगाने लगे।

“कितनी चरित्रहीन निकली रे तू श्यामा!! पहले अपने दामाद को फांसा और अब इन मुस्टंडों को भी अपनी काया का लोभ दिखाकर अपनी तरफ कर लिया! अरे देह की भूख इतनी ही हिलोरे मार रहा था तो हम मर गए थे क्या!!” – छोटी बहन अमृता के पति ने श्यामा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखकर कुटिल मुस्कान भरते हुए कहा। उसकी बातें सुन श्यामा ने कुछ न कहा और भीतर ही भीतर उसके शब्दरूपी जहर पीती रही।

“अब जबकि यह साफ हो गया है कि श्यामा की जान हवेलीवालों ने ही लेनी चाही थी तो मैं, इस गांव का मुखिया होने के नाते, इस बात की सजा तय करने का फैसला श्यामा के हाथो में ही छोड़ता हूँ। वह जो भी सजा तय करेगी वो इस गांव को मंजूर होगा!”- मुखिया ने कहा और गांववालों ने एक सूर में अपनी हामी भरी।

अब सबकी नज़रें श्यामा पर टिकी थी। दोनों मुस्टंडे वहीं उसके चरणों के पास ही हाथ जोड़े घूटने के बल बैठे थे। हवेली के फाटक पर खड़े हवेलीवाले असहज होकर एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे और श्यामा के बोलने का इंतजार कर रहे थे।

आज श्यामा के पास अच्छा मौका था हवेलीवालों से बदला लेने का। शादी के बाद से आजतक उसने बहुत दुख सहे और इन सबके पीछे सबसे बड़ी वजह इन ननद-ननदोईयों की लालच और उनका बुरा स्वभाव था। वह चाहती तो आज गिन-गिनकर बदला ले सकती थी। पर उसने ऐसा नहीं किया। उसने एक नज़र वहां खड़े गांववाले, दीन-हीन से दिखते छोटे-छोटे बच्चों की तरफ डाला फिर उसका ख्याल उनलोगों की तरफ भी गया जो वहां मौजुद नहीं थे और गांव के ही घरों में, मेडिकल कैम्प में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे।

“मुझे इनलोगो से कोई बदला नहीं लेना! वैसे भी अपना सबकुछ खोकर मैं केवल जिंदा लाश बनकर घुम रही हूँ! अगर गांववालों के तकलीफों और पेट में पल रहे इस जीव की फिक्र नहीं होती तो मैं कबकी निश्प्राण हो चुकी होती! आज जब पूरा गांव हैजे की महामारी और दो जून की रोटी को तरस रहा है, मैं बस यही चाहुंगी कि ये जो हवेलीवाले मालिक बनकर बैठे है, ये हवेली में जमा अन्न-धान्य का दरवाजा उसके असली मालिक यानि इन गांववालों के लिए खोल दे! यही सही न्याय होगा! अगर आज पिताजी, स्वर्गीय राजवीर सिंह जिंदा होते तो इन गांववालों को भूख-प्यास से त्रस्त नहीं होना पड़ता! इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए।”- श्यामा ने कहा और वहां खड़े पूरे गांववालों की पलकें भींग गई।

आज इतने दिनों बाद गांववालों को अपने दानवीर जमींदार स्वर्गीय राजवीर सिंह की झलक श्यामा में देखने को मिली थी।

“दिमाग खराब हो गया है इस बज्जात औरत का!!! हम हवेली के अनाज का दरवाजा इन भीखमंगो के लिए क्यूं खोलें!!”- गुस्से से आगबबूला होते हुए तीनों जमाईयों ने कहा और हवेली के दरवाजे पर तनकर खड़े हो गए।

“श्यामा के इंसाफ से मैं और पूरा गांव सहमत है। जमाईबाबू, आपसे मेरी विनती है कि आप रास्ते से हट जाएं और अनाज के गोदाम की चाभी हमें सौंप दे नहीं तो इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा!”- मुखिया ने दृढ़ होकर कहा और हवेली के दरवाजे पर खड़े जमाइयों की आंखों में निहारता रहा।

“हमें आंखें दिखाता है! तेरी इतनी जुर्रत कि हमें धमकी दे रहा है!”- नंदा के पति ने गरजते हुए कहा।

“तुमलोग शांति से गोदाम की चाभी मुखिया जी को सौंप दो! नहीं तो हम गांववाले हवेली पर धावा बोल देंगे!”- भीड़ में खड़े कुछ गांववालों की आवाज आयी और देखते ही देखते वहां खड़ी पूरी की आवाज बन गई।

नंदा, सुगंधा, अमृता और उनके पतियों ने भीड़ के बीच एक चबुतरे पर बैठी श्यामा की तरफ गुस्से से भरी निगाह डाली।

“श्यामा, ये तूझे बहुत महंगा पड़ेगा! तू क्या समझी! ऐसे कोई भी फैसला सुना देगी और हम शांति से मान लेंगे! मैं इन गांववालों से नहीं डरता! तूझे इसकी सजा मिलकर रहेगी, अभी और यहीं इसी वक़्त!!”- छोटी बहन अमृता के पति ने दांत पीसते हुए कहा और अपने हाथों में रखी बंदूक श्यामा की तरफ तान दी। श्यामा का स्थिर और दृढ़ चेहरा हवेलीवालों पर टिका रहा और तभी एक झटके के साथ वह वहीं लुढ़क गई। बंदूक की एक गोली उसके सीने के पार हो चुकी थी और उसके आसपास खून ही खून फैलने लगा था। पास ही खड़ी मुखिया की पत्नी और बाकी औरतों ने उसे सम्भाला और उठाकर मेडिकल कैम्प की तरफ भागे।…

क्रमश:….

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written & copyright by Shwet Kumar Sinha

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