बेमेल (भाग 27) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

.“अरे पहले तुमलोग शांत हो जाओ! पूरी बात तो बताओ आखिर हुआ क्या है! तभी तो मैं कुछ कहूं या करूं!”- मुखिया ने आडम्बरपूर्ण सहानुभूति दिखाते हुए कहा।

भीड़ ने अपने बीच मौजुद हवेली के मुस्टंडों को आगे कर दिया जिन्होने सारी बातों से मुखिया को अवगत कराया और अपनी गलती भी कबूली। सारा मामला जानकर भीड़ के सामने खड़े मुखिया के होश उड़ गए। उसकी तो बोलती बंद हो चुकी थी जैसे जुबान कहीं भीतर ही अटक गए हो। आखिर वह बोलता भी क्या! वह गांव का मुखिया कम और हवेलीवालों की रहमत पर पलने वाला पालतू कुत्ता ज्यादा था जिसे अब अपने मालिक पर ही भौंकने की बारी आयी था! फिर उसकी बीवी भी आज उसका साथ छोड़कर गांववालों के साथ जा खड़ी हुई थी!

“द द देखो! हवेलीवालों से झगड़ा मोल लेने से पहले सोच लो! वे सब बहुत उंची पहुंचवाले और उंचे रसुखवाले हैं!”- मुखिया ने अटकते हुए गांववालों से मान-मनौवल करने की सोची। पर उसकी सिट्टीपिट्टी तब गुम हो गई जब भीड़ में से आगे बढ़कर उसकी पत्नी की आवाज आयी।

“मुखिया जी, अगर हवेलीवाले इतने ही रसुखदार हैं और उनकी पहुंच अगर इतनी ही ऊपर तक है तो क्यूं पूरा गांव आज महामारी की चपेट में है? आखिर क्यूं पूरा गांव आज भूखे मरने को मजबूर है!”- मुखिया की पत्नी ने अपने ही पति से सवाल किया जिसका मुखिया के पास कोई जवाब न था।

“सही कह रही है मुखियाईन! हम गांववालों की तरफ से श्यामा काकी ने हवेलीवालों के आगे मदद की गुहार लगायी थी। पर बदले में क्या मिला?? उनलोगों ने इन्हे दुत्कार कर भगा दिया!”- भीड़ में से आवाज आयी।

“हम कुछ नहीं जानते! आप चलो हवेली और वो भी अभी! फैसला आज होगा, इसी वक़्त होगा! नहीं तो हम तुम्हे भी नहीं छोड़ने वाले मुखिया जी!! अगर तुम्हे हवेली जाने से डर लगता है तो ये गांव छोड़कर चले जाओ हमेशा के लिए!! अब तुम्हे क्या करना है ये सोचकर बता दो! हमसब यहीं तुम्हारे फैसले के इंतजार में खड़े है!!”- भीड़ ने एकसूर में कहा।

मुखिया के पास अब करो या मरो वाली हालत आन खड़ी हुई थी। जहाँ एक तरफ उसकी पत्नी पलड़ा बदलकर गांववालों के गुट में जा मिली थी, वहीं दूसरी तरफ गांववाले उसे गांव से निकाल-बाहर करने पर तूले थे।

“अच्छा ठीक है, चलो! आज एक मुखिया अपना फैसला सुनाएगा!”- मुखिया ने कहा और उसके चेहरे पर इमानदारी की एक हल्की झलक उभरी जो भीड़ के बीच खड़ी उसकी पत्नी की नज़रों से बच न सका।

मुखिया की अगुवाई में पूरा गांव फिर हवेली की तरफ बढ़ चला। यही नहीं मुखिया ने अपने गलत व्यवहार के लिए श्यामा से माफी भी मांगी। कुछ ही देर में पूरी भीड़ हवेली के बाहर खड़ी थी।

बाहर का शोर-शराबा और जोर-जोर से हवेली के फाटक पीटने की आवाज सुनकर हवेली के भीतर मौजुद लोगों की आंखें खुल गई थी।

“राम सिंह, हरिया?? कहाँ मर गए सबके सब!! जाकर पता करो, ये इतनी रात को बाहर कौन फाटक पीट रहा है! ये बाहर कैसा शोर-शराबा मचा है!! निट्ठले हो गए हैं सबके सब!!”- नंदा के पति ने कहा फिर खूद ही घर के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा। पीछे-पीछे घर के बाकी सदस्य भी उसके साथ थे।

“क्या है?? ये इतनी रात गए क्या तमाशा लगा रखा है तुम सबने?? न खुद सोते हो, न हमें चैन से सोने देते हो!!”- नंदा ने पति ने हवेली के बाहर भीड़ में आगे खड़े मुखिया से कहा।

“हुजुर, आपके लिए बेहतर होगा कि आज हमारी बात शांति से सुने या फिर किसी अनहोनी के लिए तैयार रहें!”- मुखिया ने डरकर ही सही लेकिन अपनी बात रखी।

“मुखिया!! जबान सम्भालकर बात कर, नहीं तो तेरी ज़ुबान अभी के अभी यहीं काट डालुंगा!”- नंदा के पति ने आंखें तरेरते हुए कहा।

“ज़ुबान किसकी कटेगी, ये अभी पता चल जाएगा!” – मुखिया के पीछे खड़े उदय ने कहा।

“क्या बक्क रहा है!! औकात में रहकर बात कर!!!”- नंदा के पति ने दांत पीसते हुए कहा।

“अरे हुआ क्या है?? कोई बताएगा भी!! आखिर कौन सा तूफान आ खड़ा हुआ जो इतनी रात गए यहाँ आकर तुमसब शोर मचा रहे हो!!” – अपने पति को पीछे करके हवेली के भीतर खड़ी नंदा ने आगे आकर पुछा फिर भीड़ में खड़ी श्यामा को देख उसके भौवें तन गए।

“अब समझ में आया! ये सब इस श्यामा रानी का किया-धरा है! इसी ने इन भोले- भाले गांववालों को बहकाया है और जिसके कहने में आकर ये मुखिया हमें आंखें दिखा रहा है!” – नंदा ने आंखें तरेरते हुए कहा और कुटिल मुस्कान चेहरे पर उंकेरी।

उसकी बातें सुन उदय ने भीड़ के बीच खड़े हवेली के मुस्टंडों को आगे कर दिया जिसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। तभी भीड़ एक तरफ छंटी और कुछ लोगों ने खुंखार कुत्तों की लाशें हवेली के दरवाजे पर लाकर रख दी जिसे देखकर हवेलीवालों के चेहरे की रंगत फीकी पड़ चुकी थी।

“क क क्या है ये?? किसने मारा इन कुत्तों को?? और इन दोनों का हाथ-पैर क्यूं बंधे हैं!! हाँ??”- नंदा ने हकलाते हुए पुछा और भीड़ के समक्ष ऐसे दिखाने की कोशिश करती रही जैसे उसे कुछ पता ही न हो।

“ये तो तुमलोग ही बेहतर बता सकते हो कि ऐसा क्यूं है??”- वहां खड़ी भीड़ ने एक सूर में कहा तो श्यामा के ननद-ननदोईयों को भीड़ के गुस्से का अंदाजा लगा।

“हमलोग?? हमलोग क्या बताएंगे!! इन्हे साथ लेकर तुम आ रहे हो तो हमसे क्या पुछते हो?”- छोटी बहन अमृता के पति ने गरजते हुए कहा।

“ओ साहब, अपनी आवाज नीची करके बात करो! अगर आज हम गांववालों की सनक गई न, तो तुम सबकी ईंट से ईंट बजा देंगे!” – भीड़ में निकलकर एक अधेड़ उम्र के ग्रामीण ने आंखें दिखाते हुए कहा और हवेलीवालों ने अपने कदम पीछे खींच लिये।

“आपने इन कुत्तों को श्यामा की जान लेने भेजा था और ये सारी बात आपके इन पहरेदारों ने क़बूल कर ली है। अब आप इससे मुकर नहीं सकते! किसी की जान लेने की इजाजत आपको किसने दी? इस गांव का मुखिया होने के नाते आज मैं इस बात का फैसला करने आया हूँ।”- मुखिया ने दृढ़ता से कहा।

“कौन फैसला देगा?? तू!! हुह्ह्ह…..!! कल तक जो हमारी रोटियों पर पल रहा था वो चला है हमें आंख दिखाने!! तेरी इतनी औकात कब से हो गई मुखिया?? ”- मंझली बहन सुगंधा के पति ने आंखें दिखाते हुए वितृष्णा भाव से कहा।

“आपलोगो ने मेरी औकात देखी ही कहाँ है! आज देखोगे एक मुखिया क्या कर सकता है!”- हवेलीवालों से नज़रें मिलाते हुए मुखिया ने कहा फिर वहीं बंधे खड़े मुस्टंडों की तरफ देख उनसे पुछा – “बताओ, क्या इनलोगों ने तुम्हे श्यामा की जान लेने भेजा था?”…

to be continued…

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Written by Shwet Kumar Sinha

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