बेमेल (भाग 26) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

“तो और क्या करें!! आज हवेलीवालों ने श्यामा काकी को मारने के लिए अपने आदमियों को लगाया है! अगर इसे यूं ही जाने दिया तो इससे उनका मन बढ़ेगा और कल वे और भी कुछ भी कर सकते हैं! मारो… इसे, खत्म कर डालो!” – भीड़ में से आगे आकर एक अधेड़ उम्र के ग्रामीण ने गुस्से से कहा।

“सही कह रहा है ये! इन्हे छोड़ना नहीं चाहिए!

हवेलीवालों को मजा चखाना चाहिए! उन्होने उस श्यामा काकी की जान लेनी चाही जो अपना और अपने पेट में पल रहे बच्चे की परवाह किए बगैर इस गांव के हरेक इंसान की मदद के लिए तत्पर रहती है! कितना कुछ नहीं सहा है उन्होने इन हवेलीवालों के खातिर! छोड़ना मत इसे!! मारो…. खत्म कर डालो इन चांडालों को!!”- भीड़ में मौजुद एक नवयूवक ने कहा और भीड़ उदय को पीछे ढकेलकर मुस्टंडों पर टूट पड़ी।

“रुको! मत करो ऐसा!! किसी की हत्या करके क्यूं पाप अपने सिर मोल लेते हो!”- तभी एक आवाज आयी, जिसे सुनकर भीड़ के बढ़ते कदम ठिठक गए। यह श्यामा थी, जो दर्द से कराहने के बावजूद भी उन मुस्टंडों की जान बचाने को आगे आयी थी।

“काकी, इन दोनों ने आपकी प्राण….”- भीड़ में से किसी ने कहा। पर श्यामा की बातों पर वे चुप हो गए।

“ये उस हवेली के मुलाज़िम हैं! इन्होने सिर्फ वही किया जो हवेलीवालों ने इनसे करने को कहा। असली गुनाहगार तो हवेलीवाले हैं जिन्होने मेरी हत्या करने का प्रयास किया। चाहे खुद या किसी को भेजकर! और उनसे बदला लेकर तुम्हे मिल भी क्या जाएगा! वैसे भी अभी हम सबका असली शत्रू वे हवेलीवाले नहीं, बल्कि गांव में फैली महामारी और भूखमरी की समस्या है! मेरी जान बचाने ही सही, आप सब आज एक साथ तो जुटे! ये एकता सदा बरकरार रखना। इसमें वो दम है जो हरेक शत्रू से लड़ने की ताकत देगा, चाहे वो हवेलीवाले हो या फिर कोई महामारी!”- श्यामा ने कहा जिसे पेट में अभी भी दर्द महसूस हो रहा था।

“श्यामा काकी, आप बैठे! ज्यादा बात न करें! हम सब हैं न… देख लेंगे!”- घर के दरवाजे पर खड़ी एक स्त्री ने आगे आकर कहा और श्यामा को वहीं एक चट्टान की आड़ में बिठा दिया।

“श्यामा काकी सही कह रही है! मूखिया जी को बुलाओ! आज ही फैसला हो जाना चाहिए! जिस अनाज को उपजाने में किसानों ने खून-पसीना एक कर दिया, कोई मुनाफाखोर उसे उससे कैसे वंचित कर सकते हैं! अनाज पर पहला हक़ उसे पैदा करनेवाले का होना चाहिए!” –  गांववालों की आवाज एक सूर में गुंजी।

पूरी भीड़ फिर मुखिया के घर की तरफ बढ़ने लगी। रात के तकरीबन दस बज चुके थे और मुखिया अपने घर में गहरी नींद में डूबा था। घर के बाहर होता शोर-शराबा सुनकर उसकी पत्नी ने उसे नींद से जगाया।

“मुखिया जी, उठिए! घर के बाहर समूचा गांव इकट्ठा हुआ खड़ा है! वे सभी आपको बाहर बुला रहे हैं! मुखिया जी??”- मुखिया की पत्नी ने अपने पति को झकझोरा तो मुखिया हड़बड़ाकर उठ गया।

“क.. क क्या!! पूरा गांव इकट्ठा हुआ है! क्यूं? किसलिए??”- आंखे मलते हुए मुखिया ने पुछा।

“पता नहीं! पर मुझे तो किसी अनिष्ट की आशंका लगती है! उठिए न… जरा जाकर देखिए बाहर! आखिर बात क्या है?”- मुखिया की पत्नी ने कहा और गमछा मुखिया की तरफ बढ़ा दिया।

“मुखिया जी, बाहर निकलो! या फिर हवेलीवालों ने तुम्हे भी अपनी तरफ मिला लिया!!”

“लगता है ये मुखिया भी गांव के गद्दारों से जा मिला है!”

घर के बाहर खड़े भीड़ में से लोगों की आवाज आ रही थी।

“इतनी रात अब पता नहीं किसने क्या कर दिया! कहीं उस श्यामा ने फिर कोई बखेड़ा तो नहीं खड़ा कर दिया! ओह..जीना मुहाल कर रखा है इस औरत ने! इस बार अगर इसने कुछ किया तो गांव से निकाल-बाहर कर दुंगा!”- अपने चेहरे पर पानी के छींटे मारकर गमछे से साफ करते हुए मुखिया ने कहा और घर के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

दरवाजा खोला तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। पूरा गांव उसके घर के बाहर इकट्ठा था। भीड़ में वहीं एक तरफ श्यामा एक पत्थर पर बैठी थी और उसे कुछ औरतों ने घेर रखा था। मुखिया ने वितृष्णा भाव से उसकी तरफ देखा फिर भीड़ की तरफ देखकर उनसे वहां जमा होने का कारण पुछा।

“इतनी रात गए कौन-सी मुसीबत आन पड़ी कि तुमसब को यहाँ जमा होना पड़ा? सुबह तक का इंतजार नहीं कर सकते थे! अरे अपना नहीं तो जरा अपने बीवी-बच्चों का तो सोचो! सबकी नींद खराब की तुमलोगों ने!!”- मुखिया ने कहा।

“मुखिया जी, अब बहुत हो गया! अब सुबह तक क्या, हम एक मिनट भी इंतजार नहीं कर सकते! फैसला आज और अभी होगा! देखो उन हवेलीवालों ने क्या हाल किया है श्यामा काकी का!! आज अगर हम सब इन्हे न बचाते तो वे सब मिलकर इसकी जान ही ले लेते!”- भीड़ में से आगे बढ़कर उदय ने कहा।

“क्यूं ऐसा भी कर डाला उन्होने? और क्या हवेलीवाले खुद आए थे इसकी जान लेने? हाँ??” – मुखिया ने आंखें तरेरकर पुछा।

“नहीं, वे तो नहीं आए थे। पर उन्होने अपने खूंखार कुत्तों को श्यामा काकी के पीछे छोड़ दिया था!”- उदय ने बताया।

“और ये बात क्या तुम्हे खुद कुत्तों ने बतायी या हवेलीवालों ने आकर??”- हवेलीवालों का पक्ष लेते हुए मुखिया ने कहा फिर वहां खड़ी भीड़ के सम्मुख होते हुए बोला – “तुमलोग बड़े भोले हो! इतना कुछ हो जाने के बाद भी इस बद्चलन श्यामा को तुमलोगों ने नहीं पहचाना! अरे हवेलीवालों पर अंगुली उठाने से पहले एकबार इस औरत की तरफ नज़र घुमाकर तो देख लेते! इसका बढ़ा हुआ पेट देखकर तुमलोगों को अभी तक इसकी चाल-चलन का अंदाजा नहीं हुआ!”

मुखिया के मुख से श्यामा के लिए अपमानजनक बातें सुन भीड़ में खड़ी औरतें एक सूर में उसपर टूट पड़ी।

“ओ मुखिया, किसी औरत पर कोई तोहमत लगाने से पहले एकबार अपने गिरेबान में झांककर देख ले! सब पता है हमें कि तू गांव की बहू-बेटियों पर गंदी निगाह रखता है! श्यामा काकी के बारे में एक शब्द भी बोला तो तेरा मुंह नोच लुंगी! ये श्यामा काकी ही हैं जिन्होने खुद की परवाह किए बगैर पूरे गांव की मदद उस समय की, जब लोग अपने घर से बाहर निकलने में भी डरते हैं! और इनके साथ जो भी हुआ उसके असली कसुरवार को उसके करणी की सजा मिल गई! हमलोग तेरे पास आज जिस बात के लिए जमा हुए हैं! उसका इंसाफ नहीं कर सकता तो तू इस गांव का मुखिया होने के लायक नहीं है!!”- औरतों की झुंड ने तनकर कहा तो मुखिया ने अपने पैर पीछे खींच लिये! औरतों के मुंह से मुखिया की करनी सुनकर उसकी पत्नी से भी रहा न गया और वह भी तुनककर भीड़ में औरतों के बीच बैठी श्यामा के पास आकर खड़ी हो गई। मुखिया अब भीड़ में अकेला रह गया था और मौके की नजाकत को उसने भांप लिया।…

to be continued…

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written by Shwet Kumar Sinha

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