बेमेल (भाग 25) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

बिस्तर पर पड़ा विजेंद्र बुरी तरह खांस रहा था। वहां मौजुद डॉक्टर ने बताया कि उसका उल्टी-दस्त रुकने का नाम ही नहीं ले रहा जिससे उसकी हालत बद से बद्तर होती जा रही है।

सामने पड़े विजेंद्र पर नज़रें टिकाए श्यामा अपने एक-एक पग उसके तरफ बढ़ाती रही। उसे महसूस हो रहा था जैसे उसके कदम उसका साथ नहीं दे रहे और वे आगे बढ़ने से इंकार कर रहे हो।

“विजेंद्र! भाई, देख मैं किसे साथ लेकर आया हूँ! तू कहता था न कि मां हमेशा ममता की मुर्ति होती है और अपने बच्चों को जरुर माफ कर देती है। देख, आंखें खोल भाई! विजेंद्र?”- क्षीण काया वाले विजेंद्र से उदय ने कहा जिसके शरीर के नाम पर अब केवल हड्डियां ही शेष बची थी।

विजेंद्र ने बमुश्किल अपनी आंखें खोली और बुरी तरह खांसने लगा। अपने स्थान पर जड़ हो चुकी श्यामा उसे निहारती रही और आंखों में आंसुओं के सैलाब उमड़ने लगे।

श्यामा को सामने खड़ा देख विजेंद्र के आंखों से पश्चातापरूपी आंसू चेहरे पर आ लुढ़के। उसकी धुंधली होती निगाहें जब श्यामा के गर्भ पर पड़ी तो सब्र का बांध टूट गया।

“हे मां!! मैं गुनाहगार हूँ तेरा! हो सके तो ईश्वर से प्रार्थना करना कि मुझ जैसे दुराचारी को इस कीचड़रूपी शरीर से मुक्ति दे दे! मां!!” – विजेंद्र के मुंह से लड़खड़ाते हुए शब्द निकले फिर सदा के लिए शांत हो गए।

श्यामा कुछ पल वहीं खड़ी उसे निहारती रही फिर बिना कुछ बोले मेडिकल कैम्प से बाहर निकल आयी। अपने प्राण त्यागकर आज विजेंद्र ने खुद के पापों से मुक्ति पा ली थी। पर श्यामा तो खुद के लिए ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। उसके शरीर में एक प्राण जो सांसे ले रहा था। कैसे वह किसी जीव की हत्या कर सकती थी।

मन में अपनों की लाशों का बोझ लिए श्यामा ने खुद को महामारी से गांववालों की बचाने में झोंक दिया। उसके गर्भ का अब ये आखिरी महीना था। लेकिन खुद की परवाह किए बगैर वह सबकी सेवा में निस्वार्थ भाव से जुटी रही। हैजे के फैलते तांडव से जहाँ गांववाले त्राहिमाम कर रहे थे, वहीं शहर से आयी मेडिकल टीम सबकी जान बचाने में अपनी हरसम्भव प्रयास में जुटी थी। गांववालों की आर्थिक स्थिति तंगहाल होने को आयी थी। उनके सामने आए इस संकट से उबारने के लिए श्यामा ने एक-एक करके अपने सारे गहने-जेवर बेच डाले। बस फर्क यह था इस बार ये जेवर गांव के जौहरी के पास नहीं बल्कि उदय के हाथो शहर में बेचे गए। जब इस बात की भनक गांव के मंगल जौहरी के कानों तक पहुंची तो वह गुस्से से तमतमा उठा कि कैसे गांव के जेवर गांव की सीमा से बाहर जा सकते हैं। जलन में आकर उसने सारी बातें हवेलीवालो के कानों में डाली तो उन्होने श्यामा को इसका मजा चखाने का ठाना। साथ ही वे यह भी चाहते थे किसी भी भांति श्यामा का गर्भ गिर जाए अथवा श्यामा की जान चली जाए।

एक रात करीब आठ बजे श्यामा अपने घर को लौट रही थी। गांव में लोग सामान्यतः अपनी सारी दिनचर्या से निपटकर जल्दी ही बिस्तर पर आ जाते हैं और सड़कों पर यदा-कदा ही कोई दिखता है। उस रात भी ऐसा ही कुछ था।

अपना बढ़ा हुआ पेट सम्भाले श्यामा धीमे कदमों से घर की तरफ बढ़ रही थी। पर उसे कहाँ पता था कि उसकी इहलीला समाप्त करने की मंशा लिए उसके ही ससुरालवाले घात लगाए बैठे हैं। ज्यों ही वह एक गली की छोर पर पहुंची, हवेलीवालों के भेजे मुस्टंडों ने अपने खूंखार कुत्तों को उसके पीछे छोड़ दिया। अपनी तरफ आते कुत्तों को देख श्यामा बुरी तरह घबरा गई और बमुश्किल ही तेज कदमों से घर की तरफ बढ़ती रही।

“बचाओ, बचाओ! कोई तो मुझे इन कुत्तों से बचाओं! भगवान के लिए मेरी मदद करो!” – श्यामा लगातार मदद की गुहार लगाती रही। रात के सन्नाटे में कुत्तों के भौंकने की आवाज और श्यामा की मदद की पुकार गांववालों के कानों में पड़ी तो एक-एक करके सभी बंद दरवाजे खुल गए।

“क्या हुआ श्यामा काकी??” – एक स्त्री ने पुकारा और श्यामा को घर के भीतर खींच लिया। हवेली के वे कुत्ते अभी भी भौंक रहे थे। कुछ ही पल में वहां गांववालों की भीड़ इकट्ठी हो गई। वे खूंखार और बेलगाम कुत्ते बिना रुके लगातार भौंकते ही जा रहे थे और वे वहां मौजुद भीड़ पर टूट पड़े यही नहीं कुछ लोगों को काट भी खाया। गांववालों को बचाने के क्रम में वहां मौजुद लोग उसपर टूट पड़े और उन कुत्तों को मार डाला।

“उदय चाचा, वो देखो! हवेली के पहरेदार! बहुत देर से वे छिपकर हमलोगों पर नज़र रखे हुए है!”- एक किशोर ने कहा तो उदय की नज़र दूर गली के मुहाने की तरफ गई।

“ए…तू उधर कोने में छिपकर क्या रहा है? क्यूं छोड़ा तूने इन कुत्तों को??” – उदय ने आवाज दिया तो वे मुस्टंडे उल्टे पांव तेजी से भागने लगे।

“पकड़ो उन्हे, वो भागने न पाए!”- उदय ने चिल्लाकर कहा और वहां मौजुद भीड़ उन मुस्टंडों को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ी।

इधर श्यामा को उन कुत्तों की खुराक बनने से गांववालों ने बचा तो लिया था पर तेजी से भागने के कारण वह दर्द से कराहने लगी थी। बच्चा जनने वाली एक दाई ने आकर उसकी जांच की तो चिंता करने वाली ऐसी कोई वजह न बतायी। उसने बताया कि अभी बच्चे के जन्म का सही समय नहीं आया है।

गांववालों ने मिलकर उन मुस्टडों को पकड़ लिया और उनकी अच्छी-खासी धुलायी की। वैसे भी गांववाले हवेलीवालों के ज़ुल्म से त्रस्त थे जिसका खामियाजा मुस्टंडों को भुगतना पड़ा था। फिर उन्होने ही तो उन खूंखार कुत्तों को श्यामा के पीछे छोड़ा था।

“बता, क्यूं छोड़ा तूने इन कुत्तों को श्यामा काकी के पीछे??”- लात-घुसों की बौछार करते उदय ने पुछा तो मुस्टडें जल्दी ही टूट गए और सारी सच्चाई वहां मौजुद भीड़ के सामने उगल डाली।

“हमें मत मारो! हमें छोड़ दो!! जाने दो!! हम तो सिर्फ वही कर रहे थे जो हवेलीवालों का आदेश था। उन्होने ही कहा था इन खूंखार कुत्तों को श्यामा के पीछे लगा देना। वे उसके चीथड़े-चीथड़े नोच डालेंगे और उसके पेट में पल रहे बच्चे को भी खत्म कर देंगे!”- जान सलामती की गुहार लगाते हुए मुस्टंडों ने सारी बातें बतायी।

“मारो इसे! वैसे ही खत्म कर डालो जैसे हवेलीवालों ने श्यामा काकी को खत्म करने के लिए कहा था!”- भीड़ में से आवाज आयी और मुस्टंडों पर टूट पड़ने के लिए सभी आगे बढ़ने लगे। पर उदय ने उन्हे ऐसा करने से रोक दिया।

“नहीं ऐसा मत करो! इन लोगों को इनके किए की सजा मिल चुकी है। लेकिन किसी की जान लेना ये कहाँ का इंसाफ है!”- भीड़ में से उदय चिल्लाया।…

to be continued…

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Written by Shwet Kumar Sinha

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