बेमेल (भाग 29) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

श्यामा पर बंदूक चलाकर हवेलीवालों ने सबसे बड़ी गलती की जिसका कोपभाजन उन्हे बनना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि पूरा गांव हवेली पर टूट पड़ा और न केवल उन्होने अनाज के गोदाम को अपने कब्जे में कर लिया बल्कि तीनों बहनों और उनके पतियों को मार-मारकर अधमरा कर दिया।

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“मैं तूझे कबसे कह रही हूँ, इस घर में मुझे इस मनहूस का शक्ल नहीं देखना! तेरी शादी के इतने साल होने को आए और आजतक इसने मेरा गोद पोते से नहीं भरा! मैं तो कहती हूँ बांझ है ये मनहूस सुलोचना! मुझे बड़ी चिंता होती है हमारा वंश आगे कैसे बढ़ेगा!! तू एकबार बस हाँ कर दे विनयधर! कल ही मैं तेरी शादी मेरी सहेली मीरा की बेटी से तय कर आती हूँ!” – विनयधर से उसकी मां आभा ने कहा और घड़ियाली आंसू उसके चेहरे पर लुढ़के।

“मां, तू क्यूं इतना परेशान होती है! वंश को आगे बढ़ाना इतना जरुरी है क्या! हम आज अपना कर्तव्य इमानदारी से निभाएं, हमारा धर्म भी तो यही कहता है न?? ईश्वर ने पृथ्वी पर केवल इंसान बनाकर भेजा और हमने क्या किया? उसे मनहूस, बांझ का शक्ल दे दिया! नहीं चाहिए मुझे ऐसा वंश जो ऐसी ओछी सोच को आगे बढ़ाए!”- विनयधर ने कहा और दरवाजे पर खड़ी सुलोचना की तरफ देख उसे अपना मन शांत रखने का इशारा किया।

बेटे के बातों का बुढ़ी आभा के पास कोई जवाब न था और झुंझलाती हुई इश्वर के नाम जपने लगी। विनधयर भी उठकर अपने कमरे में आ गया।

“मां जी सही कहती हैं! आप दूसरा विवाह कर लिजिए! सभी गलत नहीं कहते , मैं तो हूँ ही मनहूस, बांझ! मेरे साथ आप अपनी ज़िंदगी क्यूं बर्बाद कर रहे हो! आजतक मैंने आपको ताने, ओलहाने के अलावा दिया भी क्या है!! एक बेटा तो दे नहीं पायी!”- कहते हुए सुलोचना फूट-फूटकर रोने लगी।

“न तो तुम मनहूस हो और न ही बांझ! तुम मेरी पत्नी हो, मेरी अर्धांगिनी! तुम्हे कसम है मेरी,  जो आज के बाद ऐसे शब्द जुबान से निकाले!”- विनयधर ने कहा और श्यामा ने उसके होठों पर अपने हाथ रख दिये।

“भगवान के लिये ऐसे कसम न दें! मैने आजतक इश्वर को तो नहीं देखा! लेकिन जरुर उनका चेहरा आपसे मेल खाता होगा! आखिर अच्छे सोच और अच्छे कर्म ही तो हम इंसानों को असुर और ईश्वर बनाता है!”- सुलोचना के कहा और विनयधर ने उसे अपने सीने से लगा लिया। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई।

“विनयधर भैया?? विनयधर भैया??” दरवाजे पर खड़ा कोई लगातार आवाज लगा रहा था।

“हाँ, कहो? क्या बात है?”- दरवाजे तक आकर विनयधर ने आगंतुक से पुछा।

“विनयधर भैया, आपकी सास, मेरा मतलब सुलोचना भाभी की मां का देहांत हो गया है। गांव के मुखिया ने आपको और भाभी को तुरंत वहां पहुंचने को कहा है।” – दरवाजे पर खड़े आंगंतुक ने कहा।

कमरे से बाहर आती सुलोचना ने अपने मां की मृत्यू की खबर सुन ली और वहीं मुर्छित होकर गिर पड़ी। लपककर विनयधर ने उसे सम्भाला और पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगा। होश में आते ही वह दूबारा दहाड़ मार-मारकर रोने लगी। पिता को तो उसने पहले ही खो दिया था फिर मां के देहांत की खबर सुन उसके आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बड़ी मुश्किल से विनयधर ने उसे शांत किया और दोनों श्यामा के गांव के लिए निकल पड़े।

“देखना, अगर इस मनहूस को उसी गांव में छोड़कर कोई दूसरी व्याह लाने का मन करे तो मेरी तरफ से तूझे इसकी पूरी आजादी है!”- अपने कमरे में बैठी आभा ने जले पर नमक छिड़का और आंखें मूंद इश्वर का नाम जपने का बहाना करती रही। सुलोचना के कांधे पर हाथ रख विनयधर ने उसे हिम्मत दिया और दोनों घर से बाहर निकल गए।

***

सफेद चादर से ढंकी एक लाश मेडिकल कैम्प में पड़ी हुई थी जिसके आसपास खड़े सभी गांववाले शोक मना रहा थे। यह मृत शरीर किसी और का नहीं बल्कि श्यामा का था। वहीं पास ही एक नवजात बच्ची भी लेटी हुई थी। दुनिया को अलविदा कहने से पहले श्यामा ने एक फूल सी बिटिया को जन्म दिया था। बंदूक से निकली गोली श्यामा के सीने में लगी थी और ज्यादा खून बह जाने के कारण डॉक्टर उसे बचा न सके। पर पिछले आठ मास से भी ज्यादा समय से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को उन्होने बचा लिया था, जो अपनी मृत मां के पास ही बिस्तर पर अपने हाथ-पांव मार रही थी।

मृत शरीर के पास मौजुद मुखिया, उदय और गांव के अनेक स्त्री-पुरुष सबकी आंखें आज नम थी। अपने पूरे जीवन में श्यामा ने न जाने कितने कष्ट सहे और जाते-जाते भी पूरे गांव को भूख-प्यास के संकट से उबार गई। आखिर इसी का खामियाजा तो उसे अपने प्राण गंवाकर चुकाने पड़े थे। श्यामा की हत्या का गुस्सा हवेलीवालों पर क़हर बनकर बरपा और गांववालों ने मिलकर हवेलीवालों की जमकर धुलाई की और फिर अधमरी हालत में उन्हे पुलिस के हवाले कर दिया। हालांकि पुलिस की हिरासत में जाने से पहले तीनों बहनों और उसके पतियों का मन बदला और जाते-जाते उन्होने मुखिया को बोल हवेली में मौजुद अनाज के सारे गोदाम गांववालों के नाम कर दिए। साथ ही मुखिया से यह भी आग्रह किया कि हवेली की चाभी उसके असली उत्तराधिकारी यानि मनोहर के परिवारवालों को सौंप दे।

श्यामा की बड़ी बेटी सुलोचना और जमाई विनयधर मेडिकल कैम्प के भीतर दाखिल हुए और एकबार फिर से पूरा माहौल गम के सागर में डूब गया।

“मां!!! क्यूं छोड़कर चली गई तू हमें! एक तू ही तो थी जिससे मैं अपने मन की सारी बातें कहा करती थी। सभी मुझे मनहूस कहते थे पर तूने आजतक मुझे केवल और केवल अपनी जान से भी प्यारी बेटी माना! मां, आखें खोल मां!! एकबार, भगवान के लिए, एकबार आंखें खोल मां! मां!!”- अपनी मां के सिराहने आकर सुलोचना फूट-फूटकर रोती रही।

पूरा माहौल एकबार फिर से भावुक हो गया। आगे बढ़कर विनयधर ने अपनी पत्नी को सम्भाला और उसे शांत करने की कोशिश करने लगा। गांव के मुखिया से फिर उसने सारी बातों की जानकारी ली। मुखिया ने उसे सारी बातें विस्तार से बतायी। साथ ही ये भी बताया कि हवेलीवालों को पुलिस के हवाले कर दिया गया है।

पर सुलोचना की नज़र भीड़ में किसी को तलाश रही थी जिसे मुखिया की पत्नी ने पढ़ लिया था। श्यामा की नवजात बेटी को अपने गोद में लिए वह आगे आयी और सुलोचना की झोली में डाल दिया। सुलोचना को कुछ पुछने की जरुरत भी न पड़ी और आगे बढ़कर उसने उस नौनिहाल को अपने सीने से लगा लिया। अबतक अपना गला फाड़कर रो रही वह बच्ची भी सुलोचना का स्पर्श पाते ही एकदम से शांत हो गयी जैसे उसने उसे पहचान लिया हो।

“श्यामा काकी पर पूरे गांव ने मिलकर न जाने क्या-क्या तोहमत लगायी! और एक श्यामा काकी थी जो बिना किसी बात की परवाह किए दिनरात पूरे गांव को संकट से उबारने में लगी रही। इतना ही नहीं हम गांववालों की भलाई के खातिर उन्होने अपने सारे गहने तक गांव के जौहरी के पास गिरवी रख दिए। एक मां के अलावा कौन इतना करता है???” – उदय ने आगे बढ़कर कहा और आंखो से नीर उसके चेहरे पर लुढ़के।….

….to be continued

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