बेमेल (भाग 21) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

पर श्यामा कहाँ इतनी आसानी से हार माननेवालो में से थी। उसने हिम्मत नहीं हारी और गांव के लोगों को भुखा मरने से बचाने के लिए एक-एक करके ही सही उन्हे इकट्ठा करने लगी। अपने कोख में गर्भ लिए और लोगों के तरह-तरह के ताने सुनकर भी उसने हैजे से पिड़ित मरीजों की देखभाल में कोई कोर-कसर न छोड़ा। हालांकि उसे नहीं पता था कि उसी गांव में भेष बदलकर विजेंद्र भी हैजे की रोकथाम में जी-जान से जुटा है। हाँ वो बात अलग थी कि वह कभी भी श्यामा के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और पूरे तन-मन से रोगियों की सेवा-शुश्रूषा में जुटा रहा।

इधर श्यामा का गर्भ अब सात मास का हो चुका था। अपना बढ़ा हुआ पेट लिए वह रोगियों की सेवा में जी-जान से जुटी रहती। पर हर तरफ फैलती महामारी और गांववालों के समक्ष भूख की समस्या देख उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।

“श्यामा काकी, रौशन लाल की तबीयत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है। फिर घर में अनाज भी खत्म होने के क़गार पर हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा! कहाँ जाऊं? किससे मदद की गुहार लगाऊं?” रौशनलाल की बीवी कमला की भयभीत आंखे श्यामा पर टिक गई। जहाँ एक तरफ उसका पति हर पल मौत के करीब जा रहा था वहीं दूसरी तरफ उसके बच्चों के भूख से बिलखने की बारी आ चुकी थी। जो थोड़े-बहुत अनाज थे उससे आज तो काम चल गया पर कल क्या होगा?

बिस्तर पकड़ चुका रौशन लाल बुरी तरह खांस रहा था। उसके आज सुबह से हो रहे उल्टी और दस्त रुकने का नाम नहीं रहे थे।

“काकी, ल लगता है अब मैं बच नहीं पाउंगा! मैं जानता हूँ कि हम गांववालों ने बहुत बुरा सलूक किया तुम्हारे साथ! हो सके तो, ह हमें माफ कर देना! मेरी हाथ जोड़कर विनती है, मेरे म मरने के बाद मेरे बीवी- बच्चों का ख्याल रखना! इन्हे मैं तुम्हारे हवाले सौंपकर जा रहा हूँ, काकी! उंहूँ..उंहूँ!!! ”- कहते हुए रौशन लाल बुरी तरह खांसने लगा।

“कुछ नहीं होगा तुम्हे! तुम ज्यादा मत सोचो और बिल्कुल शांत होकर आराम करो! कमला, रसोई में मैने नमक- चीनी का घोल बनाकर रखा है। थोड़ी-थोड़ी देर पर इसे देती रहना। मैं कुछ खाने का इंतजाम करके आती हूँ!” – कहकर श्यामा, रौशन लाल के घर से निकल तो गई, पर उसके दिमाग में बस एक ही सवाल था कि कहाँ जाए? किससे मदद मांगे?

तभी जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिला हो और कुछ सोचकर श्यामा के कदम अपने घर की तरफ मुड़ गए। वीरान पड़े घर के भीतर दाखिल होकर उसने अपने कमरे से कुछ निकाला और वापस बाहर का रुख कर दिया।

“मंगल काका, ये मेरे कुछ गहने हैं। देखो जरा, इसके कितने पैसे मिल जाएंगे?” – श्यामा ने गांव के जौहरी मंगल से कहा। वह जौहरी की दुकान पर अपने जेवर गिरवी रखने आयी थी ताकि बदले में कुछ पैसे मिल सके और जितना सम्भव हो भूख से मरते गांववालों के प्राण बचाए जा सके।

जौहरी मंगल ने पहले तो गर्भवती श्यामा और उसके उभरे हुए पेट पर निगाह डाली फिर उसके हाथो से जेवर लेकर उसे टटोला। जेवर की जांच करते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। दरअसल वह एकदम खरा सोना था जो बमुश्किल ही देखने को मिलता।

“तूझे ये जेवर कहाँ से मिले? ये किसके गहने उठाकर ले आयी है तू??”

“ये मेरे अपने गहने हैं काका! ब्याह में सासू मां ने खुद मुझे अपने हाथो से पहनाए थे। कुछ तो बेटियों के ब्याह में खर्च हो गए और एकाध जो बचे थे सोचा गांववालो के इस संकट के समय में काम आ जाएंगे। आप इसके बदले मुझे कुछ पैसे दे दो, जिससे इस मुसीबत के समय में काम आ सके!”- श्यामा ने जेवर की तरफ इशारा करके कहा और मंगल ने एकबार फिर उस जेवर को स्पर्श करके उसकी गुणवत्ता की तस्सली की।

“ठीक है,अभी तू जा और कल आना! तुझे इसके मुनासीब पैसे मिल जाएंगे! पर तूझे पक्का यकीन है न कि ये तेरे ही है! कहीं से चुराकर या उड़ाकर तो नहीं लायी?”

“नहीं काका, मेरी बातों का भरोसा करो! ये मेरे ही गहने हैं!”- मंगल को यकीन दिलाते हुए श्यामा बोली।

“ठीक है, अभी तू जा!” – मंगल ने कहा और श्यामा जेवर उसके पास छोड़कर वापस लौट गई।

वहीं दूसरी तरफ विजेंद्र मेडिकल कैम्प में दिनरात रोगियों की सेवा में लगा रहता। उसके मित्र भी हर तरफ घूमकर गांववालो को हैजे से बचने के तरीके बताते फिरते। गांववालो को बचाते-बचाते उन्ही मित्रों में से एक खुद उसकी बलि चढ़ गया। विजेंद्र और डॉक्टर की लाख कोशिश के बावजूद भी उसकी जान नहीं बचायी जा सकी।

तभी एकदिन विजेंद्र का मित्र अभय उससे मिलने मेडिकल कैम्प पहुंचा।

“विजेंद्र, आज श्यामा काकी मिली थी। मुझे दिखी तो मैने रास्ता बदल लिया। पर उन्हे देखकर लगता है कि वह पेट से हैं।” – विजेंद्र के मित्र अभय ने बताया। श्यामा के गर्भवती होने की बात सुन विजेंद्र को महसूस हुआ जैसे वह जमीन के सौ गज़ नीचे जा धंसा हो। आखिर उसी के किए की सजा तो श्यामा भुगत रही थी।

“दोस्त, ये तो मानना पड़ेगा कि वह बड़ी बलवान औरत है!!”- अभय ने भौवें फैलाते हुए कहा।

“क्यूं, ऐसा क्या देखा तूने?”

“जहाँ इस हालत में गर्भवती औरतें अपने घर से बाहर पांव निकालने से भी डरती हैं, वहीं अपनी जान की परवाह किए बगैर श्यामा काकी हर पल गांववालो के प्राणों की रक्षा में जूटी है। मैने थोड़ी छानबीन की। पता चला कि वह गांववालों के लिए मदद मांगने हवेली गयी थी। पर हवेलीवालो ने उन्हे धक्के मारकर हवेली से बाहर निकाल दिया। उन्होने फिर भी हार नहीं मानी और जी-जान से हैजे के खिलाफ लड़ रही है। ऐसा लगता है उन्हे अपने जान की कोई परवाह नहीं! वैसे अब जान बचाकर करेंगी भी क्या! सब तो खत्म….”- कहते-कहते अभय चुप हो गया। उसे ख्याल आया कि वह जिस विजेंद्र से ये सारी बातें कर रहा है वही तो श्यामा की तबाही का असली जिम्मेदार है।

अभय की बातें सुन विजेंद्र पश्चाताप की अग्नि में जलता रहा। पर अब इन सबका क्या फायदा! अब तो बहुत देर हो चुकी थी और चाहकर भी वह कुछ नहीं कर सकता था! नशे की हालत में कब उसके पांव फिसले, इस बात का उसे जरा भी आभाश न रहा था। अंधेरे कमरे में अपनी पत्नी समझ उसने श्यामा के साथ जो कुकर्म किया, उसने श्यामा की ज़िंदगी तो बर्बाद कर ही डाली साथ ही उसकी पत्नी अभिलाषा को भी काल का ग्रास बना लिया।

अभय की बातों का बिना कोई जवाब दिए विजेंद्र मेडिकल कैम्प में आए बीमार गांववालों की सेवा में जुटा गया। उसकी लम्बी दाढ़ी की वजह से उसकी असली पहचान गांववालों से छिपी थी।…

क्रमश:…

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Written by Shwet Kumar Sinha

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