बेमेल (भाग 22) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

श्यामा ने जौहरी की दुकान पर अपने गहने रख छोड़े थे और उसे गिरवी रखने के एवज में पैसे लेने आयी थी।

“काका, कल जो गहने आपके पास रख छोड़े थे। जो मुनासिब लगे उसके पैसे दे दो ताकि वे गांववालों के काम आ सके!” – मंगल जौहरी के दूकान पर खड़ी श्यामा बोली। पर मंगल ने तो कुछ अलग ही खिचड़ी पका रखी थी जिससे भोलीभाली श्यामा बिल्कुल अंजान थी।

“गहने!! कौन-से गहने??” –आंखें दिखाकर मंगल ने पुछा तो श्यामा के जैसे होश ही उड़ गए।

“काका, वही गहने जो मैने कल आपको दिए थे!  आपने ही तो कहा था मुझे आज आने के लिए!”

“पर तूने तो कहा था कि वो तेरे गहने हैं! लेकिन मुझे पता चला है कि वो तो चोरी के जेवरात हैं जो तूने चुराए हैं कहीं से!” – आंखें दिखाकर मंगल बोला।

“न…न नहीं काका! वो मेरे गहने हैं! मुझे शादी के समय मिले थे!” – श्यामा ने कहा।

“झूठ बोल रही है ये निर्लज्ज औरत!! ये इसके जेवर नहीं हैं! ये हवेली से चोरी हुए थे जो अब जाकर मिले हैं! कोई शादी-वादी में नहीं मिला था इसे!” – जौहरी के दुकान पर मौजुद श्यामा के छोटे ननदोई ने भीतर कमरे से निकलकर गरजते हुए कहा फिर वितृष्णा भाव से श्यामा के सात माह के गर्भ पर निगाह फेरा।

“नहीं जमाई बाबू, मैं सच कह रही हूँ! ये मेरे ही गहने हैं। मां जी ने मुझे ये पहनने के लिए दिए थे! तबसे मैने अपने पास सम्भाल कर रखे हैं। अब गांववालों के सामने मुसीबत आन पड़ी है तो ये गहने उनके काम आएंगे।” – श्यामा ने अपनी बात रखी।

“कौन-से गहने?? दूर रख अपनी गंदी नज़र इन पाक गहनों से!  खुद तो अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया और अब घर के गहने-जेवर पर बुरी नज़र डाल रखी है! जेवर का इतना ही शौक चढ़ा है तो जा और जाकर अपने यार से गहने मांग जिसका पाप अपने पेट में लिए घूम रही है!! छी…छी…छी! मुझे तो सोचकर भी शर्म आती है कि तेरा नाम हमसब के खानदान से जुड़ा हुआ है! न जाने कौन से मनहूस समय में पिताजी ने तेरा ब्याह मनोहर भईया से किया था! अपने पति तक को तो खा गई कलंकिनी!! चल, जा भाग यहाँ से और आइंदा दिखना भी नहीं इधर!!” – आंखे दिखाकर छोटे ननदोई ने कहा जो यह सोच रहा था कि उसके ऐसा करने से श्यामा डरकर वापस लौट जाएगी। पर यह उसकी भूल थी। श्यामा अब कमजोर नहीं थी। उसके बुरे दिनों ने उसे चट्टान-सा मजबूत बना दिया था। ननदोई की बातों का उसपर कोई असर न पड़ा और वह वहीं खड़ी उसे घूरती रही।

“घूरती क्या है!! खा जाएगी?? चल निकल यहाँ से, छिनार कहाँ की!! मंगल, निकाल-बाहर करो इसे यहाँ से!”- छोटे ननदोई ने मंगल से कहा तो श्यामा को दुकान से धक्का देकर बाहर निकालने के लिए मंगल ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया। पर उसके क़दम ठिठककर पीछे हट गए।

“खबरदार, जो अपने नापाक हाथो से मेरे दामन को छुआ!! हाथ तोड़कर रख दुंगी!! और जमाई बाबू तुम?? आजतक मैं चुप रही तो मुझे गुंगी समझने की भूल न करना! आज गांववाले भुखे मरने की क़गार पर पहुंच चुके हैं। उन्हे इस मुसीबत से निकालने के लिए सबसे पहले मैने मदद के लिए हाथ हवेली की तरफ फैलाया था! पर बदले में क्या दिया तुमलोगों ने?? धक्के मारकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया! वाह…. क्या जमाना है!! अपने ही ससुराल में मुझे भीख मांगनी पड़ रही है! ये तुम जिसके पैसों पर आज मौज उड़ा रहे हो! पता भी है उसका असली हक़दार कौन है??” – गुस्से से चीखते हुए श्यामा ने कहा।

“किसके हैं…?? जरा मैं भी तो सुनूं!!” – छोटे ननदोई ने भौवें उचकाकर पुछा जिसके दिमाग में चल रहा था कि श्यामा हवेली की सम्पत्ति पर अपना हक़ जताएगी। पर यहीं वह भूल कर बैठा।

श्यामा की आवाज सुन गांववाले जौहरी की दुकान के आगे इकट्ठा होने लगे थे। वैसे भी जबसे हवेलीवालो ने गांववालो की मदद करने से इंकार कर दिया था तभी से वे सब हवेली में रहनेवालों के खिलाफ थे।

“हवेली की एक-एक सम्पत्ति पर गांववालों का नाम लिखा है। उसकी हरेक ईंट गांववालों के खून-पसीने का नतीजा है। गांववालों ने लगान भरा तब जाकर हवेली बनकर खड़ी हुई। गांववाले दिनरात खेत में अपना खून-पसीना बहाते हैं तब जाकर तुम हवेलीवालों को पेट पलता है। पिताजी ने भी यही सोचकर पूरी सम्पत्ति तुमलोगो के जिम्मे लगाया था ताकि उनके बच्चों समान गांववालों की तुमसब रक्षा करो। पर तुमने क्या किया?? मनोहर के मंदबुद्धि का बहाना बनाकर सारी सम्पत्ति पर कब्जा तो जमा लिया, पर गांववालो को ही भूल गए!” – वहां जमा हो चुके भीड़ के आगे श्यामा ने चीख-चीखकर कहा तो छोटे ननदोई को अब हवा अपने खिलाफ होती दिखी।

“सही कह रही है श्यामा काकी! इन हवेलीवालो के कारण आज हमलोग भूखे मरने के क़गार पर खड़े हैं!”- भीड़ से निकलकर एक ग्रामीण ने श्यामा के छोटे ननदोई की तरफ अंगुली दिखाकर कहा।

“…और आज जब मैं गांववालों की मदद के लिए अपना खुद का जेवर गिरवी रखने आयी तो मंगल काका ने मुझपर चोरी का इल्जाम लगा डाला! अरे जमाई बाबू…. पहले मुझसे पुछ तो लेते कि ये जेवर मैं किसके लिए गिरवी रखने आयी थी? इन लाचार और बेबस गांववालों के लिए! अपने लिए नहीं!! पर तुमने उसपर भी अपना हक़ जता लिया! थोड़ा तो भगवान के क़हर से डरो!” – श्यामा ने कहा और अपना पेट पकड़कर बैठ गई।

“श्यामा काकी, आप ठीक तो हो न! सब ठीक हो जाएगा! आप खुद को शांत रखो!” – एक ग्रामीण महिला ने श्यामा को सम्भालते हुए कहा। वहां खड़ी भीड़ का गुस्सा अब छोटे ननदोई और मंगल जौहरी पर फूटने ही वाला था कि मंगल ने पलटी मारी और अपने गल्ले से रुपए निकालकर श्यामा के आगे बढ़ा दिए।

“ये ले श्यामा, तेरे पैसे! मैं भी कहाँ हवेलीवालों के बहकावे में आ गया! मुझे भरोसा है तुझपर! मुझे पता है कि ये जेवर तेरे ही हैं और जमाई बाबू झूठ बोल रहे हैं! ये बात अब मैं भलिभांति समझ चुका हूँ और अब किसी के झांसे में नहीं आने वाला।” – कहकर मंगल ने रुपए का बंडल श्यामा के फैले आंचल में रख दिया।

अपना-सा मुंह लेकर छोटा ननदोई हवेली की तरफ लौट गया। हालांकि आज वह शांत लौटा था पर इस बेज्जती का बदला वह जरुर लेने वाला था। 

***

सुलोचना के शादी के काफी दिन होने को आए थे। कई नीम-हकीम, वैद्य से इलाज कराने के बाद भी वह मां नहीं बन पायी थी। एक बार गर्भ धारण किया भी, लेकिन पांच माह से अधिक गर्भ न ठहरा। इसका खामियाजा ये भुगतना पड़ा कि सास के ताने दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही गए। हालांकि पति विनयधर काफी धीर प्रकृति का सुलझा हुआ इंसान था जिसने एक तरफ अपनी पत्नी के दुखी मन को शांत किया, वहीं दूसरी तरफ मां की तंज़ भरी बातों से अपने कान बंद करके रखा।…

to be continued…..

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Written by Shwet Kumar Sinha

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