बेमेल (भाग 20) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

मां-बाबूजी के आत्मा के दुखी होने की अगर तुम सबको इतनी ही फिक्र होती तो गांववालो को यूं भूखे नहीं मरने देते! जरा हवेली से बाहर निकलकर देखो! देखो कि कैसे पूरा गांव हैजे से त्राहिमाम कर रहा है! कैसे लोग दाने-दाने को मोहताज़ हैं और तुम सबने क्या किया?? अनाज को अपने गोदाम में बंद कर दिया! वो अनाज, जिसपर उन गांववालो का पहला हक़ है। जिसमें उनका खून-पसीना लगा है! अरे जरा तो शरम करो! मैं हाथ जोड़कर तुमसे विनती करने आयी हूँ! भगवान के खातिर अपने गोदाम के द्वार गांववालों के लिए खोल दो! वे सभी तुम्हे और मां-बाबूजी को दुआएं देंगे! इसके लिए तुमसब मुझसे जो भी कहोगे मैं करने को तैयार हूँ!” – श्यामा ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा जिसपर छोटी ननद अमृता के चेहरे पर कुटील भाव उभर आए।

“तुमने कहा, इन सबके बदले तुम्हे जो भी कहा जाएगा, वो करोगी! है न? कहीं मेरी कानों ने गलत तो नहीं सुना?” अमृता ने कहा तो श्यामा ने हामी में अपना सिर हिलाया।

“हाँ दीदी, गांववालो के प्राणों की रक्षा के लिए मुझसे जो भी बन पड़ेगा मैं करने को तैयार हूँ! तुम चाहो तो आजीवन बिना एक पाई लिए मैं तुम सबकी सेवा करने को भी तैयार हूँ!” – हाथ जोड़कर श्यामा बोली।

“अरी रहने दे!! हमारी सेवा करेगी और हमारे ही पतियों पर लांछन लगाएगी! कोई सेवा-वेवा नहीं करवानी तुझसे! करना ही है तो तू बस इतना कर कि तेरे पेट में जो बच्चा पल रहा है उसे गिरा दे! वैसे भी ये समाज पर एक बहुत बड़ा धब्बा है। तू इसे जन्म ना दे, इसी में तेरी और पूरे गांव की भलाई है!” – भौवें चढ़ाकर छोटी ननद अमृता ने कहा जिसके चेहरे पर विजयी मुस्कान फैली थी।

“खबरदार छोटी दीदी, जो अपनी गंदी निगाह मेरे कोख पर भी डाली तो…!!” – श्यामा ने गरजते हुए कहा। ननद की बातों पर पहले तो उसने अपना आपा खो दिया फिर खुद को नियंत्रण में किया।

“वाह रे वाह!! देखो तो जरा महारानी को! बड़ी आयी कोख वाली! जैसे हमसब ठहरीं बंजर!”- वहीं खड़ी ननद सुगंधा ने कहा फिर गरजते हुए बोली- “मुंह नोच लुंगी जो अनाप-शनाप बकी तो!! हम भी कोख वाली हैं पर तेरे जैसे पेट में पाप लेकर नहीं घुमती!! समझी तू!!! हरिया…धक्के मारकर निकाल बाहर करो इस औरत को! नहीं तो आज तुम सबकी खैर नहीं!! और याद रहे, आगे से ये औरत इस हवेली के आसपास भी नहीं फटकनी चाहिए !!”

“भगवान के लिए गांववालों पर तरस खाओ! उन्हे अनाज की सख्त जरुरत है! मां बाबूजी रहते तो वे गांववालों के लिए अन्न-धान्य की कहीं कोई कमी न होने देते! विनती करती हूँ तुम सबसे, उनपर तरस खाओ!!”- श्यामा ने कहा जिसकी बांह पकड़कर द्वारपाल हवेली से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था।

एक झटके से श्यामा ने उन मुस्टंडे द्वारपालों से अपना हाथ छुड़ाया और हवेली से बाहर निकल आयी। शोरगुल सुनकर हवेली के बाहर गांववालों की भीड़ जमा हो चुकी थी। सबने सुना कि अपने मान-सम्मान की परवाह किए बगैर श्यामा गांववालों की भलाई के लिए हवेली के भीतर गई थी जिसने वर्षो पहले हवेली में आना-जाना तक छोड़ दिया था और जिसे आज अनाज तो नहीं मिला उल्टे उसके ससुरालवालों ने उसे धक्के मारकर हवेली से बाहर फिकवा दिया।

हवेली में अनाज के भरपूर भंडार होने की बात श्यामा के कानो तक पहुंचने पर हवेलीवालो का गुस्सा सातवें आसमान पर था। हवेली के नौकर बंशी को बोलकर उन्होने गांव के मुखिया को बुलावा भेजा। हाथ जोड़े मुखिया भगीरथ हवेली आ पहुंचा और किसी कसूरवार की भांति सिर झुंकाकर तीनों बहनों और उनके पतियों के समक्ष खड़ा हो गया।

“नाम के मुखिया हो तुम इसे गांव के भगीरथ! रत्ती भर की औकात नहीं तुम्हारी!! कैसे तुम्हारे रहते कोई भी ऐरा-गैरा मुंह उठाकर हवेलीवालों को धमकाने चला आता है और तुम्हारे कानों पर जू भी नहीं रेंगते!” – सुगंधा ने भौवें उचकाते हुए कहा।

“क क कौन मालकिन? किसकी इतनी जुर्रत हुई जो आपसे बद्तमीजी करे! मैं उसकी खाल उधेड़वा दुंगा! आप एकबार हुक्म तो करें!” – मुखिया भगीरथ ने अति आत्मविश्वास दिखाते हुए कहा।

“अजी रहने दो!! तुमसे आजतक कुछ भी हो पाया है जो अब करोगे! तुम्हारी नाक के नीचे गांव में लोग कैसे-कैसे अनैतिक कार्य कर रहे हैं! तुमसे कुछ हो पाया?? जो आज हो पाएगा!” – अमृता के पति ने कहा तो मुखिया को समझ में सारी बातें आ गई।

“व व वो, श्यामा! पर वो तो, हवेली की बहू है! इसिलिए उसके साथ मैंने कुछ नहीं किया! नहीं तो किसी की क्या मजाल जो……!!” – मुखिया ने कहा।

“क्या बहू-बहू लगा रखा है तुमने!! श्यामा का इस हवेली से अब दूर-दूर तक कहीं कोई ताल्लूक नहीं! वो कुल्टा समाज के नाम पर केवल कलंक है कलंक! इतना कुछ हो जाने के बाद भी तुमने उसे इस गांव में रहने की अनुमति कैसे दे दी, मुझे अभी तक यह बात समझ में नहीं आयी! कहीं तुम्हारा भी उसके साथ कुछ सम्बंध…!!” – बिफरते हुए नंदा के पति ने कहा।

“नहीं, नहीं बड़े मालिक!! ऐसी कोई बात नहीं! उस जैसी औरत की तो मैं कभी शक्ल भी न देखूं! मैंने तो केवल इंसानियत के नाते उसे इस गांव में रहने दिया। फिर अपना बढ़ा हुआ पेट लेकर वह कहाँ जाएगी! ऊपर से उसका इस हवेली….” – कहते हुए मुखिया चुप हो गया जब संझला दामाद यानि अमृता का पति चिल्लाते हुए बोला – “कितनी बार कहा… उस श्यामा का इस हवेली से कोई सम्बंध नहीं! तुम्हे समझ में नहीं आती मेरी बात!!!”

“माफी….माफी हुज़ुर! मैं तो, बस इतना ही कह रहा था कि अगर वो इस गांव से बाहर जाएगी तो आपकी और इस हवेली की बदनामी होगी! क्या कहेंगे सब कि कैसे हैं हवेलीवाले और उसका परिवार सारा! अब आप भले ही श्यामा को इस हवेली का न माने! पर उसका सम्बंध तो इस हवेली से कभी भी खत्म नहीं होने वाला!” – मुखिया ने झिझकते हुए कहा। उसकी बातों में दम था जिसे सुन हवेलीवालो से कुछ बोलते न बना l

“ठीक है, ठीक है! पड़े रहने दो उसे इस गांव में! पर देखना… ज्यादा होशियार बनने की कोशिश न करे!! तुम जा सकते हो अब!” – नंदा ने कहा तो मुखिया वापस जाने के लिए पलटा। लेकिन तभी!

“भगीरथ? रुकना जरा!” – नंदा के पति ने कहा तो मुखिया के बढ़ते कदम रुक गए।

“जी हज़ुर, बोला जाय!

“ये क्या तुमलोगो ने हवेली के गोदाम पर नज़र गड़ा रखा है!” – नंदा के पति ने कहा।

“न न नहीं हुज़ुर! हमारी या गांववालो की कहाँ इतनी मजाल जो हवेली की तरफ नज़र उठाकर भी देखें! वो तो श्यामा मेरे घर पर आयी थी। जब मैंने उसे भगा दिया तो वह सीधे यहाँ आ धमकी! फिर उससे तो हवेली के भीतर की कोई भी स्थिति छिपी नहीं है वर्ना गांववालों को इस बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं!” – मुखिया ने कहा और अपने हाथ जोड़ लिए।

“हाँ… बता देना गांववालो को! इस हवेली की तरफ सिर उठाकर भी देखा तो शायद धरती से भी उठना पड़े! जा सकते हो तुम अब!! द्वारपाल दरवाजे पर कुंडी लगा दो और भीतर कोई न आने पाए वर्ना तुम सबकी शामत आ जाएगी!” – नंदा के पति न कहा।

इधर धीरे-धीरे ही सही, पर गांव में एक कान से दूसरे कान तक यह खबर फैलने लगी कि श्यामा गांववालो की भलाई के लिए अपने जान की परवाह किए बगैर हवेली के भीतर गई थी और जिसे हवेलीवालो ने धक्के मारकर निकाल दिया।…

to be continued…

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Written by Shwet Kumar Sinha

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