बंधन टूटे न-डॉक्टर संगीता अग्रवाल । Moral stories in hindi

अखिल परेशान था कि उसकी पत्नी रिशा उसके लाख प्रयासों के बाद भी उसके साथ खुश ही नहीं रहती थी,इतनी अच्छी सरकारी नौकरी थी उसकी,आयकर विभाग में बड़ा अफसर था वो,सरकारी आवास,नौकर चाकर मिले हुए थे ,एकमुश्त मोटी सैलरी लाकर रिशा के हाथ में थमा देता था वो लेकिन वो हर वक्त मुंह ही फुलाए रहती।

क्या बात है रिशा?तुम खुश क्यों नहीं रह पाती,जब देखो एक तनातनी रहती है घर में…हमारे इतने प्यारे दो बच्चे हैं,सब कुछ है पर तुम्हारे चेहरे पर कभी खुशी नहीं दिखती…अखिल बोला।

खुश होने के लिए कुछ होना भी तो चाहिए!ये रूखी सैलरी में क्या बिछा लें और क्या ओढ 

लें …जब भी कभी किटी होती है,मुझे कितनी शर्म आती है अपनी सहेलियों के बीच…

तुम उन सब दिखावटी लेडिज को सहेलियां कहती हो जिनका काम ही बस अपने कपड़े गहनों का प्रदर्शन करना है?दुखी होते अखिल बोला,क्या हो गया है तुमको?कितना बदल गई हो तुम?

सीखो अपने दोस्तों से कुछ…वो कहां हैं आज और तुम कहां हो?रिशा व्यंगातमक होते बोली।

क्यों प्रकाश भी तो मेरा दोस्त है,वो और उसकी पत्नी क्या खुश नहीं?कितनी सादगी है उन दोनो में!उनके बच्चे भी कितने आज्ञाकारी हैं…देखा तुमने!

बस…एक प्रकाश भाई साहब का नाम रट रखा है तुमने…औरों को देखो जो अपने व्यवहारिक ज्ञान से कितनी ऊंचाइयों पर पहुंच चुके हैं।रिशा बोली।

देखो रिशा!हम पहले भी कई बार इस बात पर बहस कर चुके हैं,ये हमेशा बेनतीजा ही रहेगी,न मैं वो काम कभी करूंगा जो तुम चाहती हो,रिश्वत लेना मेरे उसूलों के खिलाफ है,तुम जानती हो और मै उस पर दृढ़ हूं।

उसे रिश्वत नहीं,सुविधा शुल्क कहते हैं,आखिर इतनी पढ़ाई तुमने ऐसे ही की थी , अपनी पत्नी और बच्चों को सुख शांति की जिंदगी भी न दे सको तो क्या फायदा!रिशा मुंह बनाते बोली।

उफ्फ…फिर मत शुरू हो जाना तुम,मेरे सिर दर्द होने लगा,एक कप चाय तो पिलाओ प्लीज!

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है और मिस्टर मखीजा,जो नये शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की बिल्डिंग के टेंडर भरने वाले के प्रमुख ठेकेदार 

थे,मुस्कराते हुए खड़े थे।

कहिए!कैसे आना हुआ?रुखाई से अखिल बोला।

बैठने को नही कहेंगे आप हमे?बेशर्मी से हंसते हुए वो बोले।

जी..आज ही ऑफिस में तो मिले ही थे,यहां आने का कष्ट कैसे किया?अखिल अभी भी सामान्य न था।

देखिए शर्मा जी! मैं आपका हितैषी हूं,वही बात करूंगा जिसमे आप का और मेरा फायदा होगा,क्यों न हम दोनो हाथ मिला लें,आपके एक साइन से मेरी जिंदगी संवर जाएगी और उसे ऐवज में , मैं आपको दुनिया भर की खुशियों से भर दूंगा।

घुमा फिरा के बात न करें,आप जो चाह रहे हैं, मै कभी नहीं मानूंगा,आप जानते हैं,प्लीज यहां से चले जाएं,दरवाजा उधर है…बेरुखी से अखिल बोला।

आप ठीक नहीं कर रहे,पछताएंगे बहुत,ऐसे अकड़ते दरख़्त बहुत चरमरा के टूटते देखे हैं मैंने…

आउट…अखिल चिल्लाया।

रिशा सब सुन रही थी,वो बौखला गई,ये आदमी नहीं सुनने वाला कभी, पता नहीं इनके साथ कितने बुरे दिन देखने पड़ेंगे अभी।वो बुदबुदाई।

अखिल बहुत डिस्टर्ब था उस दिन ,वो सीधा अपने दोस्त प्रकाश के घर पहुंचा।

क्या बात है यार!कुछ परेशान दिख रहे हो,प्रकाश ने अपनत्व से पूछा तो अखिल की आंखें छलछला आई।

क्या करूं?बहुत कोशिश करता हूं घर में शांति रखने की लेकिन रिशा किसी भी तरह खुश रहती ही नही,उसे एक ही ज़िद है कि मै रिश्वत लूं बस…तुम भी तो हो,भाभी तो हमेशा उसी में खुश रहती हैं जो तुम कमा के लाते हो।

पांचों उंगली एक सी नहीं होती यार!क्यों दिल छोटा करते हो,भाभी,धीरे धीरे समझ जाएंगी,उनके घर में,उनके फादर भी ऐसे ही जॉब में थे शायद इसलिए उन्हें ये सब सामान्य लगता है।

प्रकाश! तू कितना लकी है यार!तुझे इतना समझदार लाइफ पार्टनर मिला है, मैं तो आज भी न अपनी बीबी से वैसे जुड़ पाया हूं और न ही बच्चों से, वो उनके दिमाग में भी न जाने क्या भरती रहती है मेरे खिलाफ…एक तू मेरा सच्चा दोस्त है जो हमेशा मुझे सही सलाह देता है।

मै हमेशा तेरे साथ हूं दोस्त!हमने पढ़ते वक्त ही कसम खाई थी कि अगर ये जॉब मिली तो ईमानदारी की कमाई ही खायेंगे,कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं करेंगे,वो ही हम दोनो कर भी रहे हैं।प्रकाश ने कहा तो अखिल मुस्करा दिया।

बस तेरा रास्ता आसान है और मेरा कांटों से भरा हुआ पर मै कितना भी लहूलुहान हूं, छोडूंगा नहीं कभी इसे।

वो दोनो गले लग गए।

कॉन्ट्रैक्टर मखीजा के हाथ से वो केस निकल गया था,तिलमिला के उसने,अखिल के खिलाफ झूठा आरोप दायर कराया और झूठ के सहारे ये सिद्ध भी करवा दिया कि अखिल ने अपने पद का दुरपयोग किया है।अखिल छह महीने को सस्पेंड हो गया।

जितनी सैलरी आती थी अब उसकी आधी ही रह गई और रिशा बुरी तरह चिढ़ गई।उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही थी।अखिल का मोरल बहुत हर्ट हुआ था,उसकी हिम्मत रिशा के तानों और सामाजिक बदनामी से टूट रहा था।उसके घरवाले और ससुराल वाले भी उसी की निष्ठा पर प्रश्न उठाने लगे थे।

ऐसे में,उसे अचानक जौंडिस हो गया।बड़ी मुश्किल से दवा और डॉक्टर का खर्च चलता।एक प्रकाश ही उनकी कुछ सहायता कर रहा था लेकिन अखिल का स्वाभिमान हर समय आहत होता इससे।

एक दिन,अचानक मखीजा आ पहुंचा उनके घर मसीहा बनकर और अखिल की पत्नी को रुपए पकड़ा दिए हाथ में,भाभी!ये आपके हक के रुपए हैं,हम आपके पड़ोसी हैं,आपके पति पर लगे सारे आरोप दो दिन में रद्द करा देंगे,आप एक हुक्म तो करें।

पैसा,खुशहाल जिंदगी,आरोपों से मुक्त और प्रलोभनों से लदा भविष्य सामने खड़ा मुस्करा रहा था और रिशा ने बिना समय गंवाए,मखीजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

हालातों से, बीमारी और बदहाली से टूटा अखिल चुपचाप मूक दर्शक बन गया,जानकर भी अनजान बनते हुए,वो पत्नी के साथ मिल गया।

बुरे दिन बीतते समय नहीं लगता।अखिल की नौकरी बहाल हो गई,उनके अच्छे दिन लौटने लगे,रिशा के चेहरे की मुस्कराहट अंधेरी काली रात से पूर्णिमा के चांद की तरह बढ़ने लगी।सोने,हीरे के जेवरात से लदी वो पहली बार ऑफिसर की पत्नी होने का गौरव महसूस करती और दिन रात पार्टीज में व्यस्त रहती।अखिल भी कॉलेज वक्त में खाई कसमें भुला बैठा था।उसकी और मखीजा की तिकड़म रंग ला रही थी और वो दोनो लक्ष्मी के वरद वरदान से अभिभूत हो रहे थे।

जहां गलत ढंग से लक्ष्मी आती हैं वहां सरस्वती रूठ जाती हैं,तभी तो अखिल और रिशा के बच्चे दोनो ही बदमिजाज़,जुबान जोर और पढ़ाई में बहुत कमजोर थे।कभी कभी अखिल फिक्र करता…”ये लड़की किसके घर जायेगी,कभी निभा पाएगी भी या नहीं?”

गले तक भर देंगे सोना चांदी उस लड़के के जिसके घर जायेगी,सब पूजेंगे इसे…रिशा गर्व से कहती और अखिल सूनी आंखों से देखता रह जाता।

प्रकाश से मिलना बहुत कम होता था आजकल,दोनो के लिविंग स्टैंडर्ड में फर्क आ गया था बहुत,रिशा नहीं चाहती थी कि वो आपस में मिलें और अखिल उसके आगे कमजोर पड़ जाता।

एक बार,प्रकाश अपनी बेटी की शादी का कार्ड देने उनके घर आया,उसके साथ उसका बेटा आरव भी था।बड़ा मनमोहक व्यक्तित्व था उसके बेटे का,साथ ही अभी पायलट की नौकरी लगी थी।सुसंस्कारों से सजे उसके व्यक्तित्व ने सबको प्रभावित किया।अखिल की बेटी सिया उसे देखते ही दीवानी जैसी हो गई।

उनके जाते ही मां से फरमाइश कर दी,इससे मेरी शादी करा दो मां!

ये कोई मंहगा खिलौना नहीं जो खरीद कर दूंगी तुझे…वो खिसियाई सी बोली।अखिल से कैसे कहूं,वो सुनेगा?? कहां मेरी बिगड़ैल बेटी और कहां वो सुसंस्कृत लड़का!उसने सोचा।

अखिल को भी आरव अपनी सिया के लिए बहुत अच्छा लगा था पर वो किस मुंह से प्रकाश से कहता!प्रकाश और उसके सोचने में बहुत अंतर आ चुका था।वो आज भी ईमानदारी से अपनी जिन्दगी बिता रहा था,उसका घर एक मंदिर जैसा था और बच्चे आज्ञाकारी,पत्नी सुशील जबकि अखिल के सब कुछ उल्टा पुल्टा था।

समय निकल रहा था और मखीजा फिर किसी बार पर अखिल से नाराज़ हो गया था,उसे लगता,अखिल बदलने लगा है,पहले जैसा साथ नहीं दे रहा,परिणामस्वरूप उसने फिर अखिल को किसी केस में फंसा दिया।इतनी उम्र में मिला ये झटका अखिल बर्दाश्त न कर सका।

अब ऐसे में उसकी बेटी से कौन शादी करेगा?भले ही समय बदलने से उसकी अकड़ कम हो गई थी पर फ्रस्टेशन और कमतरी का एहसास उसे तोड़ने लगा था।रिशा को भी पहली बार अपनी गलतियों का एहसास होता पर अब क्या किया जाए?

ऐसे में,एक दिन प्रकाश,अपनी पत्नी के साथ आया और सिया का हाथ अपने आरव के लिए मांगने लगा।

क्या सच में तुम ऐसा चाहते हो दोस्त?अखिल ने कांपती आवाज़ में कहा।मेरी बेटी तुम्हारे बेटे लायक है?

क्यों नहीं?प्रकाश खिलखिलाया,जब ये पैदा हुए थे तभी से ये रिश्ता मैंने सोच रखा था,अब हमारी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का समय आ गया है मेरे दोस्त!

तू,सच्ची,मेरा सच्चा दोस्त है जिसे समय,पैसे, पद किसी से कोई सरोकार नहीं, तू आज भी अपनी जवानी के समय खाई कसमों पर कायम है,ये तो मै ही हूं जो सब भूल कर जमाने की रेस में भटक गया था।

बस…अब चुप यार!हमारा रिश्ता दिल का रिश्ता है जो बड़ा मजबूत होता है,अब हम संबंधी बनने जा रहे हैं,भाभी मुंह तो मीठा कराइए!

जी…अभी लाई…रिशा ने कहा तो सब समवेत ठहाका लगाने लगे।

#दिल का रिश्ता 

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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