बहू को भी इज्जत देनी होगी – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

वैशाली…. वैशाली…. मनु की तेज आती आवाज से वो भागकर कमरे की तरफ गई, “ये क्या हैं? कितनी बार कहा है, मेरी शर्ट प्रेस करके रखा करो, और तुम हो कि सुनती ही नहीं हो, अब मै क्या पहनूंगा? मेरे ऑफिस की आज जरूरी मीटिंग है”।

वैशाली ने अलमारी की तरफ देखा, “मनु इतनी सारी शर्ट तो प्रेस करके रखी हुई है, कोई भी पहन लीजिए, फिर एक शर्ट को मै प्रेस वाले को क्या देती?  मैंने सोचा दो चार कपड़े इकट्ठे हो जायेंगे तभी दे दूंगी “।

“तुम्हारे पास तो बहाने तैयार है, मुझे तो यही पहननी थी, पर तुमसे तो दिमाग लगाना ही बेकार है, जानें तुम्हारा ध्यान किधर रहता है? एक भी काम ढ़ंग से नहीं होता है ‘ और ये कहकर मनु ने दूसरी शर्ट निकाल कर पहन ली। 

अब खड़ी क्या हो?? नाशता लगा दो, फिर मुझे देर हो जायेगी, वैशाली समझ नहीं पाती है, मनु को सुबह उठते ही क्या हो जाता है? पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं, चिल्लाने लगते हैं, जब वो शर्ट प्रेस नहीं थी तो दूसरी तो पहन लेते,  सबके सामने तमाशा बनाना क्या जरूरी था।?

तभी पूजा के मंदिर से आवाज आती है, वैशाली पूजा का घी खत्म हो गया है, तुमने डिब्बे में घी नहीं भरा? आखिर कोई भी काम तुम ढंग से और समय पर नहीं कर सकती हो क्या? ये आवाज वैशाली की सास कमला जी की थी। वो बड़बड़ाती हुई आई और डिब्बे में घी भरकर ले गई। वैशाली फिर हैरान थी, मम्मी जी रोज दीपक जलाती है, कब घी खत्म हुआ, उन्हें पता होना चाहिए, जब घी खुद ने ही भर लिया तो इस तरह गुस्सा करनें की क्या जरूरत है? 

वो कुछ और सोचती कि इससे पहले ससुर जी ने घर सिर पर उठा लिया,” कोई मुझे चाय पिलायेगा क्या?

किसी को फुर्सत नहीं है कि इस रिटायर्ड आदमी को पूछ तो लें।

कमला जी रसोई में आई और चाय का कप लेकर चली गई,” बहू आने के बाद भी मुझे रसोई से चाय लेकर देनी पड़े तो फिर काहे का आराम मिला?

मै जब शादी होकर आई थी, सास-ससुर को कभी कहने का मौका नहीं देती थी, बोलने से पहले ही चाय पकड़ा देती थी, एक हमारी बहू आई है, इसे हर काम के लिए कहना होता है, इतने महीने हो गये शादी को, पर कोई भी काम ढंग से समय पर नहीं करती है, पता नहीं ऐसा कब तक चलेगा? अब मै खुद काम करूं या अपने भगवान की सेवा करूं? 

वैशाली चुपचाप सुन रही थी, उसके संस्कार उसे कुछ भी कहने से रोक रहे थे, वो सबका काम करने की कोशिश करती थी पर कोई उससे खुश ही नहीं रहता था, हर वक्त कुछ ना कुछ कमी निकालकर उसे डांट दिया जाता था, कभी-कभी उसे लगता था कि उसने ये शादी ही करके गलती की।

वैशाली अपनी मौसी की बेटी की शादी में गई थी, वहां उनके दूर के रिश्तेदार भी आये हुए थे, जब वो महिला संगीत में डांस कर रही थी तो मनु उसे एकटक देखे जा रहा था, उसे थोड़ी असहजता महसूस हुई, पर वो उस बात को भुलाकर शादी में जी जान से लग गई थी, उसकी मौसी की बेटी कनक उसी की हमउम्र थी, दोनों बहनें भी थी और सहेलियां भी थी। पूरी शादी में वो कनक के ही साथ में रही थी, मनु कनक के साथ उसकी भी फोटो ले रहा था।

शादी अच्छे से संपन्न हो गई, थोडी देर बाद वैशाली की मम्मी आई ,” सुनो हमारी वैशाली के तो भाग्य ही खुल गये है, उसके लिए रिश्ता आया है , जीजी के दूर के रिश्तेदार का बेटा है, एक ही बेटा है , मनु अच्छी कंपनी में नौकरी करता है, मैं तो उससे मिलकर भी आ रही हूं, मुझे तो वो बड़ा पसंद आया है “।

ये सुनकर वैशाली के पापा ने आशंका जताई,” मुझे बेटी की शादी की जल्दी नहीं है, मै चाहता हूं वैशाली जिसे मन से पसंद करेगी, उससे ही शादी करेंगे, केवल एक बार देखने से लड़के के गुण थोड़ी पता चलते हैं, जब तक बिटिया हां नहीं करेंगी, ये शादी नहीं होगी”।।

“आप भी बस जवान लड़की घर में है, मुझे रातों को नींद नहीं आती है, मैंने तो लड़का फाइनल कर लिया है, और मुझे अच्छा भी लगा, शादी अगले महीने ही कर देंगे, अब जीजी ने भी तो कनक की शादी कर दी है, आप दोनों बाप-बेटी के ही नखरे है, मै इतना अच्छा रिश्ता नहीं जाने दूंगी, वैशाली की मम्मी ने किसी की नहीं सुनी और उसी दिन मनु और वैशाली की सगाई कर दी।

अचानक हुये रिश्ते से वैशाली हैरान थी, पर उसकी  मम्मी हार्ट पेशेंट थी तो वो उन्हें ज्यादा तनाव नहीं देना चाहती थी, एक महीने बाद की शादी की तारीख निकाली गई, फोन पर मनु ने बड़े प्यार से बात की थी तो उसे लगता था कि मम्मी का फैसला सही है, मनु बड़ी ही इज्जत से बात करता था, मनु से ज्यादा बातचीत भी नहीं हो पाती थी, अब एक ही महीने में प्री वेंडिंग शूट, सगाई, गोद भराई, महिला संगीत, और शादी थी, सबके लिए शॉपिंग करना और बाकी शॉपिंग में कब एक महीना निकल गया और शादी का दिन भी नजदीक आ गया। 

वैशाली दूल्हन बनकर विदा हुई तो मम्मी ने यही सीख दी, बेटी अपनी सास को अपनी मां समझना, वो डांट दें तो सहन लेना, बड़ों का मान-सम्मान करना, अब वो ही तेरा घर है, तेरा मायका तो आज से पराया हो गया, अब अपने घर के सुख-दुख तुझे ही सहने है, कोई बड़ी बात हो तो मायके फोन करना, वरना छोटी-छोटी बातें तू अपने तक ही रखना।

मम्मी की यही सीख अपने पल्लू में गांठ बांधकर वैशाली ससुराल आ गई थी, यहां आकर उसने सबको खुश रखने की कोशिश की पर उसे तब बहुत बुरा लगता था, जब हर कोई उस पर चिल्लाता था।

बहू हूं घर की नौकरानी तो नहीं जो हर कोई उसे डांटे फटकारे बस यही बात उसे सहन नहीं हो रही थी।

मनु ऑफिस जा चुके थे, ससुर जी पार्क चले गये थे, तभी जोरदार आवाज से उसका ध्यान कमरे की तरफ गया, कमला जी चिल्ला रही थी।

“मम्मी जी, आपको क्या हो गया है? उसने शालीनता से पूछा”।

“हे!! भगवान मै ऐसी बहू का क्या करूं? तीन दिन से ये साड़ी अलमारी में बिखरी पड़ी हैं, पर इसने जमाकर नहीं रखी, केवल रसोई बनाने से ही बहू के फर्ज पूरे नहीं हो जाते हैं, घर की और भी साफ-सफाई करनी होती है, दो रोटी तो मै भी बनाकर खा सकती हूं, अभी भी मेरे हाथ-पैर चल ही रहे हैं, तुमसे इतना नहीं होता कि कभी तो आकर सास की अलमारी संभाल लो, बिखरी है तो बिखरी पड़ी हैं, बस रसोईघर का काम निपटाकर तुम तो अपने कमरे में चली जाती हो, आजकल की बहूंएं पलंग तोड़ने के आलावा कुछ काम भी करती है? 

 वैशाली ने अलमारी में रखी सभी साड़ियां समेटकर रख दी और बाकी के कपड़े भी जमा दिये, जल्दबाजी में वो गैस कम करना भुल गई, दूध उबलकर जमीन पर आ चुका था, उसके साथ कमला जी भी रसोई में पहुंचीं, रसोई का बुरा हाल देखकर उनके माथे की त्योरियां फिर से चढ़ गई, और वो फिर से तेज आवाज में बोल पड़ी,” मै तो थक गई, अब तो मेरी सांस भी फूलने लगी है, पर तुमसे कोई भी काम ढंग से नहीं होता है, तुमने गैस बर्बाद कर दी, दूध भी फैला दिया और रसोई भी गंदी कर दी, थोड़ी तो समझदारी से काम लिया करो”।

कमला जी अपने कमरे में चली गई, आज तो वैशाली की आंखें ही भर आई, क्योंकि उसे कभी इतनी डांट नहीं पड़ी थी, और उसे अपनी मम्मी की भी बात याद आ रही थी कि छोटी-छोटी परेशानी से खुद ही निपट लेना।

वो सारा काम निपटाकर अपने कमरे में चली गई, अपनी मम्मी से बात की और मन ही मन उनसे आशीर्वाद लिया। शाम की चाय का वक्त हो गया था, ससुर जी चिल्ला रहे थे,” अरे! कोई तो चाय पिला दो, सबके हाथों में मेंहदी लगी है क्या? मेरा कोई भी काम समय पर नहीं होता है, तभी वैशाली भी अंदर से हिम्मत जुटाकर चिल्लाकर बोली,” पापाजी आ तो रही हूं, आपसे बिल्कुल भी सब्र नहीं होता है क्या? अब चाय गैस पर चढा दी है,  आयेगा जब ही तो उबाल आयेगा ? आपके कहने से मै चूल्हे पर तो नहीं चढ़ जाऊंगी ? चाय कौनसा अमृत है, जो समय पर ना मिले तो आपको लेने यमराज आ जायेंगे, दो-चार मिनट देर भी हो सकती है”।

बहू के मुंह से ऐसी बात सुनकर कमला जी और उनके पति हैरान रह गये, सदा चुप रहने वाली वैशाली किस तरह से बात कर रही है। 

“वैशाली, तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? वो तेरे ससुर जी है, तुम उनसे ऐसे कैसे बात कर रही हो?

थोड़ी शालीनतापूर्वक बात नहीं कर सकती, सारी शर्म लिहाज मायके में छोड़ आई हो”? 

” मम्मी जी, आप तो बस रहने ही दो, मुझे ज्यादा ज्ञान मत दो, मुझे सब पता है कि किससे किस तरह से बात करनी है?अब मै कोई कठपुतली तो नहीं हूं जो आप जैसा कहोगी वैसा ही करूंगी, मेरा अपना भी वजूद है, फिर गुस्सा तो मुझे भी आ सकता है, मैं आज बहुत गुस्से में हू, तो आप चुप ही रहिए, वरना कुछ ज्यादा ही सुना दूंगी।

कमल जी एकदम से चुप हो गई, आखिर आज उनकी बहू को क्या हुआ है, वो समझ नहीं पा रही थी।

रात को मनु आया तो आज घर में शांति थी, वैशाली ने खाना लगाया, तो मनु ने पूछा,” मम्मी -पापा आज इतने चुप क्यों हो? घर में अजीब सा सन्नाटा क्यों पसरा है? दोनों कुछ ना बोले चुपचाप खाना खाने लगे, तभी मनु ने दाल चखी और चिल्लाकर बोला,” ये क्या दाल बनाई है, इसमें नमक कितना कम है, तुझे तो खाना बनाना भी नहीं आता है, दिनभर से थका-हारा आता हूं और मुझे खाना भी अच्छा नहीं मिलता है, और उसने देखा मम्मी -पापा दोनों शांति से खाना खा रहे थे।

ये सुनकर वैशाली भी ऊंची आवाज में बोली,” दाल में नमक ही कम है तो ऊपर से ले लो, बिना बात के बतंगड़ बना रहे हो, आप ऑफिस से थककर आते हो तो मै भी घर पर बैठी नहीं रहती हूं, आपकी मम्मी तो एक पानी का गिलास लेकर नहीं पीती हैं, पापाजी भी दिनभर हुक्म बजाते रहते हैं, सब्जी मंडी से सब्जियां लाना , साफ करना और फिर खाना बनाना ये कोई काम नहीं है क्या? फिर मै ही अकेली तो खाती नही, आप सबके लिए मै खाना बनाती हूं और आप हम सबके लिए कमाकर लाते हो, तो इसमें कौनसा अहसान करते हो ? ज्यादा दाल में नमक कम लग रहा है तो दाल छोड़ दो, तुम्हारी मम्मी सारे दिन बैठी ही तो रहती है, मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आ रहा है तो कल से ये बना देगी, इन्हें तो खाना बनाना आता ही होगा? इसलिए पूछ रही हूं कि मैंने तो इन्हें कभी रसोई में जाते नहीं देखा’।

मनु की आंखें फटी रह गई, वो दो मिनट के लिए सुन्न हो गया, ये क्या बोल रही हो, तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है कि घर में सबसे कैसे बात करते हैं, तुमने तो आज सारी ही मर्यादा लांघ दी है, कोई इस तरह से बात नहीं करता है, जिस तरह से तुमने आज की है,  ये तुम्हें हो क्या गया है??

वैशाली हंसकर बोलती है,” अरे!! कुछ नहीं हुआ है, मै तो एकदम से ठीक हूं, मैंने जो बोला कुछ गलत तो नहीं बोला है, मैंने इन महीनों में यही सब तो सीखा है, मेरी मम्मी ने मुझे जो सीख दी थी वो इस घर में तो लागू नहीं होती है, मम्मी ने कहा था, सबसे प्यार से बात करना, सबका ख्याल रखना, कभी डांट पड़ भी जायें तो चुप ही रहना, मेरे संस्कारों की वजह से मै चुप थी, पर यहां तो मुझे लग रहा है कि इस घर में मेरे जैसे संस्कारों वाली लडकी की कोई जरूरत ही नहीं है।

यहां तो सब ऐसे ही चीखकर चिल्लाकर बातें करते हैं तो मुझे भी लगा कि मुझे अपने ससुराल वालों से इस तरह का व्यवहार करना सीखना चाहिए।

मै तो आप सब जैसे बोलते हैं वैसा ही तो बोल रही हूं, यहां पापाजी मम्मी जी पर चिल्लाते हैं, मम्मी जी पापाजी पर चिल्लाती है, आप दोनों मुझे डांटते रहते हैं, मनु भी छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होकर मुझ पर चिल्लाते हैं, तो अब से मैंने भी चिल्लाना सीख लिया है,  और मै आप सबका ही तो अनुसरण कर रही हूं, यहां कोई प्यार से बात तो करता ही नहीं है, कोई काम गलत हो जायें तो उसे सही करना सिखाया नहीं जाता है, बल्कि चिल्लाकर डांटकर मुद्दा सुलझाया जाता है,

मै तो संस्कारी थी पर मुझे यहां पर रहने के लिए यहां के सभी तौर तरीके तो होंगे, तभी तो मै यहां अच्छे से रह पाऊंगी ‘। 

घर में सास-ससुर गुस्सा हो जाते हैं, पति भी गुस्सा रहता है, तो मैंने सोचा मै भी अपना व्यवहार बदल लूं।

अब ऐसे माहौल में मै सीधी सी बनकर रहूं, रोज आप सबकी डांट सुनूं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है, मेरा भी आत्मसम्मान है, मै घर की बहू हूं, सदस्य हूं, आजकल तो नौकरों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता है, फिर मै तो इस घर की लक्षमी हूं, आपने जैसा मेरे साथ व्यवहार किया, मैंने भी वैसा ही किया, आपको एक दिन में बुरा लग गया, मै तो महीनों से सहन कर रही हूं “।

 ‘वैसे भी चिल्लाने से काम सुधरते नहीं है, बल्कि आत्मसम्मान को ठेस ही पहुंचती है, ससुराल में बहू पर चिल्लाना , उसे अपशब्द कहना, उसका अपमान करना ठीक नहीं है, बहू लक्षमी होती है आप अपने लिए इज्जत चाहते हो तो आपको बहू को भी इज्जत देनी होगी।

वैशाली की बात सुनकर सब शर्मिंदा हो गये, सबने मिलकर वचन दिया कि आगे से वो इस तरह का व्यवहार नहीं करेंगे, वैशाली ने अपनी कोशिश से घर का माहौल प्यार और शांति में बदल दिया।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

बेटियां छठवां जन्मोत्सव कहानी -4

2 thoughts on “बहू को भी इज्जत देनी होगी – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi”

  1. Izzat Dene se izzat milega.akhir bshu ki bhi koi izzat hoti hai.ghar ki toh naukrani hai nahin. Kyun ki hum izzat se ghar ke naukar se baat kar sakte hai toh nahi se kyun nahi.

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!