अनाथ : Moral stories in hindi

राघव अपनी माँ को बहुत दिनों से नीति से शादी करवाने को मना रहा था किन्तु वो तैयार नही थी वजह केवल इतनी थी कि नीति एक अनाथ लड़की थी जो राघव की सहकर्मी भी थी। मजबूरी मे राघव ने कोर्ट मे जाकर शादी कर ली।

” राघव ये अनाथ तुम्हारी पत्नी भले हो सकती है पर मेरी बहू नही !” राघव नीति के साथ शादी के बाद जब घर आया तब उसकी माँ सुलोचना जी बोली और अपने कमरे मे चली गई।।

” मांजी चाय !” अगली सुबह नीति सास को चाय देते बोली।

” मैं तुझ जैसी अनाथ की माँ नही समझी मेरे बेटे को तूने अपनी बातो मे फंसा लिया पर मुझे नही फंसा पायेगी !” सुलोचना जी उसे ताना देते हुए बोली। नीति का कलेजा छलनी हो गया ये सुन पर प्रत्यक्ष मे वो मुस्कुरा कर बोली।

” अपने पति की माँ को और क्या कहते है मांजी मुझे नही पता आप ही बता दीजिये !” सुलोचना जी उसकी मासूम हंसी देख कुछ ना बोली।

नीति जितना सुलोचना जी का दिल जीतने की कोशिश करती उतना सुलोचना जी उसका तिरस्कार करती किन्तु नीति के चेहरे पर शिकन तक ना आती हालाँकि वो अकेले मे आंसू भी बहाती पर राघव को जाहिर ना करती ।

” क्यो सह रही हो इतना सब नीति मुझसे शादी करके तुम्हे सिवा तिरस्कार के कुछ नही मिला !” आज फिर किसी बात पर सुलोचना जी ने नीति को काफी सुनाया तो राघव उड़का उदास चेहरा देख बोला।

” अरे मिला क्यो नही , बचपन से माँ के लिए तरसी हूँ तुमने मुझे माँ दी है ना ।  स्कूल मे जब बच्चो की मम्मी आती थी तो मैं अनाथ उन्हे देख ईश्वर से शिकायत करती थी । ईश्वर ने देखो मुझे सास के रूप मे माँ दे दी !” नीति मुस्कुरा कर बोली।

” किसे बहला रही हो नीति तुम भी जानती हो माँ तुम्हे बहू तो क्या इंसान तक नही समझती हमेशा तो अपने तानो से तुम्हारा कलेजा छलनी करती रहती है तुम्हे क्या लगता है तुम मुझे नही बताती हो तो मुझे पता नही है  !” राघव बोला।

” राघव मुझे माँ की बहू नही बेटी बनना है इसलिए वो मुझे कितना सुनाये कितना मेरा कलेजा छलनी करे मैं उफ़ नही करूंगी । क्योकि इस अनाथ को माँ चाहिए । और तुम हम माँ बेटी के बीच मत आया करो जी मेरी माँ बहुत अच्छी है बस थोड़ा नाराज़ है जोकि लाजमी भी है उनके कितने ख्वाब होंगे तुम्हारी शादी को ले जो मुझ अनाथ की वजह से टूट गये !” नीति उदास हो बोली। सुलोचना जी बाहर से सब सुन रही थी उन्हे खुद की सोच पर बहुत शर्मिंदगी हुई । ” ये बेचारी मुझसे माँ का प्यार पाने को इतना सब सह रही है और मैं सिर्फ इसका तिरस्कार कर रही हूँ जबकि अकेले इसकी तो गलती नही शादी तो मेरे बेटे ने की है इससे !” उन्होंने सोचा उनकी आँख मे इस वक़्त आंसू थे।

” ना बेटा तू अनाथ नही है मैं हूँ ना तेरी माँ !” अचानक सुलोचना जी अंदर आई और भरे बोली।

” माँ !” भरे गले से नीति बोली उसे यकीन नही हो रहा था कि उसकी सास ने उसे स्वीकार कर लिया।

” हाँ बेटा इतनी अच्छी बहू तो मैं भी ना खोज पाती जो मेरे बेटे ने खोजी है और मैं मूढ़ मगज सिर्फ इस बात से उसका तिरस्कार कर रही कि वो अनाथ है जबकि मुझे तो इसकी माँ बन उसके जीवन की ये कमी भरनी चाहिए थी !” सुलोचना जी बोली और उन्होंने अपनी बहू को गले से लगा लिया ।

नीति भी सास के गले लग फूट पड़ी क्योकि आज उसने माँ को जो पाया था।

संगीता अग्रवाल

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