औकात दिखाना – मंजू ओमर : Moral stories in hindi

यार मम्मी कल पार्टी में आपने ये क्या कर दिया, क्या कर दिया मैंने मधु बोली बेटे से ।बेटा रोहन बोला आप कल आप श्वेता और उनके और जो रिश्तेदार आए थे उनसे मिलने नहीं गई ।मैं क्यों मिलने जाती उनसे  जो लोग कल पार्टी में आ रहे थे वो लोग खुद ही मुझसे मिलने आ रहे थे ।

और श्वेता की मम्मी और उनके रिश्तेदारों को इतनी भी तमीज नहीं है कि वो खुद आकर हमसे मिले चुप रहो तुम मधु ने रोहन को डांटा श्वेता की भाषा बोलने लगे हो जो उसने कहा दिया बस वही सुन लिया सही ग़लत का कोई ज्ञान नहीं है क्या ।और उसका क्या हुआ जो हमने कहा था कि पार्टी में जो गिफ्ट और लिफाफे आए हैं श्वेता से कहा देना खोले नहीं एक बार हमें सब दिखा देना फिर खोलें लेकिन नहीं दिखा दी न उसने अपनी औकात।

                  दरअसल मधु ने रोहन के बच्चे की पहली सालगिरह पर होटल में पार्टी दी थी । पोते के जन्मदिन पर कोई फंक्शन नहीं हो पाया था ।मधु ने सोचा था कि पोता जब सवा महीने का हो जायेगा तो दसटोन करेंगे । लेकिन डिलिवरी के बाद ससुराल में श्वेता रहना ही नहीं चाहती थी । अस्पताल से घर आते ही श्वेता ने अपनी मम्मी को घरपर बुला लिया और वो बेटी के ससुराल आ भी गई रहने को ।

जबकि मधु ने सारे इंतजाम कर रखे थे दो अलग से नौकर भी रख रखा था दिनभर का ।और श्वेता को बता भी दिया था कि देखो श्वेता सवा महीने तक जच्चा-बच्चा घर से बाहर नहीं जाएंगे जब पूजा वगैरह हो जाएगी तब ही बाहर जाने को मिलेगा। पुराने जमाने में जो नियम बनाए गए थे जच्चा-बच्चा की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही बनाए गए थे।पर डिलीवरी के बाद पंद्रह दिन मम्मी आकर रही और जाते समय बेटी को भी साथ लेकर गई मधु से पूछा भी नहीं कि ले जाए कि नहीं।इस वजह से मधु को बहुत बुरा लगा था तो श्वेता की मम्मी से बात नहीं होती थी ।

                   चूंकि बहुत दिनों बाद पोता हुआ था तो मोहल्ले पड़ोस में सब आंतें जाते मधु को टोकते थे कि आपने लड्डू नहीं खिलाएं ।तो एक पार्टी तो बनती है ।तो मधु ने पहला जन्मदिन आने पर पार्टी रखी थी ।उस पार्टी में श्वेता की मम्मी और उनके जो रिश्तेदार आए रहे थे वे सब एक अलग गुट बना कर बैठे थे कोई भी मधु से मिलने नहीं आया ।और फिर दूसरे दिन रोहन के कान भर दिया गया कि तुम्हारी मम्मी हमारी मम्मी से मिलने नहीं आई । इसी बात पर बेटा भड़क रहा था आजकल बेटे भी शादी के बाद बीबी की जुबान बोलने लग जाते हैं ।

                   मधुमक्खी तरफ से जो भी गिफ्ट और लिफाफे स्टेज पर बच्चे के हाथ में दे आए थे ,मधु ने रोहन से बोला था कि देखो वो सब लिफाफे और गिफ्ट खोलना नहीं एक बार मुझे दिखा देना क्योंकि मुझे भी पता होना चाहिए कि किसने क्या दिया है क्योंकि मुझे भी लोगों को देना लेना पड़ता है । लेकिन वो सारे गिफ्ट और लिफाफे श्वेता अपने मायके उठा ले गई ।और जो गिफ्ट और लिफाफे श्वेता की तरफ से आए हैं वो सब श्वेता की मम्मी रखें जा रही थी ।

               दो दिन बीत गए तो मधु ने रोहन से कहा वो लिफाफे और गिफ्ट ले आओ घर तो रोहन कहने लगा वो तो सब श्वेता ने खोल लिया तो मधु का पारा चढ़ गया और बोली जब तीन बार बोला था कि खोलना नहीं मुझे दिखा देना लेकिन उनको जरा भी तमीज नहीं है खोल दिया सब तो रोहन बोलने लगा क्या हो गया मम्मी यदि खुल गया तो श्वेता ने सब पेपर पर लिख लिया है । लेकिन दिखाना ठीक नहीं समझा मधु बोली ।

श्वेता की तरफ से क्या आया क्या नहीं कुछ पता नहीं और मुझे उसका पता करना भी नहीं है और किसी ने बताना भी जरूरी नहीं समझा ठीक है उनका हमें चाहिए भी नहीं लेकिन जो हमारी तरफ का था उसको तो देखना था न‌अपनी आदतों से बाज नहीं आती तुम्हारी बीवी अपनी औकात दिखा ही देती है।

                     रोहन चुप था क्या करें कभी कभी लड़कों की बड़ी दयनीय स्थिति हो जाती है उधर कुछ कहो तो बीबी लड़ने को तैयार और दूसरी तरफ मां का दबाव।

             दबाव कैसा सही बात तो कर रही थी मधु इसमें कुछ ग़लत भी नहीं था । लेकिन मेरी मम्मी से तुम्हारी मम्मी मिलने नहीं गई इस बात पर तो मधु को बहुत गुस्सा आया था जमकर बेटे को लताड़ा था। फिर जाकर तीन दिन बाद सब खुले हुए लिफाफे और गिफ्ट लेकर आया था।

                 श्वेता की हमेशा से आदत थी कि कोई भी घर पर आता बच्चे को कुछ देता या श्वेता की शादी के समय जो नहीं आ पाया था तो एक दो लोग बाद में घर पर आकर लिफाफे देकर जातें तो वो उसे रख लेती मधु को बताती भी नहीं थी ये आदत उसकी बहुत खराब थी । वैसे भी जबरदस्ती की शादी थी इसलिए और भी मुश्किल आ रही थी । शादी ब्याह हमेशा अपने बराबर वालों में करनी चाहिए ऐसा हमेशा से सुनती आई थी वो । लेकिन ये सब बातें बच्चे नहीं समझते अपनी अपनी चलाते हैं ।

               इसलिए मधु और श्वेता के परिवार के बीच कोई समानता नहीं थी । समानता पैसे रूपया से नहीं नापी जाती लेकिन जातिगत और शैक्षिक तौर पर तो बराबरी होनी चाहिए । पढ़ाई लिखाई का अभाव था श्वेता के घर पर खुद मम्मी ही उनकी ग्यारहवीं तक पढ़ी थी ।बस श्वेता ही किसी तरह पढ़ गई थी एमबीए कर लिया था। लेकिन घर परिवार की सोच तो वहीं रहती है न और उसका असर बच्चों में आता ही है । बेटे ने जिद करके शादी कर ली थी। लेकिन दोनों परिवारों की सोच बिल्कुल अलग थी ।

            मधु बहुत चाहती थी कि चलो अब तो हो गया जो होना था थोड़ी समझदारी दिखाएं श्वेता लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था।शरीर से आप दूर रहो तो भी ठीक है लेकिन जब मन से दूरियां आ जाए तो रिश्ते निभाना मुश्किल हो जाता है। मधु तो रोहन से यही कहती हैं

अब शादी की है तो निभाओ जैसा भी है क्योंकि कभी-कभी वो भी परेशान होता है । मधु कहती हैं मेरे संग तो उसके विचार नहीं मिलते इसलिए ठीक है अपना तुम लोग साथ साथ रहो मुझको अपने बीच मत घसीटों जाओ खुश रहो । मां बाप हारकर बस यही सोच लेते हैं बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी है क्या कर सकते हैं ।

  पाठकों आप सब भी बताइएगा मधु कहां तक ग़लत है और कहां तक सही ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

1 thought on “औकात दिखाना – मंजू ओमर : Moral stories in hindi”

  1. संस्कार में अंतर से ऐसी परिस्थिति आना स्वाभाविक है। मधुजी के द्वारा उठाये गये कदम एकदम सही हैं।

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