अनुमति तिरस्कार की!! – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

कमली अभी तक यहीं खड़ी है कब से कह रही हूं जा तैयार हो जा ….

विशाखा जी की तेज आवाज से बेअसर थी कमली ।जाने किस दुनिया में विचरण कर रही थी।चेहरा ऐसा लटका हुआ था मानो किसी ने सौ बुरी बाते सुनाई हों।सामने मां की निकाल कर रखी लाल ड्रेस रखी थी जिसे पहन कर उसे अपनी सहेली राधा के पिता जी के रिटायरमेंट पार्टी में जाना था।

नहीं मुझे नही जाना है मां मुझे कहीं नहीं जाना है ….कहती वह अपने कमरे में जाने लगी।

क्या हुआ बेटा किसी ने कुछ कहा है तुझे .. विशाखा जी आशंकित हो उठीं।

किसी ने क्या मां हर कोई कहता फिरता है मुझे  क्या और क्यों कहता है तुमको भी पता है पलटकर कमली ने कहा था।

कमली तू फिर से वही सोच लेकर बैठ गई। क्यों उन ऊल जलूल बातो पर ध्यान देती है दिल से लगा कर बैठी रहती है ।पानी डाल सब पर मां ने समझाना चाहा।

कैसे ध्यान ना दूं मां ठीक तो कहते हैं सब कित्ती काली चट्ट हूं मैं एकदम कालीमाई फिर मेरी हाईट भी इत्ती कम ! ना कोई ड्रेस मुझ पर फबती है ना कोई श्रृंगार। कहीं खड़ी भी हो जाती हूं तो अलग काला धब्बा सी नजर आती हूं।कोई मुझे कल्लो कलूटी गिट्टी नाटी बंटी बौनी बुलाते रहती हैं कमली नहीं कल्ली बोलते हैं सब मुझे बिफर उठी कमली।

नहीं बेटा ऐसा नहीं सोचते ।ये रंग रूप तो ईश्वर प्रदत्त है इसमें तेरी क्या गलती जो तू इस बारे में सोच कर खुद को दुखी करती रहती है मां ने फिर समझाया ।

ईश्वर को सारे दुर्गुण मुझे ही देने थे।पता नही किसपे गई है हर कोई मुझ पर टांट कसता है इसकी मां तो बड़ी सुंदर है और पिता का रंग भी खुला है ।पूरे खानदान में ऐसा काली कन्या नही हुई ।सारे रिश्तेदार हंसते हैं।सच मां सबकी नजरों में मैं अपने लिए इतना तिरस्कार देख चुकी हूं कि खुद अपनी नजरों में तिरस्कृत अनुभव करने लगी हूं।देखो मेरे कमरे में एक भी दर्पण नहीं है मैं खुद अपना चेहरा नहीं देखना चाहती हूं ।

सब तुम्हारी गलती है मां कोई ध्यान नहीं दिया तुमने मुझे जन्म देने से पहले और जन्म के बाद भी।

आज कमली का विषाद चरम पर था।अपना काला रंग उसे निराशा के काले घुप्प अंधकार में गहरे धकेल रहा था । बहुत छोटी थी तब तो उसे काले गोरे का कोई भान ही नही था ।स्कूल जाने लगी …..धीरे धीरे सहपाठियों की चुहलबाजियां फब्तियों में तब्दील होने लगी।मां पिताजी का हौसला उसके साथ था लेकिन शायद वह खुद अपना हौसला नहीं बन पा रही थी।

नवरात्रि उत्सव में कन्या भोज के अवसर पर मोहल्ले में अनगिनत निमंत्रण मिलते थे। छोटी सी कमली भी बेहद उत्साह से इन निमंत्रणों का इंतजार करती थी ।कितना आनंद आता था सबके घरों में जाना वहां अपने पैरों को पानी से धुलवाना लाल आलता नन्हें नन्हें पैरों में लगवाना पूजन टीका फिर सम्मान से दुलार से मनुहार से स्वादिष्ट भोजन फिर दक्षिणा में मिलने वाले रुपए कोई उपहार लेकर फिर दूसरे घर में जाना।ऐसा लगता था इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ होती है कन्या इतना मान सम्मान दुलार मनुहार ख्याल होता था हर जगह पूछ परख हर कोई अपने घर ले जाने को आतुर प्रतीक्षित रहता था।

एक बार कन्या पूजन में जाते वक्त मां ने नई लाल फ्रॉक पहना दी थी कमली को और आज नजर ना लग जाए दुलारी बिटिया को कहते काजल का टीका भी लगा दिया था आंखों में भी घर का बनाया काजल लगा दिया था। दो गुथी हुई चोटियां बनाए आल्हादित कमली फुदकती हुई पड़ोसी शांति चाची जी के घर पहुंच गई थी।

उसके पहुंचते ही पहले से उपस्थित सभी बच्चों ने जोर से ठहाका लगाया था।लो काली माता भी आ गई अब शुरू करिए भोज।शांति चाची ने भी हमेशा की तरह मुस्कुरा कर उसकी ओर देखा था और उसकी प्रिय सहेली कांता के पास बिठा दिया था।लेकिन उसके बैठते ही आज कांता भी अचानक उठकर खड़ी हो गई और जाकर रिंकी के पास बैठ गई थी।

उसी क्षण अचानक कमली को एक तेज झटका सा लगा था ।अचानक आज उसे शांति चाची की मुस्कुराहट में अपने लिए तिरस्कार परिलक्षित होने लगा था।अपनी अभिन्न सखी के व्यवहार में अपने लिए तिरस्कार महसूस होने लगा था।अचानक सबके बीच होते हुए भी वह जैसे वहां से अदृश्य हो गई थी।अपने आप में ही सिमट गई थी

कमली सिकोड़ लिया था खुद को उसने हर तरफ से हर व्यक्ति से।अब तो अपने मां पिताजी के व्यवहार में भी एक अनकहा तिरस्कार उसे महसूस होने लगा था।मां जितना उसके करीब आने की प्रेम से समझाने की कोशिश करती उतना ही उसे मां की बातों में अपने लिए सहानुभूति की गंध आने लगती।उसने मां से भी बातचीत करना बंद सा कर दिया था।

पिता ने अपनी बेटी की मनोदशा समझते हुए उसे बाहर पढ़ाई करने भेज दिया था।कॉलेज और हॉस्टल में नए अबूझ सहपाठियों के बीच भी वह खुद को असहज ही महसूस करती थी।अपनी तरफ आती हर मुस्कुराहट  उसे अपना मजाक उड़ाती ही प्रतीत होती थी।हमेशा हल्के रंग की ड्रेसेज ही पहनती थी।शोख चटकीले रंग उसे बचपन की काली माता की पदवी की याद दिला देते थे और लाल रंग तो वह अपनी जिंदगी से विदा कर चुकी थी।

हॉस्टल में भी इतने पढ़े लिखे विद्यार्थियों की मानसिकता भी मनुष्य की रूप रंगत से ही प्रभावित होती है ये उसे अनुभव हो गया था।जब एक दिन उसकी रूममेट सुमेधा ने जो बहुत सुंदर थी उसे एक क्रीम और पाउडर का डिब्बा पकड़ाते हुए कहा था कमली खुद को ठीक कर ले इन सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग कर देखना कैसा जादू मंतर हो जायेगा

आजकल खुद को सुंदर दिखाना बहुत सरल काम है।चल आजा तुझे आज मैं तैयार करूंगी आज इंट्रोडक्शन पार्टी में सब तुझे देखते रह जायेंगे आखिर सुमेधा की रूम मेट जैसी लगनी चाहिए ना तुझे।फिर वही तिरस्कार की गंध… कमली ने उसी दिन रूम बदल लिया था।अब वह सिंगल रूम में रहने लगी थी।सिर्फ पढ़ाई में मन लगा दिया था उसने ।कॉलेज के साथ बैंक अधिकारी की परीक्षा की  तैयारी करती रही और बैंक में उसकी नौकरी भी लग गई।

मां पिता जी अब काफी संतोष में थे कि कमली का खुद में सिकुड़ना लोगों के बीच असहज हो जाना अब खत्म हो जाएगा ।

आज पहला दिन था उसका जॉब का।आशान्वित थी वह  कि अब इस नए जॉब में कोई उसके रूप रंग से उसका आंकलन नहीं करेगा उपहास पूर्ण फब्तियां कस उसका तिरस्कार नही कर पायेगा।सबकी नजरों में उसके लिए प्रशंसा का भाव महसूस कर पाएगी यही भरोसा लिए कमली अपने नए जॉब पर नए ऑफिस पहुंच गई थी।

मुख्य दरवाजे से ऑफिस में घुसते ही कमली को पूरे ऑफिसकर्मियो की हर नजर खुद पर चुभती प्रतीत हुई थी।कोई उसके स्वागत में खड़ा नही हुआ।आश्चर्यचकित थी वह।आखिर कमली वहां की नई और सबसे बड़ी अधिकारी थी।सबके मध्य से चलते हुए वह जैसे ही अपने शानदार चैंबर में प्रवेश करने लगी सहसा विस्फोट सा हो गया वहां।

अरे ये तो हमारी नई मैम है। ये कलूटी .. हे भगवान क्या चमकता हुआ काला रंग दिया है इन्हे.. इन्हे देख कर तो कोई सोच ही नहीं सकता कि यही हम सबकी इस ऑफिस की नई बॉस हैं… ओह मैं तो कुमारी कमली नाम से किसी खूबसूरत बॉस की कल्पना में खोया हुआ था….अरे चलो अब  गलती तो हो गई इनके स्वागत की इतनी तैयारी की थी

लेकिन इनकी शकल देख कर   पहचान ही नही पाए…आओ अब सब मिल कर बुके देने चलते हैं.. .. तुम्हीं जाओ हुंह ऐसी काली माई जैसी बॉस का स्वागत करो….. सारा मूड खराब हो गया सोच कर कि ऐसी खडूस दिखने वाली बॉस के अंडर में रोज काम करना पड़ेगा..!!

अस्फूट थे ये स्वर लेकिन कमली के कानों में स्पष्ट सुनाई दे रहे थे….!

फिर वही तिरस्कार की गंध …… सहज होती हुई कमली अचानक फिर से असहज हो गई… किसी तरह ऑफिस स्टाफ के स्वागत और बुके का उसने सामना किया।उसका उत्साह खत्म हो गया था ।

जॉब करने पर भी यहां भी लोगो की मानसिकता वैसी ही है रूप रंग के आधार पर … वही तिरस्कार सबकी आंखों में उसने महसूस कर लिया था…. ओढ़ा हुआ सम्मान ग्रहण करना उसके लिए दुष्कर हो गया था .. दिन भर अपने ही चैंबर में सिकुड़ी घुसी बैठी रही किसी से बात करने की कुछ पूछने की उसकी हिम्मत मृत हो चुकी थी।

घर आते ही औंधे मुंह बिस्तर पर गिर गई थी।ये मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है ।बचपन से लेकर हर जगह हर बार तिरस्कार मुझसे पहले मेरा स्वागत करने को पहुंच जाता है.. क्यों!! कब तक..!! दिल में जमा नैराश्य बड़े वेग से घुमड़ उठा था …!!

जब तक तू खुद अपना तिरस्कार करती रहेगी और करवाती रहेगी तब तक.. जब तक तू खुद अपने आपको स्वीकार नहीं कर लेगी तब तक..  जब तक तू इन रंगों का तिरस्कार करती रहेगी तब तक….. मां की तेज आवाज ने कमली को अवाक कर दिया था।लिपट पड़ी थी मां से घुमड़ता हुआ नैराश्य  पूरे वेग से अश्रु बरसात कर उठा था मां तुम भी मुझे डांटने लगीं..!

हां आज मैं तुझे डांट ही रही हूं।आ मेरे साथ ड्रेसिंग मिरर पर लिपटा हुआ परदा खीच कर हटाते हुए मां ने बेटी को जबरदस्ती आईने के सामने खड़ा कर दिया था।

देख अपने सामने खड़ी इस लडको को गौर से देख इसे पहचानती है … नहीं पहचानती ना.  कभी इससे मिली ही नही मिलने की इच्छा ही नहीं हुई तेरी .. यह वो लड़की है जिसका तिरस्कार हमेशा तू करती रही ..इसकी शकल देखना तुझे गवारा नहीं हुआ …!!

एक जमाने के बाद कमली अपने आपको देख रही थी समझ रही थी।

कमली ना मेरी गलती है ना दुनिया वालों की ।गलती तेरी खुद की है।खुद अपनी नजरों में अपने लिए प्रशंसा नहीं है सम्मान नही है विश्वास नहीं है।दूसरो की नजरो में जिंदगी भर तारीफ ढूंढने की कोशिश करती रही ।लोगो की नजरों में दिखते तिरस्कार से खुद का तिरस्कार कर दिया तूने।

पहले अपने आपकी तारीफ खुद कर खुद से पहचान बढ़ा खुद का सम्मान कर ।रंगो का तिरस्कार क्यों किया तूने अपने वजूद को समेटती ही रही लोगो से तारीफ पाने की हसरत में और भी ज्यादा तिरस्कृत होती रही ।एक बार खुद को स्वीकार करके देख..किसी भी तिरस्कार को अपने तक फटकने की अनुमति ही मत दे….!!मानसिकता बदल..!

कमली तो एकटक ड्रेसिंग मिरर वाली कमली को निरख रही थी परख रही थी समझ रही थी…!काले रंग में आज उसे हजारों रंग अपनी प्रतिभा के मेहनत के काबिलियत के दिख रहे थे जो सारे जहां में बिखरने को आकुल थे..!!एक नई परिपक्व कमली नजर आ गई थी।

मां लंच पर घर आ जाऊंगी टिफिन मत बनाओ सामने लाल परिधान में तैयार खड़ी अपनी कमली का खिला दमकता चेहरा मां को समझा चुका था कि कमली ने कमली से खूब जान पहचान कर ली है ।

आज ऑफिस पहुंचते ही कमली सीधे तेजी से अपने चैंबर में जाने के बजाय स्टाफ के बीच पहुंच गई तो सभी असहज हो उठे।  पूरे आत्मविश्वास से सबसे परिचय प्राप्त किया अपना परिचय दिया।बैठकर सबके कार्यों के बारे में जानकारी ली उनकी समस्याएं समझी और समाधान सुझाए…

आज वह सहज थी और सभी को सहज स्वीकार्य भी हो गई थी । गुड मॉर्निंग मैम आप इस ड्रेस में बहुत अच्छी लग रही हैं..उसकी असिस्टेंट ने जब उससे कहा तो आज कमली को उसकी आवाज में टांट महसूस नहीं हुआ था .. थैंक यू वेरी मच कह कर उसने अपनी  तारीफ को सहजता से स्वीकार्य भी कर लिया था।हर नजर में हर स्वर में आज वह खुद के लिए सम्मान ही महसूस कर रही थी आज पहली बार हिम्मत दिखा कर कमली ने तिरस्कार की नही सम्मान की गंध महसूस की थी।

अब इस कमली को हर रंग स्वीकार है अब यह दूसरों के अनुसार खुद का आंकलन नहीं करेगी दूसरों को अपना तिरस्कार करने की अनुमति नहीं देगी।

लतिका श्रीवास्तव

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