बिना टिकट यात्रा- नेकराम Moral Stories in Hindi

शाम को थका मादा कारखाने से घर लौटा तो घर पर कोई न था दरवाजे पर ताला लटक रहा था पड़ोसन ने चाबी देते हुए कहा तुम्हारे मम्मी पापा और भाई बहन सभी अस्पताल गए हुए हैं तुम्हारी मामी शीला का एक्सीडेंट हो गया है पड़ोसन ने अस्पताल का नाम भी बता दिया

मैं उल्टे पांव ही अस्पताल की तरफ चल दिया ,,आधे घंटे बाद अस्पताल पहुंचा गार्ड की मदद से मामी के कमरे तक पहुंच गया ,,मामी जी के सर पर काफी चोट आई हुई थी पैरों पर भी पट्टियां बंधी हुई थी,,मामी ने बताया गोकुलपुरी से लाल किला जाने वाली मिनी बस से,, मुझे कश्मीरी गेट जाना था वही एक चाय की छोटी सी दुकान खोल रखी है

3 साल से इसी रूट वाली बस से मैं हमेशा से जाया करती थी

आज सुबह गोकलपुरी के बस स्टैंड से बस पर सवार हो गई

बाबरपुर फिर सीलमपुर पार करते ही शास्त्री पार्क आते ही सड़क पर एक गड्ढे की वजह से बस अचानक पलट गई बहुत से यात्रियों को चोटे आई है बस मालिक फिरोज खान ने सभी यात्रियों का ईलाज करवाने के लिए साफ मना कर दिया कहने लगा

मैं कैसे मान लूं कि तुम लोग मेरी ही बस में सवारी कर रहे थे क्या सबूत है तुम्हारे पास

घायल यात्रियों से मिलने के लिए एक नैना नाम की वकील आई

उसने बताया हम बस मालिक पर केस दर्ज नहीं कर सकते हैं

क्योंकि कोर्ट सबूत मांगता है आप लोगों के पास बस का टिकट नहीं है ,,तब मामी ने मासूमियत से कहा

बस में हमें कोई टिकट नहीं देता दिल्ली में जितनी भी छोटी मिनी बसें चल रही है उन्होंने कभी टिकट नहीं दिया

अब हमें भी जल्दी जाना होता है इसलिए हम बस में बैठ जाती है हमें क्या मालूम था कि हमारा एक्सीडेंट हो जाएगा बस मालिक तो हमारा हाल-चाल पूछने भी नहीं आया

5 दिन के बाद डॉक्टर ने मामी जी को घर ले जाने की अनुमति दे दी

आसपास के लोगों ने भी समझा दिया कि हमेशा सरकारी बसों में ही सफर करें उसमें टिकट भी मिलती है और कंडक्टर समझदार होते हैं बसों को तेज नहीं चलाते और लाल बत्ती पर तो कभी दरवाजा खोलते ही नहीं

चाहे जितना मर्जी चीख लो और चिल्ला लो ,,यह छोटी मिनी बस वाले कहीं भी बस रोक देते हैं और जहां सवारी

कहे उतरने के लिए चढ़ने के लिए ,,तो फौरन यात्रियों की बात मान लेते हैं और कभी भी उन्हें टिकट नहीं देते

अगले दिन ड्यूटी पहुंचा तो सुपरवाइजर ने कहा नेकराम

तुम नाइट ड्यूटी करके कल सुबह बादली चले जाना

अब मैं पुराना सिक्योरिटी गार्ड हूं इसलिए सुपरवाइजर को मना भी नहीं कर सकता था

बादली के सिक्योरिटी गार्ड को शायद छुट्टी चाहिए होगी इसलिए वहां की पोस्ट खाली हो गई है

नाइट ड्यूटी करके सुबह ,,बस पकड़ के मैं बादली गांव पहुंच गया ,,घर पर मोबाइल से मैंने पत्नी को बता दिया आज मैं डबल ड्यूटी पर हूं ,,बादली के ऑफिस में पहुंचने के बाद दिनभर वहां एक कुर्सी पर वर्दी पहने बैठा रहा

जेब में 20 का नोट था भूख लगने पर दोपहर को 10 रूपए के दो पराठे खा लिए ,,मगर पराठे बहुत छोटे और पतले थे भूख अभी भी लग रही थी ,,वह रेहड़ी वाला कहने लगा बस दो पराठे में ही तुम्हारा पेट भर गया

तब मैंने उसे बताया मेरे पास केवल ₹10 ही बचे है और मुझे रात को छुट्टी होने के बाद बादली से अपने घर धीररपुर गांव भी जाना है

वह रेहड़ी वाला कुछ ना बोला ,,दो पराठे खाकर में जल्दी से ऑफिस में पहुंचा 10 मिनट का समय मांग कर मैं गया था रात भर जागने के कारण आंखों में नींद भरी हुई थी लेकिन ऑफिस में कोई अजनबी ना घुस जाए इसलिए बार-बार आंखों को चौड़ा कर के इधर-उधर

देख कर रखवाली करता रहा

रात 8:00 बजे ऑफिस के लोग छुट्टी करके जाने लगे

रात 8:30 बजे तक मैंने लाइट बंद करके ऑफिस का ताला लगा दिया चाबी को अपने बैग में रखकर मैं बस स्टैंड की तरफ तेजी से चल पड़ा रास्ते में ऑफिस के मालिक का घर था उन्हें चाबी पकड़ा कर 9:10 तक मैं बस स्टैंड पर आकर खड़ा हो गया ,,वहा सड़कों पर खंभों की लाइटें बंद थी चारों तरफ अंधेरा था ,,महिलाएं और लड़कियां कंधे पर बैग टांगें हुए खड़ी थी जो भी बस आती वह फौरन चढ़ जाती

जितनी भी सरकारी बसें थी वह चार महिलाओं से अधिक किसी को नहीं बैठा रहे थे हम पुरुष लोग वहीं खड़े हुए थे और धीरे-धीरे पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी कुछ पुरुष लोग तो ऑटो रिक्शा करके ही निकलने के लिए तैयार हुए कुछ पुरुष आपस में बातें करने लगे यह कोरोना ना जाने कब ठीक होगा सरकार ने बसे तो चालू कर दी है लेकिन जितनी सीटे हैं उतने ही यात्री जा सकते हैं तभी एक मिनी बस तेजी से आकर बस स्टैंड पर खड़ी हो गई और सारे पुरुष धक्का मुक्की देकर उसमें चढ़ने लगे

किसी ने बताया यह आखिरी बस है 9:30 बजे वाली इसके बाद कोई भी मिनी बस नहीं मिलेगी और सरकारी बसों में तो

पुरुष बिल्कुल चढ़ ही नहीं सकते हैं क्योंकि बस वाले पहले महिलाओं को ही चढ़ाएंगे और बस फुल हो जाती है मेरी आंखों में नींद भी आ रही थी और जेब में केवल 10 का नोट पड़ा हुआ था मैं तो ऑटो रिक्शा करके भी घर नहीं पहुंच सकता था

एक ऑटो वाले से बात भी की थी वह पूरे ₹20 मांग रहा था

मुझे मजबूरी में मिनी बस की सीढ़ियों पर लटकना पड़ा

मिनी बस अंदर एकदम  भरी हुई थी कंडक्टर जल्दी-जल्दी सब लोगों से रुपए लेने लगा ड्राइवर ने अब बस चला दी थी मैंने दोनों हाथों से मजबूती से बस के दोनों डंडे पकड़ रखे थे तभी कंडक्टर ने मुझे रुपए मांगे कहा पैसे दो तब मैंने बड़ी मुश्किल से एक हाथ को छोड़कर जेब में हाथ डाला और 10 का नोट निकाला

ड्राइवर तेज स्पीड में बस चल रहा था बस इधर-उधर झूल रही थी

मेरा हाथ छुटने ही वाला था मुझे लगा अब मैं चलती बस से नीचे गिर जाऊंगा जैसे ही एक मोड़ आया और ड्राइवर ने बस को मोडा तो पूरी बस का वजन मेरे ऊपर ही आ गिरा मैंने पलक झपकते ही अपना दाया हाथ जिसमें नोट था जल्दी से गेट वाले डंडे को कस के पकड़ लिया डंडा पकड़ने के चक्कर में मेरा नोट हाथ से छूट गया बस बहुत आगे निकल चुकी थी

नोट पीछे ही कहीं सड़क पर गिर चुका था

कंडक्टर ने फिर मुझसे रुपए मांगे तो मैंने कहा 10 का नोट था वह तो हवा में कहीं उड़ गया

कंडक्टर ने मेरी बात न मानी और कहा हम अच्छी तरह जानते हैं मुफ्त में सवारी करने का यह डायलॉग अब पुराना हो चुका है

कंडक्टर ने तुरंत ड्राइवर को सूचना दी बस रोको और मुझे बस से नीचे उतार दिया गया और बस फिर आगे की तरफ चल पड़ी एक सुनसान सी सड़क पर मैं खड़ा जाती हुई बस को देखता रहा

कितने ऑटो तेजी से उस सड़क पर दौड़ रहे थे कुछ बाइके कुछ साइकिलें भी दिखाई दे रही थी मैंने जल्दी से मोबाइल जेब से निकाला तो बैटरी भी खत्म हो चुकी थी टाइम का कुछ पता नहीं था लेकिन मैंने अंदाजा लगाया रात के 10:15 बज गए होंगे

जेब में बटन वाला फोन था मगर मेरे लिए तो बहुत कीमती था कहीं रास्ते में कोई गलत लोग ना मिल जाए मैं तेज तेज कदमों से ही पैदल चलने लगा अभी तक मैं भलस्वा कॉलोनी तक पहुंच चुका था सफर अभी भी लंबा था मुझे चिंता इस बात की थी पत्नी और बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे

रास्ते में सड़क किनारे एक बाइक पर दो लोग दिखाई दिए

उनके हाथों में एक-एक गिलास था और बाइक की सीट पर शराब की बोतल रखी हुई थी मैंने उन लोगों से मदद मांगी मैं कहने लगा मेरे मोबाइल की बैटरी खत्म हो चुकी है मुझे घर पर कॉल करके बताना है कि मैं अभी यहां भलस्वा पर हूं आने में थोड़ा वक्त लगेगा उन्होंने मुझे चोर समझ कर मोबाइल न दिया उन्होंने जल्दी-जल्दी पैग मार के खाली बोतल

वही झाड़ियों में

फेंक कर बाइक में बैठकर तुरंत चंपत हो गए

मैंने फिर तेज तेज कदमों से चलना शुरू किया और सोच लिया अब पैदल ही घर जाना होगा पैदल चलते-चलते में बुराड़ी क्रॉसिंग के फ्लाईओवर के नीचे तक तो पहुंच गया वहां एक पुलिस की जिप्सी खड़ी हुई थी पुलिस वालों से मदद मांगू या नहीं छोड़ो अब आगे का सफर पैदल ही तय कर दूंगा कहीं पुलिस मुझे चोर समझ कर थाने में बंद न कर दे सुबह से नहाया नहीं हूं बाल भी झंडू बाम की तरह हो गए है

दो पतले पतले पराठों से पेट भी ना भरा

अब पैदल चल रहा हूं तो भूख जोरों की लग रही है

मैंने फ्लाईओवर पार करके एक बस स्टैंड की पट्टी पर बैठकर थोड़ा सुस्ताने लगा

तभी मुझे वहां पर एक बाइक दिखाई थी वह बाइक तेजी से मेरी तरफ लपकी मैंने तुरंत पहचान लिया यह तो मेरा साला मयंक है उसने तुरंत मुझे देखते ही कहा घर पर दीदी कितनी परेशान है आपका मोबाइल स्विच ऑफ जा रहा है

दीदी ने बताया था दिन में आपकी ड्यूटी बादली गांव में है तब मैं इसी रूट पर आपको खोजता खोजता यहां तक आ गया मैं कुछ ना कह सका और तुरंत बाइक पर बैठ गया 10 मिनट के बाद ही बाइक से मैं घर आ गया और सारी बात साले और बीवी को बता दी पत्नी ने कहा कोई जरूरत नहीं है डबल डुयुटी लगाने की और इतनी दूर बादली गांव जाने के लिए,,

अब मैं क्या कहता उधर सुपरवाइजर ने डंडा दे रखा है अगर बादली गांव में डुयूटी नहीं करोगे तो नौकरी से इस्तीफा दे दो इस कहानी के माध्यम से मैं यही बताना चाहता हूं एक गरीब औरत या आदमी का जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष है

नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से स्वरचित रचना

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