एक नई सुबह – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय: Moral stories in hindi

“बस….चुप हो जाओ…राघव…! बहुत देर से मैं तुम्हें सुन रहा हूं. ऐसा लगता है कि बस तुम ही जवान  हुए हो इस घर में और कोई नहीं!

तुम्हें ना अपने मां बाप का सम्मान है और ना ही रिश्ते नातों का लिहाज  है।

तुम्हें बताने में शर्म नहीं आई… कैसे बेहया इंसान हो तुम..।अब तुम अपने मुंह से बता रहे हो कि तुम अपनी मर्जी से शादी करना चाहते हो। तुमने अपने लिए लड़की भी पसंद कर ली है।

… और जहां मैंने रिश्ते की बात की है उसका क्या?दयाल जी को मैं क्या जवाब दूंगा अब?

बिल्कुल भी तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी जहां मैंने तुम्हारी शादी की तय किया है, वहीं  तुम्हारी शादी होगी।”अविनाश जी अपनी रौ में बोलते जा रहे थे।

“बिल्कुल भी नहीं पापा, राघव ने दबी जुबान से कहा… मैं वहां बिल्कुल भी शादी नहीं कर सकता।

मैं आरती को छोड़ कर किसी और के साथ नहीं शादी कर सकता…

शादी करूंगा तो मैं आरती से ही।

 “खबरदार…!

अविनाश बाबू फिर से चिल्लाए ।

उनकी दहाड़ सुनकर उनकी पत्नी माधवी सकपका गई।

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वह बीच बचाव करती हुई राघव  को समझाते हुए बोली

“राघव,अपने पापा की बात क्यों नहीं सुन लेते हो…।कोई गलत तो नहीं बोल रहे हैं ना तुम्हारे पापा।”

“ मां, आज तक हर बात सुनता आया हूं।

पापा को मन था कि मैं मैनेजमेंट करूं जबकि मेरी इच्छा थी कि मैं मास कम्युनिकेशन करूँ।

मैं अपनी इच्छा का गला घोंट कर पापा की इच्छा का मान किया।

पापा की इच्छा थी कि मैं विदेश नहीं जाऊं मैं विदेश नहीं गया। 

मैं पापा की सारी बात मानता रहूं और पापा मेरी कोई भी बात नहीं मानेंगे…!!

मेरी जिंदगी मेरी है। अब शादी मेरा पर्सनल मैटर है। मैं अपनी मर्जी से शादी करूंगा। मुझे आरती पसंद है और मैं आरती से ही शादी करूंगा। यह मेरा फैसला है…!”राघव गुस्से में पैर पटकते हुए घर से बाहर चला गया।

उसके जाते ही घर में एक सन्नाटा सा छा गया।

अविनाश बाबू गुस्से और अपमान से हांफने लगे थे।

जल्दी से माधवी ने फ्रीज से पानी निकाल कर उन्हें देते हुए कहा

“ यह रोज-रोज की चिल्लम चिल्ली, बाप बेटे का तकरार सही नहीं है।

बेटा जवान हो गया है। अपने पैरों पर खड़ा है। कल को अपनी मरजी से शादी कर  घर छोड़कर चला जाएगा तो आपकी क्या इज्जत रह जाएगी?”

“ और…और जो मैंने दयाल साहब को वचन दिया है उसका क्या?”

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“कोई बात नहीं दयाल जी को दामाद तो और मिल जाएंगे पर आपका बेटा आपके हाथ से निकल ना जाए! थोड़ा समझा कीजिए।” अपनी पत्नी की बात सुनकर अविनाश बाबू थोड़ा होश में तो आए मगर उनका अपना अहम सामने आने आ रहा था।

 वह झुकने के लिए तैयार ही नहीं थे।

“ राघव बार-बार कह रहा था कि आप एक बार आरती से मिल लीजिए मगर  आप तो तैयार ही नहीं हो रहे हैं…।”

 

दो दिन से घर पर कोल्ड वार छिड़ा हुआ था। जब राघव खाने के मेज पर आता अविनाश बाबू अपने घर कमरे में ही खाना मंगवा लिया करते। जब अविनाश बाबू खाने के टेबल पर बैठते तो किसी ने किसी बहाने से राघव वहां से हट जाता था। 

दोनों में से कोई झुकने के लिए तैयार नहीं था। 

अगले तीन दिनों में राघव की छुट्टी खत्म होने वाली थी। उसे नागपुर वापस लौटना था।

इन सब के बीच माधवी की बुरी तरह से पीस रही थी। वह न अपने पति को समझा पा रही थी और न हीं अपने बेटे को।

जाने की दिन राघव ने अपने कमरे में एक चिट्ठी लिख छोड़ी  थी

“मां पापा

 प्रणाम

 मैं महाराष्ट्र काम पर वापस जा रहा हूं पर शादी तो मैं अपनी पसंद से करूंगा। आप दोनों अगर मेरी पसंद में शामिल है तो आप दोनों का स्वागत है। 

मैं  और आरती ने कोर्ट मैरिज के लिए अप्लीकेशन दे दिया है।

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यह पढ़कर माधवी जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह गुस्से में भुनभुनाने लगीं।

“जीते जी बेटा घर से चला गया। अगर थोड़े से सब्र से काम लिया होता तो शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।

अब करो अपनी मरजी।नहीं सुनने आ रहा है राघव अब..!”

अपने बेटे के चिट्ठी पढ़कर अविनाश बाबू सकपका कर बैठे रहे। 

माधवी रो रहीं थीं।

“बेटा चोर की तरह शादी कर रहा है। उससे तो अच्छा होता कि हम उसकी शादी  हम करवाते। 

किस बात का गुस्सा है आपको किस बात की नाराजगी। वह तो आपको इज्जत दे रहा था ना। आपकी हर बात मान रहा था। अब अगर उसकी  रुचि कहीं हो गई है तो करने दीजिए शादी क्या फर्क पड़ता है..  अरेंज मैरिज करके ही क्या होगा? बस हमारी संतुष्टि और कुछ नहीं.. !!!”

तभी दयाल जी की का फोन आ गया माधवी जी ने फोन उठा कर कहा

“ हेलो भाई साहब,हम क्षमाप्रार्थी हैं। हम आपके यहां शादी नहीं कर सकते।

आप अपनी बिटिया के लिए कहीं और लड़का देखिए। हमें भी अगर कोई अच्छा लड़का दिखेगा तो हम आपको जरूर बताएंगे।

हमारे बेटे ने अपने लिए लड़की पसंद कर लिया है।”

 फिर वह अविनाश बाबू की तरफ मुड़कर बोलीं

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“मुझे एटीएम कार्ड दीजिए। मुझे अपनी होने वाली बहू के लिए शॉपिंग करनी है।”

काफी देर तक आत्म मंथन करने के बाद अविनाश बाबू ने माधवी जी से कहा 

“चलो मैं भी चलता हूं।  बहू के साथ साथ बेटे के लिए भी कपड़े खरीदने हैं।

हम दोनों नागपुर चलते हैं।”

 

 अचानक अपने माता-पिता को अपने घर में देखकर राघव घबरा गया।

“मां पापा आप दोनों यहां?”

“हाँ कोई हमसे छुपकर शादी कर रहा था।उसकी चोरी को सार्वजनिक करना है…!”अविनाश बाबू जोर से हँस पड़े। 

“ पर पापा आप तो शादी के लिए तैयार ही नहीं थे।”

“कोई बात नहीं। तुम्हारी पसंद हमारी पसंद।

 हमें आज ही अपनी होने वाली बहु से मिलवाओ फिर हम शादी पक्की करते हैं।”

 यह सुनकर राघव खुशी से झूम उठा।

 वह अपने पापा के गले से लिपट कर बोला

“ थैंक यू पापा!”

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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#तकरार

सर्वाधिकार सुरक्षित

मौलिक और अप्रकाशित

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