वसुधा की शादी के 6 महीने बाद ही उसके बड़े भाई वरुण की शादी थी तो वो अपने ससुराल से रोज़ मायके पहुंच जाती थी और वहाँ अपना पूरा वर्चस्व और प्रभाव दिखाती रहती। वरुण की पत्नी दिशा बहुत सुंदर और गुणी थी। पर वसुधा न जाने क्यों दिशा को पसंद नही करती थी और उससे द्वेष की भावना रखती थी।
उसे जब भी मौका मिलता वो अपने माँ पापा को भड़काने का काम किया करती कि बस उसके माता पिता अपनी बहू से भावनात्मक रूप से न जुड़ पाएं,पराये घर की बहू होने के बावजूद उसे मायके में अपने अस्तित्व की असुरक्षा घेरे थी। हालांकि मालाजी और हरीशजी को कभी ऐसा नही महसूस हुआ कि उनकी बहू लापरवाह या लालची है
पर वसुधा कोई एक मौका नही छोड़ती। जब दिशा सब कुछ सही से करती और शिकायत की कोई गुंजाइश न रह जाती और वसुधा को कोई वजह न मिलती तो वो यही कहती कि भाभी तो आपकी संपत्ति के लालच में सब करती हैं वरना आपको घर के बाहर का रास्ता दिखा देगी।
लगातार एक ही जगह चोट करने से निशान तो बन ही जाता है फिर जो नही भी होता है वो भी दिखाई देने लगता है।ऐसा ही कुछ मालाजी के साथ भी होने लगा।हरीश जी ने बहुत समझाया पर वो बेटी के मोह में अंधी हो गई थी।
आखिरकार एक दिन मालाजी ने वरुण, दिशा,वसुधा और अपने दामाद को बुलाया और अपना फैसला सुनाते हुए बोली,”मैं अपनी संपत्ति दोनों बच्चों को बराबर देना चाहती हूँ,तुम सबकी सहमति जाननी थी मुझे।”
वरुण अवाक रह गया क्योंकि उसको तो पता ही नहीं था कि घर मे चल क्या रहा है और वसुधा खुशी के मारे फूल के कुप्पा हुई जा रही थी।
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मालाजी की निगाहें सिर्फ अपनी बहू की तरफ थीं ,जो विष का बीज बेटी ने दिमाग मे बोया था उसके असर के फलस्वरूप वो अपनी बहू में लालच के स्तर को तोल रही थीं,तभी दिशा बोली,”ठीक है माँजी आपका फैसला बिल्कुल सही है ।आखिर दोनों बच्चों में आपने बराबर तकलीफ सही, पर हमारा जितना हक आपकी संपत्ति पे होगा
उतनी ही बराबरी का हक आपके प्रति ज़िम्मेदारी का भी होगा। दीदी को आपकी वरुण के बराबर ही सेवा करनी होगी फिर अपने को लड़की बताकर अपनी मजबूरियां नही गिना सकतीं हैं ये। मुझे आपका ये फैसला खुशी खुशी स्वीकार है पर आप दीदी से भी ये स्पष्ट कर लीजिए कि इन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों को उठाने में कोई तकलीफ तो नहीं होगी?? ऐसा तो नहीं होगा कि संपत्ति लेकर आपको भूल जाये और मुझे और वरुण को ये याद दिलायें की माता पिता की ज़िम्मेदारी बेटे की होती है।”
मालाजी मन ही मन सोच रही थीं कि दिशा तो बिना कुछ आनाकानी किये आसानी से ही मान गयी।
तभी मालाजी का दामाद बोल पड़ा,” अरे दिशा,जिसने अपने घर में अपनी ज़िम्मेदारी न महसूस की हो वो दूसरे के घर आकर क्या ज़िम्मेदारी निभाएगी। इसने आज तक न मेरे माता पिता की इज़्ज़त की न उनके प्रति अपना कोई फ़र्ज़ निभाया। मेरी बहनों ने इसके आने के बाद अपना मायका छोड दिया।ये क्या समझेगी की ज़िम्मेदारी क्या होती है।
मालाजी अवाक रह गईं क्योंकि उनके दामाद एक गंभीर व्यक्ति थे। कभी उन्होंने वसुधा की कोई बात या शिकायत नही कही थी।और आज उनके अंदर का गुबार बाहर आया था। इतना कहकर वो उठ के खड़े हो गए और हरीश जी से विनम्रता से बोले,”मांफ करियेगा पापाजी आपके बुलाने पर मैं आ गया पर अगर मुझे पता होता कि यहाँ ये सब चल रहा है तो मैं बिल्कुल नही आता।पूछिए अपनी लाडली बेटी से कि जो ये यहाँ करवा रही है अगर यही मेरे घर में हो तो ये बर्दाश्त कर लेगी क्या,मेरी तो तीन बहनें हैं।
इतना कहकर वो वसुधा को वहीं छोड़कर निकल गए।
मालाजी और हरीशजी शर्मिंदा और निरुत्तर रह गए।
हरीश जी ने माला जी को बहुत लताड़ा और कहा,”तुम्हारी नाजायज़ बातों को मानने का ये नतीजा हुआ कि तुम्हारे साथ मेरा सर भी शर्म से झुक गया। अगर अपनी बेटी को प्रपंच के अलावा कुछ अच्छी शिक्षा दी होती तुमने तो आज मुझे और तुम्हे ये दिन न देखना पड़ता।”
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वसुधा खिसिया के रोने लगी तो हरीशजी उससे बोले,” बेटा अपनी जगह अपने व्यवहार और कर्मों से बनाई जाती है।तुम अगर सबसे ईर्ष्या की भावना रखोगी तो कहीं भी सुखी नहीं रहोगी।शादी के बाद ससुराल में ही बेटियां शोभा देती हैं और तुमने वहां भी अपनी जगह खत्म कर ली।बेटियां अपना हक इस तरीक़े से नही मांगती ।
मैंने तुममें और वरुण में कभी कोई फर्क नही किया बल्कि उससे ज़्यादा ही तुम्हारे लिए किया है और आगे भी करता रहूंगा।तुम्हारे लिए तो हमेशा इस घर के दरवाजे खुले हैं।मुझसे ज़्यादा तुम्हारा भाई सोचता है तुम्हारे लिए पर अगर इस तरह ले जाओगी तो हमारे बाद तुम्हे अगर भावनात्मक सहारे की ज़रूरत पड़ी तो कहाँ से पाओगी?संपत्ति से भावनाएं नही आती बेटा।और हां ये भी उतना ही सच है कि संपत्ति का बंटवारा करने के बाद अगर हमारे प्रति 6 महीने वरुण की ज़िम्मेदारी है तो अगले 6 महीने तुम्हारी भी है।”
पापा के मुंह से इतना स्पष्ट फैसला सुनते ही वसुधा का चेहरा बिगड़ गया।उसकी सोच के विपरीत परिणाम आ गया।
फिर उसने अपने पापा, मां,भाई और भाभी से मांफी मांगी और अपने ससुराल के प्रति अपने भूले हुए कर्तव्यों को पूरा करने चल दी अपने घर अपने मायके से ढेर सारा प्यार और ससुराल के सभी सदस्यों के लिए सम्मान लेकर……।।।।।।
-सिन्नी पान्डेय
दिल को छू गई, काश ऐसा हो
Bakwaas