अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 40) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

मनीष कोयल की ओर मुड़ते हुए विनया को दिल से चाहने के अहसास का अनुभव कर रहा था, परंतु अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में संकोच कर रहा था। उसकी नजरें विनया पर होने के बावजूद, वह अपनी भाभी की ओर उन्मुख होता हुआ कोयल की ओर बढ़ रहा था। इसी बीच, विनया तेजी से दौड़ती हुई अंजना के कमरे की ओर बढ़ते हुए अपने दिल में छुपे राज को सुलझाने का संकेत दे रही थी।

“भाभी, आज! क्या कह रही हैं?” मनीष कोयल की बात पर थोड़ा विचलित सा हो गया था।

“हाॅं भाई, हम चारों आज शाम की ट्रेन से निकलेंगे।” संभव भी कोयल के पीछे से आता हुआ कहता है।

“हम चारों मतलब बुआ भी आपके साथ, पर अचानक कैसे?” मनीष संभव की ओर बढ़ता हुआ पूछता है।

“मम्मी की तबियत भी ठीक नहीं है। पापा की तबियत भी नासाज रहती है। सहायकों के भरोसे कब तक रहेंगे और कल रात हमने टिकट देखा, मिल गया।” संभव मनीष के कंधे पर हाथ रख कर विस्तार से बताता है।

“पर एक बार बताना तो चाहिए था। मिन्नी विन्नी आई हैं तो मैंने सोचा सब मिलकर फैमिली टाइम एंजॉय करेंगे।” मनीष के चेहरे पर उदासी के बादल मंडराने लगे थे।

“बुआ जानती हैं?” मनीष बुआ के कमरे की ओर देखता हुआ पूछता है।

“हूं, रात में उन्हें बताया था मैंने।” संभव बालकनी की रेलिंग पकड़ अब धरती पर फैली किरणों की ओर देखता हुआ कहता है।

“वो तैयार हो गई, इतनी जल्दी।” मनीष अभी भी असमंजस में था।

“भाई मेरे, मैं समझता हूं तुम दोनों का एक दूसरे के प्रति मोह। लेकिन भाई हर रिश्ते की अपनी एक जगह और मर्यादा होती है। जहां तक मैं समझता हूं इन दो चार दिनों में तुम समझ गए होगे और अब मम्मी के लिए भी ये समझना आवश्यक है। यह नए रिश्ते को मजबूती से जोड़ने का समय है और हमें इसे पूरे मन से ग्रहण करना चाहिए। चुनौतियों के बावजूद तुम्हारा साथ और समर्पण ही तुम्हें सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचा सकता है। इस नई यात्रा में खुद को खोलकर और आपसी समझदारी से आगे बढ़ो। जीवन नए सफर की ओर बढ़ रहा है और मैं चाहता हूं कि तुम इसे खुले दिल से स्वीकार करो।” संभव मनीष को बड़े भाई की तरह समझाता हुआ कहता है।

“लेकिन भैया”, मनीष खुद को व्याकुल सा महसूस कर रहा था। 

“कुछ नहीं भाई, समझो सभी एक नए जीवन का आगाज कर रहे हैं। इस नए समय में जब तुम और विनया दोनों नए रिश्ते की ओर कदम बढ़ा रहे हो, मैं चाहता हूं कि तुम्हारा साथ हमेशा मजबूत रहे और तुम एक दूसरे का समर्थन करते रहो। इस नए दौर में सहयोग और समझदारी की आवश्यकता है और मैं आशा करता हूं कि तुम इसे पूरी तरह से आत्मसात करोगे। जीवन के इस सफल सफर में तुम्हें बहुत सारी खुशियाँ और समृद्धि मिले।” संभव मनीष को हर तरह से समझाता हुआ कहता है।

“चाय, चाय” दोनों की बातों पर विराम लगाती हुई संपदा चाय की ट्रे लिए बालकनी में हाजिर हो गई।

दोनों चाय का कप ट्रे में से उठाए साथ ही बुआ के कमरे की ओर बढ़ गए। 

“बुआ चाय”, संपदा ट्रे रखती हुई कहती है।

“आज चाय किसने बनाई।” बड़ी बुआ छूटते ही पूछती हैं।

“कोयल भाभी ने बुआ”, संपदा चाय का कप बुआ की ओर बढ़ाती हुई कहती है।

“हाॅं, विनया से तो उम्मीद करना ही बेकार है।” बड़ी बुआ जली भुनी विनया के लिए कड़े शब्दों में कहती है।

“क्या फर्क पड़ता है बुआ, कोयल भाभी बनाए या विनया भाभी। हमें तो आम खाने से मतलब है, गुठली गिनने से थोड़ी ना।” संपदा लाड़ से बुआ की गलबहियां करती हुई कहती है।

“कोयल से कहो, सबकी चाय हो गई हो तो मेरी चीजें देख ले , कहां क्या रखा है और रखनी है।” बड़ी बुआ मनीष की ओर देखकर कहती है।

मनीष की ऑंखों में भावनाओं का मेला छाया हुआ था, जब वह बुआ से पूछ रहा था, “बुआ, आपने जाने के लिए स्वीकृति क्यों दी।” भले ही बुआ ने उसे मोहरा बनाया हो, लेकिन उसने तो उसे ममता का रिश्ता समझा था।

“हम लोग कब तक यहां रहेंगे बेटा, अपना घर बार भी तो देखना है।” बड़ी बुआ मंझली बुआ के शब्दों को चबा चबा कर बोल रही थी और उनके इस कथन पर मंझली बुआ अपनी बड़ी बहन के बदले रंगत को आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगी।

“दो महीने बाद फिर आना है बुआ।” संपदा कहती है।

दो महीने बाद भैया और भाभी की शादी की सालगिरह है बुआ और आपके बिना भैया घोड़ी तो चढ़ेंगे नहीं ना,” ये बताते हुए संपदा की आँखों में बहती हुई भावनाएं संगीत के तारों की भांति लग रही थी, जो उसके शब्दों को एक विशेष मिठास और आनंद से भर दे रही थी। इस खास मौके पर उसकी आँखों में बजती हुई हंसी और लाड़ भरी मुस्कान दिख रही थी, जो एक नए संबंध की मिठास का प्रतीक था। यह चुपके से और प्यार से कहे गए शब्द थे, जो परिवार की खुशियों को एक नए स्तर पर ले जाने का एलान कर रहे थे।

“उसमें तो हम भी आएंगी।” बारी बारी से सबकी बातें सुनती हुई चाय का घूंट लेती मिन्नी चहकती हुई कहती है।

“हम सब बहनें खूब धमाल करेंगी और इस बार हमें कोई नहीं रोकेगा।” संपदा मिन्नी की खुशी पर मुहर लगाती हुई बुआ को पकड़ कर झूल रही थी।

“क्या बात है, आज बहुत प्यार आ रहा है बुआ पर।” बुआ उसके दोनों हाथ पकड़े हुए कहती हैं।

“आज कोई काम नहीं है, फटाफट सब तैयार हो जाओ। नाश्ता, लांच सब बाहर होगा।” संपदा अब बुआ को छोड़ कर सबके सामने खड़ी होकर ज़ोर से कहती है।

“भाभी कैसे जाएंगी, उनके पास कौन होगा।” आज प्रथम बार मंझली बुआ को अंजना की चिंता सता रही है।

“पापा होंगे ना बुआ, उन्होंने फिलहाल जाने से मना कर दिया है, अब ज्यादा विमर्श की जरूरत नहीं है। तैयार होइए सब, चलो मिन्नी विन्नी।” ट्रे में कप समेटती हुई संपदा दोनों से कहती है।

“लेकिन ननद रानी, हमारी पैकिंग।” कोयल हाथ का काम छोड़ कर कहती है।

संपदा ने उल्लास भरे स्वर में कहा, “मैं और मिन्नी विन्नी आपकी मदद कराते हैं ना भाभी।” उसकी आवाज में एक नए आरंभ की उम्मीद की झलक थी, जिससे उसका इरादा साफ था कि वह परिवार के हर सदस्य की खुशी और समृद्धि में योगदान करने के लिए तैयार है। इस घड़ी में उसमें एक नया ऊर्जास्वरूप उत्साह था, जो उसे नए समय का साथी बनने के दृढ़ संकल्प की ओर प्रेरित कर रहा था।

बुआ जी, मनीष चाहते हैं कि आप दोनों ये वाली साड़ी डालें। कलफ लगी बिल्कुल नई गुलाबी और पीले रंग की सूती साड़ी लिए विनया का कमरे में पदार्पण होता है और इस खास मौके पर ना चाहते हुए भी बुआ जी की मुस्कान में एक खास चमक आ गई थी, जो बता रही थी कि वह हैरत और प्रेम से भरी हुई हैं क्योंकि यह उपहार सही मायने में प्रियता और समर्पण का प्रतीक था। उनकी मुस्कान ने परिवार की मिठास को और भी गहरा बना दिया।

बुआ जी की मुस्कान में छिपी खुशी विनया को आनंद से भर गया। उसके चेहरे पर एक प्यार भरी नीर छलक आई था। नई सूती साड़ियों के द्वारा आया हुआ यह परिवर्तन माहौल को आकर्षक बना रहा था और उसके पदार्पण ने उस कमरे की ध्वनि को भी सुरीला बना दिया था। 

“मनीष क्या, तुम भी यह साड़ी डालने कहती तो हम जरूर डालते बहू।” कहती हुई विनया की आँखों में विशेष चमक थी, जो विनया को उसकी ख़ासियत का अहसास करा रही थी।

विनया के चेहरे पर भी मुस्कान खिल उठी थी और उसकी आँखों से आभास हो रहा था कि वह मंझली बुआ के विचार सुनकर खुशी से भर गई है। और वह महसूस करती है कि इस परिवार के सभी सदस्य धीरे धीरे उसे अपना रहे हैं, जो आगे चलकर उसकी ज़िन्दगी को नए रंगों में रंग देगा। उसकी हंसी में समाहित थी एक अनुभूति, जो कह रही थी कि एक और नए साथीत्व और समर्पण का प्रारंभ होने जा रहा है।

इस उम्र में भी दूधिया वर्ण लिए लंबी कद की बड़ी बुआ पीली साड़ी, खुले बालों को लहराती इस कदर चमक रही थी जैसे कि वह सरसों के खेत में खिली धूप की किरणों का एक जीवंत चित्र थी। जिसकी छाया में सरसों की मिठास और धूप की गर्मी एक साथ मिलती है, जो कि देखने वालों के मन को छू जाती है। बड़ी बुआ बैठक में उनकी प्रतीक्षा में बैठे सदस्यों की ओर ज्यों ज्यों बढ़ रही थी, उस पीली साड़ी में लिपटी बुआ को देख सबके नयन जुड़ा गए थे और एक ताजगी भरी बयार की अनुभूति सभी के चारों ओर बिखरने लगी थी। बुआ जैसे ही बैठक में आई उनकी चमकती हुई मौजूदगी ने एक ताजगी भरी बयार की भावना को उत्कृष्टता से बढ़ा दिया और सभी सदस्य उसके सौंदर्य में विलीन होकर खड़े रह गए।

मनीष बुआ के इस रूप को देखकर उनकी ओर बढ़ ही रहा था कि कृष्ण के वर्ण को आत्मसात करने वाली मंझली बुआ गुलाबी साड़ी में अपने बालों का करीने से लपेट कर जुड़ा बनाए आती दिखी, मनीष के वही थम गए थे।

गुलाबी साड़ी में वह मानो आफताबी रंगों का समर्थन कर रही थी, इस साड़ी में वह एक आलस्यरहित और उत्साहयुक्त अंदाज में आगे बढ़ रही थी जैसे गुलाबी फूलों की सुगंध से भरा हुआ मोहब्बत से युक्त एक दिन दिन खिल आया हो। उसके चेहरे पर हंसी और आत्मविश्वास की छवि साड़ी को एक नई ऊँचाई देती है, जैसे कि गुलाबी रंग खूबसूरती को और बढ़ाता है। जैसे कि एक गुलाब का बगीचा जिसमें हर फूल अपनी मुस्कान बिखेर रहा हो। उनका व्यक्तिगत रूप और आत्मविश्वास सजग और सुंदर बना रहा था जो उनकी गुलाबी साड़ी की रौशनी में और भी बढ़ रहा था। गुलाबी साड़ी में वह सौंदर्य की नई परिभाषा गढ़ रही थी और सरसों सी हँसी के साथ मिलकर मानो सभी से अपनी प्रियता के साथ लिपटने का आह्वान कर रही थी।

“आज तो मेरी सासु मां और मौसी जी का कायाकल्प ही हो गया है। कहां छुपाया हुआ था आपने अपने इस हुस्न को।” कोयल संपदा की गोद में गोलू को देती हुई कहती है। उसकी आँखों में चमक थी, जो एक संतुलन से भरी हुई खुशी की कहानी कह रही थी।

मनीष और संभव भी दोनों को इस स्वरूप में देख हतप्रभ थे और दोनों बुआ के चेहरे पर एक लावण्यमयी मुस्कान छाई हुई थी। एक सजीव और सुखमय वातावरण में इस नए आरंभ के साथ उनकी मुस्कान खुद की खुशी नहीं बल्कि बुआ की खुशी को भी आत्मसात कर रही थी।

“आज अगर सारी अभिनेत्रियां हमारी बुआ को देख लें तो शर्म के मारे पानी भरने लगे। क्यों संपदा!” मनीष दोनों बुआ के बीच खड़ा उन्हें कंधों से पकड़ता हुआ कहता है।

“एक मिनट, एक मिनट” कहती हुई संपदा अपने कमरे की ओर दौड़ पड़ी।

“ये लड़की भी ना, हवाई घोड़े पर सवार रहती है।” संभव हॅंस कर कहता है।

“हवा हवाई आ भी गई और ये लेकर आई है। बुआ हमारी सबसे खास हैं और आज तो और भी खास लग रही हैं!” चहकती हुई संपदा अपने हाथ में लिए काजल पेंसिल से दोनों बुआ के कान के पीछे काला टीका लगाती हुई कहती है।

तुम्हारी हरकतें भी ना…

“प्यार भरी होती हैं, आई नो…आई नो”…संपदा शरमा उठी बड़ी बुआ के कथन को पूर्ण होने से पहले ही कह उठती है। उसकी आवाज में एक मीठी सी गुदगुदी मिली हुई थी, जो एक गीत की तरह कमरे में मदहोशी फैला रही थी।

“चलें, मेरे पेट में हाथी घोड़े हुड़दंग मचा रहे हैं।” विन्नी अपना पेट पकड़ आधी झुक कर कहती है।

उसकी इस हरकत ने सभी को हास्यपूर्ण हंसी की ओर मोड़ दिया था।

“ओके मम्मी, अपना ध्यान रखना।” दरवाजे तक आई अंजना से संपदा और मनीष कहते हैं।

“आप भी नाश्ता कर लीजिए।” सबके जाने के थोड़ी देर बाद अंजना अपने पति के कमरे में झांक कर आवाज देती है।

विनया ससुर जी के लिए पोहा और साथ में पकौड़े बना गई थी और अंजना के लिए दलिया और फल काट कर डाइनिंग टेबल पर सजा कर गई थी।

अंजना पति के लिए डोंगे से पोहा निकाल कर देती है और चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई। क्योंकि वो जानती थी कि चाय के बिना पोहा उसके पति को पसंद नहीं है। रसोई चाय की पत्तियों और मसालों की खुशबू से महक रहा था। 

रसोई से आ रही चाय की खुशबू अक्सर घर को आमोद-प्रमोद से भर देती है। पोहा के स्वाद को बढ़ाने के लिए इस ठंड की आलस्यपूर्ण सुबह की शुरुआत में खौलते पानी में दूध, चाय, चीनी, मसाला को मिलाकर एक सुंदर रंगत में ढालना दिल में भरे प्रेम का परिणाम है। रसोई की दीवारों से गुजरकर अंजना निरंतर अपने प्यार और समर्पण से भरे कार्यों में लीन है और जब वह चाय की रंगत से संतुष्ट होकर ट्रे में चाय सजा कर दरवाजे की ओर घूमती है तो पति को रसोई के दरवाजे पर देख एकबारगी चौंक गई।

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आरती झा आद्या

दिल्ली

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